आज जो अपने जीवन की नई शुरूआत कर रहे हैं ऐसे सारे विद्यार्थी मित्रों और उपस्थित सज्‍जनों,

मैंने विशेष मेहमान कहा, कुछ बच्‍चों को आपने देखा होगा। मैंने एक आग्रह रखा है कि जहां भी Convocation होता है वहां पर उस शहर के 20-25 स्‍कूलों से और वो भी गरीब बच्‍चे जहां पढ़ते हो दो दो बच्‍चों को इस Convocation पर विशेष रूप से निमंत्रित करके बुलाना चाहिए। जब यह बालक इस समारोह को देखते हैं, यह वेशभूषा, यह सब, तो उनके मन में एक संस्‍कार भी जगते हैं और सहज रूप से एक inspiration सा जगता है, उनके मन में भी होता है कि काश मेरे जीवन में भी ऐसा अवसर आए और इसलिए मेरा आग्रह रहता है कि हर University में एक Convocation हो तो गरीब परिवार के 50 बालक....40-50 स्कूलों में से एक-एक दो-दो को जरूर बुलाना चाहिए। उनको यह समारोह में शरीक करना चाहिए। उसमें से एक नई प्रेरणा मिलती है और मैं भी चाहूंगा कि आज जो उर्तीण हुए हैं वो बाद में जरूर पांच मिनट उन बच्‍चों से बात करें। उसने चर्चा करें, अपने अनुभव share करें। आप देखिए आपके माध्‍यम से कितना बड़ा काम हो जाएगा।

आज मुझे कुछ पूर्व Directors का सम्‍मान करने का अवसर मिला। अनेक व्‍यक्ति अपना जीवन जब खपा देते हैं, तब ऐसी संस्‍थाएं विकसित होती हैं। ऐसी व्‍यवस्‍थाएं विकसित होती हैं। पूर्व के जितने भी लोग थे और वर्तमान जितने भी लोग हैं उन सबके प्रयत्‍नों से इस संस्‍था ने एक अंतर्राष्‍ट्रीय अपना स्‍थान बनाया है। मैं उन सबका हृदय से अभिनंदन करता हूं और जिनका स्‍वागत करने का मुझे अवसर मिला मैं अपने आप में गौरव की अनुभूति करता हूं।

मित्रों मेरे मन में एक प्रश्‍न है कि अगर आपने दिमाग लगाया होता तो शायद इस Profession में नहीं आते। यहां आने से पहले आपने दिमाग से नहीं सोचा होगा यह मेरा पूरा विश्‍वास है। फिर आए क्यों? आए इसलिए हैं कि आपने दिमाग से नहीं दिल से सोचा है। काम तो दिमाग का है, लेकिन दिमाग से होने वाला नहीं है। आपने एक ऐसे Profession को तैयार किया है जिसमें दिल से ही आप Patient को ठीक कर पाते हैं, दिमाग से नहीं कर पाते और उस पर मैं कहता हूं कि आपने, आपके दिल ने आपको इस Profession में आने के लिए मजबूर किया है, अपने आपको प्रेरित किया है, आपके भीतर से वो आवाज़ उठी है और आपको लगा है कि भई यह समाज में ये लोग.. कोई तो इनकी सेवा करें और मैं जातना हूं कि यह कठिन काम है।

आप जब पहली बार अस्‍पताल में डिग्री धारण करने के बाद जाएंगे तो Patient तालिया बजाएंगे कि चलो एक और आ गया। उनको तो यही लगेगा कि हमारे जैसा ही कोई आया है, फिर उसके साथ बात करना, समय बिताना, उसको समझना और फिर उसमें विश्‍वास जगाना.. बीमारी दूर करने से पहले विश्‍वास जगाना। एक ऐसा कठिन काम आपने लिया है। लेकिन मुझे विश्‍वास है कि आप, यहां जो आपको शिक्षा-दीक्षा मिली हैं, उस बदौलत और आपके दिल में जो दर्द है उसकी बदौलत आप अवश्‍य इस क्षेत्र में बहुत उत्‍तम प्रकार की सेवा कर पाएंगे।

हमारे देश में Mental Health का जब Symptom दिखने लग जाते हैं, परिवार को लगता है कि यह क्‍या odd कर रहा है, तो सबसे पहले वो मंत्र तंत्र में लग जाते हैं कोई धूपधाप करता हैं, उनको लगता है कि हां यह ठीक हो जाएगा और वहीं से बर्बादी की शुरूआत हो जाती है। अंतस्‍था मरीज को और तबाह कर देती है और परिवार वालों को लगता है हां ऐसा ही कुछ हुआ है, किसी ने कुछ कर दिया है और उसी में उसकी जिंदगी तबाह होना शुरू हो जाती है। आप कल्‍पना कर सकते हैं कि मानसिक बीमारी के प्रति देखने का समाज का रवैया कैसा है और उसमें से बदलाव लाना है और ये health related विषय है, ये physical problem है, इसके solution उस रूप से निकल सकते हैं। और बीमारियों को जैसे treat किया जा सकता है, इसे भी किया जा सकता है। यह उसके दिमाग में भरना, उस परिवार के दिमाग में भरना यह भी काफी कठिन होता है।

