भारत माता की जय..! भारत माता की जय..!
आज सरदार बल्लभ भाई की पुण्य तिथि है। मैं कहूंगा, ''सरदार पटेल'', आप लोग बोलिए - ''अमर रहे...''
सरदार पटेल... अमर रहे..! सरदार पटेल... अमर रहे..!
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हम सबके मार्गदर्शक आदरणीय श्री राजनाथ सिंह जी, प्रदेश के अध्यक्ष श्रीमान तीरथ जी, इस प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्रीमान भुवनचंद्र जी, श्रीमान भगत सिंह जी, श्रीमान रमेश जी, मंच पर विराजमान पार्टी के सभी वरिष्ठ महानुभाव और विशाल संख्या में पधारे हुए इस देव भूमि के प्यारे भाईयों और बहनों..!
मैं इस देवभूमि को नमन करता हूं और यहां की पवित्रता को बरकरार रखने वाले, कोटि-कोटि जनों को प्रणाम करता हूं। भाईयों-बहनों, देहरादून रैली के लिए समय देने को मेरा मन नहीं करता था। मेरे मन में वो आपका आपदा का काल, वो पीडित लोग, वो संकट की छाया, छ: महीने होने को आए, लेकिन मेरी आंखों के सामने से ओझल नहीं हो पाता है..! मुझे सबसे ज्यादा पीड़ा इस बात की होती है कि राजनीति इतनी निष्ठुर हो सकती है, कि कोई अपनों के दुख-दर्द भी न बांट सकें, पीडितों के पास जाकर उनके आंसू न पोंछ सकें..!
भाईयों-बहनों, मैं उस दुख: की घड़ी में दौड़ा आया, लेकिन राजनीतिक निष्ठुरता ने मुझे यहां से विदा कर दिया था। वो कसक, वो दर्द, वो पीड़ा, आज भी मेरे दिल-दिमाग को झिझोंडती रहती है..! मुझे अभी भी चिंता होती है कि कठिन मौसम शुरू हो रहा है, ऐसे में बर्फ के बीच पीडित परिवार कैसे गुजारा करेंगे, कैसे जीवन बिताएंगे..! भाईयों-बहनों, हमारी आंखों का माया था, गुजरात मौत की चादर ओढ़कर सोया था लेकिन उस वक्त दुनिया के किसी कोने से भी किसी ने मदद का हाथ फैलाया, तो हमने तुंरत उसको गले लगाया कि आओ भाई, हम दुख में हैं, संकट में हैं, आओ, जो भी मदद कर सकते हो करो..! हमने सबसे मदद ली, उत्तराखंड ने भी हमारी मदद की, यहां तक कि पाकिस्तान ने भी मदद की थी और हमने मदद ली भी थी..! दुख और दर्द के समय राजनीति का साया पीडितों की पीड़ा को अगर बढ़ा दें तो मानवता चीख-चीखकर पुकारती है और हमसे जबाव मांगती है। इसी कारण, मन में हमेशा एक बोझ रहता है..!
भाईयों-बहनो, मेरा इस धरती से एक विशेष नाता भी रहा है। मैं यहां प्रभारी था, हिमालय के प्रति मुझे बचपन से लगाव भी रहा है। पहाड़ी लोगों की प्रमाणिकता, पवित्रता, निर्मलता और गंगा जैसा जीवन मुझे बचपन से छू जाता था। और प्रभारी होने के नाते मैं काफी समय आप सभी के बीच रहा और बहुत कुछ सीखा। इस धरती ने मुझे बहुत कुछ दिया है। ईश्वर हमें शक्ति दें और आप हमें आर्शीवाद दें ताकि आपने हमें जो दिया है, उसका कुछ अंश तो आपको लौटा सकूं..!
