#MannKiBaat: PM Modi pays tribute to Dhyanchand, recalls his contribution to Indian hockey
#MannKiBaat: Daughters of our country have made the nation proud at #Rio2016, says PM Modi
#MannKiBaat: Performance of our sportspersons at #Rio2016 is laudable, says the PM
A sports committee will make roadmap for upcoming Olympics: PM during #MannKiBaat
Share your views on ‘Narendra Modi Mobile App’ how India can do better in the upcoming Olympics
PM Narendra Modi pays tribute to Dr. S Radhakrishnan during #MannKiBaat
#MannKiBaat: Role of teachers as important as Mothers, says PM Modi
Share your memories & anecdotes how teachers shaped your lives on ‘Narendra Modi Mobile App’
Lokmanya Tilak said “Swaraj is our birthright”, but today our priority should be ‘Surajya’: PM during #MannKiBaat
#MannKiBaat: Mother Teresa spent her entire life in upliftment of the poor, says PM Modi
Honour for every Indian that Mother Teresa would be regarded as Saint on September 4th: PM during #MannKiBaat
Centre has coordinated with five states for Swachh Ganga: PM Modi during #MannKiBaat
#MannKiBaat: Swachhta has become a part of everyone’s life, says PM Modi
Over a lakh children in villages wrote letters to their parents for constructing toilets in their homes: PM #MannKiBaat
Urge people to use clay idols during Ganesh Chaturthi & Durga Puja: PM during #MannKiBaat
India always wants good relationships with her neighbours: PM Modi during #MannKiBaat
Rashtrapati ji inaugurated #AkashvaniMaitree that will further people to people ties between India & Bangladesh: PM during #MannKiBaat
All parties came further for passing GST Bill. Credit goes to everyone: PM Modi during #MannKiBaat
Loss of lives in Kashmir, be it youth or security personnel, it is our country’s loss: PM during #MannKiBaat
All parties stand united on Kashmir, says PM Modi during #MannKiBaat
India is a diverse country. We must further strengthen the country’s unity: PM Modi during #MannKiBaat

मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार,

कल 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर ध्यान चंद जी की जन्मतिथि है। यह दिन पूरे देश में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रुप में मनाया जाता है। मैं ध्यान चंद जी को श्रद्धांजलि देता हूँ और इस अवसर पर आप सभी को उनके योगदान की याद भी दिलाना चाहता हूँ। उन्होंने 1928 में, 1932 में, 1936 में, Olympic खेलों में भारत को hockey हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हम सभी क्रिकेट प्रेमी Bradman का नाम जानते हैं। उन्होंने ध्यान चंद जी के लिए कहा था - ‘He scores goals like runs’. ध्यानचंद जी sportsman spirit और देशभक्ति की एक जीती-जागती मिसाल थे। एक बार कोलकाता में, एक मैच के दौरान, एक विपक्षी खिलाड़ी ने ध्यान चंद जी के सिर पर हॉकी मार दी। उस समय मैच ख़त्म होने में सिर्फ़ 10 मिनट बाकी था। और ध्यान चंद जी ने उन 10 मिनट में तीन गोल कर दिये और कहा कि मैंने चोट का बदला गोल से दे दिया।

मेरे प्यारे देशवासियों, वैसे जब भी ‘मन की बात’ का समय आता है, तो MyGov पर या NarendraModiApp पर अनेकों-अनेक सुझाव आते हैं। विविधता से भरे हुए होते हैं, लेकिन मैंने देखा कि इस बार तो ज्यादातर, हर किसी ने मुझे आग्रह किया कि Rio Olympic के संबंध में आप ज़रूर कुछ बातें करें। सामान्य नागरिक का Rio Olympic के प्रति इतना लगाव, इतनी जागरूकता और देश के प्रधानमंत्री पर दबाव करना कि इस पर कुछ बोलो, मैं इसको एक बहुत सकारात्मक देख रहा हूँ। क्रिकेट के बाहर भी भारत के नागरिकों में और खेलों के प्रति भी इतना प्यार है, इतनी जागरूकता है और उतनी जानकारियाँ हैं। मेरे लिए तो यह संदेश पढ़ना, ये भी एक अपने आप में, बड़ा प्रेरणा का कारण बन गया। एक श्रीमान अजित सिंह ने NarendraModiApp पर लिखा है – “कृपया इस बार ‘मन की बात’ में बेटियों की शिक्षा और खेलों में उनकी भागीदारी पर ज़रूर बोलिए, क्योंकि Rio Olympic में medal जीतकर उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है।” कोई श्रीमान सचिन लिखते हैं कि आपसे अनुरोध है कि इस बार के ‘मन की बात’ में सिंधु, साक्षी और दीपा कर्माकर का ज़िक्र ज़रूर कीजिए। हमें जो पदक मिले, बेटियों ने दिलाए। हमारी बेटियों ने एक बार फिर साबित किया कि वे किसी भी तरह से, किसी से भी कम नहीं हैं। इन बेटियों में एक उत्तर भारत से है, तो एक दक्षिण भारत से है, तो कोई पूर्व भारत से है, तो कोई हिन्दुस्तान के किसी और कोने से है। ऐसा लगता है, जैसे पूरे भारत की बेटियों ने देश का नाम रोशन करने का बीड़ा उठा लिया है|

