मंच पर बिराजमान सभी महानुभावों और गुजरात के गाँव गाँव से पधारे हुए सभी सरपंचश्रीओं, आप सभी का अंत:करण से स्वागत करता हूँ और आपके नेतृत्व में आपके गाँव का चौतरफा विकास हो रहा है इसके लिए मैं आपका बहुत बहुत अभिनंदन करता हूँ। पंचायती राज व्यवस्था आजाद भारत का एक महत्वपूर्ण कदम रहा है। आज से पचास साल पूर्व उस समय के नेताओं ने दूरदर्शिता के साथ सत्ता के विकेन्द्रीकरण के लिए इस पंचायती राज व्यवस्था के मॉडल को विकसित किया था। इस प्रकार सदियों से भारत में ग्राम राज्य की कल्पना हमारी जनमघूँटी में थी। हमारे यहाँ गाँव आर्थिक-सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर हो ऐसा सदियों से आयोजन रहा है। हमारी परंपरागत प्रकृति के अनुरूप, अनुकूल ऐसी इस पंचायती राज व्यवस्था ने लोकशाही को मजबूत बनाने में, सत्ता के विकेन्द्रीकरण में और व्यापक रूप से जनभागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इसीलिए गुजरात सरकार ने पंचायती राज की स्वर्ण जयंती मनाना निर्धारित किया। पचास साल पहले इसकी शुरूआत हुई, कई उतार-चढ़ाव आए, नई व्यवस्था थी, विकसित होना था, सीखते भी गए, सुधारते भी गए और आज समग्र देश में सत्ता के विकेन्द्रीकरण की अपनी इस बात को स्वीकृति मिली है।
अभी हमने एक कार्यक्रम किया, तालुका पंचायत की प्रत्येक सीट में ‘अविरत विकास यात्रा’ का कार्यक्रम किया और इस कार्यक्रम में हमारे कोई ना कोई मंत्री आए, लगभग 4100 से ज्यादा कार्यक्रम किए। इस राज्य में पिछले पचास सालों में पंचायती राज व्यवस्था में जिन्होंने भी कोई ना कोई पद प्राप्त किया था, कोई तालुका पंचायत के प्रमुख रहे होंगे, कोई जिला पंचायत के प्रमुख रहे होंगे, कोई गाँव के सरपंच रहे होंगे, बीते पचास सालों में जिन जिन लोगों ने कोई ना कोई जिम्मेदारी निभाई थी, ऐसे सभी भूतपूर्व पदाधिकारियों का सम्मान करने का राज्य सरकार ने एतिहासिक फैसला लिया। भारतीय जनता पार्टी या जनसंघ की राजनीति की यदि बात करें तो पंचायती राज व्यवस्था में भूतकाल में भाजपा का नामोनिशान नहीं था, कोई पहचान तक नहीं थी, जनसंघ तो था ही नहीं। पूरा कार्यकाल, तकरीबन 40 साल एकमात्र कांग्रेस पार्टी की विचारधारा से प्रेरित महानुभावों के हाथ में था। पर हमारे मन पंचायत राज का महत्व था, पंचायत राज मजबूत बने इसका महत्व था। और हमारी भूमिका हमेशा से यही रही है कि इस राज्य का विकास किसी एक व्यक्ति के कारण नहीं है, इस राज्य के विकास में पिछले 50 सालों में हर एक का कोई ना कोई योगदान रहा है, इसके कारण है। इस राज्य का विकास सभी के योगदान की वजह से है। इस मूल मँत्र को लेकर हमने इन 50 सालों के दौरान जो भी पदाधिकारी हो गए उनका गौरवपूर्ण सम्मान किया और मुझे यह कहते हुए आनंद हो रहा है कि बहुत ज्यादा बीमार हो उसे छोड़ कर एक भी व्यक्ति कार्यक्रम में अनुपस्थित नहीं था। तकरीबन 89,000 पदाधिकारियों का गौरव करने का, सम्मान करने का सौभाग्य इस सरकार को प्राप्त हुआ। और उन्हें भी, किसी को 30 साल के बाद याद किया होगा, किसी को 25 साल के बाद याद किया होगा, तो उनके लिए भी वह गौरव का पल था, एक आनंद का पल था।