CM addresses National Agri-Biz Seminar, Global Agri Meet

Published By : Admin | September 3, 2012 | 11:13 IST

आज एक एसा कार्यक्रम है जिसमें दुनिया में एग्रीकल्चर सेक्टर में जिन्होंने सविशेष काम किया है ऐसे सात देश, इज़राइल है, इटली है, यू.एस.ए. है... यानि सात देश आज गुजरात के इस कार्यक्रम में भागीदार हैं। ये अपने आप में हम कृषि को कहाँ ले जाना चाहते हैं उसका एक उत्तम उदाहरण है। ये एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें गुजरात-बाहर से करीब 2000 किसान आज इस समारंभ में मौजूद हैं, जो गुजरात-बाहर से आए हैं। गुजरात बाहर से यह हमारा पहला प्रयास है। कृषि के क्षेत्र में इस प्रकार का इनिशियेटिव लेने का यह हमारे गुजरात का पहला प्रयास है, जिसमें देश और दुनिया को जोडऩे की हमारी कोशिश है। और पहले प्रयास में यहाँ गुजरात समेत 11 स्टेट्स, गयारह स्टेट्स इसके भागीदार बने हैं। मैं स्वागत करता हूँ, तमिलनाडु के प्रतिनिधियों का, जो तमिलनाडु से आए हैं... कम से कम तालियाँ बजाईए, ताकि लोगों को पता चले कि तमिलनाडु यहाँ है..! मध्यप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, अंदमान निकोबार... उस छोर से भी किसान आए हैं, महाराष्ट्र.... दे आर इन मैक्सिमम नंबर, एंड इवन जम्मू-कश्मीर..! ये अपने आप में इस कार्यक्रम के स्वरूप और सफलता को दर्शाता है। मेरी भाषा आज थोड़ी मिली जुली रहेगी, क्योंकि कुछ विदेश के मित्र आए हैं, उनके सामने भी कुछ बातें मैं बताना चाहता हूँ। अन्य राज्यों से भी आए हैं, इसलिए मेरे गुजरात के मित्र, मेरे किसान भाई मुझे क्षमा करें। मैं आज अगर हिन्दी में बोलता हूँ, लेकिन हमारे गुजरात के किसान को हिन्दी समझने में कोई दिक्कत नहीं होती है, वो भली-भांति हर बात समझ लेता है।

देवियों और सज्जनों, इस सम्मेलन का हिस्सा बन कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। इस तरह के सम्मेलन आम नहीं होते हैं। यह एक बहुत ही विशेष अवसर है। यह सम्मेलन कृषि उत्पादकों, मशीनरी उत्पादकों, निर्यातकों, वैज्ञानिकों तथा टेक्नोक्रेट्स का एक दुलर्भ जमाव है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस सम्मेलन के दौरान आप कृषि क्षेत्र में सुधार की संभावनाओं का विस्लेषण करने और नई जानकारीयों का अन्वेषण करने जा रहे हैं। इससे निश्चित तौर पर हमें गुजरात के अंदर लाभ मिलेगा। साथ ही, मुझे यकीन है कि इस कार्यक्रम में हुए विचार-विमर्श से एक बड़े वैश्विक समुदाय को कृषि क्षेत्र के लिए बेहतर तरीके खोजने में मदद मिलेगी। ऐसे मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए गुजरात से बेहतर जगह नहीं हो सकती है। गुजरात ने कृषि क्षेत्र में पिछले एक दशक में एक बहुत रोचक लेबोरेटरी तथा कम भूमिक्षेत्र को विकसित किया है। फिर से, 2 से 3% के राष्ट्रीय औसत विकास दर के सामने, गुजरात के कृषि क्षेत्र में लगातार एक दशक से ज्यादा समय तक 10% से वृद्धि हुई है। वर्षा पर निर्भर कृषि से हम सिंचाई के पानी पर निर्भर कृषि की ओर बढ़े हैं। भूमिगत जल के दोहन से हम धरातल के जल की पर्याप्तता की ओर अग्रसर हुए हैं। निर्वाहन खेती से हम नकदी फसलों की ओर बढ़े हैं। सिंचाई के पानी की बर्बादी से हम माइक्रो इरीगेशन की ओर बढ़े हैं। रसायनों के अधिक मात्रा में प्रयोग से हम वैज्ञानिक जानकारी के लिए ‘सॉइल हैल्थ कार्ड’ तैयार किए हैं। हमारे किसानों की आय पिछले एक दशक में सात गुना बढ़ गई है। एक उपेक्षित क्षेत्र से हमारा कृषि क्षेत्र एक केन्द्रित क्षेत्र बन गया है तथा यह सम्मेलन उसका एक उदाहरण है। अन्यथा, इसे ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ के हिस्से के रूप में आयोजित नहीं किया गया होता। हम यह कर रहे हैं क्योंकि यह क्षेत्र एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और हम जानते हैं कि हम इससे भी बेहतर कर सकते हैं। हम खेती के मशीनीकरण, उत्पादकता में वृद्धि, कृषि के लिए मूलभूत व्यवस्थाएँ तैयार करना तथा अंतत: मूल्यवर्धन, संरक्षण, पैकेजिंग तथा मार्केटिंग के संदर्भ में काफी बेहतर करना चाहते हैं। इसके अलावा, वर्तमान वैश्वीकृत परिवेश में भी कृषि तथा इससे जुड़ी सभी संबंधित क्रियाओं में एक समग्रतावादी दृष्टिकोण की जरूरत है। कृषि और उद्योगों के बीच आगे और पीछे की कड़ियों को मजबूत बनाना आवश्यक बन गया है। मित्रों, आप तो जानते हैं कि कृषि क्षेत्र मानवता के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह ना केवल महत्वपूर्ण है बल्कि आज हमारा पेट भरता है तथा एक तरह से हमारा निर्माण करता है कि हम स्वस्थ रहें। इसके अलावा, हमें कृषि समृद्घि को सक्षम करने के मार्ग इस तरह से ढूंढ़ने होंगे कि धरती तथा जल जैसे हमारे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन ना हो जाए। भारत जैसे देश के लिए तो यह क्षेत्र और भी अधिक महत्वपूर्ण है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। यह भारतीय नीति निर्माण में अपना एक विशेष स्थान रखती है, ना केवल इसके जी.डी.पी. में सहयोग के कारण, बल्कि इसलिए भी कि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र पर निर्भर है। भारत की लगभग 60% आबादी कृषि पर सीधे निर्भर करती है। मित्रों, पिछले दशक में गुजरात भारत के सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक के रूप में उभरा है, चाहे वो औद्योगिक क्षेत्र में हो या फिर कृषि क्षेत्र में। देश के औद्योगिक उत्पादन में अच्छा योगदान देते हुए गुजरात औद्योगिक क्षेत्र में लगातार तेजी से प्रगति कर रहा है। और उसके साथ-साथ, गुजरात ने जिस तरह से देश में कृषि को देखा जाता है उस नजरिए को भी बदला है।

