प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 12 दिसंबर 2015 को वाराणसी का दौरा किया। दोनों नेताओं ने दशाश्वमेध घाट पर प्रार्थना की और गंगा आरती में शामिल हुए।
एक संगोष्ठी में अपने विचार साझा करते हुए जापान के प्रधानमंत्री ने गंगा आरती को “एक पवित्र वातावरण में आयोजित एक भव्य उत्सव” बताया। प्रधानमंत्री आबे ने आगे कहा, “माँ गंगा नदी के तट पर मैं उस पवित्र वातावरण के मधुर संगीत और आरती में खो सा गया। एशिया के दोनों सिरों को जोड़ने वाला गौरवशाली इतिहास मेरे लिए आश्चर्यचकित कर देने वाला था।”
प्रधानमंत्री आबे ने यह भी माना कि वाराणसी ने उन्हें उस ‘समसार’ की याद दिला दी जिस शिक्षा को जापान के लोग प्राचीन काल से महत्वपूर्ण मानते आए हैं। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि कैसे गौतम बुद्ध की शिक्षा भारत और जापान में सर्वत्र फैली हुई है और यह दोनों देशों के बीच एक ‘सूत्र’ का काम कर रही है।
जापान के प्रधानमंत्री ने भारत के साथ बढ़ते व्यापार और निवेश पर भी संतोष जताया। उन्होंने एशिया में शांति और समृद्धि बनाए रखने में भारत के प्रयासों की सराहना की।
“एशिया में साझा मूल्य और लोकतंत्र” संगोष्ठी में जापान के प्रधानमंत्री के संबोधन के कुछ अंश नीचे दिये गए हैं:
“माँ गंगा” नदी के तट पर
एक महीने से कुछ ज्यादा पहले की बात है जब मैं भारत दौरे पर था, प्रधानमंत्री मोदी मुझे अपने साथ वाराणसी ले गए। वहाँ मैंने उनके साथ गंगा आरती में भाग लिया जो पवित्र वातावरण में आयोजित एक भव्य उत्सव समान था। यह मेरे लिए एक शानदार अनुभव था।
मैं जानता था कि वाराणसी सबसे पवित्र स्थलों में से एक है और जब मैं उस उत्सव में भाग ले रहा था, एक से एक विचार मेरे मन में आ रहे थे।
जल प्रवाह के लिए सम्मान की भावना... यह एक ऐसी चीज़ है जिसके बारे में हम जापान के लोगों को किसी स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं है। और यही कारण है कि जापान सरकार ने लंबे समय तक गंगा नदी के निवारण में अपनी सहायता प्रदान की है।
वाराणसी ने उन्हें उस ‘समसार’ की याद दिला दी जिस शिक्षा को जापान के लोग प्राचीन काल से महत्वपूर्ण मानते आए हैं। लोग जन्म लेते हैं और अंततः मर जाते हैं और कुछ और बन जाते हैं और इसलिए हमें अपने वर्तमान समय का पूर्ण आनंद लेना चाहिए। किसी न किसी तरह हम वैसा ही सोच रहे हैं।
हालांकि मैं अपनी पिछली यात्रा के दौरान नहीं जा पाया लेकिन मैं जानता था कि वो जगह पास ही है जहाँ बुद्ध ने अपने अनुयायियों को पहली शिक्षा दी थी।
उन्होंने सभी को सर्वजन हित के लिए आगे बढ़ने और काम करने की शिक्षा दी थी। उनकी इस शिक्षा का प्रचार-प्रसार पूरे जापान में हुआ और आज वह एक सूत्र के रूप में विद्यमान है।
माँ गंगा नदी के तट पर मैं उस पवित्र वातावरण के मधुर संगीत और आरती में खो सा गया। एशिया के दोनों सिरों को जोड़ने वाला गौरवशाली इतिहास मेरे लिए आश्चर्यचकित कर देने वाला था।
चाहे वो दया-भाव वाला प्रेम हो, परोपकार हो, बंधुत्व हो, या सद्भाव, मेरा मानना है कि एशिया के रग-रग में वह सोच बसी है जो लोकतंत्र का समर्थन करती है और स्वतंत्रता और मानव अधिकारों को महत्व देती है।
वहाँ से, एक सुंदर और बड़ा-सा खिला हुआ कमल अब फ़ल-फूल रहा है। इसके साथ-साथ तेजी से बढ़ता व्यापार और निवेश एशिया में शांति और समृद्धि ला रहा है। अगर यह हमारी ख़ुशी का कारण नहीं होगी तो मैं पूछता हूँ कि इस धरती पर और कौन-सी चीज़ हमें ख़ुशी दे सकती है?
एक नए साल की शुरुआत में, हम मानते हैं कि एशिया के लिए एक नए युग की शुरुआत हो रही है, एक ऐसा युग जिसमें स्वतंत्रता, मानवाधिकार और लोकतंत्र में हमारी पहचान होगी और कानून के नियमों का सम्मान होगा, जापान भरोसेमंद एशिया का एक सदस्य बने रहने के अपने दृढ़ संकल्प को दोहराता है। इसी संकल्प के साथ मैं अपना संबोधन समाप्त करता हूँ।
पूरा भाषण पढ़ें - https://japan.kantei.go.jp/97_abe/statement/201601/1215564_10999.html