मंच पर विराजमान, इस महत्वपूर्ण समारोह में हिस्सा लेने के लिए पधारे हुए भारत सरकार के दो सीनियर अधिकारी डॉ. एस. अय्यपन जी एवं श्रीमान् आशीष बहुगुणा जी, मंच पर विराजमान मंत्री परिषद के मेरे साथी, विदेश से आए हुए मेहमान और सभी मेरे किसान भाइयों और बहनों..!
मैं पूरा समय आपके बीच रहना चाहता था। कल भी मैं यहीं सभागार मैँ बैठ कर के किसानों को सुन रहा था। मुझे भी बहुत कुछ इस समारोह से सीखने को मिला, लेकिन आज मुझे बीच में दो-तीन घंटे के लिए जयपुर जाना पड़ा और उसके कारण मैं इसका पूरा लाभ नहीं उठा पाया। एक बात का मुझे सबसे ज्यादा आनंद भी हुआ है और संतोष भी हुआ है, क्योंकि टैक्निकल सेशन्स वगैरा में कभी लैंग्वेज का भी प्राब्लम होता है, उसकी टर्मिनोलॉजी भी हमारी सीमा से बाहर होती है, लेकिन इस प्रकार के सभी छोटे-छोटे सत्रों में देश भर से आए किसानों ने रूचि ली, पूरे मनोयोग से उसमें अपने आप को जोड़ा, जानने का प्रयास किया, ये एक अदभुत घटना थी मेरे हिसाब से..! मित्रों, ऐसे दो दिन के समारोह का जो आखिरी समारोह होता है तो करीब-करीब ऑडिटोरियम आधा कर देना पड़ता है। हमारी कठिनाई ये है कि अभी भी कई लोग बेचारे बाहर खड़े हैं, उनको जगह नहीं मिल रही है..! मेरे मन में विचार ये आता है, मैं मोदी को पूछ रहा हूँ कि भाई, ये करने में तुमने देर क्यों की..? मैं सच बता रहा हूँ, इसको इस रूप में और इस सफलता के साथ करने के लिए, मुझे लगता है कि अच्छा होता कि परमात्मा ने मुझे पाँच सात साल पहले इस काम के लिए प्रेरित किया होता..!
मैं भारत सरकार के इन दोनों महानुभावों का हृदय से अभिनंदन करता हूँ कि उन्होंने खुले मन से अपनी बातें बताई और गुजरात में हो रहे प्रयास और किसानों के बारे में जो सोचा जा रहा है, बहुत विस्तार से उन्होंने अपनी बातें बताई, मैं उनका आभारी हूँ..! क्योंकि देश की राजनीति इतनी विचित्र हो गई है कि एक सरकार का व्यक्ति दूसरी सरकार के प्रति अच्छी बोले तो बेचारे के लिए परेशानी आ जाती है, ये बुरी हालत है, मित्रों..! आपको हैरानी होगी मेरे किसान भाइयों और बहनों, आज हमारे कुछ नेताओं ने, अब उनको तो नेता कहना या नहीं कहना ये भी एक सवाल है, सवाल उठाया कि दूसरे राज्यों के किसानों को 51-51 हजार रूपया मोदी ने क्यों दिए..? बताइए, ये देश एक है, हम सब एक है, किसी भूभाग मे जन्मे होंगे, कोई भाषा बोलते होंगे... क्या हमारे बीच दूरी होनी चाहिए..? ये क्या छोटी सोच है..! और दूसरा मैं कभी सोचता हूँ कि क्या हिन्दुस्तान का कोई जिला ऐसा होगा, हिन्दुस्तान के कोई जिले का कोई किसान ऐसा होगा, जिसका मेरे राज्य पर कर्ज नहीं होगा..? जब हम अकाल में पीड़ित होते हैं तो हिन्दुस्तान के सात से आठ राज्यों के किसान जो घास उनके खेतों से हमें भेजते हैं, तब हमारे पशुओं को चारा मिलता है..! क्या मैँ उनका ऋण स्वीकार करूं या ना करूं..? हमें चावल बाहर से लाने पड़ते हैं, वो चावल पैदा करने वाले किसान जो हमारा पेट भरते हैं, वो हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में पैदा हुआ होगा, क्या मैं उसका सम्मान करूं या ना करूं..? हम पंतग उडाते हैं, बड़ा मजा लेते हैं, तो उसके बाम्बू मुझे आसाम, नागलैंड और मिजोरम का किसान देता है, क्या मैं उसका शुक्रिया अदा करूँ या ना करूं..? हिन्दुस्तान के हर किसान की मेहनत का परिणाम है कि देश के हर कोने में कहीं ना कहीं, किसी ना किसी को लाभ हो रहा है और इसलिए किसानों को भूभाग के आधार पर, किसानों की भाषा के आधार पर उनके बीच में दरारें ना की जाएं, दीवारें खड़ी ना की जाएं। ये हमारी कोशिश है एकता की, जोड़ने की और वो भी ये धरती सुजलाम सुफलाम बने इसलिए हमारा एक पवित्र प्रयास है..!