भाइयों और बहनों, इन बातों के साथ मैं कुछ बातें और भी बताना चाहता हूँ। हम लोग ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ करतें हैं। उस समिट के साथ, हम हर बार कोई ना कोई स्पेशल इवेन्ट भी रखते हैं। जब हमने 2007 में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट किया था, तो उसके पूर्व हमने इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी के लिए एक अलग ग्लोबल समिट किया था। जब हमने 2009 में और 2011 में वाइब्रेंट समिट किये, तो दोनों समय हमने नॉलेज को आधार बना करके युनिवर्सिटीस् के साथ, नॉलेज पार्टनर्स के साथ, राउंड टेबल कान्फरेंस करके उस हमारे इन्वेस्ट्मेन्ट समिट को एक नया रूप दिया था। जब हम 2013 में, जनवरी महीने में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट करने जा रहे हैं तब, हमने सोचा कि इस वर्ष उसी वाइब्रेंट समिट के हिस्से के रूप में, पहले हम एग्रीकल्चर सेक्टर को ध्यान में रखते हुए एक डेडिकेटेड ‘वाइब्रेंट समिट फॉर एग्रीकल्चर सेक्टर’ करें और उसी का परिणाम है कि आज हम सब बैठ कर के एग्रीकल्चर सेक्टर में हम क्या कर सकते हैं उसका विचार-विमर्श करने जा रहे हैं। हमारे देश में इस प्रकार का यह पहला इनिशियेटिव है जो किसी राज्य ने लिया हो और इसकी सफलता को देखते हुए, क्योंकि इसको हमने ज्यादा हाइप नहीं किया, बहुत लो प्रोफाइल शुरू किया था। ये आज इतना बड़ा समारोह हो रहा है, अब तक अखबार में इसके संबंध में एक लाइन भी नहीं छपी है, टी.वी. में भी कोई खबर नहीं आई है। उसके बावजूद भी 11 प्रदेश और हजारों की तादाद में किसानों का यहाँ होना, सात देशों की पार्टनरशिप होना, ये अपने आप में कितना मेटिक्युलस्ली, साइलेन्ट्ली इस काम को हमने ऑर्गेनाइज़ किया होगा, कितना महत्व दिया होगा, इसका आपको अंदाज आ सकता है। और इसकी सफलता को देखते हुए, मैं आज आप सबको बताना चाहता हूँ कि दुनिया में सबसे बड़ा एग्रीकल्चर फेयर इज़राइल करता है, और हर तीन वर्ष में एक बार करता है। और दुनिया के सौ से अधिक देश इज़राइल के उस काम में जुड़ते हैं। हमारे हिंदुस्तान से भी इज़राइल के एग्रीकल्चर फेयर को देखने के लिए हर वर्ष 15 से 20 हज़ार किसान, अपना जेब का खर्चा करके वहाँ जाते हैं। गुजरात से भी 1200, 1500, 2000 किसान इज़राइल के एग्रीकल्चर फेयर को देखने के लिए जाते हैं। करोड़ों रूपया खर्च, हमारा किसान, हमारे देश का किसान, भारत के एग्रीकल्चर में कुछ नया लाने के लिए, कुछ सीखने के लिए इज़राइल जाता है। भाइयों-बहनों, गुजरात सरकार ने तय किया है कि अब हम आगे, जैसे हम ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ करते हैं, उसी प्रकार से, अलग से, एवरी थ्री ईयर्स, इज़राइल भी हर तीन साल में एक बार करता है, हम भी हर तीन साल में एक बार, इसी लेवल का, इज़राइल के लेवल का ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल एग्रीकल्चर इवेंट’ हम करेंगे, और उसमें कृषि के क्षेत्र में दुनिया में जितने नए संशोधन हुए हैं, दुनिया में जितनी नई प्रगति हुई है, हर तीन वर्ष में एक बार इसी ‘महात्मा मंदिर’ में, किसानों के लिए मैं मेला लगाऊंगा और हिंदुस्तान भर के किसान, कृषि क्षेत्र में हम कैसे आगे बढ़ें...

