जब हम सरदार साहब की जयंती मना रहे हैं और जब हम एकता की बात करते हैं तो पहले तो संदेश यही साफ है कि मैं भाजपा वाला हूं, सरदार साहब कांग्रेसी थे। लेकिन उतने ही शान से, उतने ही आदर के साथ इस काम को हम करे रहे हैं क्योंकि हर महापुरुष के अपने-अपने कालखंड में अलग-अलग विचार रहते हैं और विचार के साथ विवाद भी बहुत स्वाभाविक होते हैं। लेकिन महापुरुषों के योगदान को बाद की पीढ़ियों ने बांटने के लिए उपयोग करने का हक नहीं है। उसमें से जोड़ने वाली चीजें ढूंढना, अपने आप को जोड़ना और हर किसी को अगर जोड़ पाते हैं तो जोड़ने का प्रयास करना। मैं हैरान हूं कि कुछ लोग इस पर मुझ पर आरोप लगा रहे हैं कि आप कौन होते हैं सरदार साहब की जयंती मनाने वाले। यह बात सही है लेकिन सरदार साहब ऐसे थे जिसके परिवार ने कोई कॉपीराइट लिया हुआ नहीं है। और वैसे भी सार्वजनिक जीवन में जिसने अपने परिवार के लिए कुछ नहीं किया था, जो भी किया, जितना भी किया दायित्व के रूप में किया, जिम्मेवारी के रूप में किया, सिर्फ और सिर्फ देश के लिए किया।
अगर ये बातें आज की पीढ़ी को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करेंगे तो हम किसी को कह सकते हैं कि भई ठीक है परिवार है लेकिन थोड़ा देश का भी तो देखो। इसलिए ऐसे अनेक महापुरुष, कोई एक नहीं है, अनेक महापुरुष है जिसके जीवन को नई पीढ़ी के सामने आन बान शान के रूप में हमें प्रस्तुत करना चाहिए। बहुत कम बातें हैं जो बाहर आती हैं। हमारे देश में किसी को याद रखने के लिए जितना काम करना चाहिए लेकिन कुछ लोग इतने महान थे, इतने महान थे कि उनको बुलाने के लिए भी 70-70 साल तक प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली है। इसलिए सरदार साहब के जीवन की कई बातें।
कभी-कभी हम सुनते हैं कि शासन व्यवस्था में Women reservation महिलाओं के लिए आरक्षण। आपको ढेर सारे नाम मिलेंगे जो claim करते होंगे या उनके चेले claim करते होंगे कि women आरक्षण का credit फलाने फलाने को जाता है। लेकिन मैंने जितना पढ़ा है, उसमें 1930 में, जबकि सरदार वल्लभ भाई पटेल अहमदाबाद म्यूनिसिपल पार्टी के अध्यक्ष थे, उन्होंने 33% women reservation का प्रस्ताव किया हुआ है। अब जब वो मुंबई प्रेसीडेंसी को गया तो उन्होंने इसको कचरे की टोपी में डाल दिया, उसको मंजूर नहीं होने दिया। ये चीजें एक दीर्घ दृष्टा महापुरुष कैसे सोचते हैं इसके उदाहरण है।
सरदार साहब के व्यक्तित्व की झलक महात्मा गांधी ने एक जगह पर बड़ी मजेदार लिखी है। अहमदाबाद की म्यूनिसिपल पार्टी के वो अध्यक्ष थे तो वहां एक विक्टोरिया गार्डन है। और यह सरदार साहब कैसे सोचते थे, उन्होंने विक्टोरिया गार्डन में लोकमान्य तिलक की प्रतिमा लगवाई। कैसा लगा होगा उस समय अंग्रजों को आप कल्पना कर सकते हैं और शायद वो देश में अकेली लोकमान्य तिलक जी की प्रतिमा है जो सिंहासन पर बैठकर के उन्होंने कल्पना की, और बनाई।