भाइयों-बहनों, देश की प्रगति करनी है तो संकुचितता से बाहर आना पड़ता है। हम कभी-कभी सुनते हैं कि एक राज्य दूसरे राज्य को पानी नहीं देता है, पानी के लिए झगड़े होते हैं। आपको जान कर के आनंद होगा, गुजरात भले ही पानी के अभाव वाला राज्य है, हमें पानी की किल्लत है, हम वर्षा पर हमारी जिन्दगी गुजारते हैं, लेकिन राजस्थान को नर्मदा के पानी की जरूरत थी, उसका हक बनता था तो गुजरात ने कोई झगड़ा नहीं किया, कुछ नहीं किया और आज राजस्थान में नर्मदा का पानी बह रहा है..! देश में हर किसी को एक दूसरे की मदद करनी पड़ेगी, एक दूसरे की सहायता करनी पड़ेगी और तभी तो ये देश प्रगति कर सकता है..! और आने वाले दिनों में हिन्दुस्तान में होलिस्टिक वॉटर मैनेजमेंट के लिए सोचने की हमें जरूरत है। हिन्दुस्तान के कुछ भाग ऐसे हैं, जहाँ अधिक पानी के कारण किसान परेशान है और कुछ हिस्से ऐसे हैं कि जो पानी के अभाव के कारण परेशान है। कहीं पर पानी समंदर में बहता चला जा रहा है और कहीं पर एक लोटे भर पानी के लिए इंसान तरसता रहता है..! क्या ये हम लोगों का दायित्व नहीं है कि हमारे देश के किसानों के लिए, हमारे देश के विकास के लिए इस पानी के माहात्म्य को हम स्वीकार करें..? चाहे पीना हो, चाहे खेती का विषय हो, चाहे औद्योगिक विषय हो... इस पानी के मामले को हमें समझना होगा..! और इसलिए जब अटल बिहारी वाजपेयी जी देश के प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा कर रहे थे, तो उन्होंने एक सपने को साकार करने का प्रयास किया था, नदियों को जोड़ने का..! गुजरात का हमारा अनुभव है, हमने नर्मदा नदी के पानी से करीब बीस नदियों को जोड़ा है। आप लोगों को कभी मौका मिला हो, साबरमती नदी अगर देखने गए हो, तो हमारी ये साबरमती नदी जो है, अहमदाबाद में आपको कभी रिवरफ्रंट देखने का मौका मिला हो तो, वो साबरमती नदी है लेकिन पानी साबरमती का नहीं है, उसमें पानी नर्मदा का बह रहा है और उसके कारण इतना परिणाम मिला है, इतना परिवर्तन आया है..! जो पानी समंदर में जाता था, उस पानी का सर्वाधिक उपयोग हो..! हम लोगों ने तो छोटे-छोटे प्रयोग किये हैं, लेकिन बड़े स्केल पर देश में ये प्रयोग हो सकते हैं..! अगर गंगानहर राजस्थान में ना आती, अन्य राज्यों से पानी वहाँ ना पहुंचता तो राजस्थान के वो इलाके का क्या हाल हुआ होता और इसलिए पानी का एक होलिस्टिक मैनेजमेंट और देश में पानी के संबंध में एक संवेदनशीलता कैसे पैदा हो, पानी के मूल्य की ओर लोग कैसे सजग बने..!
