Government's only objective - India First: PM Narendra Modi
Government has only one book that it should follow - the Constitution: PM Modi
Dignity for Indians and unity for India...this is what our Constitution is about: PM
To strengthen our democracy, it is important for people to know about the aspects of our Constitution: PM
In a democracy, consensus is what gives the greatest strength: PM Narendra Modi
It is important to strengthen rights and it is as important to strengthen duties: PM Modi
We are very proud of those who have given their lives for the freedom of our nation: PM
Our focus must be on how our Constitution can help the Dalits, the marginalised and the poor: PM
If we limit the Constitution as a tool of governance only, then we are limiting its strength: PM Modi
There are 800 million youth in India. We have to provide them opportunities to change the future of the country: PM
PM Narendra Modi elaborates on his #IdeaOfIndia in Lok Sabha
My Idea of India - सत्यमेव जयते
My Idea of India - अहिंसा परमो धर्मः
My Idea of India - वसुधैव कुटुम्बकम्
My Idea of India - सर्व पंथ समभाव
My Idea of India – अप्प दीपो भवः
My Idea of India – तेन त्यक्तेन भुन्जिथा
My Idea of India - सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
My Idea of India – जन सेवा ही प्रभु सेवा:
My Idea of India - नारी तू नारायणी
My Idea of India - जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

आदरणीय अध्यक्ष महोदया

आपने इस महत्वपूर्ण चर्चा का आरंभ किया और आपने पूरे राष्ट्र के सामने उत्तम विचारों के साथ संविधान का महात्त्म्य, संविधान की उपयोगिता और संविधान निर्माण के पीछे राष्ट्र के महापुरूषों की जो दीर्घ दृष्टि थी, उसको बहुत ही प्रभावी ढंग से प्रस्‍तुत किया। आपका ये भाषण संसदीय इतिहास में एक महत्पूर्ण प्रेरक दस्तावेज बनेगा। ऐसा मुझे पूरा विश्वास है। मैं आपको बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

सदन में भी इस कार्यक्रम में जो रूचि दिखाई गई, सबने एक मत से जो समर्थन किया और अपने-अपने तरीके से संविधान के महात्त्म्य को और उसके प्रति प्रतिबद्धता को जिस प्रकार से चर्चा के द्वारा प्रस्तुत किया, मैं इसके लिए सदन के सभी आदरणीय सदस्यों का हृदय से अभिनंदन करता हूं। आभार व्यक्त करता हूं।

मैं नहीं मानता हूं, कुछ लोगों की गलतफहमी है और शायद पुरानी आदत के कारण चलता होगा। कहीं मैं देख रहा था कि प्रधानमंत्री चर्चा के आखिर में जवाब देंगे। मैं नहीं मानता हूं कि ये चर्चा उस रूप में है, मैं भी इन सभी सदस्यों जैसा ही एक सदस्य हूं। और जैसे सभी मान्य सदस्यों ने अपनी भावना प्रकट की, वैसे ही मैं अपने भाव पुष्प अर्पित करने के लिए खड़ा हूं। क्योंकि इस चर्चा का Spirit वही है, मैं और तू ये Spirit नहीं है चर्चा का। Spirit चर्चा की हम हैं, पूरा सदन है। देश के सब जनप्रतिनिधि हैं, और आखिरकार इस चर्चा का मूल्य उद्देश्य भी वही था। ये बात सही है। 26 जनवरी को हम हमारा गणतंत्र दिवस मनाते हैं। लेकिन इतिहास की महत्पूर्ण एक और घटना है 26 नवंबर। इसको भी उजागर करना उतना ही आवश्यक है और 26 नवंबर को उजागर करके 26 जनवरी को नीचा दिखाने का प्रयास नहीं है। 26 जनवरी की जो ताकत है, वो 26 नवंबर में निहित है, ये उजागर करने की आवश्यकता है। मैं जानता नहीं हूं, आज स्कूलों के सिलेबस के डिटेल में हर राज्य के अपना-अपना सिलेबस होता है। लेकिन जब हमलोग छोटे थे तो नागरिक शास्त्र पढ़ाया जाता था और उसमें थोड़ा-सा परिचय आता था, हमारे संविधान का। लेकिन बाद में जा करके वो करीब-करीब खो जाता था और या तो वकालत के व्यवसाय में जाएं वो लोग या फिर जो राजनीति में आये, उन तक ही हमारे संविधान की सारी गतिविधियां सीमित हो गईं।

भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है। हम सबको बांधने की ताकत संविधान में है। हम सबको बढ़ाने की ताकत संविधान में है और इसलिए समय की मांग है कि हम संविधान की sanctity, संविधान की शक्ति और संविधान में निहित बातों से जन-जन को परिचित कराने का एक निरंतर प्रयास करें। और इसको हमें एक पूरे Religious भाव से, एक समर्पित भाव से इस प्रक्रिया को करना चाहिए। 26 नवंबर संविधान दिवस के माध्यम से सरकार की सोच है और इसमें धीरे-धीरे सुधार भी होगा। यह evolve भी होगा क्योंकि ये तो प्रारंभिक विषय है। कोई चीज अल्टीमेट नहीं होती है। उसमें निरंतर विकास होता रहता है।

हम इस व्यवस्था को प्रति वर्ष कैसे आगे बढ़ाएं, हमारा यह नहीं कहना है कि इस बार एक विशेष पर्व था। बाबा साहब अम्बेडकर का 125वां वर्ष जब देश मना रहा है तो उसके कारण संसद के साथ जोड़ कर इस कार्यक्रम की रचना हुई। लेकिन भविष्य में इसको लोकसभा तक सीमित रखना नहीं है, इसको जनसभा तक ले जाना है। व्यापक रूप से सेमिनार हो, Debates हो, Competitions हो हर पीढ़ी के लोग संविधान के संबंध में सोचे, समझे, चर्चा करें। एक निरंतर मंथन चलता रहना चाहिए और इसलिए एक छोट सा प्रयास आरंभ हो रहा है। और सदन में जिस प्रकार से सबने सकारात्मक भावनाएं व्यक्त की हैं। उससे लगता है कि इसका महात्त्म्य है और आगे चलकर के इसको बढ़ाना चाहिए और हम जरूर इसको आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे, जैसे मेरे मन में विचार आता है। क्यों न हम पूरे देश में लगातार भारत के संविधान के संबंध में Online Competitions करें, Questions हों, ऐसे Competition हों ताकि पूरे देश में एक आदत बनें। स्कूल, कॉलेज हमारे जुड़ते रहें, स्कूलों के अंदर इसकी व्यवस्था हो। एक व्यापक रूप से हमारे संविधान के बारे में लगातार चर्चा होती रहे। ऐसे कई कार्यक्रमों की रचना आगे चलकर के सोची जा सकती हैं।