दूसरी विशेषता गांधी जी को आग्रह किया कि इसका लोकार्पण आप करो।
तीसरा, उन्होंने कहा कि मैं नहीं रहूंगा और गांधी जी ने उस दिन डायरी पर लिखा है उस उद्घाटन के समारोह पर, उन्होंने लिखा कि अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में कौन बैठा है। उसको अगर जानना है तो इस निर्णय से पता चलता है कि कोई सरदार बैठा है। शब्द अलग-अलग हो सकते हैं मुझे वाक्य पूरा याद नहीं है लेकिन ये गांधी जी ने, खुद ने कि सरदार अहमदाबाद म्यूनिसिपल पार्टी में आए हैं मतलब अहमदाबाद में हिम्मत आई है। इस प्रकार का भाव उन्होंने व्यक्त किया।
हम इतिहास में इस बात को जानते हैं कि उसको वैसे ठीक ढंग से रखा नहीं जाता है। किसी दल के इतिहास को देखे तो भी pages को कहीं ढूंढना पड़े, है। देश आजाद हुआ तब नेतृत्व देने का विषय था। राज्यों की तरफ से जो प्रस्ताव है। वे बहुत एक सरदार साहब के पक्ष में आए, पंडित नेहरु के पक्ष में नहीं आए। लेकिन गांधी जी का व्यक्तित्व ऐसा था उनको लगा कि नहीं सरदार साहब के बजाए कोई और होता तो अच्छा हो। नेहरु को बनाने में उनको जरा, शायद मन में यह भी रहा हो, मैं नहीं जानता रहा हो, लेकिन शायद, मैं भी गुजराती और इसको भी गुजराती का बनाऊंगा तो पता नहीं शायद।
खैर यह तो मेरा साहित्यिक तर्क है, ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं है। मैं मजाक में कह रहा हूं लेकिन लोगों को लगता है कि भई देखिए सरदार साहब कैसे है। कोई revolt नहीं किया, तूफान खड़ा नहीं किया, म्यूनिसिपल पार्टी के अध्यक्ष का मामला हो तो भी अच्छा, मेरे बाद 30 लोग है आ जाओ, यही होता है जी, ऐसा नहीं किया। लेकिन ये नहीं किया ये बात उतनी ज्यादा उजागर नहीं होने दिए जा रही है लेकिन सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन सरदार साहब कौन थे, इस बात का पता एक और घटना से मिलता है। 01 नवंबर, 1926 यानी ठीक, कल 01 नवंबर है, 90 साल पहले। जबकि सरदार साहब अहमदाबाद म्यूनिसिपल पार्टी के अध्यक्ष थे और Standing committee का चुनाव था। अब सबका आग्रह था कि अध्यक्ष और Standing committee के चेयरमैन एक रहे तो इस कारोबार को चलाना सुविधाजनक होगा। तो सबके आग्रह पर सरदार साहब चुनाव में खड़े हुए। उनके सामने एक मि. दौलतराय करके थे वो खड़े हुए। और दोनों को 23-23 वोट मिले। तब casting vote आया अध्यक्ष को करने का। जो सरदार पटेल थे। स्वयं उम्मीदवार भी थे और casting vote करना था और देश को आश्चर्य होगा कि सरदार पटेल ने अपने खुद के खिलाफ वोट किया था। जो बात देश की आजादी के समय महात्मा गांधी की नजरों के सामने हुई थी वो बात 01 नवंबर, 1926, 90 साल पहले एक महापुरुष ने, जिस पर कोई गांधी का व्यक्तित्व का दबाव भी नहीं था उस समय। उनकी आत्मा की आवाज कह रही थी मुझे इस म्यूनिसिपल पार्टी को चलाना है। casting