भाइयों और बहनों, आज ये पंचायती राज व्यवस्था के 50 साल के अवसर पर फिर से एक बार आपके साथ मिलने का कार्यक्रम किया है। आपने देखा होगा कि पिछले पांच साल में कोई साल ऐसा नहीं गया है कि कम से कम दो बार सरपंचों को याद नहीं किया हो। जिस भवन में आप बैठे हो, उस भवन के निर्माण में भी हर एक गाँव का योगदान है, सरपंचों के नेतृत्व में इन गाँवों ने योगदान दिया है। ये संपत्ति आपकी है, इसके मालिक आप हो, और इसीलिए सरपंचों के लिए इस महात्मा मंदिर में आना अपने ही घर आने जैसा, पंचायत के ही किसी काम के लिए आने जैसा सहज लगने लगा है, यह कोई छोटी-मोटी सिद्धि नहीं है। नहीं तो कई बार राज्य, राज्य की जगह चलता है और गाँव, गाँव की जगह चलता है। यह राज्य गाँव को चलाता है और राज्य और गाँव दोनों मिल कर गाँव की भलाई के बारे में सोचते हैं, ऐसा अन्योन्य भक्तिभाव वाला एक नया वातावरण पैदा करने में हम सफल हुए हैं। यहाँ पर तीन सरपंचों को सुनने का मौका मिला, जिसमें पुंसरी गाँव के बारे में तो हिन्दुस्तान के अंग्रेजी अखबारों ने ढेर सारा लिखा है और भारत में एक उत्तम गाँव के रूप में, आधुनिक गाँव के रूप में लगभग इस देश के सभी अंग्रेजी अखबारों ने अपनी मुहर लगाई है। लेकिन ये तीन गाँव ही नहीं है। आनंदपुरा गाँव के भगवतीबहन को मैं सुन रहा था, कितने सारे पैरामीटर में सौ में से सौ प्रतिशत... मैं सरपंचों से विनती करना चाहता हूँ कि हमारे मंत्रियों की एक भी बात आपको माननी हो तो मानना और नहीं मानना हो तो नहीं मानना, इस मुख्यमंत्री की एक भी बात माननी हो तो मानना और नहीं माननी हो तो नहीं मानना, लेकिन कम से कम इन तीन सरपंचों ने जो कर दिखाया है, उनकी बात को मान कर अपने गाँव में हम करके दिखाएं। ये तीन सरपंचो के भाषण के बाद मुझे कुछ कहने को रहता नहीं है, अपने इतने उत्तम अनुभवों का हमारे सामने वर्णन किया है, उत्तम प्रदर्शन करके दिखाया है।
भाइयों और बहनों, समरस गाँव का लाभ अब पूरा गुजरात देख रहा है। सभी को लगता है कि गाँव का सौहार्दपूर्ण वातावरण, प्रेमपूर्ण वतावरण और सभी मिलजुल कर गाँव के विकास की बात करें, यह वातावरण खुद में एक प्रेरणा बन गया है। ‘तीर्थ ग्राम’ - पांच वर्ष तक कोई कोर्ट=कचहरी नहीं हुई हो गाँव में, ऐसे गाँव को ‘तीर्थ ग्राम’..! कुछ सरपंचों ने मेरे पास आकर दर्खास्त की है कि साहब, हमारा गाँव तो इतने प्रेम के साथ जीता है, पर हमारा ‘तीर्थ ग्राम’ में नंबर नहीं आता। मैंने कहा इसका कारण क्या..? तो कहते हैं कि हमारे गाँव के पास से हाईवे जाता है और हाइवे पर कोई एक्सीडेंट होता है तो एफ.आई.आर. हमारे गाँव के पुलिस स्टेशन में लिखी जाती है और इसके कारण केस बना हो ऐसा होता है और परिणामस्वरूप हमें ‘तीर्थ ग्राम’ से बाहर रखा जाता है। सरपंचश्रीओं का यह आवेदन मैं स्वीकार करता हूँ और ऐसे किसी कारण से कोई गाँव ‘तीर्थ ग्राम’ की कैटेगरी में आने से नहीं रहेगा, क्योंकि पाँच साल तक गाँव में कोई टंटा-फसाद नहीं हुआ हो, कोई झगड़ा नहीं हुआ हो, गाँव मिल-जुल कर रहे, इस कारण से कोई कोर्ट-कचहरी नहीं हुई हो, तो ये गाँव की सबसे बड़ी घटना है और ऐसे गाँवों का ‘तीर्थ ग्राम’ के रूप में हम स्वागत करेंगे, अपना लिया जाएगा। रोड एक्सीडेंट के कारण एफ.