अब बड़े-बड़े शहर हैं, बड़े शहरों में वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट करके वो पानी अगर किसान को पहुंचाया जाए तो भविष्य में शहर और गाँव के बीच जो तनाव की संभवनाएं हैं, वो संभवनाएं समाप्त हो जाएंगी। वरना झगड़े होंगे, गाँव वाले कहेंगे कि इस पानी पर हक मेरा है, शहर वाला कहेगा पीने के बिना हम जीएंगे कैसे, पहले हमें पीने के लिए चाहिए..! लेकिन यही पानी रिसाइकिल करके किसान को दिया जाए तो कोई संकट नहीं आएगा। विषय छोटे होते हैं, लेकिन अगर उस पर ध्यान केन्द्रित किया जाए तो मैं विश्वास से कहता हूँ मित्रों, हम काफी कुछ परिवर्तन ला सकते हैं और इसलिए हम लोगों का आग्रह है इन्टर लिकिंग ऑफ रिवर वॉटर ग्रीड, इस पर इस देश में आने वाले दिनों में गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए, योजनाएं बननी चाहिए, कहीं ना कहीं से शुरू करना चाहिए और तब जा कर के हमारे किसान को हम बहुत बड़ी मदद कर सकते हैं। ये उसकी इनपुट कॉस्ट कम करने वाली बात है ना, उसमें एक बहुत बड़ा इनपुट कॉस्ट का मामला पानी है। अगर उसको पानी सहजता से मिल जाए तो उसका इनपुट कॉस्ट कम हो जाएगा और इनपुट कॉस्ट कम होगा तो स्वाभाविक है कि उस पर जो बोझ रहता है वो बोझ कम होगा, और जितनी भी आय होगी उस आय में वृद्घि होगी। उसी प्रकार से, एक बार मेरा एक अच्छा एक्सपीरियंस है, पूरे देश का हाल मुझे इतनी बारीकी से मालूम नहीं है, लेकिन मैं एक कृषि यूनिवर्सिटी में गया था और मुझे कुछ किसानों को सम्मानित करना था। और मैँ मानता था कि शायद बड़ी आयु के, पुरानी सोच के सारे किसान आए होंगे, लेकिन मुझे आनंद हुआ कि मैंने करीब पैंतीस किसानों को सम्मानित किया, और पैंतीस में से 25 से 28 किसान 30-35 की आयु के थे, इतना आनंद हुआ मुझे वो दृश्य देख कर..! इसका मतलब ये हुआ कि हम सही तरीके से कृषि को हमारी युवा पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करें, उसके भीतर एक आशा पैदा करें कि कृषि भी जिंदगी को और आगे बढ़ाने के लिए बहुत बड़ा अवसर बन सकती है। ये सोचने की जरूरत नहीं है कि तुम्हारे पिताजी या दादाजी के जमाने में जो कष्ट आए, तुम्हारे जमाने में भी वही कष्ट आएंगे, ऐसा सोचने की जरूरत नहीं है। वो एक नया विश्वास पैदा करने की आवश्कयता है और ये संभव है और इसलिए देश की ग्रामीण युवा पीढी को कृषि के माहात्म्य की ओर जोड़ कर के आर्थिक विकास, आर्थिक क्रांति के क्षेत्र का नेतृत्व करने के लिए हम उसको प्रेरित कैसे करें, उसको कैसे जोड़ें, उस दिशा में अगर हम प्रयास करेंगे तो सफलता मिलेगी ये मुझे विश्वास है..!