vote से मैं बैठू ठीक नहीं है। अच्छा होगा casting vote मेरे विपक्ष को मैं दे दूं और उसको मैं बैठा दू, उन्होंने बैठा दिया। क्या ये चीजें वर्तमान के राजनैतिक जीवन के हर छोटे-मोटे व्यक्ति को सीखने के लिए काम में आने वाली है कि नहीं है। अगर है तो उसको उजागर करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए। बस इतना सा काम करने की कोशिश कर रहा हूं। आप कल्पना करिए कोई बहुत पुराना इतिहास तो है नहीं, 47, 48, 49 का कालखंड।
आज साहब कितना ही बड़ा नेता हो, एक म्यूनिसिपल पार्टी के अध्यक्ष को कहे कि भई ठीक है तेरा सब कुछ है। मान लिया लेकिन मेरा मन करता है तुम छोड़ दो। छोड़ेगा क्या कोई, उसके पैतृक संपत्ति है क्या, उसके मां-बाप ने मेहनत करके पाई हुई है क्या। लोकतंत्र में लोगों ने मौका दिया है, पांच साल के लिए दिया है और जरूरत पड़ गई कि तीन साल के बाद तुम छोड़ दो। कोई मुझे बताए कि छोड़ेगा क्या। और पता नहीं छोड़ेगा तो क्या कुछ करेगा। इस बात को तो हम भली-भांति समझते हैं कि कोई छोड़ता नहीं है। यहां भी साहब अगर कोई बड़ा मेहमान आ जाए और कुर्सी छोड़नी होती है तो हम ऐसे देखेंगे। ऐसा लगेगा कि उसको पता ही नही कि वो आए हैं। मनुष्य का मूलभूत स्वभाव है साहब। हम बस में, विमान में दौरे पर जाते हैं कभी, travelling करते हैं, बगल वाली सीट खाली है। हमने अपनी किताब रखी, मोबाइल फोन रखा और जहाज चलने की तैयारी में है, बस चलने की तैयारी में है। इतने में last में मानो कोई passenger आ गया, वो सीट तो हमारी नहीं थी, खाली थी। और हमने कुछ रखा था। हमको इतना वो आदमी बुरा लगता है यार। ये कहां गया। सब उठाना पड़ता है। मैं सच बोल रहा हूं न? लेकिन आपको पूरा भरोसा है कि मैं आपकी बात नहीं बता रहा हूं।
मनुष्य का स्वभाव है। लेकिन आप कल्पना कीजिए कि इस महापुरुष का व्यक्तित्व कैसा होगा। सरदार साहब के अंदर वो कौन सा तेज पुंज होगा। ऐसे-ऐसे रजवाड़ों गए जिनके पूर्वजों ने अपनी तलवार की नोंक पर पाई हुई सत्ता थी ये कभी, अपने बाहुबल से पाई हुई थी। अपने पूर्वजों ने बलिदान दिए थे लेकिन सरदार साहब ने कहा भई वक्त बदल चुका है, देश जाग रहा है और उन्होंने पल भर में signature कर दिया। पूर्वजों का सैंकड़ों साल पुराना राज-रजवाड़ों का राज-पाठ दे दिया एक इंसान को साहब। कल्पना कीजिए कि उस व्यक्तित्व की ऊंचाई कितनी बड़ी होगी।
मैं गुजरात से हूं। गुजरात में क्षत्रिय और पटेल, लंबे अरसे से एक प्रकार से तू-तू, मैं-मैं वाला मामला रहा है। पटेल खेती करने वाले लोगों को लगता था कि लोग हमें दबाते हैं। उनको लगता था कि इनको कोई समझ नहीं है, हम राजा है, वगैरह-वगैरह चलता रहता है हमारे समाज में यहां कई छोटी-बड़ी। साहब कल्पना कीजिए एक पटेल का बेटा, क्षत्रिय राजनेता, राजपुरुष को कह रहा है, छोड़ दो और एक पटेल बेटे की बात मानकर के क्षत्रिय छोड़ देता है। समाज में इससे बड़ी ताकत क्या होती है। कितनी बड़ी ताकत है ये। और उस अर्थ में हम देखे। एक-एक पहलू, सरदार साहब की सामर्थ्य को प्रकट करने का प्रयास।