हमारे देश में कुछ मान्यताएं बन गई हैं, गुजरात ने उन मान्याताओं को बदलने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। हमारे देश में खेती तो ऐसे ही होती है, एक एकर में इतना ही पैदा होता है, अरे भइया, ये ज्वार किया है तो ज्वार के बिना कुछ हो नहीं सकता है... ऐसी एक निराशा की मानसिकता घर कर गई है। हमने गुजरात के एक्सपीरियंस से देखा है कि हमारे यहाँ भी आज से दस साल पहले मान्यता यही थी। एक जमाना था कि जब माना जाता था कि उत्तम खेती, मध्यम व्यापार और कनिष्ठ नौकरी। ये कहावत हमारे यहाँ हर घर में थी, लेकिन धीरे-धीरे स्थिति क्या बनी..? किसान के परिवार में अगर तीन बच्चे हैं, तो बाप सोचता है ये जो होनहार बच्चा है, पढ़ा-लिखा और समझदार बच्चा है, उसको बोलो कहीं सरकार में बाबू बन जाए। ये दूसरा थोड़ा ठीक है... चलो, उसको कोई छोटी-मोटी दुकान लगवा दो, पान का ठेका लगा दो, व्यापार में लगा दो, काम कर लेगा..! ये जो बुद्धु बच्चा है घर में तीसरा, कम क्षमता है, चलो उसको खेती के काम में लगा देता हूँ..! घर में भी यह सोच बन गई थी कि भाई, कृषि से कुछ निकलने वाला नहीं है, पेट भरने वाला नहीं है, घर चलने वाला नहीं है, छोड़ो यार, कृषि की तरफ इन्वेस्टमेंट करने की जरूरत नहीं है। जो बच्चा कम क्षमता वाला है, उसी को उसमें लगा दो। ये सोच बन गई थी किसी जमाने में..! भाइयों-बहनों, हमने ये बीड़ा उठाया है, जो सदियों पहले हमारे पूर्वज कहते थे कि अगर उतम से उत्तम कोई काम है तो वह खेती है, कृषि है, हम फिर से एक बार उसको पुनर्स्थापित करना चाहते हैं कि हिंदुस्तान जैसे देश में अगर उत्तम से उत्तम करने जैसा कोई काम है, तो वह खेती है। और मैंने देखा है, अभी कई किसान भाई-बहनों को मुझे सम्मानित करने का अवसर मिला। बहुत कम किसान उसमें ऐसे थे, जो पचास-पचपन की उम्र से ऊपर के थे। अधिकतम किसान नौजवान थे। धोती-कुर्ते में नहीं थे, सिर पर पगड़ी वाले नहीं थे, जींस का पैंट पहना हुआ था। यानि, नौजवान कृषि की ओर आकर्षित हुआ है, कृषि में नया प्रयोग करना चाहता है, उसने कृषि को महत्व दिया है, इसका जीता-जागता उदाहरण हमने अभी अपने मंच पर देखा है। अगर ये संभावनाएं बढ़ी हैं, तो हम लोगों का दायित्व बनता है कि हम कृषि को कैसे आगे बढ़ाएं..!