MyGov पर शिखर ठाकुर ने लिखा है कि हम Olympic में और भी बेहतर कर सकते थे। उन्होंने लिखा है – “आदरणीय मोदी सर, सबसे पहले Rio में हमने जो दो medal जीते, उसके लिए बधाई। लेकिन मैं इस ओर आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ कि क्या हमारा प्रदर्शन वाकई अच्छा था? और जवाब है, नहीं। हमें खेलों में लम्बा सफ़र तय करने की ज़रुरत है। हमारे माता-पिता आज भी पढ़ाई और academics पर focus करने पर ज़ोर देते हैं। समाज में अभी भी खेल को समय की बर्बादी माना जाता है। हमें इस सोच को बदलने की ज़रूरत है। समाज को motivation की ज़रूरत है। और ये काम आपसे अच्छी तरह कोई नहीं कर सकता।”

ऐसे ही कोई श्रीमान सत्यप्रकाश मेहरा जी ने NarendraModiApp पर लिखा है – “‘मन की बात’ में extra-curricular activities पर focus करने की ज़रूरत है। ख़ास तौर से बच्चों और युवाओं को खेलों को ले करके।” एक प्रकार से यही भाव हज़ारों लोगों ने व्यक्त किया है। इस बात से तो इंकार नहीं किया जा सकता कि हमारी आशा के अनुरूप हम प्रदर्शन नहीं कर पाए। कुछ बातों में तो ऐसा भी हुआ कि जो हमारे खिलाड़ी भारत में प्रदर्शन करते थे, यहाँ के खेलों में जो प्रदर्शन करते थे, वो वहाँ पर, वहाँ तक भी नहीं पहुँच पाए और पदक तालिका में तो सिर्फ़ दो ही medal मिले हैं। लेकिन ये भी सही है कि पदक न मिलने के बावजूद भी अगर ज़रा ग़ौर से देखें, तो कई विषयों में पहली बार भारत के खिलाड़ियों ने काफी अच्छा करतब भी दिखाया है। अब देखिये, Shooting के अन्दर हमारे अभिनव बिन्द्रा जी ने – वे चौथे स्थान पर रहे और बहुत ही थोड़े से अंतर से वो पदक चूक गये। Gymnastic में दीपा कर्माकर ने भी कमाल कर दी - वो चौथे स्थान पर रही। बहुत थोड़े अंतर के चलते medal से चूक गयी। लेकिन ये एक बात हम कैसे भूल सकते हैं कि वो Olympic के लिए और Olympic Final के लिए qualify करने वाली पहली भारतीय बेटी है। कुछ ऐसा ही टेनिस में सानिया मिर्ज़ा और रोहन बोपन्ना की जोड़ी के साथ हुआ। Athletics में हमने इस बार अच्छा प्रदर्शन किया। पी.टी. ऊषा के बाद, 32 साल में पहली बार ललिता बाबर ने track field finals के लिए qualify किया। आपको जान करके खुशी होगी, 36 साल के बाद महिला हॉकी टीम Olympic तक पहुँची। पिछले 36 साल में पहली बार Men’s Hockey – knock out stage तक पहुँचने में कामयाब रही। हमारी टीम काफ़ी मज़बूत है और मज़ेदार बाद यह है कि Argentina, जिसने Gold जीता, वो पूरी tournament में एक ही match मैच हारी और हराने वाला कौन था! भारत के खिलाड़ी थे। आने वाला समय निश्चित रूप से हमारे लिए अच्छा होगा।

Boxing में विकास कृष्ण यादव quarter-final तक पहुँचे, लेकिन Bronze नहीं पा सके। कई खिलाड़ी, जैसे उदाहरण के लिए - अदिति अशोक, दत्तू भोकनल, अतनु दास कई नाम हैं, जिनके प्रदर्शन अच्छे रहे। लेकिन मेरे प्यारे देशवासियो, हमें बहुत कुछ करना है। लेकिन जो करते आये हैं, वैसा ही करते रहेंगे, तो शायद हम फिर निराश होंगे। मैंने एक committee की घोषणा की है। भारत सरकार in house इसकी गहराई में जाएगी। दुनिया में क्या-क्या practices हो रही हैं, उसका अध्ययन करेगी। हम अच्छा क्या कर सकते हैं, उसका roadmap बनाएगी। 2020, 2024, 2028 - एक दूर तक की सोच के साथ हमने योजना बनानी है। मैं राज्य सरकारों से भी आग्रह करता हूँ कि आप भी ऐसी कमेटियाँ बनाएँ और खेल जगत के अन्दर हम क्या कर सकते हैं, हमारा एक-एक राज्य क्या कर सकता है, राज्य अपनी एक खेल, दो खेल पसंद करें – क्या ताक़त दिखा सकता है!