आई.आर. हुई हो, तो उसका नुकसान उस गाँव को ना हो इसकी सूचना मैं डिपार्टमेंट को भी देता हूँ और भूतकाल में भी ऐसी भूलों के कारण रह गए हों तो इनको पश्चाद्दर्शी असर से लाभ देना चाहिए, ऐसा मेरा मत है। क्योंकि इनके गाँव के पास से रोड गुजरती है तो इसमें उनका कोई कसूर नहीं है, भाई और रोड पर कोई एक्सीडेंट हो जाए, और इसके लिए कोई केस बनता है तो इसके कारण वह गाँव ‘तीर्थ ग्राम’ बनने से रह जाता हो तो अपने नियम को हम सुधारेंगे और ऐसे गाँवों को भी ‘तीर्थ ग्राम’ के दर्जे में लिए जाएंगे और ‘तीर्थ ग्राम’ के रूप में इनको जो कोई भी मिलने वाली रकम होगी, उस ईनाम की रकम पश्चाद्दर्शी असर से प्रदान की जाएगी ऐसी सरपंचों की इस मांग को मैं स्वीकार करता हूँ।
भाईयों और बहनों, ज्योतिग्राम योजना जब आई तो लोगों को लगता था कि वाह, ये शाम को खाने के वक्त बिजली नहीं मिलती थी, ये मोदी साहब ने अच्छा काम किया, कम से कम शाम को खाना खाते समय बिजली तो मिलने लगी..! शुरूआत में लोगों के भाव इतने ही थे। पर आज मुझे कहते हुए गर्व महसूस होता है कि गाँव में 24 घंटे बिजली आने के कारण समग्र गाँव के जीवन में, क्वालिटी ऑफ लाइफ में एक बड़ा बदलाव आया है। इतना ही नहीं, गाँव के अंदर छोटा-मोटा मूल्यवृद्धि वाला प्रोसेसिंग करना हो तो लोग अब गाँव में ही करने लगे हैं। यहाँ हमारे गांधीनगर जिले का ईसनपुर के पास का एक गाँव हरी मिर्च की खेती करता है। मिर्च ज्यादा पकती है तो मिर्ची का भाव घट जाता है, मिर्ची कम पकती है तो किसानों को पूरे पैसे नहीं मिलते, इसलिए दोनों तरफ से किसानों को ही मार पड़ती है। एक बार बहुत ज्यादा मिर्ची हुई और पूरे गाँव की सभी मिर्च बेचो तो गाँव की आय तीन लाख रुपये जितनी होती थी। अब तीन लाख रुपये में पूरा गाँव एक साल तक गुजरा कैसे करे? उस गाँव के दो-तीन अग्रणियों ने विचार किया कि भाई अब तो ज्योतिग्राम आया है, हम कुछ सोच सकते हैं। ऐसा करो, हरी मिर्च को बेचना नहीं है, इनको लाल करते हैं। लाल करके उनका पाउडर बनाएं, चक्की लाएं, ज्योतिग्राम आया है तो चक्की लाकर मिर्ची पीसेंगे और पैकेट में पैक करके मिर्ची बेचनी चालू करते हैं। और लाल मिर्च बेचने के कारण जिस हरी मिर्च का तीन लाख मिलता था, उस गाँव ने उतनी ही लाल मिर्च को बेचा, 18 लाख रूपये की आमदनी हुई..! तब गाँव को समझ आया कि ज्योतिग्राम योजना के आने से हमारे गाँव के विकास की छोटी-छोटी ऐसी कई प्रक्रियाओं... अब कितने सारे लोग सूरत में झोपड़पट्टी में जीते थे और हीरे घिसते थे। अब हीरे की मशीन ही गाँव में ले गए। तो बहन भी जब टाइम मिलता है तो हीरा घिसती है, भाई भी हीरा घिसता है, मां भी हीरा घिसती है और हर हफ्ते इनकी छोटी-छोटी पुडिय़ा बना कर के सूरत जाकर दे आते हैं और 25-50 हजार रुपये मजदूरी के ले आते हैं। ज्योतिग्राम