भाईयों-बहनों, पहले तो कृषि के विषय में सरकार भी सोचती थी, देश की सरकार भी सोचती थी, तो क्या सोचती थी? कि भाई, फसल खराब ना हो जाए ये देखो। उससे ज्यादा सोचा नहीं जाता था..! भारत सरकार का जो एग्रीकल्चर डिपार्टमेन्ट होता है, राज्य सरकार का जो एग्रीकल्चर डिपार्टमेन्ट होता है, कोई एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी होती है, एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट होता है, एग्रीकल्चर इंजीनियर होता है, एग्रो इन्फ्रास्ट्रक्चर होता है, एग्रो फंडिग होता है... इन सारे विषयों का हमारे देश में कोई तालमेल ही नहीं था। जिसका डिपार्टमेंट है वह बैठ कर अपना ऑफिस चला रहा है। युनिवर्सिटी वालों को लगता था कि हमें बी.एस.सी. (एग्रीकल्चर) बच्चे पैदा कर-कर के छोड़ देने हैं, बस..! यह सब टुकड़ों में ही चलता था। गुजरात सरकार ने सबको एक करने का, सबको एक प्लेटफार्म पर लाने का प्रयास किया। हमने कृषि महोत्सव के माध्यम से कृषि क्षेत्र की जितनी विधाएं है, जितनी शक्तियां है, जितनी सोच हैं, जितने अनुभव हैं, जितनी आशाएं हैं सबको जोड़ने का एक काम किया और एक नया विश्वास पैदा किया और सरकार एक कैटलिटिक एजेंट के रूप में, एक उद्दीपक की तरह उन सब के बीच में जुड़ी। और जुड़ने का परिणाम यह हुआ कि देश कृषि विकास को 3% से आगे नहीं ले जा रहा है, गुजरात जैसा प्रदेश जो कुदरत पर जीता है, जिसके पास नदियां नहीं है, उस गुजरात ने पूरा एक दशक 10% से ज्यादा कृषि विकास दर करके दुनिया के लोगों को भी अचंभे में डाल दिया है। इज़राइल की खेती की बहुत बड़ी तारीफ होती है, लेकिन इज़राइल के कांसुलेट जनरल ने जब यह सुना अभी मंच पर कि गुजरात 10% है, तो उन्हें आश्चर्य हुआ। यानि इज़राइल के लोगों को भी सरप्राइज हो रहा है कि यह गुजरात कैसे 10% पहुंचा है..! भाइयों-बहनों, गुजरात अगर पहुंच सकता है, तो हिंदुस्तान भी पहुंच सकता है। और भाइयों-बहनों, हमने सपना देखा है, अगर हम सपने देखें तो स्थितियां बदली जा सकती हैं..!

हम सबको याद है यहाँ जिनकी आयु 55-60 साल की हुई होगी, उन सबको पुरानी कथाएं याद होंगी। हमारे देश में पेट भरने के लिए नेहरू के जमाने में पी.एच.480 गेहूँ विदेश से लाना पड़ता था। पंडित नेहरू के जमाने में हिंदुस्तान को पेट भरने के लिए हिंदुस्तान में अन्न पैदा नहीं होता था, अन्न बाहर से लाना पड़ता था। पी.एच.480 गेहूँ गुजरात के बंदरगाहों पर आते थे और पूरे देश में जाते थे। सरकार की आधी मशीनरी इस बात में बिज़ी रहती थी कि बंदरगाहों पर माल कब पहुंचेगा, वह माल कब उठाया जाएगा, उस माल को हिंदुस्तान के कोने-कोने में कैसे पहुंचाया जाएगा... सरकार की आधी मशीनरी उसी में लगी रहती थी। वह दिन हिंदुस्तान ने देंखे हैं, आजाद हिंदुस्तान ने देखें हैं। लेकिन एक लाल बहादुर शास्त्री आए, और लाल बहादुर शास्त्री ने मंत्र दिया ‘जय जवान, जय किसान’..! और लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदुस्तान के किसानों को कहा कि मेरा देश कृषि प्रधान हो, मेरे देश के किसानों में इतना दम हो और हिंदुस्तान को पेट भरने के लिए दुनिया की ओर देखना पड़े यह स्थिति मुझे मंजूर नहीं है, हमें कुछ करना चाहिए। उन्होंने हिंदुस्तान के किसानों से आह्वान किया और भारत के किसानों ने लाल बहादुर शास्त्री के शब्दों पर अपना जीवन लगा दिया और अन्न के भंडार भर दिए। मेरे देश के किसान ने रात-दिन पसीना बहाया, हिंदुस्तान में अन्न के भंडार भर दिए और उसके बाद इस देश को पेट भरने के लिए कभी विदेशों से कुछ लाने की जरूरत नहीं पड़ी। यह काम मेरे देश के किसानों ने किया है। यही जमीन, यही पानी, यही पद्धति, लेकिन सही नेतृत्व मिला तो देश का किसान खड़ा हो गया और देश के अन्न के भंडार भर दिए..! भाईयों-बहनों, क्या हम अपना ही पेट भरने के लिए पैदा हुए हैं क्या..? मेरे किसान भाइयों-बहनों, 11 राज्य के किसान मेरे सामने बैठे हैं। मैं गुजरात जैसे एक छोटे से राज्य का मुख्यमंत्री, आपका सेवक, मैं आपके दिलों में एक प्रश्र उठाना चाहता हूँ, मैं आपसे आह्वान करना चाहता हूँ, क्या हिंदुस्तान, हिंदुस्तान का किसान, सिर्फ अपना ही पेट भरने के लिए पैदा हुआ है? नहीं..! क्या हिंदुस्तान का किसान सिर्फ हिन्दुस्तानियों का पेट भरने के लिए पैदा हुआ है? नहीं..! भाइयों-बहनों, मेरे देश का किसान सपना देखे, पूरा हिंदुस्तान सपना देखे कि हम पूरे यूरोप का पेट भरने की ताकत रखते हैं, पूरे यूरोप का..! हम इतने आगे बढ़ें, इतने आगे बढ़ें कि यूरोप के लोगों को चावल चाहिए, गेहूँ चाहिए, सब्जी चाहिए, तो हिंदुस्तान के किसान पर निर्भर रहना पड़े। हिंदुस्तान का किसान जब तक भेजे नहीं तब तक उसका पेट ना भर पाए, इतनी ताकत हमें दिखानी चाहिए। सपना देखना चाहिए, हम पूरे यूरोप को खाना दे सकते हैं, पूरे यूरोप को खिला सकते हैं, यह सपना देख कर के हमने हमारे एग्रीकल्चर सेक्टर को आगे बढ़ाना चाहिए। और उसके लिए देश को जो करना पड़े, जो नीतियां लानी पड़े, वह लानी चाहिए। अगर हम मरते-मरते यह कहेंगे कि नहीं यार, चलो अपना घर चल जाए तो ठीक है, तो फिर प्रगति नहीं होगी। प्रगति तब होती है जब कुछ नया करने का इरादा हो, प्रगति तब होती है..! लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदुस्तान को पेट भरने की ताकत तो दे दी, अब समय की मांग है और इस वाइब्रेंट गुजरात की समिट से, इस एग्रीकल्चर समिट से हम एक ऐसा संकल्प लेकर जाएं कि हम पूरे यूरोप को फीड कर सकें। हम पूरे यूरोप का राइस बाउल क्येां नहीं बन सकते, हम पूरे यूरोप का वेजिटेबल बाउल क्यों नहीं बन सकते, हम पूरे यूरोप का व्हीट बाउल क्यों नहीं बन सकते..? बनने का सामर्थ्य इस देश के किसानों में है, सपना वो देखना चाहिए। अगर उस सपने को पूरा करना है तो हमें एग्रीकल्चर टेक्नोलोजी में चेन्ज लाना पड़ेगा, हमारी पुरानी परंपराओं को बदलना पड़ेगा। फ्लड इरीगेशन से निकलना पड़ेगा और माइक्रो इरीगेशन की ओर जाना पड़ेगा।