मैं खेल जगत से जुड़े Association से भी आग्रह करता हूँ कि वे भी एक निष्पक्ष भाव से brain storming करें। और हिन्दुस्तान में हर नागरिक से भी मैं आग्रह करता हूँ कि जिसको भी उसमें रुचि है, वो मुझे NarendraModiApp पर सुझाव भेजें। सरकार को लिखें, Association चर्चा कर-करके अपना memorandum सरकार को दें। राज्य सरकारें चर्चाएँ कर-करके अपने सुझाव भेजें। लेकिन हम पूरी तरह तैयारी करें और मुझे विश्वास है कि हम ज़रूर सवा-सौ करोड़ देशवासी, 65 प्रतिशत युवा जनसंख्या वाला देश, खेल की दुनिया में भी बेहतरीन स्थिति प्राप्त करे, इस संकल्प के साथ आगे बढ़ना है।

मेरे प्यारे देशवासियो, 5 सितम्बर ‘शिक्षक दिवस’ है। मैं कई वर्षों से ‘शिक्षक दिवस’ पर विद्यार्थियों के साथ काफ़ी समय बिताता रहा। और एक विद्यार्थी की तरह बिताता था। इन छोटे-छोटे बालकों से भी मैं बहुत कुछ सीखता था। मेरे लिये, 5 सितम्बर ‘शिक्षक दिवस’ भी था और मेरे लिये, ‘शिक्षा दिवस’ भी था। लेकिन इस बार मुझे G-20 Summit के लिए जाना पड़ रहा है, तो मेरा मन कर गया कि आज ‘मन की बात’ में ही, मेरे इस भाव को, मैं प्रकट करूँ।

जीवन में जितना ‘माँ’ का स्थान होता है, उतना ही शिक्षक का स्थान होता है। और ऐसे भी शिक्षक हमने देखे हैं कि जिनको अपने से ज़्यादा, अपनों की चिंता होती है। वो अपने शिष्यों के लिए, अपने विद्यार्थियों के लिये, अपना जीवन खपा देते हैं। इन दिनों Rio Olympic के बाद, चारों तरफ, पुल्लेला गोपीचंद जी की चर्चा होती है। वे खिलाड़ी तो हैं, लेकिन उन्होंने एक अच्छा शिक्षक क्या होता है - उसकी मिसाल पेश की है। मैं आज गोपीचंद जी को एक खिलाड़ी से अतिरिक्त एक उत्तम शिक्षक के रूप में देख रहा हूँ। और शिक्षक दिवस पर, पुल्लेला गोपीचंद जी को, उनकी तपस्या को, खेल के प्रति उनके समर्पण को और अपने विद्यार्थियों की सफलता में आनंद पाने के उनके तरीक़े को salute करता हूँ। हम सबके जीवन में शिक्षक का योगदान हमेशा-हमेशा महसूस होता है। 5 सितम्बर, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म दिन है और देश उसे ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाता है। वे जीवन में किसी भी स्थान पर पहुँचे, लेकिन अपने-आपको उन्होंने हमेशा शिक्षक के रूप में ही जीने का प्रयास किया। और इतना ही नहीं, वे हमेशा कहते थे – “अच्छा शिक्षक वही होता है, जिसके भीतर का छात्र कभी मरता नहीं है।” राष्ट्रपति का पद होने के बाद भी शिक्षक के रूप में जीना और शिक्षक मन के नाते, भीतर के छात्र को ज़िन्दा रखना, ये अद्भुत जीवन डॉ० राधाकृष्णन जी ने, जी करके दिखाया।

मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ, तो मुझे तो मेरे शिक्षकों की इतनी कथायें याद हैं, क्योंकि हमारे छोटे से गाँव में तो वो ही हमारे Hero हुआ करते थे। लेकिन मैं आज ख़ुशी से कह सकता हूँ कि मेरे एक शिक्षक - अब उनकी 90 साल की आयु हो गयी है - आज भी हर महीने उनकी मुझे चिट्ठी आती है। हाथ से लिखी हुई चिट्ठी आती है। महीने भर में उन्होंने जो किताबें पढ़ी हैं, उसका कहीं-न-कहीं ज़िक्र आता है, quotations आता है। महीने भर मैंने क्या किया, उनकी नज़र में वो ठीक था, नहीं था। जैसे आज भी मुझे class room में वो पढ़ाते हों। वे आज भी मुझे एक प्रकार से correspondence course करा रहे हैं। और 90 साल की आयु में भी उनकी जो handwriting है, मैं तो आज भी हैरान हूँ कि इस अवस्था में भी इतने सुन्दर अक्षरों से वो लिखते हैं और मेरे स्वयं के अक्षर बहुत ही खराब हैं, इसके कारण जब भी मैं किसी के अच्छे अक्षर देखता हूँ, तो मेरे मन में आदर बहुत ज़्यादा ही हो जाता है। जैसे मेरे अनुभव हैं, आपके भी अनुभव होंगे। आपके शिक्षकों से आपके जीवन में जो कुछ भी अच्छा हुआ है, अगर दुनिया को बताएँगे, तो शिक्षक के प्रति देखने के रवैये में बदलाव आएगा, एक गौरव होगा और समाज में हमारे शिक्षकों का गौरव बढ़ाना हम सबका दायित्व है। आप NarendraModiApp पर, अपने शिक्षक के साथ फ़ोटो हो, अपने शिक्षक के साथ की कोई घटना हो, अपने शिक्षक की कोई प्रेरक बात हो, आप ज़रूर share कीजिए। देखिए, देश में शिक्षक के योगदान को विद्यार्थियों की नज़र से देखना, यह भी अपने आप में बहुत मूल्यवान होता है।

मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ ही दिनों में गणेश उत्सव आने वाला है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं और हम सब चाहें कि हमारा देश, हमारा समाज, हमारे परिवार, हमारा हर व्यक्ति, उसका जीवन निर्विघ्न रहे। लेकिन जब गणेश उत्सव की बात करते हैं, तो लोकमान्य तिलक जी की याद आना बहुत स्वाभाविक है। सार्वजनिक गणेश उत्सव की परंपरा - ये लोकमान्य तिलक जी की देन है। सार्वजनिक गणेश उत्सव के द्वारा उन्होंने इस धार्मिक अवसर को राष्ट्र जागरण का पर्व बना दिया। समाज संस्कार का पर्व बना दिया। और सार्वजनिक गणेश उत्सव के माध्यम से समाज-जीवन को स्पर्श करने वाले प्रश्नों की वृहत चर्चा हो। कार्यक्रमों की रचना ऐसी हो कि जिसके कारण समाज को नया ओज, नया तेज मिले। और साथ-साथ उन्होंने जो मन्त्र दिया था – “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है”- ये बात केंद्र में रहे। आज़ादी के आन्दोलन को ताक़त मिले। आज भी, अब तो सिर्फ़ महाराष्ट्र नहीं, हिंदुस्तान के हर कोने में सार्वजनिक गणेश उत्सव होने लगे हैं। सारे नौजवान इसे करने के लिए काफ़ी तैयारियाँ भी करते हैं, उत्साह भी बहुत होता है। और कुछ लोगों ने अभी भी लोकमान्य तिलक जी ने जिस भावना को रखा था, उसका अनुसरण करने का भरपूर प्रयास भी किया है। सार्वजनिक विषयों पर वो चर्चायें रखते हैं, निबंध स्पर्द्धायें करते हैं, रंगोली स्पर्द्धायें करते हैं। उसकी जो झाँकियाँ होती हैं, उसमें भी समाज को स्पर्श करने वाले issues को बड़े कलात्मक ढंग से उजागर करते हैं। एक प्रकार से लोक शिक्षा का बड़ा अभियान सार्वजनिक गणेश उत्सव के द्वारा चलता है। लोकमान्य तिलक जी ने हमें “स्वराज हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है” ये प्रेरक मन्त्र दिया। लेकिन हम आज़ाद हिन्दुस्तान में हैं। क्या सार्वजनिक गणेश उत्सव ‘सुराज हमारा अधिकार है’ - अब हम सुराज की ओर आगे बढ़ें। सुराज हमारी प्राथमिकता हो, इस मन्त्र को लेकर के हम सार्वजनिक गणेश उत्सव से सन्देश नहीं दे सकते हैं क्या? आइए, मैं आपको निमंत्रण देता हूँ।