उसी प्रकार से, अब जैसे गुजरात के विकास की बात होती है तो एक बात पर हमारा बल रहता है कि गुजरात के विकास की यात्रा तीन खंभों पर खड़ी कैसे हो। एक तिहाई औद्योगिक विकास, एक तिहाई कृषि विकास और एक तिहाई सेवा क्षेत्र..! उस पर हम बल देते हैं और उस दिशा में जाने की हमारी भरपूर कोशिश रहती है। लेकिन कृषि में, और मेरा जितना अध्ययन है, और उसमें मेरा बड़ा विश्वास बन गया है और इन दिनों भी जो कृषि क्षेत्र के सफलता विफलता के जो रिसर्च हो रहे हैं उसमें भी ये बात उभर के आ रही है कि खेती के साथ एलाइड एक्टिविटि को हमें जोड़ना चाहिए और इसलिए खेती को भी तीन हिस्सों में बांटना चाहिए। एक हम जो परंपरागत खेती करते हैं वो, दूसरा एनिमल हसबैंडरी, पशुपालन, कोई पोल्ट्री फार्म करे, कोई फिशरीज का चलाएं, वो एक अतिरिक्त एक्टिविटी कृषि के साथ जुड़नी चाहिए। यहाँ आपने देखा होगा हमने ईमू फार्म का मॉडल रखा है। कई किसान ईमू को देखने जा रहे थे, ईमू के साथ फोटो निकाल रहे थे..! कितना बड़ा विश्व में उसका मार्केट होगा..! और इन दिनों ईमू फार्मिंग की ओर काफी मात्रा में किसान बढ़ रहे हैं, अपनी जमीन का छोटा सा हिस्सा ईमू फार्मिंग के साथ कर लेते हैं और ईमू के अंडे की दवाइयाँ बनाने के लिए दुनिया के बाजार में अब बहुत बड़ी माँग हो रही है, उसकी दिशा में काम कर रहे हैं। और इसलिए हम खेती का एक हिस्सा एनिमल हसबैंडरी का, पोल्ट्री फार्म का, फिशनरी का, इसकी ओर ध्यान दें..!
एक क्षेत्र की ओर और ध्यान देने की जरूरत है, और वो है तीसरा हिस्सा एग्रो फॉरिस्ट्री..! हमारे यहाँ क्या है, आज हम मकान बनाते हैं तो दो घर के बीच में एक दीवार चढ़ जाती है और उस दीवार का खर्चा आधा ये मकान वाला देता है और आधा वो मकान वाला देता है और एक पतली सी दीवार से हम दो मकानों को डिवाइड करते हैं। लेकिन दो खेत के बीच में हम इतनी सारी जमीन बर्बाद करते हैं, बाड़ लगा देते हैं, इतना नुकसान हो रहा है हमारी जमीन का..! हम एक-एक इंच जमीन का, ये जो बहुगुणा जी बता रहे थे, हम एक-एक इंच जमीन का उपयोग करें..! क्यों ना हमने अगर हमने पड़ौसी किसानों के साथ, हमारे बगल वाला जो किसान है उसके साथ बैठ कर के ये जो दो-दो, तीन-तीन, चार-चार फीट जमीन बर्बाद हो रही है, हम दोनों बैठ कर के तय करें, एक रिमार्क लाइन बना लें और उस पर वृक्षों की खेती करें..! वो हमारा डिमार्केशन भी हो जाएगा, वो वृक्ष भी आने वाले समय में हमारी बहुत बड़ी सम्पत्ति बन जाएगें..! इस काम को अगर करें और सरकार के नियमों से जोड़ कर के दस साल के बाद, बीस साल के बाद वृक्षों को बेचने का क्रम बनाया जा सकता है। नए वृक्ष बनते जाएंगे, बड़े होने के बाद बेचे जाएंगे, और आज इतना बड़ा देश, हम टीम्बर इम्पोर्ट कर रहे हैं, एक तरफ तो हम करंट अकाउंट डेफिसिट के कारण परेशान है और जैसा कि बहुगुणा जी ने कहा भई कौन बचाएगा..? किसान बचाएगा, देश की आर्थिक स्थिति में से देश को बाहर लाएगा, लेकिन ताकत क्या है..? अगर हम ये एग्रो फोरेस्ट्री पर ध्यान देते हैं और हम हमारे दो खेतों के बीच की जो जगह है, जो आज बर्बाद हो चुकी है, अगर सिर्फ उसमें पेड़ को लगाएं और वो भी ज्यादा आय देने वाले पेड़, जिसमें से ज्यादा इनकम मिलती है ऐेसे पेड़, तो आपकी इकोनॉमी को बहुत बड़ा बल मिलेगा, कभी किसान को आत्महत्या करने की नौबत नहीं आएगी। एक बर्बाद हुआ तो दूसरा मदद करेगा, दूसरा बर्बाद हुआ तो तीसरा मदद करेगा... इन तीन खंभो पर हमें हमारी खेती को खड़ा करना चाहिए और इसलिए मेरे किसान भाईयों-बहनों को मैं आग्रह करूँगा कि हम उस दिशा में प्रयास करें..!