एक बात मैंने लालकिले पर से कही थी। एक बार इस सदन में भी कही थी। लेकिन शायद कुछ चीजों को समझकर के भूलने का भी स्वभाव होता है। और कुछ चीजें ऐसे ही भूल जाती हैं। मुझे याद नहीं इसके पूर्व किसी प्रधानमंत्री ने लालकिले पर से बात कही हो, मुझे याद नहीं है। कहा हो तो मैं उसको नमन करूंगा। लेकिन मैंने ये कहा था कि इस देश में जितनी सरकारें बनी है, सब सरकारों में जितने भी प्रधानमंत्री बने हैं, सभी प्रधानमंत्रियों के योगदान से ये देश आगे बढ़ा है। ये मैंने लालकिले पर से कहा था। मैंने सदन में भी इस बात को कहा था और मैं दोबारा कहता हूं। यह देश कइ लोगों की तपस्या से आगे बढ़ा है। सब सरकारों के योगदान से आगे बढ़ा है। हां, शिकायत ये होती है कि अपेक्षा से कहीं कम हुआ, तो शिकायत होती है। और लोकतंत्र में शिकायत का हक सबका होता है। लेकिन कोई ये नहीं कह सकता कि पुरानी सरकारों ने कुछ नहीं किया, ये कोई नहीं कह सकता। कह भी नहीं सकते। और इसलिए ये सभी बातें और यही मैंने लालकिले पर से बोला है। मैं आज नहीं बोल रहा हूं। क्योंकि ये मेरा Conviction है। और ये देश, हम यह भी न भूलें कि राजा महाराजाओं ने, सत्ताधीशों ने देश नहीं बनाया है। यह देश कोटि-कोटि जनों ने बनाया है, जन-जन ने बनाया है, श्रमिकों ने बनाया है, किसानों ने बनाया है, गरीबों ने अपने पसीने से बनाया है, शिक्षकों ने बनाया है, आचार्यों ने बनाया है, इस देश के कोटि-कोटि लोगों ने सदियों तक लगातार अपनी-अपनी भूमिका निभाते-निभाते देश बनाया है। और इसलिए हम सबका दायित्व होता है उन सब के प्रति अपना ऋण स्वीकार करना, उनको नमन करना।

संविधान के अंदर भी सबकी भूमिका रही है। और उस समय जिनके नेतृत्व में देश चलता था, उनकी विशेष भूमिका रही है और इसलिए इतना उत्तम संविधान जो हमें मिला है, इसकी हम जितनी सराहना करें उतनी कम है। हम जितना गौरव करें उतना कम है। और अगर संविधान को सरल भाषा में मुझे कहना है तो हमारा संविधान Dignity for Indian and unity for India इस दोनों मूल मंत्रों को साकार करता है। जनसामान्य की Dignity और देश की एकता और अखंडता। बाबा साहब अम्बेडकर की भूमिका को हम कभी भी नकार नहीं सकते। इसका मतलब ये नहीं कि बाबा साहब अम्बेडकर की बात करते हैं तो औरों का कोई काम नहीं होता। लेकिन एक का नाम देंगे तो दूसरे का रह जाता, दूसरे का रह जाए तो तीसरे का रह जाएगा हरेक को लगेगा कि हमारा भी तो योगदान था। और कुछ लोगों ने तो जीवन में इतनी ऊंचाइयां पाई हैं कि कोई उनका नाम दे या न दे उनके नाम की कभी कमी नहीं हो सकती, उनको मिटाया नहीं जा सकता। हमें इतना विश्वास होना चाहिए और इसलिए इस विश्वास को पुनः प्रस्थापित करने की आवश्यकता है। क्योंकि यह देश अनेक महापुरुषों के कारण बना है और उसका अपना महत्व है। यह हमें स्वीकार करना होगा।

सन् 2009 में संविधान के 60 साल हुए थे। मैं आज इस संविधान के कार्यक्रम की कल्पना लाया हूं, यह पहली बार नहीं है। मैं उस वक्‍त एक राज्य में मुख्यमंत्री था। और 2009 में जब संविधान के 60 साल हुए तो हमने राज्य सरकार की तरफ से हाथी के ऊपर बैठने की पूरी व्यवस्था बना करके उसमें संविधान को सुशोभित करके रखा था। और उसकी यात्रा निकाली थी। और मुख्यमंत्री स्वयं हाथी के आगे-आगे पैदल चलता था। संविधान के महात्त्म्य के बारे में लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए। संविधान के 60 साल को हमनें गुजरात की धरती पर मनाया था क्योंकि मैं उस समय वहां का मुख्यमंत्री था। संविधान के मूल्यों को हम स्वीकार करते हैं। हमारा संविधान है, कभी हम आज सोचें कि इस सदन में इतने बड़े लोग हैं जो जनप्रतिनिधि बन करके आए हैं। अगर हमें एक काम दिया जाए कि जो मूल संविधान की परत है। उसकी धाराएं नहीं है, उसमें जो Drawings, है paintings है उसको Select करने का काम दिया जाए।

आज की हमारी चुनावी दिलभक्ति, ये चुनावी दलभक्ति इतनी तीव्र हो चुकी है। मैं नहीं मानता हूं कि संविधान छोड़िए, उसके अंदर जो चित्र है उसको भी सहमति से हम स्वीकार कर पाएंगे। हर चित्र के खिलाफ objection आएगा। चित्र के Colour के खिलाफ objection आएगा। इस मनोस्थिति में हम पहुंचे हैं तब हमें अंदाज आता है कि उन महापुरुषों ने कितना बड़ा काम किया होगा। यह संविधान तीन साल के भीतर-भीतर बना दिया। और बहुत देशों में संविधान बनाना शायद उतना मुश्किल नहीं होगा। भारत जैसे देश का संविधान बनाना बहुत बड़ा काम है, जिस देश में विश्व के सभी जो जीवित 12 धर्म हैं, वो 12 धर्म यहां श्रद्धापूर्वक मनाये जाते हैं, जिस देश में अलग-अलग मूलों से निकली हुई एक सौ 22 भाषाएं हो, जिस देश में 16 सौ से ज्यादा बोलियां हो, हरेक की अलग priority हो, जहां ईश्वर में विश्वास करने वाले भी हों, और ईश्वर को नकारने वाले भी लोग हों। यहां प्रकृति को पूजने वाले लोग हों और पत्थर में परमात्मा को देखने वाले भी लोग हों। ऐसी विविधताओं से भरे हुए देश में लोगों के Expressions क्या होंगे। उनकी आकाक्षाएं क्या होंगी। उसको एक साथ बैठ करके, सोच करके बनाना। आज भी हम एकाध कानून बनाते हैं, तो दूसरे ही सत्र में उसी कानून में एक शब्द रह गया इसे ठीक करने के लिए वापस लाना पड़ता है। हम ही सदन का अनुभव हैं। हम भी एक perfect कानून नहीं बना पा रहे हैं, ये हकीकत है। उसमें हमारी कमियां रहती हैं, और दूसरे सत्र में लाना पड़ता है। और कहना पड़ता है कि इस शब्द में गलती हो गई थी जिसे ठीक करना पड़ेगा।