ये बात सही है कि उत्सव समाज की शक्ति होता है। उत्सव व्यक्ति और समाज के जीवन में नये प्राण भरता है। उत्सव के बिना जीवन असंभव होता है। लेकिन समय की माँग के अनुसार उसको ढालना भी पड़ता है। इस बार मैंने देखा है कि मुझे कई लोगों ने ख़ास करके गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा - उन चीजों पर काफ़ी लिखा है। और उनको चिंता हो रही है पर्यावरण की। कोई श्रीमान शंकर नारायण प्रशांत करके हैं, उन्होंने बड़े आग्रह से कहा है कि मोदी जी, आप ‘मन की बात’ में लोगों को समझाइए कि Plaster of Paris से बनी हुई गणेश जी की मूर्तियों का उपयोग न करें। क्यों न गाँव के तालाब की मिट्टी से बने हुए गणेश जी का उपयोग करें! POP की बनी हुई प्रतिमायें पर्यावरण के लिए अनुकूल नहीं होती हैं। उन्होंने तो बहुत पीड़ा व्यक्त की है, औरों ने भी की है। मैं भी आप सब से प्रार्थना करता हूँ, क्यों न हम मिट्टी का उपयोग करके गणेश की मूर्तियाँ, दुर्गा की मूर्तियाँ - हमारी उस पुरानी परंपरा पर वापस क्यों न आएं। पर्यावरण की रक्षा, हमारे नदी-तालाबों की रक्षा, उसमें होने वाले प्रदूषण से इस पानी के छोटे-छोटे जीवों की रक्षा - ये भी ईश्वर की सेवा ही तो है। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं। तो हमें ऐसे गणेश जी नहीं बनाने चाहिए, जो विघ्न पैदा करें। मैं नहीं जानता हूँ, मेरी इन बातों को आप किस रूप में लेंगे। लेकिन ये सिर्फ मैं नहीं कह रहा हूँ, कई लोग हैं और मैंने कइयों के विषय में कई बार सुना है - पुणे के एक मूर्तिकार श्रीमान अभिजीत धोंड़फले, कोल्हापुर की संस्थायें निसर्ग-मित्र, विज्ञान प्रबोधिनी। विदर्भ क्षेत्र में निसर्ग-कट्टा, पुणे की ज्ञान प्रबोधिनी, मुंबई के गिरगाँवचा राजा। ऐसी अनेक-विद संस्थायें, व्यक्ति मिट्टी के गणेश के लिए बहुत मेहनत करते हैं, प्रचार भी करते हैं। Eco-friendly गणेशोत्सव - ये भी एक समाज सेवा का काम है। दुर्गा पूजा के बीच अभी समय है। अभी हम तय करें कि हमारे उन पुराने परिवार जिस मूर्तियाँ बनाते थे, उनको भी रोजगार मिलेगा और तालाब या नदी की मिट्टी से बनेगा, तो फिर से उसमें जा कर के मिल जाएगा, तो पर्यावरण की भी रक्षा होगी। आप सबको गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनायें देता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, भारत रत्न मदर टेरेसा, 4 सितम्बर को मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया जाएगा। मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन भारत में ग़रीबों की सेवा के लिए लगा दिया था। उनका जन्म तो Albania में हुआ था। उनकी भाषा भी अंग्रेज़ी नहीं थी। लेकिन उन्होंने अपने जीवन को ढाला। ग़रीबों की सेवा के योग्य बनाने के लिये भरपूर प्रयास किए। जिन्होंने जीवन भर भारत के ग़रीबों की सेवा की हो, ऐसी मदर टेरेसा को जब संत की उपाधि प्राप्त होती है, तो सब भारतीयों को गर्व होना बड़ा स्वाभाविक है। 4 सितम्बर को ये जो समारोह होगा, उसमें सवा-सौ करोड़ देशवासियों की तरफ़ से भारत सरकार, हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अगुवाई में, एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल भी वहाँ भेजेगी। संतों से, ऋषियों से, मुनियों से, महापुरुषों से हर पल हमें कुछ-न-कुछ सीखने को मिलता ही है। हम कुछ-न-कुछ पाते रहेंगे, सीखते रहेंगे और कुछ-न-कुछ अच्छा करते रहेंगे।

मेरे प्यारे देशवासियों, विकास जब जन-आंदोलन बन जाए, तो कितना बड़ा परिवर्तन आता है। जनशक्ति ईश्वर का ही रूप माना जाता है। भारत सरकार ने पिछले दिनों 5 राज्य सरकारों के सहयोग के साथ स्वच्छ गंगा के लिये, गंगा सफ़ाई के लिये, लोगों को जोड़ने का एक सफल प्रयास किया। इस महीने की 20 तारीख़ को इलाहाबाद में उन लोगों को निमंत्रित किया गया कि जो गंगा के तट पर रहने वाले गाँवों के प्रधान थे। पुरुष भी थे, महिलायें भी थीं। वे इलाहाबाद आए और गंगा तट के गाँवों के प्रधानों ने माँ गंगा की साक्षी में शपथ ली कि वे गंगा तट के अपने गाँवों में खुले में शौच जाने की परंपरा को तत्काल बंद करवाएंगे, शौचालय बनाने का अभियान चलाएंगे और गंगा सफ़ाई में गाँव पूरी तरह योगदान देगा कि गाँव गंगा को गंदा नहीं होने देगा। मैं इन प्रधानों को इस संकल्प के लिए इलाहाबाद आना, कोई उत्तराखण्ड से आया, कोई उत्तर प्रदेश से आया, कोई बिहार से आया, कोई झारखण्ड से आया, कोई पश्चिम बंगाल से आया, मैं उन सबको इस काम के लिए बधाई देता हूँ। मैं भारत सरकार के उन सभी मंत्रालयों को भी बधाई देता हूँ, उन मंत्रियों को भी बधाई देता हूँ कि जिन्होंने इस कल्पना को साकार किया। मैं उन सभी 5 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने जनशक्ति को जोड़ करके गंगा की सफ़ाई में एक अहम क़दम उठाया।

