मानवता में हमारा विश्वास

Published By : Admin | May 26, 2015 | 15:04 IST

"लोगों के पासपोर्ट का रंग अलग-अलग हो सकता है लेकिन मानवता के बंधन से मजबूत और कोई बंधन नहीं है" - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कथन बार-बार कहा है और हर त्रासदी के बाद इसे वास्तविकता में करके दिखाया है।

जब यमन में संघर्ष अपने चरम पर पहुंच गया था तो वहां कई देशों के लोग प्रभावित क्षेत्र में फंस गए थे। भारत सरकार ने लोगों को बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, और न केवल भारतीय बल्कि अन्य देशों के नागरिकों को भी वहां से सुरक्षित निकाला। कई देशों ने अपने बचाव कार्य में भारत से मदद मांगी और भारत ने व्यापक स्तर पर जिस तीव्र गति से बचाव कार्य किया, वह अभूतपूर्व और अत्यधिक प्रभावी रहा।



उच्चतम अधिकारियों ने बचाव कार्य में भारत की इस तीव्र और व्यापक प्रतिक्रिया की निगरानी की। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज लगातार स्थिति पर नजर रख रही थीं। विदेश राज्य मंत्री श्री वीके सिंह व्यक्तिगत रूप से इस अभियान की अगुआई करते हुए यमन और जिबूती गये।

अप्रैल 2015 में 25 सुबह की, जब नेपाल में विनाशकारी भूकंप आया तो भारत ने नेपाल के लोगों के दर्द को साझा करने के लिए हरसंभव कार्य किया। भारतीय सशस्त्र बल, आपदा प्रबंधन दल और सर्वोच्च अधिकारियों ने नेपाल जाकर लोगों की मदद की और स्थिति को सामान्य करने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री ने स्थिति पर नजर रखने के लिए कई उच्च स्तरीय बैठक बुलाई। साथ-ही-साथ भूकंप प्रभावित नेपाल से भारतीय और विदेशी नागरिकों को बचाने के लिए जो कुछ संभव था, भारत ने किया।



दुनिया के मंच पर भारत के इन प्रयासों की सराहना की गई। जब श्री मोदी ने विश्व के नेताओं से मुलाकात की, चाहे वो फ्रांस के राष्ट्रपति होलांद हों या प्रधानमंत्री हार्पर, सभी ने राहत और बचाव कार्य में भारत के प्रयासों की सराहना की। इजरायल के प्रधानमंत्री नेतनयाहू ने प्रधानमंत्री के साथ टेलीफोन पर बात कर भारत के प्रयासों की सराहना की। भारत में अमेरिका के राजदूत श्री रिचर्ड वर्मा ने भी भारत की भूमिका की सराहना की।

फ़रवरी 2015 में फादर एलेक्सिस प्रेम कुमार अफगानिस्तान में आठ महीने की एक लंबी अवधि तक कैद रहने के बाद घर वापस आये। वे अपने कार्यों के प्रति समर्पित थे और लोगों की मदद किया करते थे लेकिन अमानवीय तत्वों ने उनके लिए और ही योजना बना रखी थी। उनका अपहरण कर लिया गया था लेकिन महीनों से उनकी रिहाई पर गतिरोध बना हुआ था। आख़िरकार सरकार उन्हें वापस घर लाने एवं उन्हें अपने परिवार से मिलवाने में सफल रही। इससे परिवार बहुत खुश था और रिहाई के लिए केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया।

इसी तरह, मध्य-पूर्व के विभिन्न हिस्सों में फंसे भारतीय नर्सों को भी सरकार ने वहां से सुरक्षित निकाला। केरल के मुख्यमंत्री श्री ओमन चांडी ने नर्सों को इराक से वापस लाने में केंद्र सरकार के प्रयासों के लिए केन्द्र को धन्यवाद दिया।

इस तरह केंद्र सरकार ने हमेशा यह दिखाया है कि संकट के समय में मानवता का बंधन पासपोर्ट के रंग की तुलना में अधिक मायने रखता है।

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26 मई 2014 को सत्ता में आने के बाद से भारत सरकार ने ऐसी विदेशी नीति अपनाई है जिसमें पूरे विश्व को सक्रिय रूप से एक साथ लेकर चलने और साथ-ही-साथ विश्व के सभी देशों को भारत में निवेश करने के लिए आमंत्रित करने की नीति निर्धारित है।