संविधान निर्माताओं ने क्या-क्या तपस्या की होगी। वो कौन-सी उनकी मन की अवस्‍था होगी कि जो चीजें निकल कर आईं। वो आज भी हमारे लिए मार्ग दर्शक हैं और इसलिए ये गौरवगान, हमारी आने वाली पीढि़यों तक पहुंचाना, उनको इससे परिचित कराना, इन चीजों को उनको जानने के लिए कहना, यह हमारे देश के लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए आवश्यक हैं। सदन के अंदर ही संविधान सीमित हो जाए, या सरकार को चलाने का एक document बन जाए, तो मैं समझता हूं लोकतंत्र की जड़ों को जो सिंचित करने का हमारा प्रयास है, उसमें कमी रहेगी। और इसलिए भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए संविधान की भावना और संविधान के सामर्थ्य को जन-जन से परिचित करवाना, यह हमारा दायित्व बनता है और मैं मानता हूं कि जिन-जिन महापुरूषों ने योगदान किया है, उन सबका उल्लेख करते हुए हमें इस बात को करना होगा।

जब हमारा संविधान बना तब संविधान सभा के Provisional चेयरमैन श्रीमान सच्चिदानंद सिन्हा जी ने एक बात कही थी, उसका मैं उल्लेख करना चाहता हूं। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा था, और उन्होंने Quote किया था, अमेरिकी संविधान के बारे में, Joseph Story के शब्दों का उल्लेख किया था। उन्होंने कहा था कि Joseph Story ने कहा था, उनका है Quote -“The constitution has been reared for immortality if the work of man may justly aspire to such a title.” (संविधान अमर रहने के लिए बनाया गया है। अगर मनुष्य के द्वारा बनाए गए साधन इस मुकाम को पाने की उम्मीद कर सकें)।

बाबा साहब अम्बेडकर की विशेषता की ओर हम नजर करेंगे। दीर्घदृष्टा और महापुरूष कैसे होते हैं, इसका एक उदाहरण है कि अगर किसी को सरकार पर प्रहार करना है तो भी Quotation बाबा साहब का काम आता है। किसी को अपने बचाव के लिए उपयोग करना है, तो भी Quotation बाबा साहब का काम आता है। किसी को अपनी Neutral बात बतानी है तो भी Quotation बाबा साहब का काम आता है। इसका मतलब उस महापुरूष में कितनी दीर्घदृष्टि थी, कितना Vision था, कितने व्यापक तौर पर उन्होंने अपने विचारों को व्यक्त किया था कि जो आज भी विरोध करने के लिए भी वो मार्ग दर्शक है, शासन चलाने वाले के लिए भी मार्ग दर्शक है। Neutral, मूकरक्षक बैठे लोगों के लिए भी यह मार्ग दर्शक है। यह अपने आप में थोड़ा अजूबा है। वरना विचार तो कई होते हैं, हर विचार एक ही खेमे के काम आते हैं। सब खेमो के काम नहीं आते। एक ही कालखंड के लिए काम आते हैं। सब कालखंड के लिए काम नहीं आते हैं। बाबा साहब की विशेषता रही है कि उनके विचार हर कालखंड के लिए, हर पीढ़ी के लिए, हर तबके के लिए उपकारक रहे हैं। मतलब उन विचारों में ताकत थी। एक तपस्या का एक अर्थ था जो राष्ट्र को समर्पित था और 100 साल के बाद का भी देश कैसा हो सकता है, यह देखने का सामर्थ्य भी उसमें था। तब जा करके इस प्रकार की बात निकल पाती है। और इसलिए सहज रूप से महापुरुषों को नमन करने का मन होना बहुत ही स्वाभाविक है।

बाबा साहब को जब मैं सोचता हूं इस संविधान के संबंध-में कभी-कभी हमलोगों को लगता है कि ये ऐसा Document है, जिसमें धारायें हैं। जिन धाराओं से हमें क्या करना, क्या नहीं करना उसका रास्ता खोजना है। सरकार कैसे चलानी है, कैसे नियम हैं, संसद कैसे चलानी है, क्या करना है, ये सब Granville Austin ने भारत के संविधान का वर्णन करते हुए कहा था। जो मैं समझता हूं कि बड़ा interesting है। उन्होंने कहा, यह एक सामाजिक दस्तावेज है। वरना तो संविधान यानि एक कानूनी दस्तावेज हो सकता है। अगर संविधान बनाने में बाबा साहब अम्बेडकर न होते, मुझे क्षमा करें मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा, तो शायद, हमारा संविधान देश चलाने के लिए, शासन चलाने के लिए उत्तम हो सकता था। लेकिन वो संविधान सामाजिक दस्तावेज बनने से चूक जाता। यह सामाजिक दस्तावेज जिसने बनाया है, उन बाबा साहब अम्बेडकर का दर्द, उनकी पीड़ा, उन्होंने जो झेला था, उन यातनाओं का अर्क उसमें शब्द बनकर ज़हर निकल रहा होता और तब उस समय जा करके संविधान का निर्माण हुआ था। और तब जा करके विदेशी व्यक्ति ने कहा था कि यह एक सामाजिक दस्तावेज है। और इसलिए इसे वैधानिक दस्तावेज न मानते हुए, सामाजिक दस्तावेज कहना कभी-कभी मुझे लगता है हम भी जानते होंगे।

हम सब मनुष्य हैं, कमियां हम सब में हैं और एकाध गलत चीज हो जाए तो लंबे अरसे तक दिमाग से जाती नहीं हैं। किसी ने कुछ शब्द बोल दिया हो तो चुभता रहता है, सामने मिलता है तो वो नहीं दिखता है, शब्द याद आता है। यह हमलोगों का स्वभाव है। आप कल्पना कर सकते हैं कि एक दलित मां का बेटा जिसने जन्म से जीवन तक सिर्फ यातनाएं झेलीं, अपमानित होता रहा, उपेक्षित होता रहा, डगर-डगर उनको सहना पड़ा। उसी व्यक्ति के हाथ में जब देश के भविष्य का दस्तावेज बनाने का अवसर आया, तो इस बात की पूरी संभावना होती कि यदि वह हम जैसा मनुष्‍य होता तो वो कटुता, वो जहर, कहीं न कहीं प्रकट होता। बदले की कहीं आग निकल आती, कहीं भाव निकल आता। लेकिन यह बाबा साहब अम्बेडकर की ऊंचाई थी कि जीवन भर उन्‍होंने झेला लेकिन संविधान में कहीं पर वो बदले का भाव नहीं है।

यह उस महानता, उस व्यक्तित्व की ऊंचाई है, जिसके कारण ऐसा संभव होता है। वरना हम सब जानते हैं हम मनुष्य हैं, हमको मालूम है, एक शब्द भी ऐसा चूक जाता है निकलता नहीं है। जीवन में कितनी ऊंचाई होगी, भीतर की सोच कितनी मजबूत होगी। उस महापुरूष ने उन सारे जहर को पी लिया और हमारे लिए अमृत छोड़ करके गये और इसलिए उस महापुरूष के लिए मुझे संस्कृत का एक शब्द याद आता है।

स्वभावम न जहा त्येव साधुरा आपद् गतोऽपि सन् ।

कर्पूरः पावक स्पर्श: सौरभं लभते तराम् ॥



साधु की सच्ची परीक्षा कठिन परिस्थितियों में ही होती है। जैसे - कपूर को आग के पास लाने पर उसे जलने का डर नहीं रहता, वह खुद जलकर अपनी सुरभि से सबको मोहित करता है।

A good person never gives up his nature even when he is caught in calamity. Camphor caught with fire emits more fragrance.