मेरे प्यारे देशवासियों, कुछ बातें मुझे कभी-कभी बहुत छू जाती हैं और जिनको इसकी कल्पना आती हो, उन लोगों के प्रति मेरे मन में एक विशेष आदर भी होता है। 15 जुलाई को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में करीब सत्रह-सौ से ज्यादा स्कूलों के सवा-लाख से ज़्यादा विद्यार्थियों ने सामूहिक रूप से अपने-अपने माता-पिता को चिट्ठी लिखी। किसी ने अंग्रेज़ी में लिख दिया, किसी ने हिंदी में लिखा, किसी ने छत्तीसगढ़ी में लिखा, उन्होंने अपने माँ-बाप से चिट्ठी लिख कर के कहा कि हमारे घर में Toilet होना चाहिए। Toilet बनाने की उन्होंने माँग की, कुछ बालकों ने तो ये भी लिख दिया कि इस साल मेरा जन्मदिन नहीं मनाओगे, तो चलेगा, लेकिन Toilet ज़रूर बनाओ। Iसात से सत्रह साल की उम्र के इन बच्चों ने इस काम को किया। और इसका इतना प्रभाव हुआ, इतना emotional impact हुआ कि चिट्ठी पाने के बाद जब दूसरे दिन school आया, तो माँ-बाप ने उसको एक चिट्ठी पकड़ा दी Teacher को देने के लिये और उसमें माँ-बाप ने वादा किया था कि फ़लानी तारीख तक वह Toilet बनवा देंगे। जिसको ये कल्पना आई, उनको भी अभिनन्दन, जिन्होंने ये प्रयास किया, उन विद्यार्थियों को भी अभिनन्दन और उन माता-पिता को विशेष अभिनन्दन कि जिन्होंने अपने बच्चे की चिट्ठी को गंभीर ले करके Toilet बनाने का काम करने का निर्णय कर लिया। यही तो है, जो हमें प्रेरणा देता है।

कर्नाटक के कोप्पाल ज़िला, इस ज़िले में सोलह साल की उम्र की एक बेटी मल्लम्मा - इस बेटी ने अपने परिवार के ख़िलाफ़ ही सत्याग्रह कर दिया। वो सत्याग्रह पर बैठ गई। कहते हैं कि उन्होंने खाना भी छोड़ दिया था और वो भी ख़ुद के लिए कुछ माँगने के लिये नहीं, कोई अच्छे कपड़े लाने के लिये नहीं, कोई मिठाई खाने के लिये नहीं, बेटी मल्लम्मा की ज़िद ये थी कि हमारे घर में Toilet होना चाहिए। अब परिवार की आर्थिक स्थिति नहीं थी, बेटी ज़िद पर अड़ी हुई थी, वो अपना सत्याग्रह छोड़ने को तैयार नहीं थी। गाँव के प्रधान मोहम्मद शफ़ी, उनको पता चला कि मल्लम्मा ने Toilet के लिए सत्याग्रह किया है, तो गाँव के प्रधान मोहम्मद शफ़ी की भी विशेषता देखिए कि उन्होंने अठारह हज़ार रुपयों का इंतज़ाम किया और एक सप्ताह के भीतर-भीतर Toilet बनवा दिया। ये बेटी मल्लम्मा की ज़िद की ताक़त देखिए और मोहम्मद शफ़ी जैसे गाँव के प्रधान देखिए। समस्याओं के समाधान के लिए कैसे रास्ते खोले जाते हैं, यही तो जनशक्ति है I