यहां एक डिजिटल म्यूजियम बनाया गया है। ये संपूर्ण सरदार तो हो नहीं सकते हैं। हम सब मिलकर के कोशिश करे तो भी सरदार इतने बड़े थे कि कुछ न कुछ तो छूट ही जाएगा। लेकिन सबने मिलकर के कोशिश की है। और संपूर्ण सरदार को पाने, देखने, समझने के लिए खिड़की खोलने का काम इस प्रयास में है, मैं इतना ही दावा करता हूं ज्यादा नहीं करता। आधुनिक टैक्नोलॉजी का भरपूर प्रयास किया गया है। घटनाओं का जीवित करने का प्रयास किया गया है और मूल संदेश यह है कि आज की पीढ़ी की जिम्मेवारी है ‘भारत की एकता को बल देना’। हम लोग सुबह शाम देखते होंगे। ऐसा लगता है जैसे हम लोग बिखरने के लिए रास्ते खोज रहे हैं। जैसे हमें binocular लेकर के बैठे हैं कि किसी कोने में बिखरने की चीज मिलती है तो पकड़ों यार। बिखराव लाओ, बांटों, तोड़ो। विविधताओं से भरा हुआ ये देश ऐसे नहीं चल सकता है। हमें प्रयत्नपूर्वक एकता के मंत्र को जीना पड़ेगा। जीकर के दिखाना पड़ेगा और एक प्रकार से वो हमारी सांस्कृतिक विरासत के रूप में अंतरसाध्य करना पड़ेगा और पीढ़ी दर पीढ़ी उसको percolate करना पड़ेगा।
हम इस देश को बिखरने नहीं दे सकते और तब जाकर के हमें ऐसे महापुरुष का जीवन, उनकी बातें, हमें काम आती हैं। इतिहास गवाह है कि किसी समय भी तो अंतरविरोधों के कारण, अहंकार के कारण, मेरे-तेरे के भाव के कारण ये देश सामर्थ्यवान था फिर भी बिखरा था। एक चाणक्य नाम का महपुरुष था 400 साल पहले, उसने पूरे हिन्दुस्तान को एक करने का सफल प्रयास किया था और हिन्दुस्तान की सीमाओं को कहां तक ले गया था वो इंसान। उसके बाद सरदार साहब थे जिन्होंने इस काम को किया। हम लोगों की कोशिश होनी चाहिए। आपने देखा होगा कि हमारा कोई बच्चा Spanish language सीखता है तो हम घर में जो भी मेहमान आए उसके सामने नमूना पेश करते हैं, मेरे बेटे को Spanish आती है, मेरी बच्ची को French आती है। अच्छी बात है, मैं इसकी आलोचना नहीं कर रहा हूं। हरेक को लगता है कि अपने career में जरूरी है। लेकिन कभी इस बात का गर्व नहीं होता है कि हम पंजाब में पैदा हुए लेकिन मेरा एक बच्चा है मलयालम भाषा बहुत अच्छी बोलता है, यह कहने का.. हम उड़ीसा में रहते थे लेकिन मराठी बहुत बढ़िया बोलते थे, उसको मराठी कविताएं आती हैं। हमारा एक बच्चा है, रेडियो पर सुबह-सुबह रवीन्द्र संगीत सुनता है उसको बंगाली गीत बहुत अच्छे लगते हैं। रवीन्द्र संगीत उसको बहुत प्यारा लगता है, ये मन क्यों नहीं करना चाहिए। मैं पंजाब में रहता हूं लेकिन कभी मेहमान आते हैं तो कहता हूं हां मुझे डोसा बनाना आता है, ये तो सीख गए हैं। मैं केरल जाऊं तो कोई कहे मोदी जी आप आए हैं चलो ढोकला खिला देता हूं। इन चीजों से तो हमें थोड़ा-बहुत अंतर संपर्क बढ़ रहा है। लेकिन प्रयत्नपूर्वक हमें हमारे देश को जानना चाहिए, जीना चाहिए। हमें अपना विस्तार करना चाहिए। मैं किसी एक राज्य में भले पैदा हुआ, एक भाषा में भले पढ़ा-बढ़ा हुआ, लेकिन ये मेरा देश है, सब कुछ मेरा है। मुझे उसके साथ जुड़ना चाहिए। ये गौरव का भाव हमें एकता के मंत्र को जीने के लिए रास्ता दिखाता है।