यह बात बाबा साहब के लिए एकदम से सटीक है। इसका मतलब है साधु की सच्ची परीक्षा कठिन परिस्थितियों में ही होती है। जैसे कपूर को आग के पास लाने पर उसके जलने का डर नहीं रहता, वह खुद जलकर अपनी सुरभि से सबको मोहित करता है, यह बाबा साहब अम्बेडकर हैं। अपने साथ इतनी कठिनाईयां हुई, इतनी यातनाएं हुई, उसके बावजूद भी हमारे पूरे संविधान में कहीं पर भी बदले का भाव नहीं है। सबको जोड़ने का प्रयास है। सबको समाहित करने का प्रयास है। और इसलिए बाबा साहब को विशेष नमन करने का मन होना स्वाभाविक है। 26 नवंबर 1949 - बाबा साहब अम्बेडकर ने स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाये रखने में स्वतंत्र भारत में नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, एक भाषण में उन्होंने कहा “If we wish to maintain democracy not merely in form, but also in fact, what must we do? The first thing, in my judgment we must do, is to hold fast to constitutional methods of achieving our social and economic objectives. But where constitutional methods are open, there can be no justification for these unconstitutional methods. These methods are nothing but the grammar of anarchy and the sooner they are abandoned, the better for us.” यदि हम लोकतंत्र को रूप में ही नहीं बल्कि सच में बनाये रखना चाहते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए। मेरे विचार में पहली चीज जो हमें करनी चाहिए वह है कि अपने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संवैधानिक तरीकों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए। जहां संवैधानिक तरीके खुले हैं वहां इन असंवैधानिक तरीकों का औचित्य नहीं हो सकता। यह तरीके और कुछ नहीं बल्कि अराजकता हैं, और उन्हें शीघ्र ही छोड़ना हमारे लिए बेहतर होगा।

मैं समझता हूं हम सब लोकतंत्र की परिपार्टी से पले-पढ़े हुए लोग हैं। हमारे लिए ये do's and don'ts की दृष्टि से उतना ही महत्वपूर्ण है। जिस दिन पंडित नेहरू ने संविधान सभा में एक प्रारूप रखा, उद्देश्य रखा, यानि उद्देश्य पर उनका प्रस्ताव था। और उनका समर्थन हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर राधा कृष्णन जी ने किया था। और उसमें एक बहुत अच्छी बात कही थी, पंडित नेहरू के समर्थन में, उस प्रस्ताव के समर्थन में उन्होंने कहा था।

धर्मम क्षत्रस्य क्षत्रम" [Dharma is the King of Kings]

धर्म, सत्य राजाओं में सर्वोपरि है।

यह लोगों और शासकों दोनों का शासक है।

यह कानून की संप्रभुता है जिसका हमने दावा किया है।



यहां धर्म माने वो rituals की बात नहीं है। संविधान की बात है। और उसे उन्होंने बहुत ऊंची ढंग से हमारा मार्ग दर्शन किया था। उसी प्रकार से प्रबुद्ध समिति के अध्यक्ष के नाते डॉक्टर बाबा साहब अम्बेडकर ने अनुच्छेद-368 में जो बात कही है, जो व्याख्या उन्होंने की है क्योंकि आज इन विषयों में छोटी-छोटी सुगबुगाहट हम सुनते है और इसलिए इस बात को समझा जाना आवश्यक है।

“The Constitution is a fundamental document. It is a document which defines the position and power of the three organs of the State –the executive, the judiciary and the legislature. It also defined the powers of the executive and the powers of the legislature as against the citizen, as have done in our chapter dealing with Fundamental Rights. In fact, the purpose of a Constitution is not merely to create the organs of the State but to limit their authority, because, if no limitation was imposed upon the authority of organs, there will be complete tyranny and complete oppression. The legislature may be free to frame any Law; the executive may be free to take any decision; and the Supreme Court may be free to give any interpretation of the Law. It would result in utter chaos”

संविधान आधारभूत दस्तावेज है। यह वह दस्तावेज है जो राज्यों के तीनों अंगों कार्य पालिका, न्याय पालिका और विधायिका की स्थिति और शक्तियों को परिभाषित करता है। यह कार्य पालिका की शक्तियों और विधायिकाओं को नागरिकों के प्रति भी परिभाषित करता है। जैसा कि हमने मौलिक अधिकारों के अध्‍याय में किया है। वस्तुत: संविधान का उद्देश्य राज्यों के अंगों का मात्र सृजन करना नहीं है। बल्कि उसके प्राधिकार को सीमित करना है। क्योंकि यदि अंग के प्राधिकार पर सीमा नहीं लगाई जाती तो वह पुन: निरंकुश होगा। विधायिका किसी भी कानून को बनाने के लिए स्वतंत्र हो, कार्य पालिका कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो तथा सर्वोच्य न्यायालय कानून की कोई भी व्याख्या करने के लिए स्वतंत्र हो, तो इसकी परिणति अराजकता में होगी। यह बात बाबा साहब अम्बेडकर ने बहुत ही पूरी ताकत के साथ कही थी। इसी बात को आगे भारत के पूर्व मुख्‍य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति गजेन्द्र गडकर को उन्होंने विधि आयोग के अध्यक्ष के नाते जो रिपोर्ट दिया उसमें एक महत्‍वपूर्ण बात के रूप में कहा है।

In a democratic country like India which is governed by a written Constitution, supremacy can be legitimately claimed only by the Constitution. It is the Constitution which is paramount, which is the law of laws, which confers on Parliament and the State Legislatures, the Executive and the Judiciary their respective powers, assigns to them their respective functions, and prescribes limitations within which the said powers and functions can be legitimately discharged."

गजेन्द्र गडकर कहते हैं आयोग विश्वास करता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जो कि लिखित संविधान द्वारा अभिशासित है। अभिशासित है, वहां सर्वोच्चता का दावा केवल संविधान द्वारा ही कानूनी रूप से किया जा सकता है। यह संविधान ही है जो सर्वोच्च है, जो कि कानूनों का कानून है, जो संविधान और राज्य विधायिकाओं, कार्य पालिकाओं और न्याय पालिकाओं को उनकी शक्तियां प्रदान करता है। उनको उनके संबंधी कार्य देता है। तथा उन सीमाओं को विहित करता है। जिसमें उक्त शक्तियों का कानूनी रूप से अपने कार्यों में निष्पादन करती है। यानि इतना सारा संविधान स्पष्ट है, सटीक है और इसलिए ये हमारा दायित्व बनता है कि हम इन सारी बातों को बार-बार उजागर करें और उजागर करके हम उसको कैसे आगे बढ़ाएं, इसकी दिशा में हमारा प्रयास रहना चाहिए।

हमारे लिए आज संविधान और अधिक महत्पूर्ण होता जाता है, क्योंकि विविधताओं से भरा हमारा देश है। अलग-अलग जगह पर अलग-अलग प्रकार के expressions भी एक हमारा दायित्व हैं। और आज जब हम इस लोकतंत्र के मंदिर में एकत्र हुए हैं। वो कौन सा संकल्प है, जो हमें एकजुट रखता है और कौन सा संकल्प है, जो हमें एक बनाता है। डॉक्टर बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा है – ‘I feel, however इस बात की चर्चा यहां पहले हो चुकी है। I feel, however a good constitution may be, it is sure to turn out bad because those who are called to work it, happened to be bad lot. However bad a constitution may be, it may turn out to be good if those who are called to work it, happened to be good lot. The working of a constitution does not depend wholly upon the nature of the constitution.

