1959 में आर्थर बोनेर ने India’s masses: The Public Cant be reached के नाम से एक लेख लिखा। बोनेर ने राष्ट्रवाद के विकास के लिए एक सामान्य उद्देश्य के रूप में प्रभावी संचार की कमी पर प्रकाश डाला और इसे एक नए स्वतंत्र देश में सार्वजनिक प्रशासन की चुनौतियों के सामने एक गंभीर बाधा बताया। उन्होंने कई वर्षों तक देश भर में व्यापक दौरा किया और एक ओर शहर के नए अभिजात्यों और दूसरी ओर मध्य प्रदेश में गोंड जनजाति के लोगों से बातचीत की। उस वक्त उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि अभिजात्य शासक वर्ग और शासितों के बीच नजदीकी संपर्क में कमी हमारे लोकतंत्र को नाजुक और कमजोर बना देगी। इतिहास ने हमें दिखाया है कि नागरिकों से जुड़ा हर काम जनता और राजनीतिक भावनाओं के बीच ही घूमता है। मार्था नसबाउम जैसे दार्शनिकों ने वृतांत देकर दिखाया है कि सभी समाजों में मौजूद भावनाओं और उन जन भावनाओं से जुड़े संगठन के पास एक देश और उसके लक्ष्यों का बहुत बड़ा महत्व होता है। सांस्कृतिक और भाषाई विविधता वाले हमारे देश में जनमत और जन भावनाओं को किसी पैमाने पर परखना काफी जटिल है।

हमारे देश की जनसांख्यिकीय में युवा सबसे ज्यादा हैं। 70.30 करोड़ भारतीयों की उम्र 30 साल से कम है। हमारी 41 प्रतिशत जनसंख्या 20 साल से कम उम्र की है। इंटरनेट, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, मैसेजिंग एप्लीकेशन्स बोनेर द्वारा दर्ज की गई बाधाओं को दूर करने में नाटकीय रूप से मदद करते हैं। मई, 2014 में मैंने इसके बारे में लिखा था कि तब नरेंद्र मोदी ने किस तरह से इन सभी साधनों का उपयोग जनता, मतदाताओं और निर्वाचकों को साथ जोड़ने के लिए किया। उसके बाद फेसबुक पर प्रधानमंत्री के प्रशंसकों की संख्या 1.40 करोड़ से बढ़कर 2017 में 4.28 करोड़ प्रशंसक तक पहुंच गई है और इसने उन्हें वर्तमान समय में फेसबुक पर विश्व का सबसे लोकप्रिय नेता बना दिया है। मई, 2014 से अबतक मोदी के फेसबुक पेज पर 58.54 करोड़ बार चर्चा हो चुकी है और 8.22 करोड़ 40 हजार वीडियो देखे जा चुके हैं।

हाल में संपन्न हुए राज्य विधानसभा चुनावों के संबंध में भारत में 3.2 करोड़ लोगों ने फेसबुक पर 26.5 करोड़ बार चर्चाएं कीं। अगर इस प्लेटफॉर्म पर दिए गए समय में नेताओं की रैंकिंग के लिए चर्चा करने वाले लोगों का प्रतिशत निकालें तो 74 प्रतिशत के साथ नरेंद्र मोदी टॉप पर रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन साधनों का उपयोग सिर्फ जनमानस को चुनाव के समय संगठित करने के लिए ही नहीं किया है, बल्कि जनता से जुड़े काम करने के लिए भी किया है। हमारी जनसंख्या में 48.5% महिलाएं हैं। हमारा इतिहास दर्द और दंड से भरा है, अक्सर हमारे परिवारों और समाजों में उन्हें बड़े भेदभाव का सामना करना पड़ता है। 2015 में हमारे समाज और परिवारों के बर्ताव में बदलाव लाने के लिए 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान' की शुरुआत की गई, जिससे इस कार्यक्रम और इसके संसाधनों के बारे में जागरुकता बढ़ाई जा सके और स्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़े और सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाई जा सके। दिवाली के समय Sandesh2soldiers जैसे एक और राष्ट्रीय अभियान ने नागरिकों को सैनिकों को संदेश देने के लिए प्रेरित किया, जिससे त्योहार के मौके पर राष्ट्र के प्रति उनकी सेवाओं के लिए धन्यवाद दिया जा सके।