हमारे देश में इस बात पर तो बड़ा झगड़ा हुआ कि हिन्दी भाषा को मानेंगे कि नहीं मानेंगे लेकिन अगर हम carefully कुशलतापूर्वक सब भाषाओं को अपने में समेटे तो ये संघर्ष के लिए कोई chance नहीं है जी। आप देखिए कभी-कभी कोई शब्द हमें ध्यान नहीं आता है तो अंग्रेजी शब्द का प्रयोग करते हैं। अपनी भाषा में समझता नहीं तो हम बड़ी आसानी से अंग्रेजी शब्दों को बोल लेते हैं। लेकिन कभी-कभार ध्यान आता है कि मेरी भाषा में अच्छा शब्द नहीं है तो मैं अंग्रेजी की मदद लेता हूं लेकिन अगर मराठी भाषा देखूं, बंगाली देखूं, तमिल देखूं तो इसके लिए उन्होंने बढ़िया शब्द खोजकर के निकाला है। मैं क्यूं न उसको adopt करूं। मैं आसानी से मेरे देश की किसी भाषा का अच्छा शब्द है तो adopt क्यूं न करूं। लेकिन ये मुझे ज्ञान ही नहीं है उस अज्ञान में से मुझे मुक्ति मिलनी चाहिए, अपनो को जानना चाहिए।
ये छोटा सा प्रयास है। इसमें बोलचाल के 100 वाक्य निकाले। कैसे हो, नजदीक में अच्छा खाना कहां मिलेगा, इस शहर की जनसंख्या कितनी है, ऑटोरिक्शा का स्टैंड कहां हैं, छोटे-छोटे सवाल। मुझे बीमारी जैसा लगता है, नजदीक में कोई डॉक्टर मिलेंगे क्या, ऐसे छोटे-छोटे वाक्य। हर भाषा में वो वाक्य उपलब्ध है। जिस दिन लोगों ने ये हाथ में, ऑनलाइन भी available है। उसको लगेगा अच्छा भई हम केरल जा रहे हैं चलिए यार ये 100 वाक्य पकड़ लेते हैं कहीं मुश्किल नहीं होगी, इससे बात कर लेंगे, मिल जाएगा। हमारी अपनी विरासत ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ इस कार्यक्रम को आज हम इस कार्यक्रम के माध्यम से launch कर रहे हैं और प्रयास शुरू में ये है। आपने देखा होगा देश में हर किसी को ग्लोबल बनने का, आवश्यकता भी है मैं इसका विरोधी नहीं हूं।
एक राज्य रूस के एक राज्य के साथ तो जुड़ जाएगा, एक शहर अमेरिका के एक शहर से तो जुड़ जाएगा। लेकिन मेरे अपने देश में मैं किसी शहर से जुड़ू, मैं अपने ही देश में किसी राज्य से जुड़ू, मैं अपने ही देश में किसी यूनिवर्सिटी से जुड़ू, इन चीजों को हम क्यों नहीं करते। ये सहज चीजें हैं जो ताकत बढ़ाती हैं। आज जिन छह राज्यों ने दूसरे के राज्य के साथ समझौता किया है, उसका मतलब हुआ कि एक साल के लिए ये राज्य उस राज्य के साथ अलग-अलग प्रकार के ऐसे काम करेंगे ताकि दोनों एक-दूसरे को भली-भांति समझे, सहयोग करे और विकास की यात्रा में सहयात्री बने। कार्यक्रमों का स्वरूप बड़ा बोझिल रखने की जरूरत नहीं है हल्का-फुल्का। मान