मैं महसूस करता हूं कि एक संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, या बुरा हो सकता हैं क्योंकि जिन्हें इसे कार्यान्वित करने के लिए कहा जाता है, एक अपात्र समूह भी हो सकता है। तथापि, एक संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो वो अच्छा साबित हो सकता है। यदि जिन्हें इसे कार्यान्वित करने के लिए दिया गया है वे एक अच्छा समूह हो, संविधान का काम करना संविधान की प्रकृति पर ही पूरा निर्भर नहीं होता। कल मैडम सोनिया जी ने भी इस बात का जिक्र किया था। आज भी राज्यसभा में इस बात का जिक्र हुआ है। और इसलिए संविधान की sanctity यह हम सबका दायित्‍व है, यह हम सबकी जिम्मेवारी है और यह ठीक है कि आखिरी चीज बहुमत से बनती है। लेकिन यह हम न भूलें कि लोकतंत्र में ज्यादा ताकत तब आती है, जब हम सहमति के रास्ते पर चलते हैं। हम सहमति और समझौते का प्रयास करते हैं, लेकिन जब सारे प्रयास विफल हो जाएं तब आखिरी रास्ता होता है अल्पमत और बहुमत। इस सदन में एक तरफ ज्यादा लोग है इसलिए उनको ये अधिकार नहीं मिल जाता है कि जो चाहे वो थोप दें। और इसलिए सहमति का हमारा रास्ता होना चाहिए, समझौते का रास्ता होना चाहिए। और हर किसी का साथ और सहयोग मिलना चाहिए। कुछ नहीं बनता है सारी बातें विफल हो जाती हैं, तो फिर अंतिम मामला बनता है, वो अंतिम है। जबकि बहुमत और अल्पमत के तराजू से तौला जाता है। इस भावना को हमें आगे बढ़ाना होगा। और इसलिए संविधान की इस भावना को आगे चलाने के लिये, मैं मानता हूं। अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी। इस सदन में बहुमत की परीक्षा हो रही थी। और जब बहुमत की परीक्षा हो रही थी तब Neck to Neck मामला था। ओडि़शा के मुख्यमंत्री श्रीमान गिरधर जी लोकसभा के सदस्य थे। Assembly में जीत गए थे। मुख्यमंत्री बन गए थे। लेकिन इस्तीफा अभी दिया नहीं था, 15 दिन का समय होता है। और इसी समय वाजपेयी जी को अपना बहुमत सिद्ध करने की नौबत आ गई। उस समय देश में विवाद था, क्या करेंगे वो सदन में आएंगे और क्या करेंगे, स्पीकर महोदय ने भी उनको कहा, कि ठीक है आप आये हैं लेकिन अपनी अंतरआत्मा को पूछ करके जो करना है, वो करिए। ऐसा कहा था और बाद में उन्होंने अटल जी की सरकार के खिलाफ वोट किया। और एक वोट से अटल जी की सरकार हार गई थी। संविधान उच्च हाथों में होता है, तब किस प्रकार का व्यवहार होता है। और कभी गलती होती है, तो कैसा होता है इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकता है और मैं मानता हूं, मैं मानता हूं कि अटल जी ने उस दिन, जिस दिन का उनका भाषण और जिस ऊंचाई से उन्होंने अपनी सत्ता को छोड़ा था इसको हम कभी भी भूल नहीं सकते कि क्या लोकतंत्र की ऊंचाई को उन्होंने स्वीकार किया था।

हमारे देश में, इतने हजारों साल का देश है, कमियां हमारे में आती हैं। कभी-कभी बुराईयां भी प्रवेश कर जाती हैं, लेकिन कुछ बात है कि हस्ती नहीं मिटती हमारी। यह जो हम बात बताते हैं उसकी मूल ताकत क्या है। मूल ताकत यह है हजारों साल पुराना ये समाज, इसमें एक Auto pilot qualification arrangement है। हमने देखा होगा, बुराईयां हमारे समाज में नहीं आई है ऐसा नहीं है। बुराईयां आई है कभी-कभी बुराईयों ने जड़ें जमा दी हैं। लेकिन उसी समाज में से लोग पैदा हुए हैं जिन्होंने बुराईयों को खत्म करने के लिए जिंदगी खपा दी है। समाज के विरोध के बाद भी वो लड़े हैं। और समाज की एकता और अखंडता के लिए उन्होंने प्रयास किया है। समाज में समयानुकूल उन्होंने बदलाव लाये हैं। हमारे देश में धार्मिक परम्पराओं के रहते समाज ऐसा जकड़ गया था। पुरोहितों का ऐसा बड़ा तान्डव चल रहा था, समाज एक प्रकार से विचलित परिस्थिति में था। तभी तो इस देश में भक्ति युग आया। चैतन्य महाप्रभु कहो, मीराबाई कहो, नरसिंह मेहता कहो। कितने लोग आये जिन्होंने इस चंगुल से इस समाज को बाहर निकाला। यही तो समाज था जो कभी सती प्रथा में गर्व करता था, लेकिन राजा राम मोहन राय पैदा होते हैं समाज के विरोध में एक आदमी खड़े हो जाते हैं कि सती प्रथा पाप है, यह विधवा दहन है। ये कभी देश में चल नहीं सकता। समाज बदलाव स्वीकार हो जाता है। कोई विद्या सागर राव पैदा होते हैं, जब एक महिला विधवा हो जाती है, तो जीवन भर यातनाएं झेलनी पड़ती थी। उस युग में आज भी कभी-कभी संकट को समाज में देखा जाता है, वो दिन कैसे होंगे जब विद्या सागर जी ने बीड़ा उठाया होगा और उन्होंने कहा होगा विधवा का पुन: लगन होना चाहिए। बच्चियों को पढ़ाना चाहिए। कोई बाबा साहब अम्बेडकर, कोई ज्योतिबा फूले, कोई समाज दलित पीड़ित, शोषित, वंचित, गरीब उनकी बेहरहमी की अवस्था थी, तब दलित, पीड़ित, शोषित के लिए कोई ज्योतिबा फूले, कोई बाबा साहब अम्बेडकर मैदान में आते। छूत का काल था, कोई नरसिंह मेहता, कोई महात्मा गांधी उस काल खंड में निकल पड़ते हैं। राजनीति को बाजू छोड़कर छूआछूत को खत्म करने के लिए जीवन को खपा देते हैं। तभी तो समाज में जब भ्रष्टाचार चरम सीमा पर होता है, तो कोई जयप्रकाश नारायण निकल पड़ते हैं और अपने आपको खपा देते हैं। इस देश में समाज के अंदर बुराईयां जब भी आईं - ऐसा तो नहीं है कि बुराईयां नहीं आई हैं। लेकिन हर बुराईयों के समय हमारे अंदर ही एक व्यवस्था है। एक Auto pilot Arrangement है, जहां से हर काल खंड में कोई न कोई महापुरूष आता है, जो समाज में को दिशा दिखाता है और समाज को बचा लेता है। और यही तो हमारी ताकत है, आज संविधान हमारे लिए मार्ग दर्शक है। लेकिन किसी जमाने में वो भी नहीं था तब भी समाज में मिलते थे। और जब हमें आज संविधान का सहारा है। हम कितना कर सकते हैं। कभी-कभार हम उस बिरादरी के लोग हैं, जिसकी साक को बहुत बड़ी चोट लगी है। 