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘स्वच्छ-भारत’ ये हर भारतीय का सपना बन गया है। कुछ भारतीयों का संकल्प बन गया है। कुछ भारतीयों ने इसे अपना मक़सद बना लिया है। लेकिन हर कोई किसी-न-किसी रूप में इससे जुड़ा है, हर कोई अपना योगदान दे रहा है। रोज़ ख़बरें आती रहती हैं, कैसे-कैसे नये प्रयास हो रहे हैं। भारत सरकार में एक विचार हुआ है और लोगों से आह्वान किया है कि आप दो मिनट, तीन मिनट की स्वच्छता की एक फ़िल्म बनाइए, ये Short Film भारत सरकार को भेज दीजिए, Website पर आपको इसकी जानकारियाँ मिल जाएंगी। उसकी स्पर्द्धा होगी और 2 अक्टूबर ‘गाँधी जयंती’ के दिन जो विजयी होंगे, उनको इनाम दिया जाएगा। मैं तो टी.वी. Channel वालों को भी कहता हूँ कि आप भी ऐसी फ़िल्मों के लिये आह्वान करके स्पर्द्धा करिए। Creativity भी स्वच्छता अभियान को एक ताक़त दे सकती है, नये Slogan मिलेंगे, नए तरीक़े जानने को मिलेंगे, नयी प्रेरणा मिलेगी और ये सब कुछ जनता-जनार्दन की भागीदारी से, सामान्य कलाकारों से और ये ज़रूरी नहीं है कि फ़िल्म बनाने के लिये बड़ा Studio चाहिए और बड़ा Camera चाहिए; अरे, आजकल तो अपने Mobile Phone के Camera से भी आप फ़िल्म बना सकते हैं। आइए, आगे बढ़िए, आपको मेरा निमंत्रण है।

मेरे प्यारे देशवासियो, भारत की हमेशा-हमेशा ये कोशिश रही है कि हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे संबंध गहरे हों, हमारे संबंध सहज हों, हमारे संबंध जीवंत हों। एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण बात पिछले दिनों हुई, हमारे राष्ट्रपति आदरणीय “प्रणब मुखर्जी” ने कोलकाता में एक नये कार्यक्रम की शुरुआत की ‘“आकाशवाणी मैत्री चैनल’”। अब कई लोगों को लगेगा कि राष्ट्रपति को क्या एक Radio के Channel का भी उद्घाटन करना चाहिये क्या? लेकिन ये सामान्य Radio की Channel नहीं है, एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण क़दम है। हमारे पड़ोस में बांग्लादेश है। हम जानते हैं, बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल एक ही सांस्कृतिक विरासत को ले करके आज भी जी रहे हैं। तो इधर “आकाशवाणी मैत्री” और उधर “बांग्लादेश बेतार। वे आपस में content share करेंगे और दोनों तरफ़ बांग्लाभाषी लोग “आकाशवाणी” का मज़ा लेंगे। People to People Contact का “आकाशवाणी” का एक बहुत बड़ा योगदान है। राष्ट्रपति जी ने इसको launch किया। मैं बांग्लादेश का भी इसके लिये धन्यवाद करता हूँ कि इस काम के लिये हमारे साथ वे जुड़े। मैं आकाशवाणी के मित्रों को भी बधाई देता हूँ कि विदेश नीति में भी वे अपना contribution दे रहे हैं।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने मुझे भले प्रधानमंत्री का काम दिया हो, लेकिन आख़िर मैं भी तो आप ही के जैसा एक इंसान हूँ। और कभी-कभी भावुक घटनायें मुझे ज़रा ज़्यादा ही छू जाती हैं। ऐसी भावुक घटनायें नई-नई ऊर्जा भी देती हैं, नई प्रेरणा भी देती हैं और यही है, जो भारत के लोगों के लिये कुछ-न-कुछ कर गुज़रने के लिये प्रेरणा देती हैं। पिछले दिनों मुझे एक ऐसा पत्र मिला, मेरे मन को छू गया। क़रीब 84 साल की एक माँ, जो retired teacher हैं, उन्होंने मुझे ये चिट्ठी लिखी। अगर उन्होंने मुझे अपनी चिट्ठी में इस बात का मना न किया होता कि मेरा नाम घोषित मत करना कभी भी, तो मेरा मन तो था कि आज मैं उनको नाम दे करके आपसे बात करूँ और चिट्ठी उन्होंने ये लिखी कि आपने जब Gas Subsidy छोड़ने के लिए अपील की थी, तो मैंने Gas Subsidy छोड़ दी थी और बाद में मैं तो भूल भी गई थी। लेकिन पिछले दिनों आपका कोई व्यक्ति आया और आपकी मुझे एक चिट्ठी दे गया। इस give it up के लिए मुझे धन्यवाद पत्र मिला। मेरे लिए भारत के प्रधानमंत्री का पत्र एक पद्मश्री से कम नहीं है।

