प्रिय मित्रों,

आज हम अपने ६५ वें गणतंत्र दिवस का उत्सव मना रहे हैं. आज से ६४ वर्ष पूर्व अपने संविधान को अंगीकृत कर हम औपचारिक रूप से एक गणतंत्र बने थे. आज का दिन राष्ट्रीय शौर्य और आत्म-विश्वास के प्रदर्शन का है.

गणतंत्र दिवस हम सभी को कई भावनाओं और ज़ज्बों से सराबोर करता है. सारी दुनिया के समक्ष अपने पूर्ण वैभव के साथ संचलन करती भारतीय सैन्य शक्ति के प्रदर्शन की छवियों को यह हमारे मस्तिष्क में उकेरता है. यह हमें एक बार फिर अपने वर्दीधारी महिलाओं और पुरुषों की निस्वार्थ देशभक्ति को सलाम करने की प्रेरणा देता है. साथ ही यह हमें वीरता पुरस्कार प्राप्त जाँबाज सैनिकों के साहसिक कृत्य और पराक्रम की गाथाओं से प्रेरित करता है.

आज का दिन पीछे मुड़कर देखने और अपने गौरवशाली अतीत को स्मरण करने और उसे संजोने का भी है! आज के दिन उन महान क्रांतिकारियों- महिलाओं और पुरुषों, को याद कीजिये जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष में अपने जीवन को उत्सर्ग कर दिया. संविधान सभा के उन सम्मानित सदस्यों को याद कीजिए जिन्होंने हमें अपने संविधान के जरिये एक ऐसा बुनियादी बल प्रदान किया, जिस पर हमें बहुत गर्व कर सकते हैं. आज का दिन इस पवित्र दस्तावेज़ के प्रति अपने विश्वास और प्रतिबद्धता को दोहराने का भी दिन है जिसने आज के भारत का निर्माण किया है. हम आदरणीय बाबासाहब अम्बेडकर को अपनी श्रद्धांजलि देते हैं जिनकी (संविधान निर्माण में) महती भूमिका को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है.

महत्वपूर्ण रूप से आज का दिन आत्मनिरीक्षण का दिन भी है. भारतीय गणतंत्र का अर्थ क्या है? हमारे लिए इसके मायने क्या हैं? पिछले सात दशक के दौरान यह किस दिशा में आगे बढ़ा है? और आने वाले वर्षों में एक गणतंत्र के रूप में हमें क्या करने की आवश्यकता है?

एक वाक्यांश जिसने हाल में पर्याप्त ध्यान खींचा है वो है ‘आईडिया ऑफ़ इंडिया’ यानि ‘भारत की अवधारणा’. इस पर जारी सार्वजनिक और अकादमिक संभाषण को कुछ चुनिंदा लोगों ने हथिया लिया है और इस अवधारणा पर अपना एकाकी आधिपत्य कायम करने के लिए वो इसे एक औज़ार के तौर पर इस्तेमाल कर रहें है. कई लोग मुझसे लंबे संपादकीय विचारों और सोशल मीडिया पर पूछते रहते हैं, "मोदी जी बाकी तो सब ठीक है लेकिन भारत को लेकर आपकी अवधारणा क्या है?” कुछ लोग जो हम पर कम मेहरबान हैं, वो इस ‘भारत की अवधारणा’ के बजाय इस के लिए मेरी पार्टी की योग्यता और उपयुक्तता पर बहस करना ज्यादा पसंद करते हैं.

हालांकि, सभी को यह समझना चाहिए कि कोई भी एक व्यक्ति या संस्था ‘भारत की अवधारणा’ पर अपना एकाधिकार स्थापित नहीं कर सकती है. पिछले सप्ताह हुई भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में मुझे मेरी 'भारत की अवधारणा' के लेकर कुछ संक्षिप्त विचारों को साझा करने का अवसर मिला.