आने के कारण एक प्रकार से उद्योगों का भी विकेन्द्रीकरण हुआ। विभिन्न आद्यौगिक प्रवृतियों का गाँव में विकास हुआ। आज हिन्दुस्तान में, आपको आश्चर्य होगा, अभी जब 19 राज्यों में अंधेरा हो गया था, 60 करोड लोग अंधेरे में 48 घंटे तक अटक गए थे, तब पूरी दुनिया में गुजरात की ज्योतिग्राम योजना के चर्चे हो रहे थे। एक मात्र गुजरात था जो जगमगा रहा था। ऐसे हम पिछले पाँच साल से गला फाड़-फाड़ कर ज्योतिग्राम-ज्योतिग्राम कह रहे थे, गुजरात में 24 घंटा बिजली है ये बात कर रहे थे, तो किसी के गले नहीं उतरती थी, लेकिन जब पूरे देश में अंधकार हुआ तब अपना उजाला दिखा..! पूरे देश को पता चला, पूरी दुनिया को पता चला।
भाईयों और बहनों, इसका दूसरा बड़ा लाभ मिला है वह शिक्षा में मिला है। मुझे याद है, एक बार हमारी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ मीटिंग थी। एक राज्य का जो रिपोर्टिंग था उसमें केसों की पेन्डेंसी के कारणों में एक कारण ऐसा दिया गया कि भाई, हमारे यहाँ कोर्ट के मकान ऐसे हैं कि अंदर सूरज की रोशनी नहीं होती है और हफ्ते में चार-छह घंटे के लिए बिजली उपलब्ध होती है। इतने समय में जितने केस चल सकते हैं, चलाते हैं। बाकी समय में अंधेरे के कारण केस चल नहीं सकते और ये हमारी मजबूरी है। एक राज्य ने इस इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में सुप्रीम कोर्ट के जज की हाजिरी में हमारी मीटिंग में की हुई यह बात है। अपने यहाँ गुजरात में 24 घंटे बिजली होने के कारण स्कूलों में कम्प्यूटर चलने लगे, ब्राडबैंड कनेक्टिविटी के कारण इंटरनेट चालू हो गया, हम लांग डिस्टेन्स एज्यूकेशन देने लगे, जो अच्छी से अच्छी शिक्षा शहर के बच्चों को मिलती है वही लांग डिस्टेन्स एज्यूकेशन सैटेलाइट के जरिए हम गाँवों में भी देने लगे हैं। एक प्रकार से जीवन में बदलाव आया, परिवर्तन आया और इस परिवर्तन के मूल में ये छोटी-मोटी विकास की व्यवस्थाएं हैं।
हमने निर्मल गाँव किया। आज भी दो बातें मुझे पूरी करनी है भाइयों, और सभी सरपंचों के पास से मुझे इसका आश्वासन चाहिए, आश्वासन दोगे, भाईयों..? जरा जोर से बोलो, दूसरे हॉल में बैठे हैं वे भी बोलें, क्योंकि आज इस महात्मा मंदिर के तीन ऐसे बड़े हॉल और एक छोटा आधा, ऐसे साढ़े-तीन हॉल में इतनी भीड़ है। मैं सभी में जाकर राम-राम करता हुआ मंच पर आया हूँ। सभी हॉल में जाकर आया हूँ, सभी सरपंचों को मिलकर आया हूँ। अब हमें तय करना है, हमारे गाँव में कोई घर ऐसा नहीं हो जिसमें शौचालय ना हो, अब ऐसा नहीं चल सकता। हमारी बहन-बेटीयों को खुले में प्राकृतिक हाजत के लिए जाना पड़े, ये हमारे गुजरात को शोभा नहीं देता। इस काम के लिए सरकार पैसा देती है, पर गाँव में थोड़ा करवा लेना पड़े। सरपंच तय करे, क्योंकि निर्मल गाँव की पहली शर्त ही यह है कि हमारे गाँव में हर एक घर में शौचालय होना चाहिए। मुझे यह सपना पूरा करना है और आने वाले दिनों में इस काम को सम्पन्न करना है। ये काम मैं तभी सफलतापूर्वक पूरा कर सकता हूँ यदि मुझे मेरे 18,000 गाँवों का सहयोग हो, मेरे 14,000 सरपंचों का मुझे समर्थन हो तो ही संभव हो सकता है और इसके लिए आपको मुझे आज वचन देना है कि आपके गाँव में अब किसी बहन-बेटी को कुदरती हाजत के लिए खुले में जाना नहीं पड़ेगा, घरों में शौचालय का काम हम पूरा करेंगे। और सरपंचों मेरे शब्द लिख कर रखो, मैं एडवांस में पैसा देने को तैयार हूँ।
