ऐसा कैसे है कि नरेंद्र मोदी थकते नहीं ? उनकी ऊर्जा का क्या स्त्रोत है कि वे सप्ताह दर सप्ताह, इतनी  व्यस्त दिनचर्या के बावजूद, मशीनी सटीकता एवं उसी ऊँची गुणवत्ता के साथ कार्यपालन करते रहते है?  यह ऐसा प्रश्न है जो प्रधान मंत्री के समर्थकों एवं उनका आलोचनात्मक विश्लेषण करने  वाले, दोनों के द्वारा पूछा  जाता रहा है। 

यह प्रश्न उनसे सीधे तौर पर भी माईगोव के प्रथम टाउन हॉल कार्यक्रम में तथा हाल ही में दिल्ली के एक मीडिया हाउस के टी.वी. कार्यक्रम में भी पूछा गया। नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए उत्तर से न ही केवल उनकी  व्यक्तिगत व्यवहारिक सोच झलकती है बल्कि इसके दार्शनिक पहलू भी सामने आते है -  थकान किसी मिशन की प्राप्ति के लिए की गई मेहनत से नहीं होती बल्कि  बच गए अपूर्ण कार्य के बारे में सोचकर होने वाली मानसिक चिंता से  होती है।  राहुल जोशी को दिए गए साक्षात्कार में मोदी ने अपने इस विचार को कुछ इस तरह से व्यक्त किया - "वास्तव में हम काम नहीं करने से थकते हैं, अपितु काम तो हमें संतुष्टि देता है।  यह संतुष्टि हमें ऊर्जा देती  है।   मैंने हमेशा ऐसा ही महसूस किया है और अपने युवा दोस्तों को भी यही बताया है।  आप अगर नई चुनौतियाँ स्वीकार करते रहें तो  स्वयं आपके अंदर से ही आपको समर्थन मिलेगा।  यह आपमें अंतर्निर्मित है।"

उनका मन्त्र सरल लेकिन अचूक है - यदि आप अपने काम में आनंद ले रहे हैं  तो आप कभी भी थकावट नहीं महसूस करेंगे क्योंकि आप तो वही कर रहे हैं जिसमें आपको आनंद आता  है !