मेरे प्रिय वाराणसी वासियों,
प्राचीन नगरी वाराणसी हजारों वर्षों से ज्ञान, शिक्षा और संस्कृति का प्रतीक रही है. यह शिव की नगरी है. शिव जो विभिन्न संस्कृतियों के बीच समन्वय सेतु हैं. शिव जो संसार को बुराइयों से बचाने के लिए खुद विष पीकर नीलकंठ कहलाते हैं. आज पूरे देश की निगाहें वाराणसी पर टिकी हैं, तो इसकी वजह भी वाराणसी का यही शिव स्वरूप है जो विष भी पी सकता है और देश को निराशा के गर्त में ढकेलने वालों से मुक्त करने का डमरू भी बजा सकता है.
यह माना जाता है कि ये वाराणसी ही है जहां गंगा माँ का सौंदर्य और महत्व उस उच्चतम स्तर को प्राप्त कर लेता है जहाँ गंगा का दर्शन मात्र ही मुक्ति का माध्यम बन जाता है. पर आज यही मोक्षदायिनी गंगा स्वयं अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. हजारों करोड़ व्यय करने के बाद भी गंगा की स्थिति जस-की-तस है. गंगा वाराणसी का गौरव है, यहाँ के निवासियों की आन है. गंगा को उसका गौरव वापस दिलाने के लिए व्यापक प्रयास की आवश्यकता है.
वाराणसी गंगा-जमुनी संस्कृति का सबसे बड़ा केंद्र भी है. हिंदू धर्म में तो ये सर्वाधिक पवित्र शहर माना ही जाता है, लेकिन ये शहर जैन और बौद्ध धर्म में भी काफी महत्व रखता है. गौतम बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन पास ही सारनाथ में दिया था. भारत रत्न बिस्मिल्ला खान की शहनाई की गूंज भी हिंदू- मुस्लिम एकता का ऐलान यहीं पर करती रही है. परिणामतः वाराणसी आज आध्यात्मिक ज्ञान का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र है.
नई दिल्ली देश की राजनीतिक राजधानी है. मुंबई को वित्तीय राजधानी कहा जाता है. इसी कड़ी में मैं चाहता हूँ कि वाराणसी भारत की ‘बौद्धिक राजधानी’ बने. मैं और मेरी पार्टी इस दिशा में भरसक प्रयास करेंगे. हम काशी को ऐसे शहर के रूप में विकसित करना चाहेंगे जो भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक गतिविधियों का केंद्र हो और जहाँ ज्ञान का निरंतर प्रवाह हो.
यहां बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जैसे विश्व-स्तरीय शिक्षा संस्थान हैं जिनके संवर्धन और सतत विकास की जरूरत है क्योंकि ये संस्थान न केवल बनारस की पहचान हैं बल्कि भोजपुरी क्षेत्रों सहित पूरे पूर्वांचल में ज्ञान की अलख जलाए रखने के लिए भी ये अपरिहार्य हैं.
बनारस पर्यटन का बहुत बड़ा केंद्र है और साथ ही अपने हस्त-शिल्प और कारीगरी के लिए विश्व-विख्यात है. पर फिर भी यहाँ के नौजवान रोज़गार के लिए भटक रहे हैं. एक समय था कि जब पूरे देश में बनारसी पान और बनारसी साड़ी का वर्चस्व था और जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलता था, लेकिन आज ये दोनों ही अपनी वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं. इतने वर्षों में हम बनारस के लिए कोई नया ब्रांड तैयार नहीं कर सके, जबकि पुराने ब्रांड अपनी चमक खोते जा रहे हैं.
आज आवश्यकता है कि हम वाराणसी की समृद्ध विरासत का पुनरुद्धार करें. यहाँ के कुटीर उद्योगों और हस्त-शिल्प व् हथ-करघा व्यवसाय को पुनर्जीवित करें. यहीं पर रोज़गार का सृजन करें. ऐसा करके हम हजारों लोगों को न केवल उनके घर के नज़दीक ही रोजगार दे सकेंगे बल्कि वाराणसी को उसका पुराना गौरव भी लौटा सकेंगे.
हालांकि ये सब बेहतर नगरीय सुविधाओं के बिना पूरा नहीं होगा. आज बनारस सड़क, अतिक्रमण, जाम और बिजली-पानी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. इन समस्याओं की बड़ी वजह केंद्र और राज्य सरकारों की उपेक्षा है, लेकिन साथ ही सरकारी विभागों में ठेकेदारी सहित हर जगह माफियाओं के दखल भी इसका एक कारण हैं. मैं आपसे वादा करता हूं कि दिल्ली से लेकर बनारस तक जनता के धन को लूटने वाले हर माफिया के वर्चस्व को पूरी तरह से खत्म किया जाएगा.
१६वीं लोकसभा के लिए मतदान की निर्णायक बेला आ चुकी है. आपको याद होगा कि २०वीं सदी के अंतिम वर्षों में दुनिया भर के विचारक और चिंतक ये घोषणा कर रहे थे कि २१ वीं सदी भारत की होगी. और सदी के शुरुआती वर्षों में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में ये भविष्यवाणी सच होती हुई दिखाई दे रही थी. दुनिया भारत की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रही थी. देश के नौजवानों में गजब का उत्साह था और हर परिवार के पास अपने बच्चों की कामयाबी की कहानियां थीं. लेकिन यूपीए के दस वर्षों के कुशासन ने देश को आगे बढ़ाने के बजाय, दशकों पीछे धकेल दिया है और बढ़ते भारत की कहानी को बीच में ही अधूरा छोड़ दिया.
मित्रों आज समय आ गया है कि हम इस स्थिति को बदलें. कहते हैं की देश की राजनीति का प्रतिबिम्ब वाराणसी में झलकता है. तो आइये शुरुआत यहीं से करें.
वैसे भी वाराणसी ही ऐसी जगह है जहां गंगा उत्तर वाहिनी हैं. शक्तिशाली गंगा की धारा भी यहाँ आकर अपनी दिशा बदल कर मुड़ जाती है. इसलिए अब वाराणसी से ही बड़े परिवर्तन की शुरुआत होगी. देश फिर से सुशासन के पथ पर अग्रसर होगा और वाराणसी से निकला यह सन्देश पूरे देश में अलख जगाएगा.
इस विश्वास के साथ.
काल हर ! कष्ट हर ! दुख हर ! दरिद्र हर ! हर हर महादेव ! ॐ नमः शिवाय. जय जय बाबा विश्वनाथ जी की.
आपका,