लीजिए केरल ने महाराष्ट्र के साथ समझौता किया। या उड़ीसा और महाराष्ट्र हुआ शायद। मान लीजिए उड़ीसा और महाराष्ट्र ने समझौता किया है। क्या हम 2070 में महाराष्ट्र के स्कूलों और colleges से जो tourist जाएंगे। उनको कहेंगे कि भई 2070 में तो आप उड़ीसा जरूर जाइए। उड़ीसा से जो जाएंगे 2070 में tour के लिए, tour में तो जाते ही हैं, आप इस बार महाराष्ट्र जाइए। फिर ये भी तय कर सकते हैं कि ये यूनिवर्सिटी उस जिले में गई तो ये यूनिवर्सिटी उस जिले में जाएगी, जोड़ सकते हैं।
पहले जाते थे तो धर्मशाला या होटल में रहते थे इस बार तय करे कि नहीं इस योजना के तहत आए हो, 100 student आए हैं। हमारे इस कॉलेज के 100 student के घर में आपके 100 लोग रहेंगे। 100 परिवार। और जब घर में रहेंगे तो सुबह कैसे उठते हैं, कैसे पूजा करते हैं, कैसे खाना खाते हैं, क्या variety होती हैं, मां-बाप के साथ कैसा व्यवहार। सब चीजें वो अपने आप जीने लगेगा। अब इसके लिए खर्चा भी कम हो जाएगा tour से। खर्चा मेरे ध्यान में जरा जल्दी आता है।
अब मुझे बताइए। अभी इन दिनों मैंने देखा है कि पूरे देश में देशभक्ति का एक भाव प्रखर रूप से बढ़ता है। हर कोई दीवाली का दीया जलाता है लेकिन उसको उस देश का जवान दिखता है। देश के जवानों की शहदात दिखती है भाव पैदा हुआ है। क्या हम पांच अच्छे गीत। अब महाराष्ट्र के लोग स्कूलों में पांच गीत एक साल में उड़िया भाषा में गाना शुरू करे और उड़िया भाषा पढ़ने वाले, उड़ीसा वाले पांच मराठी गीत गाना शुरू करें तो जब मिलेंगे तो भाव क्या जगेगा आप खुद ही बता दीजिए। हमारी एक कहावत है कि किसी भाषा में हम बोलते होंगे लेकिन आपने देखा होगा कि हमारी कहावतों का जो central thread होता है वो common होता है। शब्द अलग होंगे, अभिव्यक्ति अलग होगी लेकिन जब सुनेंगे और अर्थ समझेंगे तो पता है, अच्छा ये कथा, कहावत तो हमारे हरियाणवी में भी है यार, हम भी तो कभी-कभी बोलते हैं। इसका मतलब कि हमें जोड़ने वाली ताकत तो पड़ी है। एक बार पता चल जाता है यार तुम भी तो वही बात करते हो जो मैं करता हूं। मतलब तुम और मैं भाषा अलग हो लेकिन अलग नहीं है। पहनावा अलग हो लेकिन अलग नहीं है, खान-पान अलग हो लेकिन अलग नहीं है। हम एक है। ये अपने आप पैदा होगा।
देश में बिखराव के लिए बहुत रास्ते खोजे गए हैं एकता को तो हमने taken for granted मान लिया और उसके कारण बिखराव ने क्या बर्बादी लाई है उस पर हमारा ध्यान नहीं गया। 