कुछ ऐसे परिवार होंगे… तो क्या होता होगा...वो नहीं चाहेंगे कि किसी को पता चले कि इसको ऐसी बीमारी है। छुपाते है, डरते हैं, क्‍यों कि समाज में अगर पता चल जाए कि इनके परिवार में एक का दिमाग ऐसा है तो बाकी सोचते है फिर तो सब item ऐसी ही होगी। इस पेड़ पर ऐसे ही फल आए होंगे और इसलिए बाकी कितना ही तंदरूस्‍त क्‍या न हो अच्‍छा डॉक्‍टर बना हो, फिर भी कोई बेटी देने से पचास बार सोचता है कि भई उसका एक भाई तो गड़बड़ है, इसको दे या न दें। यानी सामाजिक दृष्टि से भी एक ऐसी बीमारी है जो एक व्‍यक्ति को नहीं, पूरे परिवार को समाज की नजरों में गिरा देती है। कभी-कभार तो बाबा के समय कुछ हुआ हो grand-father, great grand-father.. और रिश्‍तेदारों को पता हो कि उनके भई एक दादा थे 55-60 साल की आयु में ऐसा हो गया था, तो भी उस परिवार के बच्‍चों को चार-चार पीढ़ी तक यह सुनते रहना पड़ता है...कुछ यार गड़बड़ है। कोई स्‍क्रू ढीला लगता है।

यानी यह एक ऐसा patient है जिसके प्रति अज्ञान, अंधश्रद्धा और जागरूकता यह सारी चीजों ने घेर लिया है और उसमें से हमें एक वैज्ञानिक तरीके से एक patient मानकर, उसकी care करने के लिए समाज के अवरोधों के खिलाफ भी काम करना पड़ता है। बाद में स्थिति ऐसी आती है अगर कोई संभावना वाला व्‍यक्ति हो, थोड़ा समझदार हो, थोड़ा जानता हो चीजें तो फिर वो depression की दवाएं लेना शुरू कर देता है और उसका कोई end नहीं होता, doze बढ़ता ही जाता है और depression भी बढ़ता ही जाता है। यानी व्‍यक्ति स्‍वयं थोड़ा depress हो तो भी इस दिशा में जाता है और ऐसी स्थिति में जब आपके profession को काम करना हो तब वैज्ञानिक तरीकों के साथ-साथ मैंने प्रारंभ में कहा, यह दिल से ही दवाई होती है और इसलिए सामान्‍य डॉक्‍टर से भी ज्‍यादा मान्‍यवीय संवेदनाएं, सामान्‍य डॉक्‍टर से ज्‍यादा patient के प्रति sympathy, इस profession में आवश्‍यक होती है। सिर्फ ज्ञान और अनुभव, इतने से इसमें काम नहीं होता है और उस अर्थ में यहां जो आपको शिक्षा-दीक्षा मिली है। मुझे विश्‍वास है कि आप सफलतापूर्वक आगे बढ़ोगे।

एक स्थिति आपके जीवन में भी ऐसी आएगी.. मैं नहीं चाहता हूं कि आए.. लेकिन आएगी, हंसी-मजाक के तौर पर आएगी लेकिन आएगी। आपकी शादी हो जाएगी और दो-चार, पांच साल के बाद जब पति या पत्‍नी रूठे हुए होंगे तो आपसे क्‍या कहेंगे? आप भी patient जैसे हो हो गए हो। इन patients के साथ रहते रहते आपका भी ऐसा ही हो गया है। यानी ऐसी अवस्‍था में आपको भी काम करना है। आपने यहां शिक्षा-दीक्षा ली है, डॉक्‍टर बनकर के आप समाज में स्‍थान प्राप्‍त करने वाले हैं। आपके मां-बाप ने कितने अरमानों के साथ आपको यहां भेजा होगा, कितनी अपेक्षाओं के साथ भेजा होगा, कितनी कठिनाईयों को झेलते हुए आपको भेजा होगा। मैं आपसे आग्रह करूंगा आपने जो कुछ भी पाया है, आपकी मेहनत तो है ही है। यहां पर शिक्षा-दीक्षा देने वालों की मेहनत भी है, आपके यार-दोस्‍तों का भी कोई न कोई योगदान है। लेकिन उन परिवारजनों ने जिन्‍होंने बड़े आशा, अरमानों के साथ आपको यहां भेजा है। अब तक तो आप विद्यार्थी थे और इसलिए वो भी सोचते थे कि मुझे देना है, लेकिन अब कल से वो भी आपकी तरफ दूसरे नजरिए से देखेंगे। अब तो भई मेरे से हुआ जो हुआ, मैंने तुम्‍हें पढ़ाया, कर्ज करके पढ़ा दिया, सब कर लिया अब तो तुम तुम्‍हारा करो कुछ.. अपेक्षाएं एक नया रूप लेंगी। मैं आशा करता हूं कि आप अपने सामर्थ्‍य से आगे बढ़ करके, अपने माता-पिता की जो आशाएं, आकांक्षाएं, अपेक्षाएं हैं आपके प्रति उसे पूरा करने की ईश्‍वर आपको पूरी ताकत दें और बिना समय बीते, वे गर्व से जी सकें इस प्रकार से आपका जीवन व्‍यवहार, आपके जीवन की सिद्धियां.. उनके जीवन के उस आधार को और अधिक जीने योग्‍य बना दें ऐसी मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