भाईयों-बहनों, सरकार दिल्ली में हो या देहरादून में, ये जनता से कटे हुए लोग हैं और मन से छटे हुए लोग हैं। मैं तो हैरान हूं कि दिल्ली और देहरादून की सरकार, जितनी शक्ति बाबा रामदेव के पीछे लगा रही है, अगर आधी शक्ति भी इन पीडि़तों की सेवा में लगा देती, तो इन पीडि़तों की ये दशा न होती..! मैं आज भी समझ नहीं पा रहा हूं कि कांग्रेस पार्टी की ये कौन सी राजनीतिक सोच है कि बाबा रामदेव उनको आंखों में चुभ रहे हैं..! वो लोगों को सांस लेने के लिए कह रहें है और कांग्रेस की सांस निकली जा रही है..! वो व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए जीवन खपाएं है और राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए भी जीवन खपाएं हैं, लेकिन कोई दिन ऐसा नहीं है कि उन पर नया केस न दर्ज किया गया हो..!
भाईयों-बहनों, आप मुझे बताइए, क्या ये लोकतंत्र है..? क्या ये व्यवहार उचित है..? उत्तराखंड में हमारे भुवन चंद्र जी ने सरकार चलाई है, भगत सिंह जी ने चलाई है, रमेश जी ने चलाई, क्या किसी कांग्रेसी को परेशान किया है..? क्या यहीं तौर-तरीके होते हैं..? क्या लोकतंत्र का यही हाथ होगा..? भाईयों-बहनों, जब किसी राज्य में इस प्रकार की गतिविधि होती है तो राज्य में आर्थिक लाभ होता है, चेतना आती है, लोग आते है, नई पीढ़ी आती है, राज्य का बहुत भला होता है, लेकिन ये लोग हर चीज को ताले लगाने में लगे है, ताकि उनकी दुकान चलती रहें।
भाईयों-बहनों, हम सब अटल बिहारी वाजपेई जी के ऋणी हैं कि उन्होने हमें उत्तराखंड दिया और ये भी सौभाग्य देखिए कि राजनाथ जी जब मुख्यमंत्री थे, उसी समय बाजपेई जी ने हमें उत्तराखंड दिया। उस समय जब उत्तराखंड बना तो राज्य कांग्रेस के हाथ में आया। लेकिन उसके बावजूद भी देखिए कि देशभक्ति क्या होती है, समाज भक्ति क्या होती है..! वाजपेई जी ने यह नहीं सोचा, कि अब यहां कांग्रेस की सरकार है, जो करेंगे करने दो, जो होता है वो होने दो..! उन्होने सोचा, उत्तराखंड भी हमारा है, और दस साल के लिए पैकेज दिया और यह नहीं देखा कि किसकी सरकार है। और इन्होने आकर क्या किया, दस साल में सब साफ कर दिया। हजारों-करोड़ों की लागत से कारखाने आ रहे थे, मेरे गुजरात से भी कईयों ने यहां आकर कारखाने लगाएं है, नौजवानों को रोजगार मिल रहा है लेकिन मैं हैरान हूं कि यूपीए सरकार ने आकर, आपको अटल जी ने जो सहुलियत दी थी, उसको भी छीन लिया।
भाईयों-बहनों, शासन में बैठे लोगों के लिए अपने-पराए नहीं होते हैं, सारे के सारे हमारे होते हैं..! लेकिन भाईयों-बहनों, हम बहुत सालों में यहां एक बात सुनते थे, जब भी यहां आते थे, कोई भी काम हो, कोई कार्यक्रम करना हो या यहां की मीटिंग करना हों, तो ये कहावत तो मेरे दिमाग में ठूंस-ठूंस कर भर दी गई थी, लोग बोलते थे कि मोदी जी, ये गुजरात नहीं है..! ऐसा मुझे कहते थे जब मैं यहां काम करता था। बोलते थे कि आप पहाड़ को नहीं जानते, यहां की जवानी और यहां का पानी, हमारे काम नहीं आता, ऐसा मुझे बारबार बोला जाता था। यहां की जवानी और यहां का पानी, पहाड़ के काम नहीं आता। अब वक्त बदल चुका है, अब विज्ञान, पानी को भी पहाड़ के काम में ला सकता है और जवानी, पहाड़ को खुशियों से भर सकती है, वक्त बदल चुका है। भाईयों-बहनों, इतना पानी पहाड़ों में हो और देश में अंधेरा हो, इसका कारण क्या..? जल-विद्युत परियोजनाएं, पानी को ऊर्जा में परिवर्तित कर सकती है और ऊर्जा न पहाड़ों की, लेकिन राष्ट्र की शक्ति बन सकती है और वो किया जा सकता है। लेकिन न इनको समय है, न करना है, न सोच है..! वो तो चाहते हैं कि लोग गरीब रहें, लोग ऐसे ही रहें ताकि उनकी सरकारें चलती रहें..!