'भारत की अवधारणा' को लेकर मेरी समझ की पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बुनियादी रूप से भारत की अवधारणा की वैचारिक परिकल्पना पर आधिपत्य को खारिज करती है. ऋग्वेद हमें शिक्षा देता है: 'आ नो भद्राः कृतवो यन्तु विश्वतः’. इसका अर्थ है 'हमारी तरफ सब ओर से शुभ विचार आयें’! यह महज एक मंत्र नहीं है बल्कि हमारे संविधान का केन्द्रीय सिद्धान्त भी है. हमारा रास्ता सहिष्णुता का और विविधता के उत्सव का है जहां प्रत्येक भारतीय महज कल्पना ही नहीं करता है, बल्कि अपने सपनों के भारत के निर्माण की दिशा में काम करता है.

मेरी ‘भारत की अवधारणा’ न केवल सहिष्णुता पर आधारित है बल्कि यह विचारों की विविधता का प्रसन्नता पूर्वक समावेश करती है. मेरे ‘भारत के अवधारणा’ में प्रत्येक व्यक्ति की संवेदना का सम्मान किया जाता है.

‘भारत की अवधारणा’ के केन्द्रीय सिद्धान्त का सृजन सत्य, शांति और अहिंसा से होता है! हमारे शास्त्र 'सत्यमेवजयते' की शिक्षा देते हैं, जिसका अर्थ है कि विजय सत्य की ही होती है. मैं एक ऐसे भारत के लिए प्रतिबद्ध हूं जहां न्याय का चक्र वर्ग, जाति या पंथ से प्रभावित हुए बिना भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए तेजी से और समान रूप से घूमता हो. एक ऐसा भारत जहां अन्याय के लिए किसी भी तरह की कानूनी या नैतिक वैधता न हो.

अहिंसा एक ऐसा अन्य गुण है, जो हमारे देश में अति प्राचीन काल से प्रतिष्ठित रहा है और जिसने हमें सदैव दिशा दिखाई है. यह गौतम बुद्ध, महावीर, गुरू नानक और महात्मा गांधी की धरती हैं. हमारे शास्त्रों में लिखा है "अहिंसा परमो धर्म:"- अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है- यह विचार हमारे शास्त्रों में गहनता से समाहित है. इसीलिए 'भारत की अवधारणा' में किसी भी तरह की हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है.

वास्तव में 'भारत की अवधारणा' 'वसुधैव कुटुम्बकम्' - या संपूर्ण संसार एक परिवार है- के सिद्धान्त को ग्रहण कर बंधुत्व और मित्रता की इस लोकनीति को भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं करती है. २१वीं सदी एक बार फिर दुनिया के मार्गदर्शन में भारत की भूमिका के लिए उसका आह्वान कर रही है. 'भारत की अवधारणा' स्वामी विवेकानंद के 'जगदगुरु भारत' के सपने को साकार करने की मांग करती है, एक ऐसे आत्मविश्वासपूर्ण और आश्वस्त भारत की जो अपनी शर्तों और सिद्धान्तों के आधार पर वैश्विक समुदाय के साथ संबद्ध हो.

'भारत की अवधारणा' में जो भारत है वो अवसरों और आकांक्षाओं का भारत है. एक ऐसा भारत जहां : ‘सर्वेभवन्तुसुखिन:,सर्वेसन्तुनिरामया:'- अर्थात् जहाँ सभी समृद्ध और खुशहाल हों, सभी रोगों से मुक्त हों. दुर्भाग्यवश, दशकों से चुनिंदा लोगों के वोट बैंक को बढ़ाने के लिए जानबूझ कर गरीबी और निराशा को बनाए रखा गया है. हमारे लोगों के सपनों और आकांक्षाओं को दब्बूपन और लाचारी में बदल दिया गया. इस मकसद के तहत भारत के एक गरीब राष्ट्र होने की अविश्वसनीय कहानी गढ़ी गई है.