दूसरा एक काम मुझे करना है। अभी हमने बहुत बड़े पैमाने पर घर देने का काम किया। 40 साल में 10 लाख घर बने थे। उसमें भी खेत मजदूरों के घर तो ऐसे बने थे कि बकरी बंधी हो तो बकरी दीवार के साथ घर तोड़ कर बाहर निकल जाती है, बकरी दीवार तोड़ दे, ऐसे पराक्रम किए है़ं..! इसलिए इस समय मैंने तय किया कि खेत मजदूरों के मौजूदा घरों को भी नए सिरे से पक्के बनाए जाएंगे। हजारों खेत मजदूरों के मकान हम नए सिरे से बनाने वाले हैं। पर भाइयों-बहनों, 10 लाख मकान 40 साल में बने थे, हमने बीते 10 सालों में 16 लाख मकान बनाए और ये एक महिने में 6 लाख मकान बनाने के खातिर पहले किश्त के 21,000 रूपये का चेक इनके खाते में जमा करवा दिए हैं, यानि कुल 22 लाख मकान। 40 साल में 10 लाख और 10 साल में 22 लाख मकान..! हमारी काम करने की गति कितनी तेज है इसका अंदाजा लगा लो। हालांकि अभी भी गाँव में दो-पाँच, दो-पाँच घर ऐसे हैं, जो घर होने के कारण सरकार की व्याख्या में नहीं आते हैं। क्योंकि वे बेघर नहीं हैं, बेघर होते तो सरकार इनकी मदद करे, सरकार के पैसे से इनका घर बन जाए। पर जिनका कच्चा, टूटा-फूटा, कंगाल घर हो तो दफ्तर में इसका रिकार्ड ही नहीं होता, इसका क्या..? भाईयों-बहनों, सरपंचश्रीओं, मेरी एक विनती स्वीकार करो। आप आपके गाँव में ऐसे कच्चे घर हों, इनका फोटो निकाल लो और जिनका घर हो, जो उस घर में रहता हो, उसका भी फोटो खींच लो और तलाटी या ग्राम-सेवक के साथ मिलकर इसकी लिस्ट बना लो कि गाँव में पाँच घर कच्चे हैं या तीन घर कच्चे हैं, अभी इस घर में कौन रह रहा है, कितने सालों से रह रहा है, ये सब आप तैयार कर दो। लाखों घर हो तो लाखों, पर मुझे इन सभी को पक्के मकान करके देने हैं। और ये संभव है, हो सकता है, सरपंच थोड़ा इनिशिएटिव लें। अब हमारे गाँव में कच्चे घर क्यों हो, भाई? जिसके पास कुछ नहीं था उसे घर मिल गया, तो कच्चा घर गाँव में नहीं होना चाहिए, पक्का घर उसे मिलना चाहिए। 25 लाख से ज्यादा घर... और 2011 का सेन्सस और दूसरा 2012 का सोश्यो-इकॉनोमिक सेन्सस जो हुआ है, इसके आधार पर आंकड़ों को लेकर मैं इस काम को परिपूर्ण करना चाहता हूँ, लेकिन ये काम सच्चा और अच्छा करने के लिए मुझे सरपंचश्रीओं की मदद चाहिए।
दूसरा एक ‘मिशन बलम् सुखम्’, यह ‘मिशन बलम् सुखम्’ जो है इसकी आज शुरूआत की है। हमारे गाँव में पाँच या दस बच्चे कुपोषण से पीडि़त हों, ज्यादा बच्चे कुपोषण से पीडि़त हों, तो उसके लिए आंगनवाड़ी बहनों को ट्रेनिंग दी है, आशा वर्करों को ट्रेनिंग दी है, और इस प्रकार की और अच्छी फिल्में बना कर के गाँव-गाँव में लोकशिक्षा का अभियान चलाने वाले हैं, छात्राओं को कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में