भाईयों-बहनों, आज पहाड़ों के इन नौजवानों को इतना अच्छा मौसम और बढिया माहौल छोड़कर, शहरों की झुग्गी झोपड़ी में जाने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ता है, बूढ़े मां-बाप को छोड़कर नौजवान को क्यों जाना पड़ रहा है..? दुनिया के कई देश हैं जो सिर्फ टूरिज्म पर अपने देश को कहां से कहां ले जाते हैं..! भाईयों-बहनों, यह ऐसी भूमि है कि हिंदुस्तान के सवा सौ करोड़ नागरिक कभी न भी जिन्दगी में एक बार इस भूमि पर आना चाहते हैं, सपना देखते हैं..! हर नौजवान को लगता है कि अपने मां-बाप को हरिद्धार ले जाऊं, ऋषिकेष ले जाऊं, बद्रीनाथ ले जाऊं, गंगोत्री ले जाऊं, जमनोत्री ले जाऊं, हर एक का सपना होता है। आप कल्पना कर सकते है, मैं सिर्फ आर्थिक परिभाषा में बोल रहा हूं, उसका कोई गलत अर्थ न निकालें, अगर आर्थिक परिभाषा में कहूं तो सवा सौ करोड़ यात्रियों का मार्केट, उत्तराखंड का इंतजार कर रहा है। आप कल्पना कर सकते है कि कितना बड़ा अवसर आपके सामने है। क्यों यह कार्य नहीं होता, क्यों लोगों को उनके नसीब पर छोड़ दिया जाता है..? भाईयों-बहनों, पूरे विश्व में आज टूरिज्म उद्योग सबसे तेजी से विकास करने वाला उद्योग माना जाता है, 3 ट्रिलियन डॉलर के व्यापार की संभावनाएं टूरिजम में पड़ी हुई है। हिंदुस्तान के लोगों की आस्था है और दुनिया के लोग भी जो शांति की खोज में है, जो वैभव से ऊब चुके है, वे भी इस धरती की शरण में आने के लिए जगह ढूंढ रहे है। हम न सिर्फ हिंदुस्तान, बल्कि सारी दुनिया को उत्तराखंड के चरणों में लाकर खड़ा कर सकते हैं..!
