In his interview to The Economic Times, Shri Narendra Modi spoke on FDI policy and retail FDI, apart from sharing his views on protecting investor sentiment and maintaining policy continuity.

Excerpts from the interview -

If you win, you will inherit a sickly economy. A new government will have short-term pressures to lift investor mood and medium-term pressure to lift actual investment. What are your plans for these most critical areas?

I agree that the new government will inherit an economy in a very bad shape. I do not know whether it was by design that the UPA government has left the economy in a shape that is worse than ever before.

Probably, it is the Congress' way of making it difficult for successor governments to work. The NDA government had demitted office in 2004 leaving the GDP growth rate in excess of 8.5%. India was poised to attain double digit growth rate and the economy looked in great shape with inflation being under control. UPA has mismanaged the economy.

When UPA is going out of power, the GDP growth rate has gone down to 4.5%, inflation is at an all-time high and the mood is of pessimism.

As far as perception-related issues are concerned, thankfully we have our track record to fall back upon. Therefore, it would be much easier to handle perception-related issues. We will have to immediately get on the job and come out of the present state of policy paralysis and lack of decision-making.

We are very clear that we want a government that does not shy away from taking decisions. We would like a stable policy framework and whatever incentives and tax structures are there should be made known to investors upfront. There should be credibility, clarity and continuity in both policy formulation and its implementation.

You are perceived to be investor-friendly. However, your party is opposed to big reforms such as FDI in multi-brand retail. Don't you think this will depress foreign investor sentiments? What happens to companies like Tesco, whose JV with the Tatas has already been approved by the Centre?

While we have expressed our reservations on FDI in multi-brand retail, our party manifesto is very clear that we welcome FDI in all sectors. Wherever we think that FDI can help in generating jobs for the youth and growth in employment, we will encourage the same. As regards individual cases, any decision will depend upon the merits of the case as revealed by its details.

However, we are equally committed to take care of investor sentiments and to ensure that we do not send any message of uncertainty and lack of continuity in decision-making process which is likely to adversely impact the confidence of investors in general and foreign investors in particular.

You have said you don't believe in 100 days performance targets. But first perceptions are important. How do you plan to make your first perception?

I don't think with my own track record of more than 12 years as the chief minister of a strong and vibrant state and the track record of the six years of NDA rule, I am under much of a pressure of perception management.

Central policy has many stakeholders and vested interests. What are your plans to tackle this, do you have any fundamental reform in mind? You have said there has to be a Team India, one office can't run the country — how will you create that Team India?

I think the Team India is already there. As a chief minister, I have experienced first hand the problems that the state governments face vis-a-vis the Centre. I fully understand the expectations of the state governments. Thus, I am better placed to work closely with the chief ministers.

I also believe in delegation, decentralisation and empowerment. We should work with the principle that a work that can be done at a lower level should never be escalated to a higher level.

On land issues, the Centre has much less freedom — will you make a special effort to clear up the land for industry? If so, how?

As of now, it is the states who are taking the lead in implementation of projects and bringing about growth and development. The Centre in the last 10 years has only ended up delaying projects on one or the other pretext. Apart from an all-pervasive policy paralysis coupled with a lack of decision-making ability, it has also been large-scale corruption in the guise of environment protection which has been responsible for project delays. If the Centre can become a facilitator, then a healthy competition between the states is going to take care of issues related to project implementation.

Courtesy: The Economic Times

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राहुल जोशी -  प्रधानमंत्री जी, आपको बहुत बहुत धन्यवाद नेटवर्क 18 को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू देने लिए

नरेंद्र मोदी – आपके दर्शकों को हमारा नमस्कार

राहुल जोशी -  मेरा पहला सवाल सीधा और सरल सा है। आप दो साल पहले भारी बहुमत से आएनिर्णायक बहुमत से आए और आप प्रधानमंत्री बने। आप अपने प्रधानमंत्री बनने तक के सफर को कैसे देखते हैं और सबसे बड़ी कामयाबी क्या मानते हैं?