कभी-कभार हमें यह भी लगता है कि हम यहां पहुंचे, बेंगलुरू तक आ गए.. दो किलोमीटर दूर से, पांच सौ किलोमीटर दूर से, हजार किलोमीटर दूर से पढ़ाई के लिए आ गए। पैसे थे, admission मिल गया था, अच्‍छे marks थे, पढ़ रहा हूं, परमात्‍मा ने दिमाग ठीक दिया है तो अच्‍छी तरह पढ़ लेता हूं। क्‍या कभी सोचा है क्‍या सिर्फ इन कारणों से आप इस जगह पर पहुंचे हैं। अगर आप सोचेंगे तो पता चलेगा कि नहीं। इसका तो स्‍थान बहुत कम है। आपके पैसे, आपका समय, आपकी बुद्धि, आपके परिवार का योगदान, आपके शिक्षकों का योगदान यह कहां जाता है। लेकिन आपको यहां तक पहुंचाने के लिए जिन-जिन लोगों ने योगदान दिया है कभी उनको भी याद कीजिए और जीवन में हर पल याद कीजिए। फिर आपको जीवन कैसे जीना चाहिए, यह सीखने के लिए किसी महापुरूष को याद नहीं करना पड़ेगा, किसी किताब का reference नहीं देखना पड़ेगा। अपने जीवन की ही घटनाएं, आपके जीवन की प्रेरणा बन सकती है। याद कीजिए जिस दिन पहली बार आप बेंगलुरू आए होंगे और कोई ऑटो रिक्‍शा वाला आपको यहां तक ले आया होगा, जरा उसका चेहरा याद कीजिए और यह सोचिए कि आप तो नये आए थे, लेकिन इसने आपसे अधिक पैसे नहीं मांगे थे, उतने ही पैसे लिए थे जितना कि यहां पहुंचने का किराया होता था। आपको याद आएगा कि देखों भई मेरी जिंदगी की शुरूआत जब मैं बेंगलुरू पहली बार आया था, लेकिन एक ऑटो रिक्‍शा वाला था जो मुझे समय जगह पर, सही समय पर पहुंचाया था। क्‍या आपका यहां तक पहुंचने में उसका कोई योगदान नहीं है, अगर उसका योगदान है तो क्‍या मेरी जिंदगी में उस कर्ज को चुकाने का योगदान होना चाहिए कि नहीं? और मैं मानता हूं जिंदगी को आगे बढ़ाने का तरीका यही होता है। हम किस के कारण कहां-कहां पहुंचे हैं। कभी यहां भी पढतें होंगे, कभी थकान भी महसूस होती होगी, exam के दिन होंगे और मन कर गया होगा कि रात को 12 बजे जाकर के कहीं चाय पीएं और hostel से बाहर निकल कर किसी पेड़ के नीचे चाय बेचने वाला बैठा होगा, बिचारा सोया होगा, आपने उसे जगाया होगा कि यार कल exam है जरा चाय पिला दो न और उसने अपनी नींद छोड़कर के आपके लिए चाय बनाई होगी। और वो चाय पीकर के आपने रात को फिर दो घंटा पढ़ा होगा और सुबह आपका पेपर बहुत अच्‍छा गया होगा। क्‍या उस चाय वाले का आपके जीवन में कोई योगदान है कि नहीं है?

