प्रधानमंत्री मोदी ने बाघ संरक्षण पर अपने विचार साझा किए #TigerConservation 
#TigerConservation: बाघ की रक्षा करके हम पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और पारिस्थितिक सेवाओं की रक्षा करते हैं: प्रधानमंत्री मोदी
बाघ संरक्षण के कई लाभ हैं जिसे हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं। हम इसे आर्थिक दृष्टि से माप नहीं सकते: प्रधानमंत्री मोदी
भारत में हम पेड़ों, जानवरों, जंगलों, नदियों, सूर्य एवं चंद्रमा की तरह प्रकृति के अन्य तत्वों का सम्मान करते हैं: प्रधानमंत्री मोदी
भारत में हम पृथ्वी को अपनी माँ के रूप में देखते हैं: प्रधानमंत्री मोदी 
#TigerConservation: वनों को जंगली जानवरों से अलग नहीं किया जा सकता। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं: प्रधानमंत्री मोदी
#वन्यजीवसंरक्षण: प्रधानमंत्री मोदी ने बाघ संरक्षण की दिशा में राज्यों के प्रयासों की सराहना की
बाघ संरक्षण या प्रकृति का संरक्षण पर्यावरण पर बोझ नहीं है। दोनों परस्पर पूरक तरीके से किये जा सकते हैं: प्रधानमंत्री मोदी
विश्व के बाघों की कुल आबादी का 70% से ज्यादा भारत में है। भारत बाघों वाले अन्य देशों के प्रयासों में सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध: पीएम

भूटान की शाही सरकार के कृषि और वन मंत्री तथा विश्‍व बाघ फोरम के अध्‍यक्ष

बाघ श्रृंखला देशों के सम्‍म‍ानित मंत्रिगण

हमारे पर्यावरण,  वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर

मंच पर उपस्थित अन्‍य सम्‍मानित अतिथि, बाघ श्रृंखला देशों के प्रतिनिधि,    

देवियों व सज्‍जनों।   

मुझे आप सभी का स्‍वागत करते हुए प्रसन्‍नता हो रही है। बाघ ने हम सभी को एक साथ ला दिया है। यह बैठक प्रमुख विलुप्‍त प्रजाति के संरक्षण पर विचार के लिए महत्‍वपूर्ण है। आपकी उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि प्रजातियों की इस छतरी को आपका देश कितना महत्‍व देता है।

हम सभी जानते हैं कि पारिस्थितिकी पीरामिड तथा आहार श्रृंखला में बाघ सबसे बड़ा उपभोक्‍ता है। बाघ के लिए बड़ी मात्रा में आहार और अच्‍छा वन आवश्‍यक है। इस तरह बाघ की सुरक्षा करके हम समूचे पारिस्थितिकी प्रणाली तथा पारिस्थिकी की रुक्षा करते हैं। ये मानव जाति के कल्‍याण के लिए समान रूप से महत्‍वपूर्ण हैं।

वास्‍तव में बाघ संरक्षण के लाभ अनेक हैं, लेकिन इनका पूरा लाभ उठाया नहीं जा सका है। हम आर्थिक संदर्भ में इसकी मात्रा निश्चित नहीं कर सकते। प्रकृति का मूल्‍य लगाना कठिन है। प्रकृति की तुलना धन से नहीं की जा सकती क्‍योंकि प्रकृति ने वन्‍य प्राणियों आत्म रक्षा की शक्ति दी है। इसलिए यह हमारा दायित्‍व है कि हम उनका संरक्षण करें। भारत में बाघ एक वन्‍य जीव से कहीं अधिक है। हमारे मिथकों में मां प्रकृति की प्रतीक मां दुर्गा को बाघ पर सवार दिखाया गया है। वास्‍तव में हमारे अधिकतर देवताएं व देवियां किसी न किसी प्राणी,  वृक्ष या नदी से जुड़ी हैं। कभी-कभी तो इन प्राणियों को देवता और देवियों के बराबर रखा जाता है। बाघ हमारा राष्‍ट्रीय प्राणी है। मुझे विश्‍वास है कि बाघ श्रृंखला देशों में भी बाघ से जुड़ी सांस्‍कृतिक गाथा और विरासत होगी।