एक छोटा विषय है, जो फिशरीज के क्षेत्र में लगे हुए हैं, हमारे हिन्दुस्तान का समुद्री तट है, सी-वीड की खेती..! समुद्र के पानी में 45 दिन में फसल तैयार होती है, महिलाएं कर सकती है और आज मेडिकल साइंस को इतनी सी-वीड की आवश्कता है, इतना रॉ मैटेरियल की आवश्यकता है, उसको आसानी से डेवलप किया जा सकता है। गुजरात ने अभी उन प्रयोगों को प्रारंभ किया है। कई राज्य हैं, समुद्री तट पर जो राज्य हैं, वो इसमें बहुत कुछ कांन्ट्रीब्यूट कर सकते हैं। और उसमें कृषि के लिए जो दवाइयाँ चाहिए वो भी बनती है, मनुष्यों के लिए जो दवाइयाँ चाहिए वो भी बनती हैं। यानि इस प्रकार का वो पौधा जिसका उपयोग करके हमारे समुद्री तट के जो किसान हैं, फिशरमैन हैं, उनके लाभ के लिए भी हम अगर नई योजनाओं को क्रियान्वित करें तो मैं विश्वास से कहता हूँ मित्रों, कि उसकी आय में बढ़ोतरी होगी..!
मित्रों, दूसरी आवश्यकता होती है हमारे यहाँ उत्पादन के बाद एग्रो मार्केटिंग लिकेंज की। आज किसान की हालत क्या है..? दुनिया में हर चीज की कीमत उत्पादक तय करता है। कोई फाउन्टेन पैन बनाता है तो कितने में बिकेगी वो तय करता है उत्पादन करने वाला, कोई कार बनाता है तो कार कितने में बिकेगी वो तय करता है उत्पादक, अकेला किसान ऐसा है जो पैदा करता है लेकिन दाम वो तय नहीं कर पाता है..! उसका माल कितने में बिकेगा उसके हाथ में नहीं है, वो असहाय है..! और इसलिए अगर हम परफैक्ट मार्केट लिंकेज को नहीं बनाते हैं तो हम किसान कि इस दुविधा वाली जो स्थिति है, एक कन्फ्यूजन वाली जो स्थिति है, एक क्वेश्चन मार्क से जुड़ी हुई उसकी जो जिंदगी है उससे हम बाहर नहीं ला सकते। और जब तक उसके भीतर एक विश्वास पैदा नहीं होता है कि मैं जो पैदा करता हूँ, दुनिया को इसे इस रूप में लेना ही पड़ेगा, ये सामर्थ्य उसके हाथ में नहीं आता है तब तक किसान में विश्वास पैदा नहीं होता है। और इसलिए हमारी मार्केट लिंकेज की सारी व्यवस्थाओं को किसान की इस मूलभूत आवश्यकता के साथ जोड़ना पडेगा और तब जा कर के हम किसान को एक नया विश्वास दे सकते हैं..!
उसी प्रकार से, इस देश में एग्रीकल्चर सेक्टर में पी.एच.डी. किये हुए शायद हजारों लोग होंगे। सबसे पहली आवश्यकता मुझे लगती है कि हमारे देश में एग्रीकल्चर सेक्टर में जितने रिसर्च हुए हैं, अगर भारत सरकार कर सके तो अच्छी बात है, वरना गुजरात सरकार उसमें सहयोग करने के लिए तैयार है। हमारे देश में जितनी रिसर्च हुई है उन सबको कम्पाइल करने की आवश्कयता है। मान लीजिए चावल है, चावल पर एक हजार लोग होंगे जिन्होंने पी.एच.डी. की होगी... कहीं इक्कठा तो करें..! किसी ने सोयाबीन पर की होगी, किसी ने पोल्ट्री फार्म पर की होगी... सब बिखरा पड़ा हुआ है। हमारी टेलेंट पूल बनाने की आवश्यकता है। जिन्होंने किसी ने चालीस साल पहले किया होगा, पचास साल पहले किया होगा, कोई अभी कर रहा होगा... ये चीजें आज बिखरी पड़ी हैं। कृषि क्षेत्र के विकास के लिए ये जो हमारी इन्टलैक्चुअल एबिलिटी है, ये हमारे इन्टलैक्चुअल रिसोर्सिस हैं, ये जो हमारी इन्टलैक्चुअल विरासत है, उसको हमें जोड़ने के लिए कोई ना कोई प्रबंधन करने की आवश्कता है। फिर उसमें से अच्छी चीजों को छांट-छाँट कर के आगे उन प्रयोगों को कैसे लिया जाए उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है..!