मैं कुछ साल पहले एग्रीकल्चर फेयर में इज़राइल गया था और मैंने विश्व के लोगों के सामने एक प्रेज़न्टेशन रखा था कि गुजरात क्या सोचता है..! और उस प्रेज़न्टेशन का मेरा सेन्ट्रल आइडिया था उसमें मैंने कहा था कि हमने तय किया है ‘पर ड्रॉप, मॉर क्रॉप’..! ‘पर ड्रॉप, मॉर क्रॉप’, एक-एक जल बिंदु से, एक-एक बूँद भर पानी से हम अनाज पैदा करना चाहते हैं। कोई बूँद पानी की हम गंवाना नहीं चाहते, हर बूँद से कुछ ना कुछ पैदावार करना चाहते हैं। ‘पर ड्रॉप, मॉर क्रॉप’ का सपना हमनें संजोया है। और मुझे खुशी है कि मेरे गुजरात में 1960 से 2001 तक चालीस साल में एक हज़ार हैक्टेयर भूमि में भी माइक्रो इरीगेशन नहीं था, स्प्रिंक्लर्स नहीं थे, ड्रिप इरीगेशन नहीं था.., भाइयो-बहनों, पिछले दस साल लगातार जो हमने जो कोशिश की है, आज मेरे किसान भाइयों-बहनों ने मुझे जो सहयोग दिया, हमारी बात को मान लिया उसका नतीजा यह है कि चालीस साल में एक हज़ार हैक्टेयर में मुश्किल से माइक्रो इरीगेशन हुआ था, इन दिनों सात लाख हैक्टेयर भूमि में माइक्रो इरीगेशन हो रहा है..! कहाँ चालीस साल में एक हज़ार और कहाँ दस साल में सात लाख हैक्टेयर माइक्रो इरीगेशन..! पानी बचा रहे हैं, खेती में सुधार हुआ है। अभी मैं हमारे गुजरात के कुछ बंधु जो अवार्ड लेने आए थे, उसमें से एक बंधु का परिचय इज़राइल के काउन्सलर को कराया। मैंने कहा यह नौजवान है जिसने ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में अपना नाम स्थापित कर दिया है। मैंने कहा, एक एकर भूमि में सबसे ज्यादा पटेटो पैदा करने का काम उसने दुनिया में करके दिखाया है, करीब-करीब 88 टन आलू, 88 टन आलू... दुनिया का रिकार्ड तोड़ दिया। अभी आपके सामने से यहाँ होकर गए हैं, वहाँ बैठे हैं। यह ताकत हमारे लोगों में हैं और हम यह परिवर्तन लाना चाहते हैं।