मित्रों,

प्राणी साम्राज्‍य से जुड़ी प्रजातियां सामान्‍य तौर पर अपने अहित के लिए काम नहीं करती हैं। लेकिन मानव जाति अपवाद है। हमारी बाध्‍यता और इच्‍छाएं , हमारी आवश्‍यकताएं और लालच के कारण प्राकृतिक क्षेत्र में कमी आई है और पारिस्थितिकी प्रणाली का नुकसान हुआ है। यहां मैं आप सबको गौतम बुद्ध के शब्‍द याद दिलाना चाहूं‍गा। उन्‍होंने कहा था ‘प्रकृति असीमित कृपा है यह सभी प्राणियों को सुरक्षा देती है और कुल्‍हाड़ी चलाने वाले को भी अपनी छाया देती है’।

मैं बाघ श्रृंखला देशों द्वारा बाघ संरक्षण कार्य में किए गए प्रयासों की सराहना करता हूं। इस प्रयास के लिए मैं आप सबका अभिनंदन करता हूं। विश्‍व बाघ कार्यक्रम तथा परिषद के जरिये किए जा रहे प्रयासों की भी प्रशंसा करता हूं।

2010 में बाघ सम्‍मेलन आयोजित करने में श्री ब्‍लादीमीर पुतिन के प्रयासों की चर्चा करना चाहूंगा। उनके प्रयासों के कारण विश्‍व बाघ पुन:- प्राप्ति कार्यक्रम के रूप में परिणाम निकला। लेकिन मुझे जो बताया गया है उससे लगता है कि बाघ श्रृंखला देशों में बाघों का निवास क्षेत्र घटा है। बाघ के शरीर के अगों की तस्‍करी से भी स्थिति गंभीर हुई है। भारत में भी हम अवैध शिकार की समस्‍या और उनकी पारिस्थिकी प्रणाली में आ रही कमी की चुनौती का सामना कर रहे हैं।

हमारे पक्ष में अच्छी बात यह है कि हमारी अधिकतर आबादी पेड़ों , प्राणियों वनों , नदियों तथा सूर्य और चंद्रमा जैसे प्राकृतिक तत्‍वों की आदर करती है। हम पृथ्‍वी को माता के रूप में मानते हैं। हमारे धर्मग्रंथ पूरे ब्रह्मांड को एक समझने की सीख देते हैं। वसुधैव कुटुम्बकम तथा लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु हमारा दर्शन है। हम शांति तथा पर्यावरण प्रणाली सहित सभी की समृद्धि के लिए प्रार्थऩा करते हैं। ॐ द्यौः शांति, रंतरिक्ष शांति, पृथवी शांति, राप: शांति, रोषधयः शांति, वनस्पतयः शांति ।

मित्रों, वनों को वन्‍य जीवों से अलग नहीं किया जा सकता। दोनों एक दूसरे के स्‍वभाविक पूरक हैं। एक को नष्‍ट करना दूसरे को नष्‍ट करना है। जलवायु परिवर्तन का यह एक महत्‍वपूर्ण कारण है जो कई प्रकार से हमारे ऊपर वि‍परित प्रभाव डाल रहा है। यह वैश्विक समस्‍या है और इससे हम लड़ रहे हैं। हमने समाधान के रूप में इसमें कमी लाने की देश विशेष रणनीति की दिशा में काम करने का संकल्‍प लिया है।  

मेरे विचार से बाघ श्रृंखला देशों के लिए विकास सक्षम बाघ आबादी निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन के लिए शमन रणनीति का प्रतीक है। इससे बाघ बहुल वनों के क्षेत्र बढ़ने से  कार्बन का व्यापक क्षरण होगा। इस तरह बाघ संरक्षण से अपना तथा हमारी आने वाली पीढि़यों का अच्‍छा भविष्‍य सुनिश्चित होगा।