नरेंद्र मोदी – प्रधानमंत्री का दायित्व मिलने के बाद करीब सवा दो साल हो गए हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और हमारे देश में जनता समय-समय पर सरकारों का मूल्यांकन करती है। मीडिया भी मूल्यांकन करता है। और आजकल तो प्रोफेशनल सर्वे एजेंसीज भी इसका एनालिसिस करती हैं। मैं इसको अच्छा मानता हूं और इसलिए मैं जनता जनार्दन पर ही छोड़ देता हूं कि वही मूल्यांकन करे कि मेरी सरकार कैसी रही ? लेकिन मैं ये जरूर चाहूंगा कि जब भी मेरी सरकार का आप मूल्यांकन करें तो हमें दिल्ली सरकार में आने से पहले सरकार का हाल क्या था, देश का हाल क्या था, मीडिया में किन बातों की चर्चा हुआ करती थी? अगर उसको एक बार हम नजर कर लेंगे तो हमें ध्यान में आएगा कि भाई पहले अखबार भरे रहते थे भ्रष्टाचार की बातों से, पहले अखबार भरे रहते थे निराशा की बातों से, आए दिन हर हिंदुस्तानी के दिल-दिमाग से निराशा का स्वर निकलता था। सब कुछ डूब चुका है अब चलो गुजारा कर लें, यही भाव था। कोई कितना ही अच्छा डॉक्टर क्यों ना हो लेकिन पेशेंट अगर निराश है तो दवाइयां उसको खड़ा नहीं कर पातीं हैं। और पेशेंट को विश्वास है तो एक-आध बार डॉक्टर थोड़ा एकदम टॉप क्वॉलिटी से नीचे का भी हो तो भी वो खड़ा हो जाता है। हिम्मत के साथ कुछ ही हफ्तों में वो चलने-फिरने लगता है और इसका कारण उसके भीतर का विश्वास होता है। सरकार बनने के बाद मेरा पहला प्रयास यही रहा कि निराशा के माहौल को खत्म किया जाए। देश में आशा और विश्वास पैदा किया जाए और वो सिर्फ भाषणों से नहीं होता है। कदम उठाने पड़ते हैं। करके दिखाना पड़ता है। और आज सवा दो साल के बाद मैं इतना तो जरूर कह सकता हूं कि ना सिर्फ हिंदुस्तान के लोगों के दिल में एक विश्वास पैदा हुआ है बल्कि विश्व भर के लोगों में भारत के लोगों के प्रति भरोसा बढ़ा है। एक समय था जब हमें डूबती नैया के रूप में देखा जाता था। ब्रिक्स में बीआरआईसीएस (BRICS) है उसमें जो आई (I) है वो लुढ़क चुका है। आज कहते हैं कि भाई ब्राइट स्पॉट अगर कोई है तो हिंदुस्तान है। तो ये अपने आप में मैं समझता हूं कि मूल्यांकन करने का आसान तरीका होगा।

राहुल जोशी  डेवलपमेंट एजेंडे के मुद्दे पर देश में आपकी सरकार आई..तो मेरे अगले कुछ प्रश्न इकोनॉमी से रिलेटेड होंगे...क्योंकि आप काफी मशक्कत के बाद जीएसटी बिल पारित करने में कामयाब हुए..क्या आप ये बताना चाहेंगे कि आप इसे कितनी बड़ी कामयाबी मानते है और इससे देश के आम आदमी को क्या फायदा मिलेगा..

नरेंद्र मोदी – देश आजाद होने के बाद फाइनेंस और टैक्सेशन सिस्टम में जो रिफॉर्म हुए हैं शायद ये आजाद हिंदुस्तान का सबसे बड़ा रिफॉर्म है। और इस रिफॉर्म से भारत में तो बहुत बड़ा बदलाव आया है। हमारे देश में बहुत कम लोग टैक्स देते हैं। कुछ लोग इसलिए देते हैं कि दिल में देशभक्ति पड़ी है कि भाई देश के लिए मुझे कुछ करना चाहिए। कुछ इसलिए देते हैं कि भाई कभी नियम तोड़ना नहीं चाहिए, नियम में रहना चाहिए, इसलिए देते हैं। कुछ लोग इसलिए देते हैं कि भाई बेकार में कहीं पचड़े में पड़ जाएंगे, परेशानी में आ जाएंगे। जान छूटी लाखों पाए, दे दो। लेकिन ज्यादातर इसलिए नहीं देते हैं कि प्रोसेस इतनी कठिन होता है और इस चक्कर में पैर पड़ गया तो पता नहीं कब निकलेंगे, डर रहता है। जीएसटी के बाद इतना सरलीकरण हो गया है कि सामान्य व्यक्ति भी देश के लिए कुछ करना चाहता है तो जरूर टैक्स देने के लिए आगे आएगा। इसलिए कोई कठिनाइयां नहीं हैं वो तो बड़ी सरल प्रोसेस से हो जाएगा।