आज गुजरात, हमारा किसान वेजिटेबल एक्सपोर्ट करने लगा है, फ्रूट्स एक्सपोर्ट करने लगा है। कच्छ, जो रेगिस्तान था, आज दुनिया के बाजार मैंगो एक्सपोर्ट कर रहा है..! हमारा बारडोली, सरदार पटेल के नाम के साथ जुड़ा हुआ, आज दुनिया में किसी को भिंडी खानी है तो बारडोली की भिंडी फेमस हो गई है। यह मेरे किसानों ने किया है। मेरा किसान कल तक यह सोचता था कि गन्ने की खेती के लिए भरपूर पानी चाहिए। हम उनके पीछे लगे, समझाने लगे। और किसान को भाषणों से नहीं समझाया जा सकता, किसानों को उपदेश देने से काम नहीं चलता है। किसानों का स्वभाव है, जब तक अपनी आंखों से वह देखता नहीं है, तब तक वह स्वीकार नहीं करता। किसी भी प्रयोग को वह खुद जांचता नहीं है, परखता नहीं हैं, क्योंकि उसके लिए तो अगर यह प्रयोग करने जाए और साल बेकार हो गया तो बच्चे भूखे मर जाएंगे, इसलिए किसान हिम्मत नहीं कर सकता। हमने प्रयोग किया, हमारी शुगर को-ओपरेटिव सोसायटियों के माध्यम से, कि फ्लड इरीगेशन की जरूरत नहीं है, माइक्रो इरीगेशन से भी गन्ने की खेती हो सकती है..! और आज मेरे गुजरात के अंदर, जहाँ दक्षिण गुजरात में पानी उपलब्ध है, उसके बावजूद भी आज मेरे किसान वहाँ पर माइक्रो इरीगेशन से शुगरकेन करने लगे हैं, इसका फायदा कितना हुआ है..! हिंदुस्तान के शुगरकेन में जितना शुगर कन्टेंट होता है, उससे गुजरात में माइक्रो इरीगेशन से जो शुगरकेन पैदा करता है, उसका शुगर कन्टेन्ट ज्यादा होता है। उसमें से शक्कर ज्यादा निकलती है। यह काम गुजरात के किसानों ने करना शुरू किया है। भाइयों-बहनों, अनेक प्रयेाग, अब सेायाबीन में मध्य प्रदेश, जांबुआ, इंदौर, उज्जैन, वो पट्टा था जो फेमस था। मेरे दाहोद के आदिवासियों ने, पंचमहाल के आदिवासी किसानों ने, छोटी जमीन में, बीघा-दो बीघा जमीन थी, उन्होंने फैसला किया कि हमें सोयाबीन की खेती करनी है और आज सोयाबीन एक्सपोर्ट करने की पोजिशन में मेरा आदिवासी किसान आ गया है..! फूलों की खेती करने लगा है, दुनिया में जो बहुत से महंगे फूल होते हैं, उन महंगे फूलों की खेती ‘ग्रीन हाउस’ के माध्यम से मेरे गाँव का गरीब किसान करने लगा है। कम मात्रा में क्यों ना हो, लेकिन एक सही दिशा में हमारी शुरूआत हुई है। और यह हमको मान के चलना पड़ेगा कि जैसे फैक्टरी में पैदा होने वाली, उत्पादित होने वाली हर चीज़, उसको ग्लोबल इकॉनामी का इम्पेक्ट होता है, ग्लोबल मार्केट का इम्पेक्ट होता है, ग्लोबल कंज्यूमर का इम्पेक्ट होता है, उसी प्रकार से एग्रीकल्चर को भी ग्लोबल इकॉनामी का इम्पेक्ट होता ही है, ग्लोबल मार्केट का भी असर होता है और इसलिए हमारा किसान भले गाँव में बैठा हो लेकिन विश्व का कृषि अर्थकारण जैसे चलता है, उसमें हमारे हिंदुस्तान के गाँव का किसान टिक पाएगा या नहीं टिक पाएगा, वह हमें नजरअंदाज नहीं करना होगा, मगर उसको ध्यान में रखते हुए हमारे किसान को ताकतवर बनाना पड़ेगा, हमारे किसान को मजबूत बनाना पड़ेगा। अगर यह सपना देखते हैं, तो स्थितियां बदली जा सकती हैं।