50 साल में इतनी बुराइयों को हमने अपने अंदर प्रवेश करने दिया है कि वो बुरा है, वो भी पता नहीं चलता। इतनी हद तक घुस गया है। तब जाकर के हमें प्रयत्नपूर्वक एकता वाली जितनी चीजें हैं उनको पकड़ना होगा और मैं इसको सिर्फ स्कूल, कॉलेज तक सीमित रखना नहीं चाहता हूं। मान लीजिए उड़ीसा के किसान मछली के काम में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। छोटे-छोटे तलाब में भी अच्छी मछली तैयार करते हैं, अच्छा मार्किट मिलता है तो महाराष्ट्र में भी तो छोटे-छोटे तलाब में मछली पैदा करने वालों को आकर के सिखा सकते हैं। महाराष्ट्र के लोग उड़ीसा में जाकर के अच्छी मछली, ज्यादा मछली कैसे होती हैं सीख सकते हैं सिखा सकते हैं। आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक है। मान लीजिए वो उनकी खेती पैडी , चावल की खेती करने का उनका तरीका है। वहां ज्यादा पानी है, यहां पर चावल की खेती करने की दिक्कत है क्या उनको कम पानी से चावल की खेती करना सिखाया जाए। और उनकी ज्यादा yield है वो क्या के किसानों को दिखाया जाए। agriculture revolution का वो कारण बन सकता है कि नहीं बन सकता है। बिना किसी यूनिवर्सिटी की मदद के दो क्षेत्र के किसान अपने अनुभवों को share करे तो हो सकता है कि नई चीज दुनिया को दे सके।
फिल्में, आज तो dubbing हो सकता है, कोई बड़ा महंगा भी नहीं होता है। अगर मान लीजिए महाराष्ट्र उड़ीया फिल्मों का फस्टिवल करे। बॉलिवुड वालों को परेशानी नहीं होगी न, लेकिन करे। मुंबई में मत करना, कहीं और करना। करे मानो और उड़ीसा वाले मराठी फिल्मों को करे। भाषा को सहज समझा जाएगा। कभी उड़ीसा और महाराष्ट्र के सभी विधायकों का संयुक्त सम्मेलन हो सकता है क्या। और सिर्फ दोनों राज्यों की अच्छाईयों पर चर्चा करे, उड़ीसा के विपक्ष दल वालों को भी अच्छाई बोलनी पड़ेगी, महाराष्ट्र के विपक्षी दल को भी अच्छाईयां बोलनी पड़ेगी। सब मिलकर के अच्छाई की बात करेंगे तो अच्छाई की ओर जाने का रास्ता खुल जाएगा।
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे देश में एक दूसरे से सीखना, पाना, समझना बहुत कुछ है। हमारा ज्ञान, हमारी अनभिज्ञता ये हमारी सबसे बड़ी रूकावट बन चुकी है। ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ एक जन आंदोलन में परिवर्तित करना है। विशेष रूप से परिवर्तित करना है। आज सरदार साहब की जन्मजयंती पर इस महा अभियान का भी आरंभ हो रहा है। सिर्फ और सिर्फ जोड़ने के लिए है और जोड़ने के लिए कोई नया एकता का इंजेक्शन नहीं देना है। राख लगी है सिर्फ उसको निकालकर के ज्वाला को प्रज्जवलित करना है, कोई चेतना को प्रज्जवलित करना है। उसी बात को लेकर के मैं खासकर के आपसे तो आग्रह करूंगा कि आप जरूर जल्दी होगा तो भी जरूर देखकर जाइए प्रदर्शनी को, और भी लोगों को प्रेरित करें। और इस प्रदर्शनी को सिर्फ student देखें ऐसा नहीं है। समाज के प्रबुद्ध लोग परिवार के साथ आने की आदत बनाए, उन्हें पता चले कि ये महापुरुष कौन थे, क्या-क्या करते थे। और जो जीवन जीकर के गए हैं, उससे बड़ी प्रेरणा नहीं होती है। मुझे विश्वास है कि ये प्रयास न सिर्फ सरदार साहब को अंजलि है लेकिन सरदार साहब ने जो हमें रास्ता दिखाया है उस रास्ते पर चलने का एक प्रमाणिक प्रयास है।