सहयोगी बनाने वाले है, बारहवीं कक्षा से ज्यादा पढ़ी लड़कियों को इससे जोड़ने वाले हैं। दूसरा, दादीमाँओं को जोड़ने वाले हैं, क्योंकि घर के अंदर ज्यादातर दादीमाँ का रोल बहुत बड़ा होता है। दादीमाँ कई बार ऐसा मानती हैं कि बच्चा छोटा है इसे ये खिला दो, वो खिला दो और आखिरकार उसके स्वास्थ्य की जो चिंता करनी चाहिए वो नहीं होती है, इसलिए ऐसा भी तय किया है कि दादीमाँओं के भी क्लास लें। और ये जो नई ब्याहता बहुएं हैं, जिन्हें बच्चों को पालने का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं होता है, यदि दादीमाँ घर में हो तो मदद कर सकती है और उसे समझा सकती है। तो एक तरह से सामाजिक क्रांति के लिए एक बड़ा प्रयास शुरू करने का तय किया है और ‘बलम् सुखम्’ के द्वारा आर्थिक मदद करके भी प्रति बालक 40 रूपया जितनी रकम खर्च कर के उन छोटे-छोटे बच्चों को कुपोषण के सामने टिकने के लिए, लड़ने के लिए, कुपोषण से मुक्त होने के लिए जो जो आवश्यकता हो उसकी पूर्ति हो सके और तकरीबन तीन एक हजार की बस्ती का गाँव हो, और कुपोषण वाले बच्चों की संख्या यदि ज्यादा हो तो लगभग एक-एक, दो-दो लाख रुपया प्रत्येक गाँव को इस ‘मिशन बलम् सुखम्’ के अंतर्गत मिल सकता है और चार प्रकार के स्तर बनाएं हैं। एक तो ऐसी व्यवस्था की है कि कोई बच्चा अति कुपोषित हो तो उसे सरकारी व्यवस्था में ले जाना, पन्द्रह दिन पूरी तरह से जिस तरह हॉस्पिटल में रखते हैं उस तरह से इस बालक में फिर चेतना लाने के लिए जो कोई प्रयास करना पड़े, इसके लिए स्पेशल ट्रैन्ड लोग रखे जाएंगे, पर गुजरात में से कुपोषण से मुक्ति के लिए आने वाले दिनों में मुझे एक अभियान चलाना है। और इसके लिए जागृति बड़ी बात है, इसमें रुपया बड़ी बात नहीं है, जागृति ही बड़ा काम है। क्योंकि कई बार बिना हाथ धोए खाना खाने के कारण भी कई बार यह महामारी आ सकती है। अगर बच्चे को तीन दिनों तक दस्त हो जाए तो आपने छह महीने लगाएं हों उसका वजन बढ़ाने में, और ऐसे हँसता खेलता किया हो, लेकिन तीन दिनों में बिल्कुल ढीला-ढाला हो जाता है। छोटी-छोटी बातें हैं, इन छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देने के बारे में हमने सोचा है और इसमें आप लोगों का सहयोग चाहिए।
दूसरी एक बात, सरपंचश्रीओं का काम अब बढ़ता जा रहा है। पहले तो सरपंच मतलब गाँव का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति, पाँच वर्ष में कभी एकाध लाख रूपया आए तो आए, गाँव जैसा हो वैसा..! आज तो सरकारी अधिकारियों का काफिला आता रहता है, गाँवों में आपने देखा, बैंक के अंदर 50-50, 60-60 लाख रूपये पड़े होते हैं, ये सरपंच बता रहे थे..! अभी मुझे एक सरपंच मिले, मुझे कहा कि हमें इनाम के तौर पर जितने पैसे मिले हैं, वे सभी हमने बैंक में फिक्स डिपोजिट कर दिए हैं, और उसके ब्याज में से सफाई का कान्ट्रेक्ट दे दिया है। पूरे गाँव की सफाई, जैसे राष्ट्रपति भवन की सफाई बाहर से करवाते हैं, ऐेसे ही ये लोग गाँव की पूरी सफाई बाहर से करवाते हैं..! आप सोचिए कि यदि उत्साह और