भारत में बाघ संरक्षण का सफल ट्रैक रिकार्ड रहा है। हमने 1993 में बाघ परियोजना लॉंच की। इसका कवरेज प्रारंभिक 9 बाघ संरक्षित क्षेत्रों से बढ़कर 49 बाघ संरक्षित क्षेत्र हो गया है। बाघ सरंक्षण भारत सरकार तथा राज्‍यों की सामूहिक जिम्‍मेदारी है। मैं इस दिशा में अपनी राज्‍य सरकारों के प्रयासों की सराहना भी करता हूं, लेकिन सरकार के प्रयास तब तक सफल नही हो सकते जब तक उन्‍हें जनता का समर्थन न हो। हमारी सांस्‍कृतिक विरासत करुणा और सह-अस्तित्‍व को प्रोत्‍साहित करती है और इसने बाघ परियोजना की सफलता में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे सामूहिक प्रयासों के कारण बाघों की संख्‍या में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह संख्‍या 2010 के 1706 से बढ़कर 2014 में 2226 हो गई।

हमारे राष्‍ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार ने अनेक ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। इस संवेदनशील वन क्षेत्रों में अवैध शिकार के विरुद्ध निगरानी को प्रोत्‍साहन देने के लिए इंटेलीजेंट,  इंफ्रांरेड तथा थर्मल कैमरे 24x7 आधार पर लगाने सहित आधुनिक टेक्‍नोलॉजी के इस्‍तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है। स्‍मार्ट पेट्रोलिंग तथा बाघ निगरानी के लिए अनेक प्रोटोकॉल विकसित किए गए हैं। बाघों की सुरक्षा निगरानी के लिए रेडियो टेलीमिट्री को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। राष्‍ट्रीय स्‍तर पर  बाघों की सुरक्षा पर नजर रखने वाले कैमरों के फोटो का डाटाबेस भंडार तैयार किए जा रहा है। यह सब करने के लिए हमने इस वर्ष बाघ संरक्षण के आवंटन को दोगुना कर  दिया है। हमने बाघ संरक्षण के लिए 150 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 380 करोड़ रुपये आवंटित किया है । यह 3.8 बिलियन रुपया है।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि बाघ संरक्षण और प्रकृति संरक्षण विकास की राह में बाधा नहीं हैं। दोनों पूरक रूप में साथ-साथ चल सकते हैं। हमारी आवश्‍यकता यह है कि हम उन क्षेत्रों को ध्‍यान में रखते हुए अपनी रणनीति को नया रूप दें जिन क्षेत्रों का लक्ष्‍य बाघ संरक्षण नहीं है। यह कठिन कार्य है ,लेकिन किया जा सकता है। हमारी प्रतिभा भू-प्रदेश स्‍तर पर विभिन्‍न अवसंरचनाओं में बाघ तथा वन्‍य जीवन सुरक्षा को स्‍मार्ट तरीके से एकीकृत करने में है। इससे हम बहु प्रतीक्षित स्‍मार्ट हरित अवसंरचना की ओर बढ़ते हैं और भू प्रदेश का दृष्टिकोण अपनाते हैं। इससे हमें कारपोरेट सामाजिक दायित्‍वों के जरिये कारोबारी समूहों को बाघ संरक्षण की दिशा में चलाए जा रहे कार्यक्रमों में शामिल करने में मदद मिलेगी। हम भारतीय संदर्भ में इसे वन संरक्षण योजनाओं के जरिये हासिल करना चाहते हैं।