मैं फिर एक बार पार्थसारथी जी, उनकी पूरी टीम को इस भगीरथ कार्य के लिए बधाई देता हूं। जैसे आज आप एक म्यूजियम देख रहे हैं, मैंने एक प्रयास शुरू किया है, आजादी के आंदोलन की बातें। सचमुच मैं बताता हूं हमने देश के नागरिकों के साथ बहुत अन्याय किया है। आजादी का आंदोलन नेताओं का आंदोलन नहीं था जी। आजादी का आंदोलन जन सामान्य का आंदोलन था। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि 1857 में इस देश के tribal ने बिरसा मुंडा समेत जितना बलिदान इस देश के आदिवासियों ने दिया है हम कल्पना नहीं कर सकते। लेकिन न आपमें से किसी को पढ़ाया गया होगा न किसी को पता होगा। हमने सोचा है शुरूआत में हर राज्य में जहां-जहां आदिवासी जनसंख्या और आदिवासियों से जुड़ी घटनाएं हैं, एक Virtual museum आजादी के आंदोलन में आदिवासियों का योगदान, इस पर हम बनाएंगे। इस देश के लोगों ने हमें इतना सारा दिया है। हम उन चीजों को जानने के लिए प्रयास करे। धीरे-धीरे मैं इन चीजों और आगे बढ़ाना चाहता हूं और technology के कारण ये चीजें कम खर्चें में हो सकती हैं, छोटी जगह में हो सकती हैं। और आने वाला व्यक्ति अपने सीमित समय में भी बहुत सी चीजों को काफी अच्छी तरह अनुभव कर सकता है। 3डी होने के कारण और ज्यादा लाभ ले सकता है। interactive होने के कारण बच्चों के लिए वो शिक्षा का कारण बन सकता है। इस ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ में मेरी कल्पना यह है कि राज्य अपने राज्य से संबंधित minimum 5000 questions का एक data bank बनाएं। राज्य के संबंध में सवाल हो उसमें, जवाब भी हो, ऑनलाइन available हो कि भई राज्य का सबसे पहला हॉकी player कौन था, राज्य का सबसे पहला कबड्डी player कौन था, National player कौन-कौन है? कौन-सी इमारत कब किसने बनाई थी? छत्रपति शिवाजी महाराज कहां रहते थे क्या? सारे इतिहास हो, लोक-कथाएं हो, 5000 सवालों का बैंक। फिर उसका quiz competition करे, state में भी करे। अब मान लीजिए महाराष्ट्र के 5000 सवालों का quiz bank है, उड़ीसा के 5000 सवालों का quiz bank है। महाराष्ट्र के बच्चे उड़ीसा के quiz competition में आ जाए, उड़ीसा के बच्चे महाराष्ट्र के quiz competition में भाग ले। अपने आप दोनों राज्यों के बच्चों को उड़ीसा भी समझ आ जाएगी, महाराष्ट्र भी समझ आ जाएगी। ये पूरे देश में, लाखों सवालों का बैंक बन सकता है जी, जो सहज रूप से। जो क्लासरूम में नही पढ़ाया जा पाता वो पा सकते हैं। तो एक बड़े व्यापक फलक पर और जिसमें Digital world का ज्यादा उपयोग करते हुए ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ चलाने का प्रयास है।
मैं फिर एक बार इस प्रयास को करने वाले सभी लोगों को बधाई देता हूं। सरदार साहब को आदर पूर्वक नमन करता हूं अंजलि देता हूं और देश की एकता के लिए काम करने के लिए देशवासियों से प्रार्थना करता हूं। धन्यवाद।