उमंग हो तो किस तरह से काम हो सकता है इसका ये जीता जागता उदाहरण है। और इस स्थिति को देखते हुए सरपंचश्रीओं के तहत भी कुछ खर्च का प्रावधान करने की जरूरत लगती है। सरपंचों को भी कई बार खुद की जेब से खर्च करने पड़ते हैं, मेहमान आते हैं तो प्रबंध करना पड़ता है, उनके पास कोइ व्यवस्था नहीं होती है और इसलिए सरकार ने वार्षिक 10,000 रूपए सरपंचों के हाथों में देने का निर्णय लिया है। ये राशि सरपंच अपने स्वविवेक से खर्च कर सकते हैं और गाँव के विकास में सरपंच को कोई मुश्किल ना हो इस पर ध्यान देने का हमारा पूरा प्रयास रहेगा। आप आज इस सरपंच सम्मेलन में आए, एक नए विश्वास के साथ ग्रामीण विकास के सपने को लेकर हम आगे बढ़ें।
भाइयों और बहनों, बदकिस्मती ऐसी है कि अभी कोई भी कार्यक्रम करो, कुछ लोग इसमें चुनाव को ही देखते हैं। यह बारह महीने में मैं तीसरी बार सरपंचों से मिल रहा हूँ, भाई। और यदि चुनाव ही ध्यान में होता तो मुझे इन छोटे-छोटे बच्चों के लिए ‘बलम् सुखम्’ कार्यक्रम करने की जल्दी नहीं होती, ये कोई वोट देने जाने वाले नहीं हैं। इन छोटे-छोटे बच्चों के आरोग्य की चिंता इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मुझे गुजरात के आने वाले कल कि चिंता है। भाईयो-बहनों, हमारी हर बात को चुनावी तराजू में तोलने की आदत समाज को बहुत नुकसान करती है। अरे, चुनाव तो एक बायप्रोडक्ट है। अच्छा काम जिसने किया है उसे जनता अब अच्छी तरह पहचानती है। प्रजा समझती है कि क्या सही है और क्या गलत, और उसीके आधार पर जनता अपना निर्णय लेती है। और इसलिए आने वाले दिनों में कैसे भी उत्तेजना हो, हमें अपना काम शांत चित्त से, सामंजस्यपूर्ण वातावरण में, एकता के वातावरण में, कहीं भी कोई तनाव पैदा ना हो इस तरीके से जैसे बीते दस सालों में विकास की यात्रा को आगे बढ़ाई है, ऐसे ही बढ़ाते रहें।
भाइयों और बहनों, यहाँ पर मुझे इस बात के लिए अभिनंदन दिए गए कि 4000 दिनों तक अखंड रूप में, अनवरत रूप से मुख्यमंत्री पद पर कार्य करने का मुझे मौका मिला। गुजरात में पहले कभी भी इतने लंबे समय तक राजनैतिक स्थिरता नहीं रही है। दो साल, ढाई साल होते ही सब कुछ हिलने लगे..! लेकिन राजकीय स्थिरता के कारण नीतियों के अंदर लगातार हिम्मत भरे निर्णय करने की एक ताकत आई, सरकारी तंत्र को पूरी तरह से लोग उन्मुख शासन बनाने में सफलता प्राप्त हुई और इसके परिणामस्वरूप... जिनको देखना ही नहीं है उनके लिए हमें समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है, जिनको सुनना ही नहीं है उनके कान में ड्रिलिंग करके कुछ सुनाने के लिए हमें मेहनत करने की जरूरत नहीं है, जिनको देखना है उनको आसानी से विकास दिखता है। ‘गुजरात मतलब विकास, विकास मतलब गुजरात’, ये पूरे विश्व में एक स्वीकृत बात बन गई है। पर इसका यश किसी नरेन्द्र मोदी को नहीं जाता है। ये 4000 दिनों में गुजरात ने जो विकास की ऊचांइयों को प्राप्त किया है इसका श्रेय गुजरात के मेरे छह करोड भाईयो-बहनों को जाता है, मेरी सरकार में बैठे मेरे साथी, छह लाख कर्मयोगी भाइयों-बहनों, इनकी प्रजालक्षी प्रवृत्ति, प्रजालक्षी काम, इनको श्रेय जाता है और कुदरत की भी अपने ऊपर कृपा रही है, कुदरत का भी जितना आभार माने उतना कम है। इस पूरी प्रगति की यात्रा को हमें और आगे बढ़ाना है। मैं सभी सरपंचों को कहना चाहता हूँ कि भले ही गुजरात की इतनी वाह-वाही हो रही हो, आपको भी संतोष होता होगा कि गाँव में कभी सी.