मैंने कहने का तात्‍पर्य यह है कि हम जीवन में आगे बढ़ते हैं अपने कारण नहीं अपनों के कारण भी नहीं, अनगिनत लोगों के कारण आगे बढ़ते हैं और जो भी समाज या आखिरी छोर पर बैठे हुए लोगों के कारण बनते हैं और इसलिए जीवन जीते समय, क्‍योंकि दीक्षांत समारोह है, आज अपनी शिक्षा-दीक्षा के साथ आज समाज के उच्‍च स्‍थान पर विराजित होने वाले हैं, तब जिनके कारण हम यहां पहुंचें हैं उनको जीवन में कतई नहीं भूलेंगे। उनके लिए जीने का कुछ पल तो हम प्रयास करेंगे। मुझे विश्‍वास है कि तब जीवन बहुत धन्‍य हो जाता है।

आखिरकार धनी से धनी व्‍यक्ति.. आप जिस profession में हैं ऐसे लोग आपको मिलेंगे, पैसों का ढेर होगा, बच्‍चे होंगे, गाड़ी होगी, बंगला होगा, सब होगा और आपको आकर के कहेंगे कि यार डॉक्‍टर साहब रात को नींद नहीं आती है, पता नहीं क्‍या तकलीफ है। बहुत विचार मंथन चला रहता है, मन शांत नहीं रहता। ऐसे patient आएंगे आपके पास। सब कुछ है धन है, दौलत है, वैभव है, पैसे हैं, सब है.. मतलब यह हुआ इन चीजों से जीवन में सुख नहीं मिलता है, सुख कहीं और से मिलता है और इसलिए स्‍वांत: सुखाय मेरे भीतर के मन को आनंद दें इस प्रकार की जिंदगी जीने का प्रयास मुझे जो ईश्‍वर ने कार्य क्षेत्र दिया है उस कार्य क्षेत्र जिसको मैंने चुना है, और जिन लोगों के लिए मैं जी रहा हूं मेरे लिए यही स्‍वांत: सुखाय है। आप देखिए जिंदगी में कैसे नया रंग भर जाता है। और इसलिए उस उमंग और उत्‍साह के साथ अपने जीवन को आगे बढ़ाने का प्रयास अगर हम निरंतर करते रहेंगे, मैं विश्‍वास से कहता हूं कि आप जिस क्षेत्र में आए हैं उस क्षेत्र से आप समाज को अवश्‍य कुछ न कुछ दे सकते हैं।

Patient... हमारे यहां तो कहा है... नर सेवा और नारायण सेवा....सेवा परमोधर्म यहा कहा गया है। और medical profession ऐसा है कि जिसके कार्य को ही सेवा माना गया है। वो पैसे लेकर के करे तो भी पैसे न लेकर के करे तो भी उस काम को सेवा माना गया है। बहुत कम लोग होते हैं जिनको जीवन में सेवा ही सेवा या अवसर मिलता है। आप वो बिरादरी के लोग हैं जिनका जीवन का हर कार्य सेवा माना जाएगा और जब जैसे मंदिर में पूजा करने वाले के लिए कि परमात्‍मा को पूजा करना व्‍यवसाय नहीं है, वो पुजारी की खुद की चेतना जगाने का कार्य होता है, वैसे ही सेवा परमोधर्म है, इस प्रकार से जो patient के प्रति भाव रखता है तो उसके जीवन में उस प्रकार के आनंद की अनुभूति होती है, वो आनंद की अनुभूति आपको भी मिलती रहेगी। मुझे विश्‍वास है कि आपके जीवन में कभी भी थकान महसूस नहीं होगी, कभी रूकावाट नहीं महसूस होगी। कभी यह नहीं लगेगा काश यह न होता तो अच्‍छा होता, जहां होंगे वहीं अच्‍छे की अनुभूति होगी और वही तो जीवन का आनंद होता है।

आप यहां से जाएंगे, समाज आपको देखेगा, सिर्फ patient ही आपको देखेगा ऐसा नहीं समाज भी देखेगा। समाज के कारण हम पहुंचे हैं, उस समाज के लिए हम कुछ न कुछ तो करेंगे। जी-जान से करेंगे, जी-भरकर करेंगे। अगर यह मन का भाव रहा तो हमारा जीवन सफल हो जाता है।

आज मैं इन सभी जो award winners है, जिन्‍होंने विशेष अंक प्राप्‍त किए है उनको भी हृदय से बधाई देता हूं और आज उर्तीण होकर के एक नये जीवन की शुरूआत कर रहे हैं, उनको भी मेरी बहुत-बहुत शुभकामना देता हूं। मुझे आज यहां आने का अवसर मिला, इसलिए मैं आप सबका बहुत आभारी हूं।

धन्‍यवाद।

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Economic Benefits for Middle Class
March 14, 2019

It is the middle class that contributes greatly to the country through their role as honest taxpayers. However, their contribution needs to be recognised and their tax burden eased. For this, the Modi government took a historic decision. That there is zero tax liability on a net taxable annual income of Rs. 5 lakh now, is a huge boost to the savings of the middle class. However, this is not a one-off move. The Modi government has consistently been taking steps to reduce the tax burden on the taxpayers. Here is how union budget has put more money into the hands of the middle class through the years...