प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज राष्‍ट्रपति जी जिंनपिंग को 1957 में गुजरात के बडनगर से 80 किमी. पूर्व में देव-नी-मोरी में तीसरी-चौथी शताब्‍दी के स्‍तूप की खुदाई में प्राप्‍त पत्‍थर की बौद्ध अवशेष मंजूषा की प्रतिकृति तथा भगवान बुद्ध की पत्‍थर की प्रतिमा भेंट की। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने बडनगर में खुदाई के पुरातात्विक चित्र भी दिए। 641एडी के लगभग चीनी यात्री ह्वेनसांग ने बडनगर की भी यात्रा की थी। ह्वेनसांग ने अपने लेखों में इसे आनंदपुर बताया है और हाल की खुदाई से बडनगर में दूसरी शताब्‍दी एडी में बौद्ध केंद्रों के फलने-फूलने के साक्ष्‍य मिले हैं। प्रधानमंत्री जाइंट वाइल्‍ड गुज पैगोडा देखने गए। इसी स्‍थान पर ह्वेनसांग ने भारत से चीन लाए गए सूत्रों का वर्षों तक अनुवाद किया था।

बडनगर में हाल की खुदाई में जले हुए ईंट के ढांचे मिले हैं। विशेष योजना तथा प्राचीन सामग्रियों के आधार पर इस ढांचे की पहचान बौद्ध विहार के रूप में की गई। यहां प्राप्‍त प्राचीन सामग्रियों में दूसरी शताब्‍दी एडी का लाल बलुआ पत्‍थर का बुद्ध का टूटा हुआ सिर, पैर निशान का ताबीज तथा अर्धचंद्राकार पत्‍थर की तश्‍तरी जिस पर बंदर द्वारा बुद्ध को शहद परोसना दिखाया गया है।

ह्वेनसांग ने अपने लेखों में बडनगर को पश्चिम भारत का महत्‍वपूर्ण बौद्ध शिक्षा केंद्र मानते हुए दर्ज किया है कि बडनगर में सम्मितिया धारा के एक हजार भिक्षु 10 बौद्ध विहारों में रहते थे। प्राचीन समय में बडनगर ऐसे रणनीतिक स्‍थान पर था जहां से दो प्राचीन व्‍यापार मार्ग एक दूसरे को पार करते थे। एक व्‍यापार मार्ग मध्‍य भारत से सिंध तथा उसके आगे तक का था जबकि दूसरा मार्ग गुजरात तट के बंदरगाह शहरों से राजस्‍थान तथा उत्तर भारत तक था। इसलिए बडनगर इन दोनों मार्गों के बने रहने तक अपार अवसरों का नगर रहा होगा।

 

उत्खनन से मिले मठ का विहंगम दृश्य

 

मठ के पास मनोकामना पूरी करने वाला स्तूप