दूसरी बात है, जो आज लैब में हो रहा है वो किसी इन्टरनेशनल जनरल में छप जाए और साइंटिस्ट की वाह वाही हो जाए, यहाँ तक सीमित हो गया है। मैं चाहता हूँ कि हमारे एग्रीकल्चर साइंटिस्ट को तब तक जीवन में संतोष नहीं मिलना चाहिए, जब तक कि उसने जो रिसर्च किया है वो रिसर्च धरती पर नजर नहीं आए..! कागज पर रिसर्च खेती के क्षेत्र में काम का नहीं है..! अच्छे डॉक्टर का तब उपयोग होता है, कि जब किसी पेशेंट की वो जिंदगी बचाए, तभी तो उस डॉक्टर का माहात्म्य बढ़ता है..! उसी प्रकार से जो लैब में है वो लैंड पर उतरना चाहिए और इसलिए ‘लैब टू लैंड’ की लिकेंज की बड़ी आवश्यकता है और ‘लैब टू लैंड’ की ओर बल दें। जो भी नए प्रयोग हो रहे हैं, जो भी नई रिसर्च हो रही है, उन सबको हम खेत में, किसान के घर तक पहुंचाएं..! और गुजरात में जो कृषि महोत्सव का प्रयोग हुआ है उसकी सबसे बड़ी सिद्घी ये है। यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट किसानों के साथ बैठते हैं, किसानों के साथ चर्चा करते हैं और किसान भी कभी-कभी उसमें जोड़ते हैं। जो लैब में बैठ कर के संशोधन किया है, और जो धरती पर उसने प्रयोग किये हैं, दोनों को जब जोड़ देते हैं तो नई क्रांति का निर्माण हो जाता है, ये हमने अनुभव किया है..! और इसलिए ‘लैब टू लैंड’ इस लिंकेजिज की तरफ भी हमको बल देने की आवश्यकता है..!
उसी प्रकार से आज भी देश का बैंकिंग सेक्टर, फाइनेशियल बोर्ड, उसके दायरे में पता नहीं क्यों किसान आता ही नहीं है..! देश में बैंकों से जो कुल पैसे दिए जाते हैं, उसमें से किसानों के नसीब में सिर्फ 5% पैसे आते हैं..! 58% पॉपुलेशन किसान है, खेती पर निर्भर है, लेकिन बैंक से मिलने वाले कर्ज का भाग्य सिर्फ 5% किसानों की तरफ जाता है..! ये स्थिति हमको बदलनी पड़ेगी। अधिकतम किसानों को बैंकिंग लिंकेज का लाभ कैसे मिले और प्रोसेस को सिम्पल करनी पड़ेगी। आज किसान तंग आ जाता है, कल भी मैंने बोला था इस विषय के बारे में... वो साहूकार से पैसा लेता है, इतना कर्ज करना पड़ता है और बैंकों के पास कोई काम नहीं होता है। सिर्फ बैंकिंग क्षेत्र की ब्रांचिस बनाने से काम नहीं होता है, किसान भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। हमारे ऋण देने की प्रक्रिया में, उन बैंकों को रेकग्नाइज़ नहीं करना चाहिए जिसके 70-80% लेने देने वाले किसान ना हो, तब तक बात बनेगी नहीं। और इसलिए उन व्यवस्थाओं को हम करते हैं और अगर इस प्रकार से हो तो मुझे विश्वास है, किसान अपनी को-आपरेटिव सोसायटियाँ बनाएगा, अपना फंड इक्कठा करेगा, और वेयर हाउसिस अपने खड़े कर देगा। उसमें कोई ताकत कम नहीं है, वो कर सकता है, लेकिन अगर हम उसके लिए इन व्यवस्थाओं की ओर ध्यान देते हैं तो मैं मानता हूँ कि किसान को अगर ये ऋण के बोझ से मुक्त कर दिया जाए, उस पर एक टेंशन रहेगा, क्या करूँ, कब पैसा आएगा... और कभी-कभी वो माल सस्ते में क्यों बेचता है..? वो माल सस्ते में इसलिए बेचता है क्योंकि उसे लगता है कि मुझे साहूकार को पैसे देने है, पन्द्रह दिन अगर अपने माल को रखे तो दो रुपया, पाँच रूपया ज्यादा मिलने वाला है, लेकिन क्योंकि साहूकार का ब्याज बढ़ रहा है इसलिए वो कहता है कि यार जल्दी बेचो, पहले उसका निपटाओ, वरना मुसीबत आ जाएगी और उसी के कारण उसका एक्प्लोइटेशन होता है..! और जब तक हम इस फाइनेन्शियल नेटवर्क को, इस लिंकेज को स्ट्रांग नहीं करेंगे, किसान अपनी ताकत पर खड़ा नहीं हो सकता है और उस दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है, ऐसा मुझे लगता है..!
