संस्कृत ज्ञान से ही भारतीय सांस्कृतिक विरासत की
उज्जवल परंपरा उजागर होगी : मुख्यमंत्री
संस्कृत के प्रकांड पंडित वसंत अनंत गाडगिल का अभिवाद समारोह
डॉ. अम्बेडकर के जीवन आधारित संस्कृत महाकाव्य भीमायनम का विमोचन
गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज पूणे में कहा कि संस्कृत ज्ञान और भाषा से ही भारतीय संस्कृति की विरासत की उज्जवल परंपरा का प्रभाव विश्व के समक्ष उजागर होगा। संस्कृत भाषा को जन-जन की भाषा बनाने के लिए गुजरात सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की भूमिका भी मुख्यमंत्री ने रखी। पूणे की शारदा ज्ञानपीठ स्थापक संस्कृत के वेद प्रकांड पंडित वसंत अनंत गाडगिल की आयु 82 वर्ष है और 61 वर्ष तक लगातार वह संस्कृत भाषा साहित्य के सारस्वत संवद्र्घक रहे हैं। उनका अभिवादन पूणे के 82 जितने संस्कृत प्रेमी संस्थानों के तत्वावधान में श्री मोदी द्वारा किया गया। डॉ. प्रभाकर जोषी ने डॉ. अम्बेडकर के जीवन दर्शन का संस्कृत महाकाव्य भीमायनम का आलेखन किया है। जिसको पंडित गाडगिल जी ने शारदा ज्ञानपीठम् द्वारा प्रकाशित किया है, इसका विमोचन भी मुख्यमंत्री ने किया।संस्कृत के लिए पंडित गाडगिल के समग्र जीवन समर्पण की तपश्चर्या को शत्-शत् वंदन करते हुए श्री मोदी ने कहा कि वह गाडगिल के संस्कृत प्रेम को पहचानते हैं, जो संस्कृत के सपने देखते हैं। पंडित गाडगिल जी और गुजरात के के.का. शास्त्री जी जैसे संस्कृत मनीषियों के जीवन में से प्रेरणा लेने का स्वत: ही मन होता है। इसको निर्दिष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत का रास्ता ही अपनाने की प्रेरणा यह मनीषी देते हैं। गुजरात ने सोमनाथ में संस्कृत यूनिवर्सिटी स्थापित की है और संस्कृत भाषा के संवद्र्घन और समाज की स्वीकृति के लिए राज्य में एक लाख लोगों को संस्कृत में बातचीत-संभाषण का प्रशिक्षण देकर सक्षम बनाया है।
मुख्यमंत्री ने आजाद हिन्दुस्तान में संस्कृत भाषा संवद्र्घन-विकास की उदासीनता की मानसिक स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति की महान् धरोहर को समझने के लिए संस्कृत ज्ञान आवश्यक है। परन्तु हमारी गुलामीकाल की मन:स्थिति आज भी ऐसी है कि वैदिक गणित के प्रचार को सांप्रदायिक शर्म मान लिया जाता है। इस नकारात्मक स्थिति में बदलाव लाने का माहौल बनाकर संस्कृत लोकभोग्य बनाने के श्री मोदी ने सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा से भारतीय धरोहर की परंपरा के उज्जवल इतिहास का प्रभाव प्रस्थापित होता है। गुजरात ने मंदिर व्यवस्थापन के लिए पुजारी के प्रशिक्षण की पहल की है। संस्कृत के लिए नई दृष्टि समाज को मिलनी चाहिए।संस्कृत में डॉ. अम्बेडकर के जीवन काव्य के प्रकाशन ने आज की ऐसी भ्रामक मिथ को तोड़ा है जिसे एक ब्राह्मण लेखक प्रो. जोषी ने दलित डॉ. अम्बेडकर के जीवन चरित्र को लिखा है। डॉ. अम्बेडकर ने सामाजिक समरसता का जो दर्शन दिया है वह संस्कृति की धरोहर का आदर्श है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. विजय भाटकर ने कहा कि भारत को सुसंस्कृत और समर्थ बनाने के लिए श्री नरेन्द्रभाई मोदी जैसे नेतृत्व की अपेक्षा यह राष्ट्र रखता है।
पंडित वसंत अनंत गाडगिल ने अभिवादन का प्रतिभाव देते हुए कहा कि, संस्कृत भाषा से ही भारतीय संस्कार का आविर्भाव होता है। उन्होंने नरेन्द्र जीवन चरित्र का संस्कृत प्रकाशन करने की अभिलाषा व्यक्त की।
इस मौके पर डॉ. पतंगराव कदम, डॉ. गो. बं. देगलुरकर, सदानंद फडक़े, डॉ. शां.ब. मजमूदार, डॉ. विश्वनाथ, दा.कराड, डॉ. पीडी पाटिल, डॉ. दीपक तिलक, महापौर वैशाली बनकर, डॉ. विश्वजीत कदम, डॉ. राहुल कराड और पूणे शहर के 60 जितने विश्वविद्यालय के संचालक, स्थापक और वरिष्ठ नागरिक मौजूद थे।