किसी भी राजनेता के लिए मतगणना का दिन सबसे महत्वपूर्ण दिनों में होता है। ये जनादेश का दिन होता है, इस दिन कम से कम अगले पांच वर्षों के लिए एक नेता और एक पार्टी की भूमिका का निर्धारण होता है।
ऐसे में जाहिर है कि कोई भी नेता वोटों की गितनी के दौरान बेहद सक्रिय और बेचैन होगा। अकसर नेता अपनी स्क्रीन से चिपके रहते हैं। कार्यकर्ता और साथी कमरे में आकर ताजा रुझान और परिणाम बताते रहते हैं।
एक उल्लेखनीय अपवाद श्री नरेंद्र मोदी हैं।
क्या वो टीवी स्क्रीन से चिपके रहते हैं? नहीं!
क्या उनका कमरा साथियों और समर्थकों से भरा रहता है, ताजा रुझानों और परिणामों की हलचल रहती है? नहीं!
फिर वो क्या करते हैं?
हर तरह से ये उनके लिए एक आम दिन होता है। बिना किसी बाधा के उनकी दैनिक दिनचर्या जारी रहती है।
16 मई 2014 को जब सारी दुनिया की निगाह इस बात पर थी, कि भारत ने किसके लिए वोट दिया है, उस समय विजेता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और पूरे चुनाव प्रचार अभियान के केंद्र में रहे श्री नरेंद्र मोदी अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त थे। उन्होंने सबसे पहले फोन पर श्री राजनाथ सिंह से बात की और फिर अपनी मां तथा श्री केशूभाई पटेल से मिलकर उनका आशीर्वाद लेने गए।
आशीर्वाद लेने का ये सिलसिला बिल्कुल 2002, 2007 और 2013 के जैसा था।
एक व्यक्ति जिसने उच्च पद पाने को अपने जीवन का परम उद्देश्य नहीं बनाया हो, सिर्फ उसके लिए ही चुनाव परिणाम का दिन, एक आम दिन की तरह होगा। लोगों का जो भी जनादेश होगा, वो विनम्रता के साथ स्वीकार होगा।