प्रधानमंत्री मोदी ने बेंगलूरु में इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन फ्रंटियर्स इन योग रिसर्च एंड इट्स एप्लीकेशन्स का उद्घाटन किया
विवेकानंद का विज़न भारतीय और पश्चिमी संभ्यता की सोच के गहन अध्ययन का एक संश्लेषण था: प्रधानमंत्री
विवेकानंद ने न केवल भारत के आध्यात्मिक पुनरुत्थान में अद्वितीय योगदान दिया बल्कि उन्होंने विश्व के सामने हमारे कालातीत ज्ञान को भी रखा: पीएम
विवेकानंद को मानव विविधता के सौंदर्य की गहरी समझ थी और उन्होंने मनोभावपूर्वक दुनिया में एकता की बात की: प्रधानमंत्री
21 जून को 192 देशों में एक लाख से अधिक लोग पहले अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मनाने एक साथ आए थे: प्रधानमंत्री
योग स्वास्थ्य और कल्याण के लिए विश्व भर के लोगों की आकांक्षा का प्रतीक: प्रधानमंत्री मोदी
योग मानव और माँ प्रकृति के बीच संतुलन के लिए विश्व भर की साझा इच्छा को दर्शाता है: प्रधानमंत्री मोदी
दुनिया भर में कई मार्मिक कहानियाँ हैं जब योग की वजह से लोगों के जीवन में परिवर्तन आया और उनकी उम्मीदें जगीं: प्रधानमंत्री
हेल्थकेयर का मेरा विज़न - एक समेकित व्यवस्था जो विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के सर्वश्रेष्ठ व सबसे प्रभावी पद्धतियों पर आधारित है: पीएम
आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से स्वास्थ्य सेवा में परिवर्तन आया है: प्रधानमंत्री मोदी
प्रौद्योगिकी के उपयोग ने स्वास्थ्य सेवाओं के मार्ग में आने वाली बाधाओं को कम किया है और रोगों के बारे में हमारी समझ बेहतर हुई है: पीएम
दवाओं और टीकों के क्षेत्र में सफलताओं से कई बीमारियों को रोकने और उन्हें मिटाने में मदद मिली है: प्रधानमंत्री
योग अब एक वैश्विक विरासत है; दुनिया बड़े उत्साह के साथ पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को अपना रही है: प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज बेंगलुरू के जिगानी में फ्रंटियर्स इन योगा रिसर्च एंड इट्स एप्लीकेशन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया

उन्होंने समेकित औषधि के एक अस्पताल के शिलान्यास पट्टिका का भी अनावरण किया

प्रधानमंत्री के उद्घाटन भाषण का पाठ इस प्रकार है-

कर्नाटक के राज्यपाल श्री वजूभाई वाला

कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री सिद्धरमैया

मंत्रिपरिषद के मेरे महत्वपूर्ण सहयोगियों

डॉ. नागेंद्र

मंच पर उपस्थित गणमान्यों, दुनिया भर से आए सम्माननीय अतिथियों और योग उत्साहियों

फ्रंटियर्स इन योगा रिसर्च एंड इट्स एप्लीकेशन पर 21वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेना बेहद हर्ष का विषय है। इसमें हिस्सा लेने का अवसर पाकर मैं खुश हूं।

मैं इस सम्मेलन के आयोजन के लिए विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान का बेहद आभारी हूं।

विवेकानंद की दृष्टि भारतीय और पश्चिमी विचारों के गहरे अध्ययन का संश्लेषण है। इसमें हमारे प्राचीन दर्शन और ज्ञान की प्रेरणा समाहित है।

उन्होंने न सिर्फ भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण में अद्वितीय योगदान दिया बल्कि हमारे सदियों पुराने ज्ञान को दुनिया के सामने प्रस्तुत भी किया।

उन्हें लोगों की बहुलता के सौंदर्य की गहरी समझ थी और उन्होंने दुनिया की एकता के बारे में अपने विचारों को पूरी शिद्द्दत के साथ सामने रखा।

योग के विज्ञान के लिए 2015 एक खास वर्ष था।

बीते साल 21 जून को 192 देशों के दस लाख लोग पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए दुनिया भर में खास जगहों पर इकट्ठा हुए।

इस आयोजन को जिस तरह पूरी दुनिया में विशाल समर्थन मिला उससे यह साबित हो गया कि पूरे विश्व में योग किस तरह लोकप्रिय हो रहा है।

यह स्वास्थ्य और बेहतरी की सार्वभौमिक आकांक्षा का प्रतीक है।

साथ ही यह मानव और प्रकृति माता के बीच संतुलन और लोगों और देशों के बीच शांति और एकता कायम करने की लोगों की साझा वैश्विक आकांक्षा को भी प्रदर्शित करता है।

और सबसे बढ़ कर यह विभिन्न संस्कृतियों के लोगों की अपनी जिंदगी की परिचित सीमा से बाहर आने और व्यापक हित में एकत्रित होने की क्षमता को भी दिखाता है।