पर अब इस झूठ की कलई खोलने की आवश्यकता है. भारत एक गरीब देश नहीं है, इसे गरीब बनाया गया है! भारत को अकूत प्राकृतिक सम्पदा और अकल्पनीय मानवीय शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है. कुछ और नहीं बल्कि यह भारत की अथाह, अकल्पनीय समृद्धि ही थी जो हर औपनिवेशिक शक्ति को भारत की ओर खिंची लाई. इस अवचेतन उर्जा को फिर से सजीव किया जा सकता है, आवश्यकता है तो सिर्फ अपने दृष्टिकोण को बदलने की. साथ ही आवश्यकता है की हम पर-निर्भरता छोड़ अपने सपनों का दोहन करें, उन्हें पूरा करने का प्रयास करें. हम भारतीयों में आत्म-गौरव और आत्म-सम्मान का प्रगाढ़ भाव है. हम अपनी दम पर बने हुए (सेल्फ-मेड/ खुदमुख्तार) लोग हैं. हम सिर्फ न्यायोचित और बराबरी का अवसर चाहते हैं. इसीलिये ‘भारत की अवधारणा’ है की हर भारतीय को गरीबी के चंगुल से निकलने और सफलता और समृद्धि की कहानी लिखने का उचित और माकूल अवसर दिया जाए.

अब समय आ गया है की हम अपने देशवासियों को ऊंचे उठने का अवसर दें. उनको सपने देखने की शक्ति और प्रेरणा दें और साथ ही उन सपनों को पूरा करने का सामर्थ्य दें. हमारी युवा-शक्ति उर्जावान है और न केवल इस देश को बल्कि सारी दुनिया को बदलने को तैयार है. यह हमारा उत्तरदायित्व है की हम उनकी कार्य-कुशलता बढ़ाएं और उन्हें रोज़गार के उचित अवसर प्रदान करें. यह भी आवश्यक है की हम अच्छी शिक्षा, उद्यमिता, नव-प्रवर्तन (इनोवेशन), शोध एवं तकनीकि की सहायता से अनवरत उनकी प्रतिभा का संवर्धन करें.

जब जब ज्ञान की प्रधानता हुयी है, भारत ने विश्व को रास्ता दिखाया है. आज जब २१ वीं सदी सूचना और ज्ञान की सदी में तब्दील हो रही है, सम्पूर्ण विश्व एक बार फिर भारत की ओर देख रहा है.

आने वाली सदी की सरंचना मिसाइलों की ताकत से नहीं बल्कि मानव की कुशाग्र बुद्धि से तय होगी. इसीलिए शिक्षा मेरी ‘भारत की अवधारणा’ के मूल में है. शिक्षा, जो हमें अज्ञान के अन्धकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाएगी. ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ की अवधारणा भी यही है. मैं ऐसे भारत की कल्पना करता हूँ जहाँ ज्ञान की रौशनी हर घर में फैली हो. मैं ऐसे भारत की कल्पना करता हूँ जहाँ हर बच्चे को सर्वांगीण शिक्षा उपलब्ध हो जो उसके व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण कर सके.

किसी भी समाज का विकास महिला-सशक्तिकरण के बिना अधूरा है. पर महिला-सशक्तिकरण का स्वप्न तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक हम एक समाज के तौर पर महिला की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित नहीं करते हैं. महिलाओं पर अत्याचार करने से अधिक शर्मनाक शायद ही कुछ हो. अगर हम अपने देश को भारत माँ या ‘माँ भारती’ का दर्ज़ा देते हैं, अगर हमारे पूर्वज सदियों से नारी के ‘देवी’ रूप की पूजा करते रहे हैं तो हम महिलाओं के प्रति होने वाले किसी भी अपराध को क्यों सहन करते हैं? आइये हम सब मिलकर उन सभी के खिलाफ आवाज़ उठायें जो हमारी मातृशक्ति का अपमान करते हैं.

अभी तक महिला को सिर्फ गृहिणी समझा जाता रहा है पर अब आज यह आवश्यक है कि हम महिलाओं को राष्ट्र-निर्मात्री के तौर पर देखें जो हमारे भविष्य को मूलभूत रूप से परिभाषित कर सकती हैं.

भारत का विकास एक मज़बूत संघराज्य के बिना संभव नहीं है. हमारे संविधान निर्माताओं ने एक मज़बूत संघीय ढाँचे का सपना देखा था जहाँ सभी राज्य और केंद्र विकास की यात्रा में बराबर के सहभागी हों. जहाँ कोई बड़ा न हो, कोई छोटा न हो. हमें उस मनःस्थिति को बदलना होगा जहाँ राज्यों का अस्तित्व दिल्ली की दया पर निर्भर हो. हमें यह मानना होगा कि हमारे देश के खजाने में संचित धन पर देश के सभी नागरिकों का अधिकार है.