भाईयों-बहनों, आप लोगों में से जो लोग विकास की अवधाराओं का अभ्यास करते है, मैं उनको आग्रह करता हूं। आप आज से तीस साल पहले के मक्का को याद कीजिए। बहुत गिने-चुने लोग आते थे, व्यवस्थाएं बहुत सामान्य थी, लेकिन पिछले 30-40 साल में, मक्का को उस रूप में खड़ा कर दिया गया कि आज दुनिया में सबसे ज्यादा यात्री किसी एक स्थान पर आते होगें, तो वो स्थान मक्का बन गया है। अरबों-खरबों के दौर का ढ़ेर वहां हो रहा है। हर हिंदुस्तानी के लिए, ये भूमि जितनी पवित्र है उस हिसाब से थोड़ी व्यवस्थाएं कर दी जाएं तो उत्तराखंड कहां से कहां पहुंच सकता है..! क्या हिंदुस्तान के हर राज्य को इस धरती से रेलवे से जोड़ना चाहिए या नहीं..? अगर केरल से सीधी ट्रेन यहां आती है, चेन्नई से सीधी ट्रेन यहां आती है, अहमदाबाद से आती है तो आप ही मुझे बताइए, क्या यहां यात्रियों की कमी रहेगी..? यहां कि आर्थिक सुविधाएं बढ़ेगी कि नहीं बढ़ेगी..? लेकिन इनको यह समझ नहीं आता है, इनको लगता है कि हिंदुस्तान के हर कोने से ट्रेन दिल्ली तो आनी चाहिए लेकिन देश का दिल उत्तराखंड में है, वहां भी तो आनी चाहिए..! थोड़ी सी सुविधाएं बढ़ाई जाएं और भारत के यात्री, कष्ट झेलकर यात्रा करने के स्वभाव के हैं, अगर उनकी चिंता की जाएं, अगर यहां के सार्वजनिक जीवन में उन आदर्शो को लाया जाएं तो कितना बड़ा परिणाम मिल सकता है..!
भाईयों–बहनों, हिंदुस्तान में औद्योगिक विकास के लिए एसईजेड की कल्पना की गई, व्यवस्था खड़ी की गई। एसईजेड यानि ‘स्पेशल ईकोनॉमिक जोन’, उसके बराबर हुआ करती है। मैं कहता हूं उत्तराखंड तो सदियों से एसईजेड है, और मेरी एसईजेड की परिभाषा है – ‘स्प्रीचुअल एनवॉयरमेंट जोन’, ये पूरा आध्यात्मिक पर्यावरण का जोन है। उसी पर ध्यान देकर, आध्यात्म की खोज में जो आते है, उनके लिए एक स्वर्ग जैसी भूमि बनाकर आकर्षित कर सकते हैं..!
भाईयों-बहनों, विश्व छोटा होता चला जा रहा है। मैं कहता हूं कि ‘टेररीज्म डिवाइड्स, टूरिज्म यूनाइट्स’..! एडवेंचर टूरिज्म के लिए कितना ज्यादा स्कोप है, क्या यहां हमारे पास एडवेंचर टूरिज्म के लिए स्कूल है..? क्या इन्हे बनाया नहीं जा सकता है..? जब पूरे हिंदुस्तान में समय परिवर्तन हो, तो नौजवानों को एडवेंचर टूरिज्म में लाने के लिए हर गांव में कैम्प नहीं लगाया जा सकता..? यहां की आबादी से तीन गुना लोग, तीन-तीन महीने के लिए एडवेंचर टूरिज्म के लिए आ सकते हैं..! क्या रोजी-रोटी के लिए बाहर जाना पड़ेगा..?