मित्रों, भारत सरकार ने हमारी काफी मदद की एक काम के लिए। क्योंकि हमारे सामने एक बहुत बड़ी चुनौति थी कि हम हर जिले से प्रोग्रेसिव किसान को खोजें, लेकिन सही किसान को कैसे खोजें? हमसे कोई गलती ना हो जाए, इसलिए हमने एक ज्यूरी बनाई, उसमें हमें प्रोफेशनल लोग मिले, भारत सरकार की भी मदद मिली, पुरानी भारत सरकार के एग्रीकल्चर सेक्रेटरी थे हमें वो मिले, इन सबने बैठ कर के पूरे देश में से इन सारी प्रक्रिया को पिछले छह महीने से चलाया और उसमें से हर जिले में से उत्तम किसान, किसानी करने वाले लोगों को पसंद किया, उत्तम प्रयोगों को पंसद किया। अब हम आगे चाहते हैं, गुजरात सरकार की वैबसाइट पर हम आप सभी किसानों की पूरी डिटेल रखने वाले हैं। आपने ये सिद्घी कैसे प्राप्त की, आपकी प्रोसेस क्या थी, आपको परिणाम क्या मिले, आपने कौन से व्यवहारिक प्रयोग किये... ताकि देश भर के किसान, जो कुछ जानना समझना चाहते हैं, वो इन कृषि मनिषियों के अनुभवों से सीख सकते हैं..! जो लैब में होता है उससे ज्यादा कृषि ऋषियों के द्वारा लैंड पर होता है, और उसको हम लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं..! और इसलिए इसके फालोअप के रूप में ये काम हम लेना चाहते हैं और वो काम ये होगा कि जिन किसानों का आज हमने सम्मान किया है, आपने जो सिद्घी प्राप्त की है, आपने जो नए प्रयोग कर-कर के देश को कुछ दिया है, ये देश भी जाने और दुनिया भी जाने, और इसलिए हम उसको अधिकतम भाषाओं में रखने का भी प्रयास करेंगे। लेकिन गुजरात सरकार एक इनिशियेटिव लेगी, और हम आगे चल कर के देश में कोई भी ऐसे अच्छे प्रयोग हो, तो उन प्रयोगों को जोड़ने के लिए जरूर प्रयास करने वाले हैं। मैं अय्यपन जी की इस बात का जरूर स्वागत करता हूँ कि उन्होंने कहा है कि भई, ये जो सिर्फ यूनिवर्सिटीज में ही फाउंडर बीज का काम होता है, उसको हम बाहर ले जा कर के खुले मैदान में किसानों के साथ करने की दिशा में सोच रहे हैं। एक अच्छा इनिशियेटिव बनेगा ये प्रयोग, क्योंकि हम लोगों की कई वर्षों से ये माँग रही थी कि इन प्रयोगों को हमें यूनिवर्सिटीज की दीवारों से बाहर निकालने पड़ेंगे और तब जा कर के उत्तम प्रकार के बीजों का संशेाधन हम कर सकते हैं। और वो फुल प्रूफ होते हैं, क्योंकि एक प्रोटेक्टिव एन्वायरमेंट में एक चीज होती है और एक खुले नेचुरल अवस्था में होती है, उन दोनों की ताकत में फर्क होता है और इसलिए उसके आयुष कैसे हैं, उसके परिणाम कैसे हैं, वो तुरंत जाना जा सकता है और उस प्रयोग को हम बल देना चाहते हैं। भारत सरकार उस दिशा में त्वरित कदम उठाएगी तो अवश्य मैं मानता हूँ कि अच्छा परिणाम मिलेगा..!