हम ऐसे भारत का सपना देखते हैं जहाँ देश का विकास सभी मुख्य-मंत्रियों, प्रधान-मंत्री, केंद्रीय मंत्रियों के साँझा प्रयास की परिणिति हो और जिसमे स्थानीय निकायों के अधिकारियों तक का योगदान सम्मिलित हो और यह सभी एक मजबूत, एकीकृत और संयुक्त ‘टीम इंडिया’ के तौर पर काम करें.

मित्रों, हम पर प्रभु की असीम अनुकम्पा है. हमारे पास अकल्पनीय प्राकृतिक और मानवीय सम्पदा है. हमारे पास सदियों से पूर्वजों द्वारा विकसित की गयी गौरवशाली परंपरा और संस्कृति की महान विरासत है. हमारी इकलौती सभ्यता है जो हमेशा समय की कसौटी पर खरी उतरी है. अन्य सभ्यताएं आयीं और गयीं, समाज-समुदाय पनपे और बिखर गए पर हमने हर चुनौती को पार किया और हम हर बार पहले से भी मजबूत हो कर उभरे हैं.

हाँ, यह सच है की विगत वर्षों में बहुत सी बाधाएँ आयीं हैं और हमें कई बड़ी और गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. यह भी सच है की हमें बहुत कुछ हासिल करना बाकी है. फिर भी ‘भारत की अवधारणा’ अक्षुण्ण है और संदेह से परे है. मुझे भारत की अन्तर्निहित शक्तियों और सामर्थ्य में पूरा विश्वास है. मेरा आपसे अनुरोध है की आप भी यह विश्वास रखें.

आइये हम अपने देश और देशवासियों में आस्था रखें और अपने महान नेताओं के निःस्वार्थ त्याग और बलिदान का समुचित सम्मान करते हुए उनके द्वारा दिखाए पथ पर आगे बढ़ें.

आइये हम अपने आप को राष्ट्र निर्माण के कार्य में ‘भारत सर्वोपरि’ के मन्त्र के साथ समर्पित करें और मिलकर ऐसे राष्ट्र का निर्माण करें जो फिर से मानवता की परिभाषा को सकारात्मक स्वरुप दे.

विकास की यात्रा में सदैव आपके साथ,

नरेन्द्र मोदी

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Kind Words from Honorable Justice Krishna Iyer, former Judge of the Supreme Court
March 19, 2020

Dear Friends,

"Work without expecting the fruits of action"- this message of the Bhagavada Gita is strongly engrained in all of us. At times, even such deeply dedicated lives get inspired when touched by emotions. Amidst the glitter of fame and name flows incessantly a stream of sentiments but it is like river Saraswati just felt underneath. The sweet sounds of these streams find their ways and shake you to the core occasionally.

Sometime back I had been to Kerala where I paid an informal courtesy to one of India’s most renowned judges, Honorable Justice Krishna Iyer (Former Judge, Supreme Court). In a simple house, he sat in a room lit with sunrays peeping through the windows in the midst of heaps of books. It was truly an honour to meet the 90-year old Justice Iyer, whose persona epitomized politeness, kindness and a deep sense of affection! This meeting will be edged in my memory forever.

Friends, the whole of Gujarat is familiar with my passion for girl child education. Everybody has enjoyed the fruits of the Kanya Kelavani initiative across Gujarat! Details about the initiative could be found here (Kanya Kelavani).

I am writing this today to share with you an inspiring letter I received from Justice Iyer a few months ago in which he lauded our efforts for girl child education. The letter is sure to bring great joy to your heart as it did to mine. Joy and enthusiasm are best enjoyed when shared and this collective enthusiasm can further strengthen us to work better.

(His letter and my reply can be viewed here)

Letter 1 :- Honorable Justice Iyer’s letter to Shri Narendra Modi

Letter 2 :- Shri Narendra Modi’s reply to Honorable Justice Krishna Iyer