भाईयों-बहनों, जिस प्रकार से ये उत्तराखंड स्प्रीचुएल एनवॉयरमेंट जोन है, ऐसा ही एक और एसईजेड कैरेक्टर यहां है। ये भूमि ऐसी है जो देश को सुरक्षा के लिए ताकत देती है, यहां के हर परिवार में, हर गांव में देश के लिए बलि चढ़ने वाले सेनानियों की परम्परा है। सेना में जहां सीना तान करके गर्व से खड़े हों, ऐसे नौजवान इस धरती से आते है। लेकिन यहां मेरे उत्तराखंड में कुमांऊ के गढ़वाल के नौजवान सामान्य फौजी बनकर क्यों जिन्दगी गुजारें..? और ऐसा कब तक चलेगा..? मेरे गढ़वाल कुमाऊं के साहसिक नौजवान सेना में अफसर बन सकते है या नहीं..? वो अफसर के नाते जा सकते है या नहीं..? आज सेना में अफसरों की कमी है, कई लोगों की जगह खाली पड़ी हुई है, अगर ऐसी जगह पर, जहां के लोगों में वीरता का स्वभाव है, क्या यहां पर ऐसे अफसरों को तैयार करने वाली स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी नहीं बन सकती..? अगर यहीं के नौजवान, उसी स्कूल-कॉलेज से निकलकर, आर्मी, एयरफोर्स या नेवी में चला जाएं तो वह सीधा-सीधा अफसर बन सकता है या नहीं..? यहां के जीवन में कितना बदलाव आ सकता है। लेकिन दिल्ली में बैठी हुई इस सरकार को समझ नहीं आता है..! गुजरात के लोग यूनीफार्म वाली दुनिया में बहुत कम होते है, हमारे यहां के लोग पुलिस में भी ज्यादा नहीं जाते हैं, सेना में तो शायद ही कोई मिल जाए, लेकिन उसके बावजूद भी हमारी नई पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए, हमारे यहां 1600 कि.मी. समुद्री तट है, पड़ोस में पाकिस्तान है, रेगिस्तान है, हमें लगा कि हमें अपने पैरों पर तैयारी करनी चाहिए और हमने अलग रक्षा शक्ति यूनीवर्सिटी बनाई है और जो लोग देश की सेवा करना चाहते है, यूनीफार्म में रहना चाहते है, हम उनको दसवीं कक्षा के बाद उसी में एडमिशन देकर तैयार करने लगे है। जिस राज्य का स्वभाव नहीं है, अगर वहां यह किया जा सकता है तो उत्तराखंड की रगों में तो वीरता है, यहां की रगों में शौर्य है, यहां के लोग सेना में जाकर भारत मां की रक्षा करने के लिए अपना जीवन देने के लिए परम्परा से, सदियों से नई-नई ऊंचाईयों को सर करते रहे है। क्या उनके जीवन के लिए यह व्यवस्था नहीं की जा सकती है..?
भाईयों-बहनों, रामायण की कथा में जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो जाते हैं तो उनकी मूर्छा को दूर करने के लिए राम जी ने हनुमान जी को कहा, हिमालय जाकर जड़ी-बूटी ले आइए। हनुमान जी हिमालय आकर जड़ी-बूटी ले गए और दक्षिण में जाकर लक्ष्मण जी को ठीक किया। हिमालय जड़ी-बूटियों का भंडार है..! जड़ी-बूटियों का जहां इतना सारा भंडार है क्या वहां औषधों के निर्माण का काम नहीं किया जा सकता है..? क्या वहां रिसर्च इंस्टीट्यूट नहीं बनवाएं जा सकते..? हर्बल मेडीसीन में चाइना हमसे ज्यादा एक्सपोर्ट कर रहा है, इतना बड़ा हिमालय हमारे पास है, जहां जड़ी-बूटियों का अथाह भंडार हो, पारंपरिक ज्ञान हो, उसके बावजूद भी नौजवान बेकार घूम रहा हो, मेडीसीन बनती न हो, दुनिया के स्वार्थ के लिए मेडीसीन पहुंचाने का काम न होता हो, इससे बुरा और क्या हो सकता है..!
भाईयों-बहनों, पहाड़ों में माताएं-बहनें, परिवार को चलाने में सबसे ज्यादा योगदान देती है। किसी भी परिवार में चले जाइए, माताएं-बहनें कोई न कोई आर्थिक कार्य करती है। यह पहाड़ों की विशेषता है कि पहाड़ों के जीवन को चलाने में माताएं-बहनें बहुत बड़ी भूमिका अदा करती हैं। क्या हम अकेले उत्तराखंड की माताओं बहनों को स्किल डेवलेपमेंट के द्वारा हैंडी क्राफ्ट के क्षेत्र में, नई-नई वस्तुओं के निर्माण के क्षेत्र में, उनको प्रेरित करके, क्या हम उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को सुधार नहीं सकते हैं..? लेकिन ये दिल्ली में बैठे हुए लोगों के दिमाग में, जनता की भलाई की चिंता नहीं है। उनकी भलाई के लिए क्या करना है, किन-किन क्षेत्रों में जाएं, कैसे आगे बढ़ें, ये उनकी सोच नहीं है और इसी का यह नतीजा है..!