26 मई 2014 को जब प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्री शपथ ले रहे थे, वहां इस अवसर पर सार्क देशों के प्रमुख उपस्थित थे। उनमें राष्ट्रपति करजई (अफ़गानिस्तान), प्रधानमंत्री तोबगे (भूटान), राष्ट्रपति यामीन (मालदीव), प्रधानमंत्री कोइराला (नेपाल), प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (पाकिस्तान) और राष्ट्रपति राजपक्षे (श्रीलंका) शामिल थे। प्रधानमंत्री शेख हसीना जापान के एक पूर्व-निर्धारित दौरे पर थीं, इसलिए बांग्लादेश की तरफ से वहां की संसद के अध्यक्ष यहाँ आये थे। अगले दिन प्रधानमंत्री ने इन नेताओं के साथ व्यापक द्विपक्षीय वार्ता की।



श्री मोदी ने सार्क देशों के प्रति अपनी सोच और प्रतिबद्धता को बार-बार दोहराया है। पदभार संभालने के बाद वे अपने पहले विदेशी दौरे के तौर पर भूटान गये थे जहाँ उन्होंने भूटान की संसद को संबोधित किया और भारत-भूटान सहयोग को मजबूत करने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये। वे 2014 में द्विपक्षीय यात्रा पर नेपाल जाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने जहाँ फिर से मूल ध्येय भारत-नेपाल संबंधों को मजबूत बनाना था। भारत-श्रीलंका संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री ने मार्च 2015 में श्रीलंका का दौरा किया। इससे एक महीने पहले राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना जनवरी 2015 में श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने के बाद अपनी पहली यात्रा के तौर पर भारत आये थे।



प्रधानमंत्री ने पहले ही वर्ष में में कई महत्वपूर्ण शिखर सम्मलेन का दौरा किया है। जुलाई 2014 में प्रधानमंत्री ने फ़ोर्टालेज़ा (ब्राजील) में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया जहाँ उन्होंने ब्रिक्स देशों के लिए आगे रोडमैप बनाने के लिए ब्रिक्स नेताओं से मुलाकात की। इस संबंध में एक प्रमुख विकास यह हुआ है कि ब्रिक्स बैंक का गठन किया गया है और एक भारतीय को इस बैंक का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया है।



सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया जिसमें उन्होंने वैश्विक शांति के महत्व पर बल दिया और उन तरीकों पर प्रकाश डाला जिससे भारत दुनिया में अपना योगदान दे सकता है। उन्होंने विश्व से एकजुट होकर किसी एक दिन को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में चिह्नित करने का आह्वान किया। दिसंबर 2014 में उनका यह आह्वान सफल हुआ जब 177 राष्ट्रों ने एक साथ मिलकर 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव पारित किया। निश्चित रूप से इससे दुनिया भर में योग बहुत लोकप्रिय होगा।



नवंबर 2014 में प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लिया जहाँ उन्होंने दुनिया के कई नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठक की। जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने काले धन को देश में वापस लाने पर काफी जोर दिया और काले धन की बुराइयों का भी उल्लेख किया। शिखर सम्मेलन में विचार-विमर्श के दौरान यह हस्तक्षेप बहुत महत्वपूर्ण था जो यह दिखाता है कि सरकार इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से ले रही है।



उसी महीने, प्रधानमंत्री ने म्यांमार में आसियान शिखर सम्मेलन में भाग लिया जहाँ फिर से उन्होंने कई एशियाई नेताओं से मुलाकात की। उनसे मिलने वाले सभी नेता सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को लेकर बहुत उत्साहित थे। नवंबर 2014 में एक दूसरा महत्वपूर्ण आयोजन था, नेपाल के काठमांडू में सार्क शिखर सम्मेलन जहाँ फिर से प्रधानमंत्री ने सार्क नेताओं के साथ बैठक की।



श्री मोदी ने दुनिया के हर क्षेत्र पर काफी ध्यान दिया है। मार्च 2015 में उनका तीन देशों, सेशेल्स, मॉरिशस औरश्रीलंका का दौरा हिंद महासागर पर केंद्रित था। सेशेल्स में प्रधानमंत्री ने भारत की मदद से स्थापित किये गए तटीय रडार परियोजना का उद्घाटन किया। वे बाराकुडा के शुरू होने के समारोह में भी शामिल हुए जो भारत-मॉरीशस सहयोग की एक और निशानी है।

अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री ने फ्रांस, जर्मनी और कनाडा का दौरा किया। यह यात्रा यूरोपीय देशों और कनाडा के साथ सहयोग को बेहतर बनाने के उद्देश्य से की गई थी। फ्रांस में परमाणु ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में ठोस प्रगति सहित रिकार्ड 17 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए। जर्मनी में प्रधानमंत्री और चांसलर मर्केल ने संयुक्त रूप सेहनोवर मेले का उद्घाटन किया और प्रधानमंत्री ने रेलवे के आधुनिकीकरण के बारे में जानने के लिए बर्लिन में एक रेलवे स्टेशन का भी दौरा किया। जर्मनी में कौशल विकास पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया गया। कनाडा में आर्थिक संबंधों, ऊर्जा और यहां तक कि सांस्कृतिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित था। कनाडा की उनकी यात्रा ऐतिहासिक थी क्योंकि यह 42 साल में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली कनाडा यात्रा थी।



प्रधानमंत्री ने भारत के पूर्वी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत बनाने के लिए विशेष प्रयास किए हैं। उन्होंनेअगस्त 2014 में जापान की एक महत्वपूर्ण यात्रा की जहाँ दोनों देश उद्योग, प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों और सरकार के स्मार्ट शहर परियोजना में बड़े पैमाने पर सहयोग करने पर सहमत हुए। मई 2015 में प्रधानमंत्री चीन गये जहाँ शियान में उनका विशेष स्वागत किया गया। यह पहला मौका था जब विश्व के किसी नेता का बीजिंग से बाहर स्वागत किया गया। वे मंगोलिया भी गये और मंगोलिया की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्रीबने। इसके बाद उन्होंने दक्षिण कोरिया का दौरा किया जहाँ उन्होंने शीर्ष मुख्य कार्यकारी अधिकारियों से मुलाकात की, एक शिपयार्ड का दौरा किया और निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया।

पिछले एक वर्ष के दौरान भारत ने भी विश्व के शीर्ष नेताओं का स्वागत किया है। जनवरी 2015 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि के तौर पर भारत आये। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ओबामा ने संयुक्त रूप से भारतीय और अमेरिकी व्यापार जगत के प्रमुखों को संबोधित किया और व्यापक वार्ता की। प्रधानमंत्री टोनी एबट ने सितंबर 2014 में भारत का दौरा किया और इसी महीने राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी भारत दौरे पर आये जहाँ प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात में उनका स्वागत किया। दिसंबर 2014 में रूस के राष्ट्रपति पुतिन भारत के महत्वपूर्ण दौरे पर आये जिसके दौरान परमाणु और व्यापारिक संबंधों के बारे में बड़े पैमाने पर चर्चा हुई।



श्री मोदी प्रशांत द्वीप समूह के देशों के साथ अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। नवंबर 2014 में अपनी फिजी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने प्रशांत द्वीप के सभी देशों के नेताओं से मुलाकात की और सभी ने इस क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने के विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। बाद में इस वर्ष अफ्रीकी देशों के नेता दिल्ली में होने वाले शिखर सम्मलेन में भाग लेंगे। पिछले एक वर्ष में प्रधानमंत्री ने अरब के नेताओं से मुलाकात कर अरब देशों, एक ऐसा क्षेत्र जो हमेशा से भारत का अच्छा मित्र रहा है, के साथ भारत के संबंधों को मजबूत बनाने के विभिन्न तरीकों पर चर्चा की है।



जब भी प्रधानमंत्री विदेशी दौरे पर जाते हैं, उनका कार्यक्रम विभिन्न बैठकों और महत्वपूर्ण यात्राओं से परिपूर्ण होता है जिसका मुख्य उद्देश्य देश में बुनियादी संरचना को बदलना और यहाँ निवेश को बढ़ाना है। सभी यात्राओं में ऊर्जा, विनिर्माण, निवेश, कौशल विकास और बुनियादी सुविधाओं जैसे विषयों पर चर्चा एवं विचार-विमर्श एक आम बात रही है और प्रत्येक यात्रा भारत के लोगों के लिए कुछ नया एवं उत्साहवर्धक परिणाम लेकर आती है।