सभी प्रतिनिधि जो यहाँ आए, हमारी कोशिश रही है कि आपको अच्छी सुविधा मिले, कोई कष्ट ना हो। फिर भी, ये हमारा पहला प्रयास है, कहीं कोई कम्यूनिकेशन में गैप रही हो, कहीं व्यवस्था में कमी रही हो, यहाँ आने के बाद शायद आपको कोई कष्ट हुआ हो, अगर आपको कोई भी तकलीफ हुई हो तो मैं गुजरात की तरफ से आप सबकी क्षमा चाहता हूँ, आप सबसे माफी चाहता हूँ और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हम इस प्रयास को निरंतर जारी रखेगें..! बाद में काफी डिटेल डिस्कस करने की हमारी पद्घति रहती है कि उसको थोड़ा डिटेल में हम डीप रीडिंग करते हैं, हमारी कमियॉ क्या रही, अच्छाइयाँ क्या रही, और अच्छा कैसे कर सकते हैं... और फिर एक अच्छे नए मॉडल के साथ अगले इसी प्रकार के समारोह के लिए हम मिलेंगे। मैं आप सबको विश्वास देता हूँ और ये हमारा कन्वीक्शन है, ये हमारा कमिटमेंट है..!
देखिए, हम गुजरात में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट करते हैं, दो साल में एक बार करते हैँ और सिर्फ दो दिन लगाते हैं, उससे ज्यादा हम उसमें टाइम नहीं लगाते। लेकिन हर वर्ष एक महीना कृषि महोत्सव करते हैं, 44-45 डिग्री टेम्प्रेचर होता है और हमारी सरकार के एक लाख से ज्यादा कर्मचारी, सभी मिनिस्टर्स गाँव में जाते हैं, खेतों में जाते हैं, किसानों के साथ बैठते हैं और कृषि में किस प्रकास से नई चीज आई है, सीधा संवाद करते हैं। और ये काम लगातार पिछले आठ सालों से चल रहा है, विदआउट एनी ब्रेक..! ज्ञान संपदा को गाँव तक कैसे ले जाना, उसके लिए भगीरथ प्रयास हम लोग करते हैं और मित्रों, ये करते, करते हम लगातार नई-नई चीजों को जोड़ते जाते हैं, उसमें से एक कड़ी ये महा सम्मेलन है..! आने वाले दिनों में और नई कड़ियाँ जुड़ेंगी, और नया काम होगा, लेकिन ये बात निश्चित है कि महात्मा गांधी के सपनों को अगर पूरा करना है तो हमारे गाँव को समृद्घ करना होगा, गाँव को समृद्घ करना है तो हमारी कृषि को समृद्घ करना होगा, हमारे किसान को समृद्घ करना होगा और उस काम के लिए हम सब मिल कर के जुड़ेंगे, जुटेंगे, तो मैं मानता हूँ मित्रों, आज हमारा जो उत्पादन है, अगर हम उसको दो गुना कर दें... कर सकते हैं, मुश्किल काम नहीं है, कर सकते हैं, छोटे-छोटे परिवर्तन से हो सकता है... तब इस हिन्दुस्तान को एक दाना भी अन्न कहीं से लाना नहीं पड़ेगा..! हिन्दुस्तान के हर इंसान की आवश्यकता की पूर्ति करने की ताकत मेरे किसान भाइयों-बहनों में है..! और अगर हम तीन गुना उत्पादन करें तो मित्रों, विश्वास से कहता हूँ पूरी दुनिया का पेट भरने की ताकत ये मेरे देश के किसानों में है, इस उर्वरा धरती में है..! इतना सामर्थ्य है मित्रों, पूरे विश्व का पेट भरने का सपना हम क्यों ना देखें..! और दुनिया को हम वो खिलाएं जो हम चाहते हैं, ये इच्छा क्यों ना हो हमारे मन में, ये मिजाज लेकर आगे बढ़ें..!
फिर एक बार मित्रों, इस आखिरी कार्यक्रम में आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ और अगली बार मिलने का निमंत्रण भी आपको देता हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद..!