मेरी किसान भाइयों से भी प्रार्थना है, कि पहले गाय इतना ही दूध देती थी वह तो ऐसा ही है, यानि एक बीघा जमीन में इतनी ही फसल होती थी, मेरे बाप-दादा के जमाने में भी यही होता था... भाइयों-बहनों, ऐसी सोच से बाहर आना होगा। अब जमीन तो बढ़ने वाली नहीं है, जो जमीन है उसी में उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा। अगर उसमें पहले, 200 किलो पैदावार होती थी, तो उतनी ही जमीन में 400 किलो पैदावार कैसे हो..? और यह आज के विज्ञान के युग में, टेक्नोलोजी के युग में, अब ये सब कुछ संभव है। हमें हमारी प्रोडक्टिविटी बढ़ानी पड़ेगी। और उसमें हमने एक प्रयोग किया ‘सॉइल हैल्थ कार्ड’ का। आज हिंदुस्तान में नागरिकों के पास भी अपना हैल्थ कार्ड नहीं है। उसका आरोग्य कैसा है, उसका स्वास्थ्य कैसा है, उसकी तबीयत कैसी है, उसका कोई कार्ड हिंदुस्तान के नागरिक के पास नहीं है, लेकिन गुजरात के किसान के पास उसकी जमीन की तबीयत कैसी है, जमीन का स्वास्थ्य कैसा है उसका हैल्थ कार्ड उसके पास उपलब्ध है..! उसके कारण उसको पता चलता है कि मेरी जमीन किस क्रॉप के लिए, किस काम के लिए अनुकूल है, मेरी जमीन के अंदर क्या कमियां है जिसके कारण मुझे कौन सी दवाइयाँ डालनी चाहिए, मेरी जमीन में क्या कमियां है जिसके कारण मुझे कौन सा फर्टिलाइजर डालना चाहिए, कितना डालना चाहिए... ये सोइल हैल्थ कार्ड के कारण, मेरे गुजरात में सामान्य रूप से किसान का जो वेस्ट होता था, जैसे 15,000, 20,000 रूपया साल का, सिर्फ वो सॉयल हैल्थ कार्ड के कारण बच गया। भारत सरकार ने भी गुजरात की तर्ज पर हिंदुस्तान के सभी किसानों को सॉइल हैल्थ कार्ड देने का तय किया है। वो कब दे पाएंगे मैं नहीं जानता हूँ, वह कहाँ फंसे रहते हैं वह हम सबको मालूम है..! इसलिए कब किसान की बारी आएगी उनके कारोबार में, कोयले से निकलने के बाद जब किसान की तरफ देखेंगे, तब जा कर के सॉइल हैल्थ कार्ड का मामला यहाँ तक पहुंच पाएगा। अभी तो वह कोयले में फंसे पड़े हैं और देश का भी पता नहीं मुंह काला हो रहा है। पता नहीं, कब बचेंगे हम उनसे..! लेकिन भाइयों-बहनों, दिल्ली भले कोयले में डूबा हो, हम तो किसान में डूबे हुए हैं। हमारे लिए किसान सब कुछ है, हमारे लिए गाँव सब कुछ है। हमारा किसान प्रगति करे यही हमारा सपना है और उसी को लेकर के हम आगे बढ़ रहे हैं। और इसलिए जिस प्रकार से उत्पादन में बदलाव, उसी प्रकार से आवश्यकता है, जो पैदावार हुई है उसका रख रखाव।

एक जमाना ऐसा था कि किसान को घर में कोई अवसर हो, बेटी की शादी करवानी हो, और जमीन बेचने जाता था तो कोई लेने वाला नहीं मिलता था। बेचारे को तीन-चार जगह हाथ पैर जोडऩे पड़ते थे। यहाँ तक कहना पड़ता था कि ठीक है, आधे पैसे दे दो, लेकिन जमीन ले लो, मुझे बेटी की शादी करवानी है। आज हमने गुजरात में ऐसी स्थिति पैदा की है कि एक बहुत बड़ी गाड़ी लेकर के, एक कोट पैंट पहन कर के कोई बड़ा आदमी जमीन लेने आता है, तो किसान अपनी खटिया पर बैठा-बैठा बोल देता है कि आज मेरा मूड नहीं है, अगले मंगलवार को आना..! आज मैं जमीन नहीं देना चाहता, ना कह देता है..! यह मिज़ाज लाया जा सकता है, किसान की ये ताकत लाई जा सकती है। कल लोग उसको जमीन कम पैसे में देने के लिए मजबूर करते थे, लेकिन आज किसान तय करता है कि इससे कम में जमीन नहीं मिलेगी, जाओ..! और मेरे गुजरात का किसान तो व्यापारी भी है। वह अगर यहाँ 50 बीघा जमीन बेचता है, तो उससे आधे पैसों में 200 बीघा जमीन कहीं दूर खरीद लेता है। इसलिए दूर की जमीन का भी दाम बढ़ता चला जा रहा है। मेरे किसान की ताकत बढ़ रही है। पहले उसकी जमीन पर बैंक से लाख रूपया भी नहीं मिलता था, आज उतनी ही जमीन से वह एक करोड़ रुपया कर्ज ले पा रहा है। जमीन के दाम बढ़ने से किसान की ताकत बढ़ी है।