दूसरा, आज भी आप जाओगे तो होटल में खाना खाओगे तो बिल आएगा। बिल के चाहिए सेस, ये सेस, वो सेस, ढिकना सेस, फलाना सेस। और व्हाट्सएप पर लोग भेजते हैं कि इतना बिल और इतना सेस। ये सब निकल जाएगा। सामान्य मानवी को तो एकदम सरल हो जाएगा। हम देखते हैं कि ऑक्ट्रॉय के स्थान पर या स्टेट टू स्टेट जो चेकपोस्ट हैं वहां मीलों तक हमारी गाड़ियां खड़ी हैं। और जब कोई वेहिकल खड़े रहते हैं तो देश की इकोनॉमी को बहुत नुकसान करते हैं। अब इसके कारण वो सीमलेस हो जाएगा। सारा एक दूसरे राज्य से माल आना-जाना सरल हो जाएगा। और टैक्सेशन सिस्टम के तरीके भी सरल हो जाएंगे। और इसके कारण सामान्य मानवी की कठिनाइयां तो दूर होंगी ही और देश का रेवेन्यू भी विकास के लिए काम आने से सुविधा बढ़ जाएगी। आज कभी-कभी केंद्र और राज्यों के बीच अविश्वास होता है। इसके बाद वो अविश्वास का माहौल भी खत्म हो जाएगा। क्योंकि एक ही प्रकार का टैक्सेशन सिस्टम होगा। हर एक को पता होगा कि क्या हो रहा है? तो एक ट्रांसपैरेंसी आ जाएगी और जो फेडरल स्ट्रक्चर को भी ताकत देगी।

राहुल जोशी  सत्ता में आने के बाद आपकी सबसे बड़ी चुनौती इकोनॉमी थी..आपके लिए सिर्फ यही जरूरी नहीं था कि आप इकोनॉमी को पटरी पर लाएं..पर उसको तेज गति से आगे भी बढ़ाएं..आप कैसे असेस करते हैं इस सिचुएशन को ...क्या कामयाबी हासिल की आपने इसमें?

नरेंद्र मोदी - आपकी बात सही है कि एक प्रकार का निगेटिव माहौल था। और उसका इको-इफेक्ट भी काफी ज्यादा था। देश के व्यापारी उद्योगकार सब एक पैर बाहर रख चुके थे। सरकार में एक प्रकार के पैरालिसिस की अवस्था थी। एक तरफ तो ये माहौल था। दूसरी तरफ जब हम आए तो लगातार हमें 2 साल अकाल फेस करना पड़ा। वॉटर स्कारसिटी। तीसरी प्रॉब्लम आई कि दुनिया में मंदी का दौर एकदम से उभर कर के आ गया। तो एक के बाद एक आने के बाद भी चैलेंजेज आते गए। सिर्फ पहले चैलेंजेज थे ऐसा नहीं। आने के बाद भी चैलेंजेज आए। लेकिन इरादा नेक था। नीतियां स्पष्ट थीं। नीयत साफ थी। निर्णय करने का हौसला था। क्योंकि कोई वेस्टेड इंटरेस्ट नहीं था। इसका परिणाम ये आया कि सकारात्मक वातावरण बहुत तेजी से बढ़ने लगा। आज आजादी के बाद सबसे ज्यादा फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट इसी कालखंड में आया। सारी दुनिया कहती है कि सेवन प्लस ग्रोथ, ये दुनिया की जो बड़ी इकोनॉमी है, फास्टेस्ट ग्रोइंग इकोनॉमी के रूप में माना जाता है। वर्ल्ड बैंक हो, आईएमएफ हो, क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज हों। इवन यूएन की एजेंसीज हों, ये सब कह रहे हैं कि भारत बहुत तेज गति से आगे बढ़ रहा है। तो ये वो नीतियों पर बल दिया गया है जो देश की आर्थिक प्रगति को गति दें। पॉलिसी ड्रिवेन चीजें हों। जो रुकावटें करने वाली चीजें थीं, पॉलिसी के द्वारा उसको हटाया जा रहा है। और इन सारी बातों का परिणाम ये है कि देश की इकोनॉमी में एक गति आई है। इस बार मौसम भी अच्छा है। वर्षा ठीक हुई है और भारत की इकोनॉमी को मौसम, एग्रीकल्चर बहुत बड़ी ताकत देता है। ड्राइविंग फोर्स है। इसके कारण और ज्यादा उत्साह बढ़ा है जो आने वाले दिनों में बड़ा उज्ज्वल रहेगा। और इसलिए मैं देख रहा हूं कि आज इकोनॉमी ... अच्छा नॉर्मली क्या होता है एक-आध चीज में बढ़ोतरी, अच्छा हो उसी की चर्चा होती है। आज देखिए हर चीज की चर्चा है। बिजली का उत्पादन भी बढ़ा है तो बिजली की मांग भी बढ़ी है। इंफ्रास्ट्रक्चर का काम बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर का काम तब बढ़ता है जब इकोनॉमी की मांग होती है, तब बढ़ता है। इन सारी बातों से लग रहा है कि वो दिन से हम काफी दूर काफी अच्छी पोजीशन में पहुंच गए हैं।