भाईयों-बहनों, नई चीजें, नई तरीके से सोचनी चाहिए..! मैं देख रहा हूं हिंदुस्तान भर से नौजवान हमारे गुजरात में रोजी-रोटी कमाने आते है, ईमानदारी से मेहनत करते है। हमने एक कम्पनी को कहा, कि मेरा एक सुझाव है कि आप पॉयलट प्रोजेक्ट करें। मैं कानून आदि बाद में देख लूंगा लेकिन आप इस प्रोजेक्ट को करें, जितने लोग बाहर से आकर आपके यहां काम करते है, वो दिन में कितनी देर, हफ्ते में कितनी देर काम करते है, उसके हिसाब से अंदाज लगाएं कि एक व्यक्ति एक महीने में कितना आउटपुट देता है और उसके हिसाब से आप उसे महीने भर का काम दे दें। फिर वो जितने समय में भी वह काम करें, उसे करने दो। अगर वह व्यक्ति साल भर का काम छ: महीने में कर देता है तो उसको तनख्वाह के साथ छ: महीने की छुट्टी दे दो, ताकि छ: महीने खेती के समय वह अपने गांव जाकर खेती करें, अपने मां-बाप के साथ रहे और परिवार को समय दें। इस तरह छ: महीने वह खेती में आर्थिक विकास करें और छ: महीने कारखाने में काम करें। भाईयों-बहनों, ऐसा प्रोजेक्ट एक जगह पर हुआ है और बेहद सफल रहा। सभी नौजवान बहुत खुश है, वह सिर्फ काम करने आते है तो चार घंटे की बजाय 8 से 12 घंटे तक काम करते है और छुट्टियां इक्ट्ठी करते रहते है, काम पूरा हो जाने के बाद, गांव में खेती करने आराम से चले जाते है, इस तरह वह घर और काम दोनों को संभाल लेते हैं..!
भाईयों-बहनों, हम अपने देश के नौजवानों के लिए, नई सोच के साथ, नई व्यवस्थाओं को विकसित करके काम क्यों नहीं कर सकते हैं..? इसीलिए, आज जब मैं आपके पास आया हूं तो मैं इसी बात को लेकर आया हूं कि हमारा यह दायित्व बनता है कि हम हाथ पर हाथ धरकर न बैठे रहें कि क्या करें, पहाड़ की जिन्दगी ही ऐसी है, भगवान ने यहीं पैदा किया, ऐसे ही गुजारा करना है... ऐसी सोच नहीं चलेगी। हमें जिन्दगियां बदलनी है, अपने पैरों पर खड़ा होना है। मित्रों, मैं मानता हूं कि परमात्मा ने जो आपको दिया है, इससे बढिया परिस्थितियां पलटने के लिए कुछ हो नहीं सकता है, बस नई आशा होनी चाहिए, नई सोच होनी चाहिए, नई उमंग होनी चाहिए, नए सपने होने चाहिए, नए संकल्प होने चाहिए। और मैं मानता हूं अगर हम इस विश्वास के साथ उत्तराखंड को आगे बढ़ाने का संकल्प करें तो हम बढ़ा सकते हैं..!
भाईयों-बहनों, कांग्रेस पार्टी का अहंकार सातवें आसमान पर है, उनको कोई परवाह ही नहीं है। आपने देखा होगा, कल कांग्रेस के एक नेता जी ने प्रेस कांफ्रेंस की और वह एक महान उपदेशक के नाते लोकपाल पर भाषण दे रहे थे। मैं देहरादून की इस पवित्र धरती और गंगा मैय्या के किनारे से उनसे सवाल पूछना चाहता हूं कि अगर आपको लोकपाल का इतना महत्व समझ आता है, भ्रष्टाचार की इतनी चिंता है, आप देश के नाम इतना बड़ा संदेश दे रहे है, तो उत्तराखंड में भुवनचंद्र खंडूरी जी के शासन में एक महत्वपूर्ण फैसले के दौरान लोकपाल का कानून बनाया गया था, जिसे अन्ना हजारे जी ने पढ़कर सराहा और भुवनचंद्र जी को बधाईयां दी थी। अगर लोकपाल आपको इतना ही प्यारा लगता है, भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने का एकमात्र सहारा समझ में आता है तो आपने और आपकी पार्टी ने उसे उत्तराखंड में क्यों नहीं लागू होने दिया था..?