एकता की यही भावना बताती है कि योग एक कालातीत विज्ञान है।

यह योग की ताकत और मानवता में विश्वास की ही बात है। इसी पहल का जिक्र मैंने सितंबर, 2014 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के उद्घाटन भाषण में किया था।

जब दुनिया के टिकाऊ भविष्य, स्वस्थ आदतों और लोगों के बीच खुशी लाने का बात होती है तो व्यक्ति, देश और वैश्विक समुदाय के तौर पर अपनाई जाने वाली जीवनशैली के विकल्पों में परिवर्तन की बात महत्वपूर्ण हो जाती है।

योग की पहचान पूरी दुनिया में छाने लगी है। सभी संस्कृतियों और भूभागों के लोग अपने जीवन को दोबारा परिभाषित करने में इसे अपना रहे हैं, इसकी मदद ले रहे हैं। अपनी अंतरात्मा और बाहरी दुनिया से एकता कायम करने के लिए इसकी मदद ली जा रही है। लोगों के अस्तित्व और उनके माहौल के बीच कड़ी जोड़ने में इसका सहारा लिया जा रहा है।

बीमारियों के वैश्विक बोझ की डब्ल्यूएचओ फैक्ट शीट बताती है कि दुनिया भर में गैर-संक्रामक बीमारियों की वजह से मौतों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष, 2008 में इन बीमारियों की वजह से 80 प्रतिशत मौतें विकासशील देशों में हुईं। 1990 में इन देशों में इन बीमारियों से 40 प्रतिशत मौतें हुई थीं।

वर्ष, 2030 में कम आय वर्ग के देशों में उच्च आय वर्ग के देशों की तुलना में गैर संक्रामक बीमारियों से मरने वालों की तादाद आठ गुना बढ़ जाएगी।

भारत में हृद्य धमनियों, कैंसर, सांस की पुरानी बीमारियों, मधुमेह की वजह से 60 प्रतिशत मौतें होती हैं। अस्पताल में भर्ती रहने वाले लोगों में 40 प्रतिशत इन्हीं बीमारियों के मरीज होते हैं। अस्पतालों में लगभग 35 प्रतिशत वाह्य मरीज भी इन्हीं बीमारियों के होते हैं।

इन बीमारियों की वजह से उत्पादक जिंदगियां असमय खत्म हो जाती हैं और परिवारों को बड़ी त्रासदी झेलनी पड़ती है। इससे हमारी अर्थव्यवस्था को बेहद घाटा होता है और स्वास्थ्य व्यवस्था पर भारी बोझ पड़ता है।

कुछ अध्ययनों का आकलन है कि गैर संक्रामक बीमारियों और खराब मानसिक स्वास्थ्य की वजह से 2030 तक भारत को 4.58 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ेगा।

इसलिए जैसे-जैसे हम शारीरिक और भौतिक जीवन में आगे तरक्की करते जाएंगे हमें अपने अस्तित्व की मनोवैज्ञानिक स्थिति से जुड़े सवालों को भी सुलझाना होगा।

यही वह स्थिति है, जहां योग सर्वोपरि हो जाता है। दुनिया भर में योग की वजह से जिंदगी को बदल कर रख देने वाले और जीवन में फिर से उत्साह जगाने वाले मर्मस्पर्शी उदाहरण हैं।

श्री अरविंदो ने घोषणा की थी कि भारतीय योग मानवता के भविष्य के जीवंत तत्वों में से एक साबित होगा। यह बात सच साबित हो रही है।

योग को मूल रूप से किसी औषधि पद्धति के तौर पर स्वीकार नहीं किया गया था। लेकिन योग एक समग्र जीवनशैली है। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक, नैतिक और आध्यात्मिक एकात्मकता की वजह से स्वास्थ्य को यह काफी लाभ पहुंचाता है।

दुनिया आज स्वास्थ्य को जिस हिसाब से परिभाषित कर रही है उसके यह बिल्कुल मुफीद बैठता है। हम आज बीमारियों की रोकथाम और उनका प्रबंध कर ही संतुष्ट नहीं हैं। लोग आज बेहतर स्वास्थ्य की मांग कर रहे हैं। एक ऐसे स्वास्थ्य की जिसमें मन, शरीर और आत्मा के बीच एक स्वस्थ संतुलन हो।

हम समग्र चिकित्सा की आवाजों को बढ़ते हुए सुन रहे है। इसका मतलब लोगों की फौरी बीमारियों के इलाज बजाय उनके शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहलू को देखा जाए।

पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति मानव को इसी संपूर्णता में देखने में निहित है। इसके मुताबिक आधि यानी मानसिक स्तर और व्याधि यानी शारीरिक स्तर पर परेशानियों के बीच संबंध है।