सोशल मीडिया प्लटेफॉर्म्स ने प्रतिदिन की जवाबदेही तय करने की संस्कृति विकसित की है। जनता शासन में हमेशा भागीदारी चाहती है, वो सिर्फ चुनाव प्रक्रिया में शामिल होकर नहीं रहना चाहती। शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही का दबाव दिनों-दिन बढ़ रहा है। लोग चुने हुए मंत्रियों, सांसदों को जानकारी देना चाहते हैं, सरकारी कार्यक्रमों और जनसेवा के कार्यों पर फीडबैक देना चाहते हैं और आलोचनाओं के बारे में बताना चाहते हैं। वो सिर्फ पाना ही नहीं चाहते। नए तकनीकी साधनों से लैस हर नागरिक एक सक्रिय प्रकाशक है और वो सरकार के काम में भागीदारी चाहता है। IAMAI के एक ताजा अध्ययन के अनुसार जून, 2017 तक भारत में 46.5 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हो जाएंगे। इनमें से 28.5 करोड़ शहरी क्षेत्रों और 18 करोड़ ग्रामीण क्षेत्रों में होने की संभावना है। इस अध्ययन के अनुसार कुल मिलाकर वर्तमान समय में 32 प्रतिशत जनसंख्या के इंटरनेट के दायरे में होने का अनुमान है।

75 करोड़ ग्रामीण जनता और 17.5 करोड़ शहरी जनता हमारे समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं, जिन्हें अभी भी ऑनलाइन करने की जरूरत है, जिससे उनकी भी आवाज को बदलती हुई दुनिया के साथ मजबूती के साथ जोड़ा जा सके। सार्वजनिक सेवाओं और सब्सिडी वितरण में पारदर्शिता और बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए हमारे देश में डिजिटल लेन-देन, डिजिटल पहचान की ओर खूब जोर दिया जा रहा है।

सक्रिय राजनीतिक और जन-भागीदारी की इन घटनाओं में और तेजी से वृद्धि होने वाली है और इसीलिए लोगों को जोड़ने और जानकारी साझा करने की जरूरत और बढ़ने वाली है। इसी स्थिति को स्वीकार कर डिजिटल इंडिया के तहत सभी मंत्रालयों, सरकारी एजेंसियों और मंत्रियों को सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति, अपनी बात रखने, प्रतिदिन की गतिविधियों को साझा करने, रिपोर्ट कार्ड पेश करने और फीडबैक लेने पर जोर दिया जा रहा है। केंद्र सरकार के 76 में से 75 मंत्री और 51 में से 46 मंत्रालय फेसबुक पर उपलब्ध हैं।

वैश्विक कूटनीति से लेकर डिजिटल लेन-देन जैसे आर्थिक मसले के बारे में आम जनता को बताने और देश के करोड़ों नागरिकों से सीधे संवाद के लिए प्रधानमंत्री ने इस प्लेटफॉर्म का उपयोग अनिवार्य साधन के रूप में किया है। उच्च वर्ग के पास बातचीत के लिए कई खास रास्ते मौजूद हैं, प्रधानमंत्री ने इन साधनों का उपयोग परंपरागत तौर पर पीछे महसूस करने वालों की सूचनाहीनता की इसी विषमता को दूर करने के लिए किया है। जानकारी उपलब्ध रहने पर बेहतर निर्णय लेने, लालफीताशाही खत्म करने, जवाबदेही तय करने, उनके प्रदर्शन और जनता एवं सरकार के बीच खुला माहौल बनाने और बराबर के संबंध बनाने में हमेशा मदद मिलती है।

एक डिजिटल रूप से जुड़े समाज की ओर यह मार्च केवल आर्थिक अवसर और समृद्धि ही नहीं देता है।

पारदर्शिता बढ़ाना, महान लोकतांत्रिक परंपराओं से बनी हमारे संस्थानों से अपारदर्शिता खत्म करना और अपनी संस्कृति की आवश्यकताओं के अनुसार काम, यही वो परिवर्तन है जो प्रधानमंत्री मोदी के शासन का मॉडल है।

(अंखी दास, भारत और दक्षिण एवं मध्य एशिया में फेसबुक के लिए लोक नीति की निदेशिका हैं। उनके पास टेक्नोलॉजी सेक्टर में लोक नीति और रेगुलेटरी एफेयर्स में 17 साल का अनुभव है)

जो विचार ऊपर व्यक्त किए गए हैं, वो लेखक के अपने विचार हैं और ये जरूरी नहीं कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी एप इससे सहमत हो।