देशवासियो, आपको पता होगा कि मैंने कोशिश की है कि जिन-जिन लोगों ने Gas Subsidy छोड़ दी, उनको एक पत्र भेजूँ और कोई-न-कोई मेरा प्रतिनिधि उनको रूबरू जा कर के पत्र दे। एक करोड़ से ज़्यादा लोगों को पत्र लिखने का मेरा प्रयास है। उसी योजना के तहत मेरा ये पत्र इस माँ के पास पहुँचा। उन्होंने मुझे पत्र लिखा कि आप अच्छा काम कर रहे हैं। गरीब माताओं को चूल्हे के धुएं से मुक्ति का आपका अभियान और इसलिए मैं एक retired teacher हूँ, कुछ ही वर्षों में मेरी उम्र 90 साल हो जायेगी, मैं एक 50 हज़ार रूपये का donation आपको भेज रही हूँ, जिससे आप ऐसी ग़रीब माताओं को चूल्हे के धुयें से मुक्त कराने के लिए काम में लगाना। आप कल्पना कर सकते हैं, एक सामान्य शिक्षक के नाते retired pension पर गुज़ारा करने वाली माँ, जब 50 हज़ार रूपए और गरीब माताओं-बहनों को चूल्हे के धुयें से मुक्त कराने के लिए और gas connection देने के लिए देती हो। सवाल 50 हज़ार रूपये का नहीं है, सवाल उस माँ की भावना का है और ऐसी कोटि-कोटि माँ-बहनें उनके आशीर्वाद ही हैं, जिससे मेरा देश के भविष्य के लिए भरोसा और ताक़तवर बन जाता है। और मुझे चिट्ठी भी उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में नहीं लिखी। सीधा-साधा पत्र लिखा - “मोदी भैया। उस माँ को मैं प्रणाम करता हूँ और भारत की इन कोटि-कोटि माताओं को भी प्रणाम करता हूँ कि जो ख़ुद कष्ट झेल करके हमेशा कुछ-न-कुछ किसी का भला करने के लिए करती रहती हैं।

मेरे प्यारे देशवासियो, पिछले वर्ष अकाल के कारण हम परेशान थे, लेकिन ये अगस्त महीना लगातार बाढ़ की कठिनाइयों से भरा रहा। देश के कुछ हिस्सों में बार-बार बाढ़ आई। राज्य सरकारों ने, केंद्र सरकार ने, स्थानीय स्वराज संस्था की इकाइयों ने, सामाजिक संस्थाओं ने, नागरिकों ने, जितना भी कर सकते हैं, करने का पूरा प्रयास किया। लेकिन इन बाढ़ की ख़बरों के बीच भी, कुछ ऐसी ख़बरें भी रही, जिसका ज़्यादा स्मरण होना ज़रूरी था। एकता की ताकत क्या होती है, साथ मिल कर के चलें, तो कितना बड़ा परिणाम मिल सकता है ? ये इस वर्ष का अगस्त महीना याद रहेगा। अगस्त, 2016 में घोर राजनैतिक विरोध रखने वाले दल, एक-दूसरे के ख़िलाफ़ एक भी मौका न छोड़ने वाले दल, और पूरे देश में क़रीब-क़रीब 90 दल, संसद में भी ढेर सारे दल, सभी दलों ने मिल कर के GST का क़ानून पारित किया। इसका credit सभी दलों को जाता है। और सब दल मिल करके एक दिशा में चलें, तो कितना बड़ा काम होता है, उसका ये उदाहरण है। उसी प्रकार से कश्मीर में जो कुछ भी हुआ, उस कश्मीर की स्थिति के संबंध में, देश के सभी राजनैतिक दलों ने मिल करके एक स्वर से कश्मीर की बात रखी। दुनिया को भी संदेश दिया, अलगाववादी तत्वों को भी संदेश दिया और कश्मीर के नागरिकों के प्रति हमारी संवेदनाओं को भी व्यक्त किया। और कश्मीर के संबंध में मेरा सभी दलों से जितना interaction हुआ, हर किसी की बात में से एक बात ज़रूर जागृत होती थी। अगर उसको मैंने कम शब्दों में समेटना हो, तो मैं कहूँगा कि एकता और ममता, ये दो बातें मूल मंत्र में रहीं। और हम सभी का मत है, सवा-सौ करोड़ देशवासियों का मत है, गाँव के प्रधान से ले करके प्रधानमंत्री तक का मत है कि कश्मीर में अगर कोई भी जान जाती है, चाहे वह किसी नौजवान की हो या किसी सुरक्षाकर्मी की हो, ये नुकसान हमारा ही है, अपनों का ही है, अपने देश का ही है। जो लोग इन छोटे-छोटे बालकों को आगे करके कश्मीर में अशांति पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं, कभी-न-कभी उनको इन निर्दोष बालकों को भी जवाब देना पड़ेगा।

मेरे प्यारे देशवासियों, देश बहुत बड़ा है। विविधताओं से भरा हुआ है। विविधताओं से भरे हुए देश को एकता के बंधन में बनाए रखने के लिये नागरिक के नाते, समाज के नाते, सरकार के नाते, हम सबका दायित्व है कि हम एकता को बल देने वाली बातों को ज़्यादा ताक़त दें, ज़्यादा उजागर करें और तभी जा करके देश अपना उज्ज्वल भविष्य बना सकता है, और बनेगा। मेरा सवा-सौ करोड़ देशवासियों की शक्ति पर भरोसा है। आज बस इतना ही, बहुत-बहुत धन्यवाद।