सी. रोड कहाँ थे, गाँव में कभी गटर का विचार कहाँ था, गाँव में कभी बिजली कहाँ देखी थी, गाँव में कभी कम्प्यूटर कहाँ से हो सकते हैं, गाँव में कभी ‘108’ दौड़ी आए ऐसा कैसे हो...? मोदी साहब ने बहुत अच्छा किया, ऐसा आपको लगता होगा। लेकिन आपको भले ही संतोष हो, पर मुझे अभी संतोष नहीं है। ये जो कुछ भी हुआ है ये सब तो पहले हो जाना चाहिए था, पर हुआ नहीं और जो ये गड्ढे रह गए थे, उन गड्ढों को भरने का काम किया है। ये तो मैंने पुराने गड्ढे भरे हैं, गुजरात की दिव्य और भव्य इमारत बनाने की शुरूआत तो अभी इस जनवरी से करने वाला हूँ। इस जनवरी में आपके आदेश से एक भव्य और दिव्य गुजरात का निर्माण करना है और इसके लिए मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए। इस दस वर्ष के गड्ढे भरने में इतना संतोष हुआ, तो भव्य ईमारत कैसा संतोष देगी इसका अंदाजा हम कर सकते हैं।
भाइयों और बहनों, बाकी सभी वाद-विवाद हो गए दुनिया में, ये वाद आ गया, वो वाद आ गया, ढींकणा वाद आ गया, फलाना वाद आ गया..! अनुभव ये कहता है कि भारत का भला करना हो तो एक ही वाद काम में आने वाला है और इस वाद का नाम है ‘विकास वाद’। अंत्योदय की सेवा, वंचितों का कल्याण, विकास की यात्रा में सभी को भागीदार बनाना, ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय, सर्वे अपि संतुषिजन, सर्वे अपि सुखिन: संतु, सर्वे संतु निरामया...’, इस कल्पना को साकार करने का प्रयास। सभी का भला हो, सभी सुखी हो, सभी को आरोग्य मिले, यह ‘सबका साथ, सबका विकास’ इस मंत्र ही अपने काम आया है, इस मंत्र को हमें आगे बढ़ाना है और हमारे गुजरात को और नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए हम सब साथ मिल कर काम करें, इसी प्रार्थना के साथ, आप आए, 4000 दिनों के संयोग से आज आपका आशीर्वाद मिला और गुजरात की पंचायती राज व्यवस्था... और आपको मेरी बिनती है कि आप भी आपके गाँव में पंचायती राज व्यवस्था की 50 वर्ष की, आपकी कल्पना के अनुसार कोई ना कोई उत्सव मनाओ। लोकशिक्षण का काम करना चाहिए, बच्चों को बुला कर उनको पंचायती राज के बारे में समझाना चाहिए। ये पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है, ये प्रजातांत्रिक प्रक्रिया निरंतर चलती रहनी चाहिए। और पंचायती राज व्यवस्था के 50 वर्ष मनाने के चार-छह महीने अभी भी हमारे पास हैं, इसका अधिकतम लाभ लेकर पंचायती राज व्यवस्था में ट्रांसपेरेंसी कैसे आए, जन भागीदारी कैसे बढ़े, जन शिक्षा को बल कैसे मिले, इसके ऊपर आप ध्यान केन्द्रित करोगे ऐसी अपेक्षा के साथ आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूँ।
जय जय गरवी गुजरात...!!