यह चिकित्सा पद्धति इसकी जड़ में जाती है। यह सिर्फ बीमारी के लक्षण नहीं देखती। यह पूरे व्यक्ति का इलाज करती है, सिर्फ बीमारी का नहीं। इसमें कई बार इलाज में लंबा वक्त लगता है लेकिन इसका लंबा और गहरा प्रभाव होता है।

जैसा कि आज सुबह मैंने विज्ञान कांग्रेस में कहा था कि पारंपरिक ज्ञान की तरह ही विज्ञान भी मानव अनुभवों और प्रकृति की खोज से विकसित हुआ है। इसलिए हमें इस बात को मानना होगा कि जिस विज्ञान को आज हम देख रहे हैं, सिर्फ उसी में दुनिया का पुराना ज्ञान समाहित नहीं है।

हमें यह भी याद रखना होगा कि हिप्पोक्रेट्स से पर्सिवल से लेकर एडिसन तक- पश्चिम की विचार पद्धति भी जिस तरह स्वास्थ्य के बारे में अपने विचार रखती है वह भारतीय पद्धति के दर्शन से अलग नहीं है।

इसलिए अपने संचित ज्ञान और सदियों के अपने अनुभव को हमें आधुनिक विज्ञान की तकनीकों और विधियों पर लागू करना होगा ताकि बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके और हम लोगों को इसका लाभ बता सकें।

यही वजह है कि हम औषधि की आयुष प्रणाली पर इतना जोर दे रहे हैं और इसके बारे में जागरुकता फैलाने, इसे स्वीकार करने और इसे लागू करने का प्रयास कर रहे हैं।

ऐसा करते हुए हम लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करेंगे। साथ ही स्थानीय संसाधनों पर ज्यादा भरोसा करेंगे और स्वास्थ्य की देखभाल में आने वाली लागत को कम कर सकेंगे।

इससे समाज की सामाजिक और आर्थिक लागत कम हो सकेगी और पर्यावरण के अनुकूल हेल्थकेयर व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

मैं चिकित्सा की एक पद्धति को दूसरे से श्रेष्ठ बताने के लिए यहां मौजूद नहीं हूं। मेरा मानना है कि मानवता विविधता में ही समृद्ध होती है। सभ्यताएं, संस्कृतियां और देश एक दूसरे के ज्ञान और बुद्धिमता को अपना कर ही समृद्ध होते हैं। हम एक दूसरे से सीख कर ही तरक्की कर सकते हैं।

इसी भावना को स्वामी विवेकानंद ने पूर्व और पश्चिम के सर्वश्रेष्ठ का सम्मिलन कहा था।

इसलिए हेल्थकेयर व्यवस्था में इस भावना को लागू करना चाहिए। मैं हेल्थकेयर प्रणाली को एक समेकित व्यवस्था के तौर पर देखता हूं, जो विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के सर्वश्रेष्ठ और सबसे प्रभावी पद्धतियों की समझ पर आधारित हो।

इसलिए मैं जाने-माने शोधकर्ताओं और चिकित्सकों को साथ लाकर योग, आयुर्वेद, नैचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी और आधुनिक चिकित्सा पद्धति को एक मंच पर लाने के आपके प्रयास का प्रशंसक हूं। प्रमुख गैर संक्रामक बीमारियों- मधुमेह, कैंसर, मानसिक बीमारियों, हाइपरटेंशन और हृद्य धमनियों से संबंधित रोगों पर आपका फोकस काबिलेतारीफ है।

चिकित्सा की आधुनिक पद्धतियों ने स्क्रीनिंग, जांच, खोज और बीमारियों का पता लगाने की नई तकनीकों से एक बड़ा बदलाव हासिल कर लिया है। प्रौदयोगिकी के इस्तेमाल ने स्वास्थ्य सुविधाओं की राह में आने वाली अड़चनों को खत्म कर दिया है। बीमारियों के पैटर्न के बारे में हमारी समझ बढ़ी है। दवाओं के क्षेत्र में नई खोजों और नए टीकों ने कई बीमारियों से लड़ने में मदद की है।

लेकिन जैसे-जैसे हमने इसकी सीमाओं और साइड इफेक्टस को समझना शुरू किया है और जैसे-जैसे आधुनिक दवाओं की लागत बढ़ रही है, वैसे-वैसे हमने पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की ओर ध्यान देना शुरू किया है। यह सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में हो रहा है। पूरी दुनिया में लोग पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को बड़े उत्साह से अपना रहे हैं।

मुझे उम्मीद है कि आप योग और पारंपरिक भारतीय औषधियों का हमारे हेल्थकेयर सिस्टम में ज्यादा अच्छी तरीके से जोड़ सकेंगे और भारत और दुनिया के लोगों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित कर सकेंगे।

ऐसा करके आप न सिर्फ लोगों को स्वस्थ और प्रसन्न करेंगे बल्कि एक समृद्ध और शांतिपूर्ण दुनिया के लिए योगदान देंगे।

धन्यवाद