प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि सूफी संतों की विचारधारा भारतीय संस्कृति का आंतरिक अंग है तथा इसने भारत में बहुलवादी, बहु-सांस्कृतिक समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। देश के विभिन्न भागों के 40 बरेलवी सूफी विद्वानों के शिष्टमंडल के साथ आज शाम मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि कट्टरपंथी ताकतें आज सूफी विचारधारा को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सूफी संतों और विद्वानों के लिए सोशल मीडिया सहित विभिन्न माध्यमों के जरिए इन ताकतों से निपटना बहुत आवश्यक है जिससे कट्टरपंथी विचारधारा भारत में जड़ें न जमा सके। प्रधानमंत्री ने कहा कि सूफी परंपरा जहां कहीं भी पनपी इसने बुराई को दूर रखा है।
प्रधानमंत्री ने भारत में मुसलमान समुदाय को केंद्र सरकार की कौशल विकास की स्कीमों और कार्यक्रमों से अधिकतम फायदा उठाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने आश्वासन दिया कि सदस्यों की ओर से उठाए गए वक्फ संपत्ति के मुद्दों पर विचार किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि सूफी संस्कृति और संगीत को प्रत्येक राज्य में उपयुक्त प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
इससे पहले प्रधानमंत्री के साथ बातचीत के दौरान शिष्टमंडल के सदस्यों ने बताया कि इस्लाम नफरत या कट्टरवाद नहीं सिखाता। उन्होंने इस बात पर चिंता प्रकट की कि कुछ ताकतें नहीं चाहती कि भारत के मुसलमान समुदाय के साथ प्रधानमंत्री के अच्छे रिश्ते हों। उन्होंने कहा कि अब तक वोट बैंक की विभाजनकारी राजनीति के परिणामस्वरूप मुसलमान समुदाय सरकार के साथ सिर्फ मध्यस्थों के जरिए ही बात करता रहा है लेकिन अब वे चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मुसलमानों सहित भारत की जनता के साथ सीधा संबंध स्थापित करें। उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि लोगों के विकास के लिए कार्य किया जाए जो जाति, समुदाय या धर्म पर विचार किए बिना किया जाना चाहिए।
शिष्टमंडल के सदस्यों ने कहा कि इस्लाम के नाम पर आतंकवाद का फैलाव दुनिया भर में शांति के लिए खतरा है तथा सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक विचारधारा के लिए जिहाद को प्रोत्साहन दे रही ताकतों को किनारे करने के लिए तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मुसलमान समुदाय को जागरूक बनाने की आवश्यकता है कि आईएसआईएस और अल कायदा जैसे गुट इस्लाम की राह का प्रतिनिधित्व नहीं करते।
सदस्यों ने भारत में सूफी विचारधारा और संस्कृति को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक सुझाव भी दिए। उन्होंने सुझाव दिया कि पर्यटन को प्रोत्साहन देने के लिए सूफी सर्किट बनाया जाए तथा भारत में सूफी मजारों और स्थलों के जीर्णोद्धार के लिए कदम उठाए जाएं।
शिष्टमंडल के सदस्यों में शामिल थे:
- हजरत सैयद मोहम्मद अशरफ किछोवछीवी, अध्यक्ष और संस्थापक, आल इंडिया उलेमा एंड मशैख बोर्ड (एआईयूएमबी)
- हजरत सैयद जलालुद्दीन अशरफ, चेयरमैन, मखदूम अशरफ मिशन, कोलकाता
- हजरत सैयद अहमद निजामी, सज्जादा नशीं, दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया, नई दिल्ली
- शैख अबूबकर अहमद मुसलियार, महासचिव, आल इंडिया मुस्लिम स्कोलर्स एसोसिएशन
- हजरत सैयद मेहंदी चिश्ती, दरगाह-ए-ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती, अजमेर शरीफ के पदाधिकारी
- जनाब नसार अहमद, शिक्षाविद