आजादी के आंदोलन में देश के लिए निकलने वाले लोगों के लिए समाज बड़े गर्व के साथ देखता है। उनके परिवार के प्रति भी बड़े गौरव से देखता है, लेकिन चाहे या न चाहे यह हकीकत है कि कुछ न कुछ ऐसे कारण हैं कि राजनीतिक बिरादरी की साक कम हुई है। समाज का उनकी तरफ देखने का रवैया बदला है। नेता हैं समझते हैं। यह हमलोगों के लिए चुनौती है कि हम अपने आचरण से, व्यवहार से फिर से एक बार इसकी प्रतिष्‍ठा बढ़ायें। क्योंकि यह एक ऐसा Institution है जो लोकतंत्र का अनिवार्य अंग है। इसकी ताकत कैसे बढ़े और इतनी बदनामी होने के बावजूद भी जब समाज लगातार हमको कोसता रहता है। हम राजनेता सब बुरे, हम राजनीतिक कार्यकर्ता बुरे, हर प्रकार के पाप हमारे पर पड़े हैं यह सारा हम दिन रात सुनते हैं। लेकिन मैं देश को कहना चाहता हूं। यही राजनेताओं ने इसी सदन में बैठ कर के अपने पर बंधन लगाने का निर्णय भी इन्हीं लोगों ने लिये हैं। आप देखिए Election Commission का - जो हम चुनाव लड़ते हैं तो फॉर्म भरते हैं। हम खुद लिखते हैं कि मेरे पर इतने गुनाह है, हम खुद लिखते हैं कि मेरे पास इतनी संपत्ति है चल अचल, ये सारा है। यह हमपर कोई थोपा हुआ विषय नहीं था, यह राजनेता और सरकार किसकी थी यह मेरा विषय नहीं है। इसी सदन में बैठे हुए सांसदों, इन्‍हीं राजनीतिक दलों के राजनेताओं ने यह आत्मसयंम स्वीकार किया। उन्होंने बदलाव किया। इतना ही नहीं यह चिंता रही कि चुनाव में खर्चा ज्यादा होता है। कालेधन का उपयोग होता कम होना चाहिए। यही राजनेता हैं, उन्होंने Election Commission के साथ सर्वसम्मति से शपथ बनाया। हम Accounting System करेंगे। इतना ही नहीं Election Commission को Daily Account दो। जितने बंधन आते जाते हैं राजनीतिक दल स्वीकार करते जाते हैं। क्योंकि उनको भी लगता है कि राजनेता संवेदनशील हैं। किसी भी दल का हो। किसी भी परम्परा से आया हो। लेकिन उन्होंने इस संवेदनशीलता के साथ राष्ट्र के कल्याण के लिए जिम्मेवारियां निभाई हैं। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि देश की राजनीतिक बिरादरी के उस प्रकार के महत्व का।

हमारे यहां समय आया जब मंत्रियों की संख्या बढ़ने लगी, राजनीतिक दबाव बनने लगे संतुलन बिठाने की मुसीबत आने लगी तो यही राजनेता, संसद के अंदर बैठे हुए राजनीतिक दल - उन्होंने मिलकर के तय किया नहीं हम Quota system करेंगे। इतने percent से ज्यादा Minister नहीं हो सकते। हमने पालन किया। हमने अपने पर बंधन लगाए। मैं मानता हूं लोकतंत्र की व्यवस्था की आवश्यकता - कि हमें जिस प्रकार से एक Political Field के लोग अपने पर बंधन लगा रहे हैं। समय-समय पर जब भी जरूरत पड़ी, कभी देर होती होगी। आप देखिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय कर लिया कि भई इतनी सजा के बाद आप चुनाव नहीं लड़ सकते। संसद कानून बना सकती थी। कानून बनाकर के छुटकारा ले सकती थी। लेकिन यही संसद है, यही राजनेता है, जिन्होंने अपने पर उस कानून को स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है अगर सजा हुई है तो मैं नहीं आऊंगा। यह चीजें हमारे वो पहलू हैं, जिसके लिए हम गर्व कर सकते हैं। और इसलिए राजनीतिक जीवन में होने के बावजूद भी हमने इन मर्यादाओं को आज हमने स्वीकार किया है। और हम उसका प्रयास करते हैं। यह सदन एक से बढ़कर एक stalwart लोग इस सदन में आकर बैठें हैं और यह इस सदन की विशेषता रही है। मुझे याद है मैं जब पार्टी के संगठन का काम करता था, तो टीवी Debates में जाना होता था। और Prime Time रहता था, उस समय तो बहुत ही मांग रहती थी। एक बार मैं और गुलाम नबी आजाद हम लोग टीवी Debate पर थे। काफी तू तू मैं मैं चलती थी, स्वाभाविक था वो। लेकिन बाद में जब कार्यक्रम पूरा हुआ तो हम स्टूडियो में बड़ी मस्ती से चाय वगैरह पी रहे थे। पत्रकारों में से उनके कोई सीनियर व्यक्ति थे, मुझे ज्यादा याद नहीं है। तो गुलाम नबी जी ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही। उन्होने कहा देखो भाई आप भले मानते हो हम ऐसे एक-दूसरे के दुश्मन जैसे लगते हैं। लेकिन कभी संसद में आके देखिए कैसे एक family की तरह behave करते हैं। कितना अपनापन हमारे बीच होता है। यह कोई मोदी नहीं लाया है। पिछले 50 साल से सबने तपस्या कर के लाया है। और इसलिए इन महान चीजों का गुणगान, इन महान चीजों का आदर और इसको और पनपाना – यह हम पर है। एक समय था इस सदन के अंदर तीव्र विरोध हो रहा हो तो भी।

एक बार राम मनोहर लोहिया जी ने सदन में बड़ी ऐतिहासिक बात की। आंकड़ों के द्वारा पंडित नेहरू को उन्होंने ये बताया कि आपकी नीतियां देश के काम में नहीं आने वाली, ये ग़लत है। राम मनोहर लोहिया विपक्ष में थे। जमकर के बोले, लेकिन गौरव तो इस बात का था कि पंडित नेहरू खड़े होकर के कह रहे हैं कि मैं आपके आंकड़ों को नकार नहीं सकता। ये ऊंचाई थी, इस देश में पंडित नेहरू ने ऊँचाई दिखाई थी। हम सत्यनिष्ठ जो बुद्धि है उसका हमें अपने साथियों का गौरव करना होगा। संविधान की उस भावना को हम तभी स्वीकार कर पाएंगे। और इसलिए ये जो हमारी बौद्धिक सत्यनिष्ठा है, हमारे सभी सदस्यों को ईश्वर ने कुछ न कुछ दिया है। उसका आदर सत्कार करने का भाव ये हमारी सहज प्रकृति बननी चाहिए। कभी कभार एक बात जो हमारे लिए चिंता का विषय है। हुआ क्या है कि आजादी के आंदोलन में जो महापुरुष थे वे समाज को समय - समय पर दिशा देते थे। वो जज्बा था उन नेताओं में, वो कह सकते थे - गलत है मत करो। ये नहीं कर सकते। ये ताकत थी।

