1- भारत सरकार और चीन जनवादी गणराज्य की सरकार (इसके आगे इनका उल्लेख दोनों पक्षों के रुप में होगा) ने स्वीकार किया है कि जलवायु परिवर्तन और उसके विपरीत प्रभाव मानवता के लिए समान चिंता का विषय हैं और 21वीं सदी की विशाल वैश्विक चुनौतियों में से एक हैं, जिसका समाधान स्थायी विकास के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से किया जाना चाहिए।
2- दोनों पक्षों ने वर्ष 2009 में भारत सरकार और चीन जनवादी गणराज्य की सरकार के बीच जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने में सहयोग पर हुए समझौते तथा वर्ष 2010 में भारत सरकार और चीन जनवादी गणराज्य की सरकार के बीच हरित प्रौद्योगिकियों संबंधी समझौता ज्ञापन पर हुए हस्ताक्षर का स्मरण किया। उन्होंने इस संयुक्त वक्तव्य और समझौता ज्ञापन साथ ही साथ समझौते के कार्यान्वयन के जरिये जलवायु परिवर्तन पर आपसी भागीदारी और बढ़ावा देने और अपने समग्र सामरिक सहयोग में इस भागीदारी की भूमिका बढ़ाने का फैसला किया।
3- दोनों पक्षों ने इस बात पर जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन संबंधी संधि के प्रारुप (यूएनएफसीसीसी) और उसके क्योटो प्रोटोकॉल जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सबसे उपयुक्त प्रारुप हैं। उन्होंने निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों को दोहराया, लेकिन उत्तरदायित्वों को अलग रखा और विकसित देशों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने तथा विकासशील देशों को वित्त, प्रौद्योगिकी एवं क्षमता निर्माण सहायता देने का आह्वान किया।
4- वर्ष 2015 में यूएनएफसीसीसी के अंतर्गत समग्र, संतुलित, समान एवं प्रभावी समझौते के लिए बहुपक्षीय विचार विमर्श को आगे बढ़ाने की दिशा में दोनों पक्ष संयुक्त रुप से और अन्य पक्षों के साथ मिलकर काम करेंगे ताकि यूएनएफसीसीसी का सम्पूर्ण,कारगर एवं स्थायी कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके। इस संदर्भ में, दोनों पक्षों ने फ्रांस के पेरिस में इस साल होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (पेरिस सम्मेलन) की सफलता के पूर्ण समर्थन व्यक्त किया।
5- दोनों पक्षों ने विकसित और विकासशील देशों के बीच भिन्न ऐतिहासिक दायित्वों, विकास की अवस्थाओं और राष्ट्रीय परिस्थितियों को दर्शाते हुए दोहराया कि वर्ष 2015 का समझौता पूर्णतया यूएनएफसीसीसी के सिद्धांतों, प्रावधानों और संरचना के अनुरुप, विशेषकर निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों के अनुरुप होगा, लेकिन उत्तरादायित्व और विशिष्ट क्षमताएं अलग रखा। वर्ष 2015 का समझौता कटौती, अनुकूलन, वित्त, तकनीकी विकास एवं हस्तांतरण, क्षमता निर्माण एवं कार्य की पारदर्शिता से निपटे तथा समग्र और संतुलित ढंग से समर्थन प्रदान करे।
6- दोनों पक्षों ने पूर्व-2020 महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देने और देशों के बीच आपसी विश्वास कायम करने के लिए बाली योजना के निष्कर्षों के समान महत्व और उनके तत्काल कार्यान्वयन पर जोर दिया। दोनों पक्षों ने विकसित देशों से पूर्व-2020 उर्त्सजन कटौती लक्ष्य बढ़ाने और विकासशील देशों को 2020 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमरीकी डॉलर प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करने का अनुरोध किया।
7- दो बड़े विकासशील देश होने के नाते चीन और भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए योजनाओं, नीतियों और कटौती एवं अनुकूलन के उपायों के द्वारा घरेलू स्तर पर महत्वाकांक्षी कार्रवाइयां कर रहे हैं जबकि उनके समक्ष सामाजिक और आर्थिक विकास तथा गरीबी मिटाने जैसी बड़ी चुनौतियां मौजूद हैं ....
8- भारत और चीन वर्ष 2015 के संदर्भ में अपनी अभीष्ट राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (आईएनडीसी) के लिए घरेलू तैयारियों में पूरी तरह संलग्न हैं और वे जितना जल्द से जल्द हो सकेगा, पेरिस सम्मेलन से पहले अपने आईएनडीसी से अवगत करा देंगे।
9- दोनों पक्षों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन पर उनकी आपसी भागीदारी परस्पर लाभदायक है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में योगदान देती है। इस संदर्भ में दोनों पक्षों ने घरेलू जलवायु नीतियों और बहुपक्षीय वार्तालाप पर उच्च स्तरीय आपसी संवाद बढ़ाने तथा स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, ऊर्जा दक्षता, नवीकरणीय ऊर्जा, इलैक्ट्रॉनिक वाहनों सहित स्थायी परिवहन, अल्प-कार्बन शहरीकरण और अनुकूलन सहित स्थायी व्यवहारिक आपसी सहयोग को सशक्त बनाने का फैसला किया है।
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