भाइयों-बहनों, जो लोग झूठ फैलाते हैं, जो लोग हमारे गुजरात को दिन-रात बदनाम करने की कोशिश करते हैं, मैं उनको चुनौति देता हूँ। यह गुजरात अकेला राज्य हिंदुस्तान में ऐसा है कि जहाँ कृषि विकास भी हुआ और औद्योगिक विकास भी हुआ। हमारे यहाँ इन्ड्रस्ट्रियल डेवलपमेंट भी हुआ और एग्रीकल्चर डेवलपमेंट भी हुआ। आम तौर पर इन्ड्रस्ट्रियल डेवलपमेंट होता है तो कृषि की जमीन कम हो जाती है। लेकिन गुजरात एक ऐसा प्रदेश है कि जहाँ इन्ड्रस्ट्रियल डवलपमेंट भी बढ़ा और कृषि योग्य भूमि में भी 37 लाख हैक्टेयर भूमि का इजाफा हुआ है। 37 लाख हैक्टेयर से भी ज्यादा जमीन कृषि योग्य हमने बनाई है। हमने किसानों को ताकतवर बनाने का काम किया है। भाइयों-बहनों, झूठ बोलने से खेत में पैदावार नहीं होती है। आप इंसान को गुमराह कर सकते हो, पर फसल की पैदावार में बदलाव नहीं ला सकते हो। हमारा सपना है एग्रीकल्चर सेक्टर में बदलाव लाना। भाइयों-बहनों, आज यही समिट, मेरी वाइब्रेंट समिट होती तो इतनी संख्या नहीं होती, इससे कम होती है। लेकिन उसकी तस्वीर पहले पेज पर बहुत बड़ी छपती है, क्योंकि उसके अंदर बहुत बड़े-बड़े उद्योगपति आते हैं। लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण मेरे लिए यह समिट है। यह मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण समिट है। भले ही जिनकी तस्वीर कभी टी.वी. पर दिखती नहीं होगी, जिनका नाम अखबार में नहीं आता होगा, जिनकी तस्वीर कभी अखबार में नहीं छपती होगी, यह मेरे फार्मर, मेरे किसान यहाँ पर जो हैं, यह मेरे देश की ताकत है, यही सच्ची ताकत है और इसलिए हमने इस वाइब्रेंट समिट को किया है और इसी के भरोसे हम कृषि क्षेत्र में टेक्नोलोजी लाना चाहते हैं, हम कृषि क्षेत्र में एज्यूकेशन लाना चाहते हैं, हम कृषि क्षेत्र में ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट को लाना चाहते हैं। भाइयों-बहनों, मैं देश भर के किसान पुत्रों को कहना चाहता हूँ, हम गुजरात के अंदर इंगलैंड के साथ मिलकर के एक ऐसी इंस्टीट्यूशन का निर्माण करना चाहते हैं कि जिसमें कृषि में ग्रेज्यूएशन करने के बाद, पोस्ट ग्रेज्यूएशन और पी.एच.डी. करने के लिए वह गुजरात आएं। इज़राइल के साथ मिल कर हम एक ऐसी इंस्टिट्यूट खड़ी करेंगे जिसमें उनको प्रेक्टिकल फार्मिंग के साथ सारी चीज़ें सिखाएंगे और उनको पी.एच.डी. की डिग्री इज़राइल की यूनिवर्सिटी से दिलवाएंगे, ऐसी एक इंस्टिट्यूट का जन्म हम आने वाले दिनों में गुजरात में करना चाहते हैं। संशोधन के क्षेत्र में यह काम देश को करना चाहिए था, लेकिन दिल्ली की सरकार क्या करेगा पता नहीं है और हम उसके लिए इंतजार करने नहीं बैठ सकते। हम गुजरात में करना चाहते हैं और मेरी आज ही इज़राइल के लोगों से वार्ता फाइनल रूप में आ गई है, आने वाले दिनों में हम उसका फैसला करके हम देश और दुनिया के लिए एक नया नजराना देंगे।

मैं फिर एक बार, इस महत्पूर्ण कार्यक्रम का, गुजरात के इस महत्वपूर्ण अभियान का आज मैं प्रारंभ कर रहा हूँ, और सिर्फ आज के लिए प्रारंभ कर रहा हूँ ऐसा नहीं है, इज़राइल की तरह हम भी हर तीन साल में एक बार ग्लोबल लेवल का एक एग्रीकल्चर फेयर करेंगे, एग्रीकल्चर मैन्यूफैक्चरिंग में जो लोग हैं, टेक्निकली में जो लोग एडवांस है, उन सबको बुलाएंगे और मेरे देश के किसान को इज़राइल जाना ना पड़े, वह दुनिया की सारी अच्छी चीजें हिंदुस्तान में देख सकें, सीख सकें और प्रयोग कर सकें इसके लिए अच्छी उर्वरा भूमि हम इस महात्मा मंदिर को बनाने का फैसला कर रहे हैं। और मैं निमंत्रण देता हूँ कि तीन साल के बाद फिर इस प्रकार का कार्यक्रम हो, और अधिक मात्रा में मेरे किसान आएं और किसानों को जो सिखना हो, जो चाहिए, जो इन्फोर्मेशन चाहिए वह सारी देने का काम, और जरूरी नहीं कि सिर्फ गुजरात के किसान, हिंदुस्तान के किसी भी कोने से किसान आएगा, वह मेरे गुजरात का भाई है। यह सरदार पटेल की भूमि है, सरदार पटेल किसानों के नेता थे। सरदार पटेल की उस विरासत को हम निभाएंगे और उस विरासत के आधार पर हिंदुस्तान के हर किसान का गुजरात पर अधिकार है, सरदार पटेल पर उसका अधिकार है तो गुजरात पर भी उसका अधिकार है, वह काम हम करके देंगे, इसी अपेक्षा के साथ आप सभी को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं..!

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Economic Benefits for Middle Class
March 14, 2019

It is the middle class that contributes greatly to the country through their role as honest taxpayers. However, their contribution needs to be recognised and their tax burden eased. For this, the Modi government took a historic decision. That there is zero tax liability on a net taxable annual income of Rs. 5 lakh now, is a huge boost to the savings of the middle class. However, this is not a one-off move. The Modi government has consistently been taking steps to reduce the tax burden on the taxpayers. Here is how union budget has put more money into the hands of the middle class through the years...