बाघ संरक्षण क्षेत्रों की पारिस्थितकी प्रणाली पर विचार करते समय हमें इन क्षेत्रों को प्राकृतिक पूंजी मानना होगा। हमारी संस्‍थाओं की ओर से कुछ बाघ संरक्षित क्षेत्रों का आर्थिक मूल्‍यांकन किया गया है। इस अध्‍ययन से यह तथ्‍य उभरा है कि बाघ को संरक्षण प्रदान करने के अतिरिक्‍त संरक्षित क्षेत्र अनेक आर्थिक, सामाजिक, सांस्‍कृतिक  आध्‍यात्मिक लाभ प्रदान करते हैं। इन्‍हें पर्यावरण प्रणाली सेवाओं के रूप में जाना जाता है। इसलिए संरक्षण को विकास में बाधा मानने के बजाय विकास के साधन के रूप में परिभाषित करने की जरूरत है। इसके लिए विकास और वृद्धि के आर्थिक गणित के तहत पर्यावरण प्रणाली के मूल्‍य को ध्‍यान में रखना होगा।

मित्रों, मुझे विश्‍वास है कि हम संरक्षण के लिए उद्योगजगत की सक्रिय भागीदारी के लिए रूपरेखा बना सकते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण प्रणाली भंडार का संकेत देने वाली पूंजी को अन्य  पूंजी उत्‍पादों के बराबर माना जाना चाहिए। हमें अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को प्राकृतिक संसाधनों तथा पर्यावरण प्रणाली सेवाओं की बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में देखने की जरूरत है।

देश के रूप में वैश्विक बाघ आबादी का 70 प्रतिशत हमारे पास है। भारत अन्‍य बाघ श्रृंखला देशों  की पहलों का संपूरक बनने के लिए संकल्‍पबद्ध है। चीन, नेपाल, भूटान और बांग्‍लादेश के साथ हमारी द्विपक्षीय व्‍यवस्‍थाएं हैं। हम बाघ के लिए अपनी पारस्‍परिक चिंता के विषयों के हल का प्रयास जारी रखते हैं।

बाघ को एक बड़ा खतरा उसके शरीर के अंगों की मांग और इस पर निर्भर उत्‍पादों की मांग है। वन और इसके वन्‍य जीव क्षेत्र एक मुक्‍त खजाना है जिसे बंद नहीं किया जा सकता। बाघ के अंगों की अवैध तस्‍करी के बारे में जानकर पीड़ा होती है। इस गंभीर समस्‍या से निपटने के लिए हमें सरकार के शीर्ष स्‍तर पर काम करना होगा।

भारत अन्‍य बाघ श्रृंखला देशों की तरह वैश्विक बाघ मंच का संस्‍थापक सदस्‍य है, जिसका मुख्‍यालय नई दिल्‍ली में है। यह अपने किस्‍म का एक मात्र अंतर-सरकारी संगठन है। यह संगठन वैश्विक बाघ कार्यक्रम परिषद के साथ मिलकर काम कर रहा है। मेजबान देश के रूप में मैं पूरे समर्थन का आश्‍वासन देता हूं। हमें भारत के वन्‍य जीव संस्‍थान में वन्‍य जीव कर्मियों के क्षमता विकास  में मदद देने में भी खुशी होगी।

बाघ श्रृंखला देशों ने विलुप्‍त प्रजातियों के अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार की समस्‍या के समाधान के लिए अन्‍य अंतर्राष्‍ट्रीय समझौतों पर भी हस्‍ताक्षर किए हैं। इस बारे में मैं आपको एक अच्‍छी खबर देना चाहता हूं। हम  औपचारिक रूप से दक्षिण एशिया वन्‍य जीव प्रवर्तन नेटवर्क कानून को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि बाघों का संरक्षण कोई चयन और पसंद का काम नहीं है। यह आवश्‍यक है। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि वन्‍य जीव अपराधों का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय सहयोग आवश्‍यक है। इस सम्‍मेलन में बाघ और उसके निवास क्षेत्र के संरक्षण के लिए एक साथ काम करने का संकल्‍प लेना चाहिए। भारत इसके लिए सभी बाघ श्रृंखला देशों के साथ कार्य करने के लिए संकल्‍पबद्ध है।

       मैं आपकी उपस्थिति की प्रशंसा करता हूं और इस सम्‍मेलन की सफलता की कामना करता हूं। आप सभी को धन्‍यवाद