भाईयों-बहनों, देश की जनता की आंख में धूल झोंकी जा रही है। अगर यही बात हमारे साथ होती है तो मीडिया के लोग जाने कहां-कहां से खोजबीन कर लाते कि उस राज्य के उस भाजपा नेता ने ऐसा किया था, अरे अब कोई तो इन्हे पूछो..!
भाईयों-बहनों, अभी हाल ही में पांच राज्यों चुनाव हुए है और हवा का रूख साफ नज़र आ रहा है। देश की जनता ने कांग्रेस मुक्त भारत की शुभ शुरूआत कर दी है। चार राज्यों ने पहल की है और आने वाले दिनों में जो चार राज्यों ने किया है, वह चारों ओर होने वाला है, ऐसा हवा के रूख में साफ दिखता है। मैं उत्तराखंड के लोगों का ध्यान एक और तरफ आकर्षित करना चाहता हूं, कि अटल बिहारी वाजपेयी जी ने तीन राज्यों को जन्म दिया। एक उत्तराखंड, दूसरा छत्तीसगढ़ और तीसरा झारखंड। समय की मांग है कि हिंदुस्तान के अर्थशास्त्री, पॉलिटिकल पंडित, इन 13 सालों में तीन राज्यों का हिसाब किताब देखें। उनकी तुलना और अध्ययन कर लें। भाईयों-बहनों, मैं कह सकता हूं कि छत्तीसगढ़ की जनता ने बड़ी समझदारी से काम लिया है और बार-बार भाजपा को चुनकर बैठाया। इस निर्णय से आज छत्तीसगढ़ भारत के समृद्ध राज्यों से बराबरी की तरफ आगे बढ़ रहा है। लेकिन झारखंड और उत्तराखंड पिछड़ गए, क्योंकि यहां की जनता ने बार-बार दल बदले, सरकारें बदली, नेता बदले और अस्थिरता ही अस्थिरता बनी रही और इसी कारण, उत्तराखंड को बहुत नुकसान हो रहा है..!
भाईयों-बहनों, अब प्रयोग बहुत कर लिए है, एक बार भरोसा कर लीजिए..! भारतीय जनता पार्टी पर विश्वास कर लीजिए। मैं आपको भरोसा देता हूं कि आपके सपने ही हमारा संकल्प बनेगें, आपकी इच्छाएं ही हमारी आदर्श होगी, आपकी आवश्यकताएं ही हमारी जिम्मेदारी होगी। हिंदुस्तान के हर व्यक्ति के दिल में जिस उत्तराखंड के लिए जगह है, उस उत्तराखंड को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाने के सपने को साकार करने में कंधे से कंधा मिलाकर हम आपके साथ जुडेंगे। भाईयों-बहनों, मैंने बहुत साल इस भूमि पर चुनाव और संगठन के लिए काम किया है, लेकिन ऐसा नजारा कभी नहीं देखा है..! मैं देख सकता हूं कि रोड़ के उस तरफ भी लोग खड़े हैं, जहां भी नजर घुमाइऐ, माथे ही माथे दिखते हैं। मैं उत्तराखंड की जनता का बहुत आभारी हूं कि पीड़ा की अवस्था के बावजूद आप सभी ने जो प्रेम दिया है, उस प्रेम को कभी भूलाया नहीं जा सकता..!