महात्मा गांधी तो कभी compromise करते ही नहीं थे। लेकिन समय रहते हम ऐसी आश्रित अवस्था में आ गए हैं कि हम हमारी जिस जनता के प्रतिनिधि हैं उनको कुछ कहने का होसला नहीं रहा है। ज्यादातर हमारे संविधान का एक ही पहलू उजागर होकर आया है। और वो है हक क्या है, मेरा अधिकार क्या है। इसी के आसपास देश चल पड़ा है। इस पवित्र अवसर पर मैं सदन से प्रार्थना करता हूं, मैं देशवासियों से प्रार्थना करता हूं कि समय की मांग है कि हम अधिकारों पर जितना बल दें उतना ही हम अपने कर्तव्य पर भी बल दें, Duty पर बल दें। देश अधिकार और कर्तव्य के Mix भाव से चल सकता है वरना देश नहीं चल सकता। वरना हमारे सरकारी अफसरों को भी पूछोगे, किसी काम के बारे में पूछों तो क्या होता है। सबसे पहले सवाल आता है। अच्छा अच्छा ये है, मेरा क्या। वहीं से शुरू होता है मेरा क्या, और मेरा क्या। और मेरा क्‍या का जवाब अगर Negative आया तो मुझे क्या। ये जो अवस्था है मेरा क्या, मेरा कुछ नहीं तो मुझे क्या जाओ मरो। ये स्थिति देश के लिए अच्छी नहीं है। कर्तव्य भाव जगाना होगा। महात्मा गांधी ने एक बड़ी अच्छी बात कही थी। मुझे अगर कागज मिल जाए तो मैं कहना चाहूंगा। महात्मा गांधी ने बहुत अच्छी बात कही थी। और मैं मानता हूं यह हमलोगों के लिए और देश के लिए भी याद करने जैसा है।

आज पूंजीपति और जमींदार अपने अधिकारों की बात करते हैं। दूसरी तरफ मजदूर अपने हितों की, रजवाड़े अपने प्रभुत्व की और किसान उनके इस अधिकार की अवहेलना की। यदि सभी केवल अपने अधिकारों की बातें करें और अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ लें तो परिणाम अव्यवस्था और अराजकता ही होगी। यदि सभी अपने अधिकारों के स्थान पर कर्तव्य की बात करेंगे तो शीघ्र ही मानवता में Rule of order की स्थापना स्वतः हो जाएगी। राजाओं को शासन करने का कोई दैव्य अधिकार नहीं होता। और न ही किसानों का कोई फर्ज होता है कि वो अपने आकाओं का हर हुक्म मानें। ये गांधीजी का संदेश। और इसलिए जब हम संविधान की चर्चा करते हैं तब हमारे सामने ये प्रमुख बात रहती है कि हम कर्तव्य पर बल कैसे दें। हम कर्तव्य के प्रभुत्व की ओर समाज को ले जाने में अपनी कोई भूमिका अदा कर सकते हैं क्या। तो हमें करना चाहिए ऐसा मुझे लगता है।

संविधान का जिक्र चल रहा था तो डॉ. राजेन्द्र बाबू ने एक बात कही थी। उन्होंने कहा था, सभी को आश्वासन देते हैं कि हमारा प्रयास होगा कि हम गरीबी और बदहाली को और इसके साथ ही भूख और बीमारी को खत्म करें। अंतर और शोषण को समाप्त करें और जीवन की उत्तम दिशायें सुनिश्चित करें। हम एक महान मार्ग की यात्रा शुरू कर रहे हैं। हमें आशा है कि इस यात्रा में हमें अपने सभी लोगों की उदार सेवा और सहयोग मिलेगा तथा समुदायों को सहानुभूति और समर्थन हासिल होगा। आज के समय में संविधान हमारे पास है। यह कोई भ्रम फैलाते होंगे तो गलत है। न कोई संविधान बदलने के लिए सोच सकता है। और मैं मानूंगा अगर कोई सोचेगा तो आत्महत्या कर रहा है। क्योंकि उन महापुरुषों ने जो सोचा है, आज की अवस्था में कोई कर ही नहीं सकता है। तो हमारा तो भला उसमें है कि इसको अच्छे ढंग से हम कैसे गरीब, दलित, पीड़ित, शोषित के काम में लाए।

हमारा ध्यान उसमें होना चाहिए। और बाबा साहब अम्बेडकर ने आरक्षण की व्यवस्था को बल न दिया होता तो कोई मुझे बताएं कि मेरे दलित, पीड़ित, शोषित समाज की हालत क्या होती। परमात्मा ने उसको सब दिया है जो मुझे आपको दिया है, लेकिन उसे अवसर नहीं मिला और उसके लिए उसकी दुर्दशा है। अवसर देना हमारा दायित्व बनता है। अवसर देना हम सबका दायित्व बनता है और समाज का इतना बड़ा तबका जब विकास की यात्रा पर हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला साथ खड़ा हो जाए तो देश कहां से कहां पहुंच जाएगा।

कोई भूभाग पीछे नहीं रहना चाहिए। कोई समाज पीछे नहीं रहना चाहिए। अगर शरीर का एक अंग लकवा मार गया हो, तो शरीर को स्वस्थ नहीं माना जाता है। अगर शरीर का एक अंग भी Weak है तो ये शरीर कभी स्वस्थ नहीं माना जाता। इस समाज में पुरुष का कोई एक अंग निर्बल है तो फिर ये समाज सशक्त नहीं माना जा सकता। यह राष्ट्र सशक्त नहीं माना जा सकता। और इसलिए राष्ट्र का सशक्तिकरण उसमें है कि समाज के सभी अंग, सभी अंग सशक्त हों। पुरुष हों, स्त्री हों इस जाति के, उस जाति के, इस पंथ के, उस पंथ के हों। ये भाषा वाले, उस भाषा वाले हों इस भू भाग रहते हों, उस भू भाग रहते हों। हमारे लिए आवश्यक होता है कि सबके सशक्तिकरण के लिए हम क्या काम करें और उस काम को हमको पूरा करना होगा। हमारे सामने बहुत बढ़िया अवसर भी है, चुनौती भी है।

