वाराणसी को परंपरा और इतिहास से भी पुराना कहा जाता है। मार्क ट्वेन ने कहा है “बनारस इतिहास से पुराना है, परंपरा से पुराना है, दंतकथा से प्राचीन है और इन सभी को एक साथ रख दिया जाए तो यह इन सब से दोगुना प्राचीन दिखता है।” गंगा नदी के तट पर स्थित घाट काशी के दिव्य स्थलों में से एक है। हमेशा तीर्थयात्रियों से भरे हुए गंगा घाट पवित्रता के द्योतक हैं।
हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने एलईडी आधारित कुशल प्रकाश व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय पहल के तहत वाराणसी के 84 घाटों के सभी पारंपरिक लाइटों को बदलकर एलईडी लाइट लगाने का निर्णय किया। इसका उद्देश्य घाट पर रोशनी बढ़ाने, बिजली की खपत कम करने और आम लोगों के बीच एलईडी लाइट के उपयोग पर जागरूकता फैलाना है।
9 जून को श्री पीयूष गोयल ने परियोजना की शुरुआत की और तीन महीने के अंदर इसे पूरी तरह से लागू करने का लक्ष्य रखा गया। लेकिन सिर्फ तीन सप्ताह में ही वाराणसी के घाटों को पूरी तरह से प्रकाशमय कर दिया गया। अस्सी घाट से लेकर दशाश्वमेध घाट, प्रयाग घाट से प्रभु घाट, सभी 84 घाटों की पारंपरिक लाइट को एलईडी लाइट से बदल दिया गया।
वाराणसी नगर निगम ने गंगा नदी के सभी घाटों पर हाई मास्ट और मिनी मास्ट लाइटिंग और स्ट्रीट लाइट लगाई है। इस पहल के परिणामस्वरूप वाराणसी घाट अब और अधिक ऊर्जा दक्ष हो गए हैं। एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) द्वारा किया गया एक अध्ययन बताता है कि एलईडी लाइट के लगाये जाने से बिजली की लागत में 70 फीसदी से ज्यादा की कमी आएगी। हर साल 1.21 मिलियन यूनिट बिजली की बचत की जा सकेगी।
पारंपरिक लाइट की तुलना में एलईडी लाइट ल्युमिनेन्स स्तर पर 110 फीसदी बेहतर है। एलईडी लैंप की औसत रोशनी 37.33 लक्स है जबकि पारंपरिक लैंप की औसत रोशनी 17.55 लक्स होती है।
एलईडी लाइट के लगने के बाद बिजली की वार्षिक खपत 1.68 मिलियन यूनिट से घटकर 0.47 मिलियन यूनिट होने का अनुमान है। इस कदम से वार्षिक बिजली बिल में 30 प्रतिशत की कमी आएगी जिससे प्रति वर्ष लगभग 1.25 करोड़ रुपये का मौद्रिक लाभ होगा।
ईईएसएल ने अस्सी और दशाश्वमेध, दोनों घाटों पर एलईडी लाइट के बारे में लोगों की राय जानने के लिए 50 लोगों में सर्वेक्षण भी किया। परिणाम काफी उत्साहवर्धक रहा। घाटों पर एलईडी लाइट के लगाए जाने को लेकर सभी लोगों ने सकारात्मक राय दी।