800 - million youth इससे बड़ा किसी देश का सौभाग्य क्या हो सकता है। उनको रोजगार देना, उनके हाथ में हुनर देना। भारत का भाग्य बदलने के लिए हमारे पास जो भी बुद्धि, सम्पदा, ज्ञान, व्यवस्था, संविधान जो भी है हम उसका उपयोग हमारी इस शक्ति को कैसे उजागर करें। हमारे देश में भी इतने सालों के बाद भी हम लोगों की चिन्ता है न्याय सबको मिले, न्याय सहज सुलभ हो, न्याय त्वरित हो। लोकतंत्र के जितने पहलू महत्वपूर्ण हैं उसमें एक महत्वपूर्ण पहलू है - grievance redressal system. यह लोकतंत्र को मजबूती देता है। उसी प्रकार से, justice social justice एक विषय है उसकी तो चिंता करनी ही है, लेकिन साथ-साथ सामान्य मानवों के जीवन में हम लोगों को सोचना पड़ेगा कि न्याय जैसे लोक अदालतें चली लोक अदालत ने काफी परिणाम दिया है। लेकिन हमने उस दिशा में आगे बढ़ना होगा और बढ़कर के हम प्रयत्न करें, तो मैं समझता हूं कि काफी काम होगा, ऐसा मुझे लगता है। बाबा साहब अम्बेडकर ने जो एक महान काम किया। जो आज श्रमिक के कानों तक नहीं पहुंचा है। खड़गे साहब सही कह रहे थे। पहले कोई नियम नहीं था। कितने घंटे काम करेगा श्रमिक। पता तक नहीं था। बेचारा खींचता था शरीर जब तक है। बाबा साहब अम्बेडकर ने ताकत दिखाई और आठ घंटे समय सीमा निर्धारित की श्रमिकों के लिए। कोई महापुरुष एक काम करके जाता है। पीढ़ियों तक कितना बड़ा योगदान इसका होता है यह इसका ही नमूना है। मैं मानता हूं कि हमारे लिए आवश्यक होता है कि हम चीजों को करें। जब यह काम लिया मैंने तो हमारे यहां EPF Account होता है मजदूर का। इस Account का बेचारा मजदूर जब एक जगह से दूसरी जगह चला जाता है तो पता नहीं चलता कि उसके पैसे कहां गए। अब उसकी रकम इतनी ही होती थी कि वो लेने जाता नहीं था और सरकार के पास 27,000 करोड़ रुपया पड़ा है। श्रमिक का पैसा था, उसके पसीने का पैसा था लेकिन बेचारे की आवाज नहीं थी और कोई व्यवस्था नहीं थी। हमने आकर के एक portability सुनिश्चित की उसका यूएन नम्बर तय कर लिया और उसका परिणाम यह हुआ है कि श्रमिक कहीं पर भी जाएगा, नौकरी छोड़कर जाएगा, राज्य छोड़कर जाएगा, गांव छोड़कर जाएगा, जहां जाएगा इस यूएन नम्बर के साथ वो Account भी move करेगा। उसके पैसे उसके साथ चलते जाएंगे और उसके पैसों का हक कोई छीन नहीं पाएगा। यह काम करने का हमने प्रयास किया है। हमने प्रयास किया है LIN Number (LIN), Online व्यवस्था की है श्रमिकों के लिए, LIN Number रखते ही जितनी उसकी चीजें हैं अपने आप मिल जाती हैं। हमारे देश में EPFO पेंशन मिलता था। जब मैं आया तो मेरे ध्यान में आया। किसी को सात रुपया पेंशन किसी को दस रुपये पेंशन किसी को बीस किसी को पच्चीस, किसी को ढाई सौ, और बेचारे को ऑटो रिक्शॉ भी महंगी पड़ती थी पेंशन लेने जाने के लिए पोस्ट ऑफिस तक। लेकिन ये चल रहा था। हमने आ करके यह निर्णय लिया और minimum पेंशन एक हजार रुपये कर दिया। साथ में उनको भी आधार कार्ड से Direct benefit Scheme में भी इसको जोड़ दिया। इस सदन में एक Act आने वाला है। Bonus Act – इस Bonus Act के अंतर्गत की सीमा 3500 से बढ़ाकर के 7000 रुपये करना और आर्हता को उसकी सीमा जो 10,000 हजार है, उसको 21000 रूपये करने के लिए कैबिनेट ने पारित किया है। सदन में इस बार यह बड़ा महत्वपूर्ण कदम हमारे श्रमिकों के लिए आने वाला है। और इसलिए एक के बाद एक ऐसे निर्णय जो हमारे देश के गरीबों की भलाई के लिए काम आएं, उस दिशा में हम काम करने का प्रयास कर रहे हैं।

यह बात सही है कि कभी-कभार हम लोग कई ऐसे विषयों पर भी चर्चा करते हैं। मैंने पहले भी एक बार इस सदन को कहा था। मैं आज दोबारा कहना चाहता हूं कि सरकार का एक ही धर्म होता है। India First. सरकार का एक ही धर्मग्रंथ होता है। भारत का संविधान। देश संविधान से ही चलेगा। संविधान से ही चलना चाहिए और संविधान के ताकत से ही देश को ताकत मिल सकती है। उसमें कोई भी प्रकार की दुविधा, आशंका का कोई कारण नहीं है। भारत, मूलतः जिन आदर्शों विचारों से पला-बढ़ा है वो हमारी एक ताकत है। वो हमारी एक आत्मिक शक्ति है और इसलिए हमें कभी हमारे देश की जो अंतर ऊर्जा है उसको कम आंकने की जरूरत नहीं है। हजारों साल की तपस्या से अंतर ऊर्जा तैयार हुई है। और वही देश को भी गति देती है, समाज को भी गति देती है और संकटों से उबरने की ताकत भी देती है। और तब मैं जब उसकी बात करता हूं तो मैं कहना चाहूंगा Idea of India.

My Idea of India - सत्यमेव जयते

My Idea of India - अहिंसा परमो धर्मः

My Idea of India - एकम सद विप्राः बहुधाः वदन्ति सत्य

My Idea of India - पौधों में परमात्मा दिखना

My Idea of India - वसुधैव कुटुम्बकम्

My Idea of India - सर्व पंथ समभाव

My Idea of India – अप्प दीपो भवः

My Idea of India – तेन त्यक्तेन भुन्जिथा

My Idea of India - सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

My Idea of India - न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं न पुनर्भवम् कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्

My Idea of India - वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड परायी जाणे रे

My Idea of India – जन सेवा ही प्रभु सेवा

My Idea of India - सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै तेजस्वी नावधीतमस्तु मा विद्धिषावहै

My Idea of India - नर करनी करे तो नारायण हो जाए

My Idea of India - नारी तू नारायणी

My Idea of India - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः

My Idea of India - आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः

My Idea of India - जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

इसी भाव के साथ मैं फिर एक बार सदन के सभी आदरणीय सदस्यों का हृदय से अभिनन्दन करता हूं। आपका भी आभार व्यक्त करता हूं और आपने जो initiative लिया, उसके लिए देश हमेशा-हमेशा आपका ऋणी रहेगा। बहुत- बहुत धन्यवाद।

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Economic Benefits for Middle Class
March 14, 2019

It is the middle class that contributes greatly to the country through their role as honest taxpayers. However, their contribution needs to be recognised and their tax burden eased. For this, the Modi government took a historic decision. That there is zero tax liability on a net taxable annual income of Rs. 5 lakh now, is a huge boost to the savings of the middle class. However, this is not a one-off move. The Modi government has consistently been taking steps to reduce the tax burden on the taxpayers. Here is how union budget has put more money into the hands of the middle class through the years...