राहुल जोशी  आपने एकदम ठीक कहा कि मॉनसून की वजह से और उत्साह आया है..शेयर बाजार में भी तेजी आई है...क्या आप ये बताना चाहेंगे कि नेक्सट वेव ऑफ रिफॉर्म्स क्या होंगे?

नरेंद्र मोदी –  पहली बात है कि हमारे देश में जो बड़ी चर्चा में आई उसी को रिफॉर्म मानते हैं। और अगर वो नहीं हुआ तो कहते हैं कि रिफॉर्म नहीं हुआ। ये हमारी अज्ञानता का भी दर्शन कराता है। एक्चुअली रिफॉर्म टू ट्रांसफॉर्म – ये मेरा मंत्र है। और मैं मेरी सरकार में तो कहता हूं रिफॉर्म, परफॉर्म एंड ट्रांसफॉर्म। और अगर आज इंटरव्यू में बैठा हूं तो मैं ये भी कहूंगा कि रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म एंड इन्फॉर्म...( हंसते हैं)

हमारे इस देश में अब जैसे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, बहुत तेजी से रैंकिग हमारा सुधर रहा है। ये बिना रिफॉर्म संभव नहीं है। क्योंकि हमारी पद्धतियां, नियम, व्यवस्थाएं, अर्जी करने के फॉर्म इतने दुविधापूर्ण थे। अब इसमें रिफॉर्म हुआ तो हमारा रेटिंग बढ़ने लगा। अब यूएन की एजेंसी ने कहा है कि भारत जहां 10 नंबर पर है शायद नेक्स्ट 2 ईयर में वो नंबर 3 पर आ जाएगा। ये चीजें छोटी छोटी बहुत सी चीजें होती हैं कि जिसको सुधारना है। लाइसेंस राज आज भी कहीं ना कहीं नजर आता है। उससे मुक्ति दिलानी है। ये बहुत महत्वपूर्ण रिफॉर्म हर स्तर पर हो रहे हैं। एडमिनिस्ट्रेटिव लेवल पर हो रहे हैं। गवर्नेंस के लेवल पर हो रहे हैं। कानून के तौर पर हो रहे हैं। अब जैसे 1700 के करीब कानून हमने ऐसे निकाले जो 19 वीं शताब्दी के 20 शताब्दी के कानून लेकर हम बैठे थे। कानून का जंगल था। पार्लियामेंट के अंदर शायद हजार-बारह सौ से तो मुक्ति हो गई। बाकियों का भी हो जाएगा। मैंने राज्यों को भी कहा है। ये बहुत बड़े रिफॉर्म हैं जिसको लोग जानकारियों के अभाव में रिफॉर्म मानते नहीं। तो एक तो ये काम है।

अब देखिए शिक्षा क्षेत्र। हमने एक ऐसा एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है जिसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। हमने कहा है कि यूनिवर्सिटीज...10 सरकारी, 10 प्राइवेट...ये यूजीसी के सारे नियमों से बाहर निकाल देंगे हम। वो अप्लाई करें। हम ऊपर से उनको एक्स्ट्रा पैसा देंगे। और वो वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी बनने की दिशा में हमें क्या करके दिखाते हैं। नियमों के कारण परेशानी? चलो नियम नहीं...अब करके दिखाओ। ये बहुत बड़ा रिफॉर्म है लेकिन लोगों का ध्यान बहुत कम जाता है।

हमारे यहां डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर ..ये अपने आप में बहुत बड़ा रिफॉर्म है। पहले मनरेगा के पैसे किसको जाते थे? कब जाते थे? अब डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर में हम भेज रहे हैं। गैस सब्सिडी डायरेक्ट बेनिफिट में जा रही है। स्टूडेंट स्कॉलरशिप डायरेक्ट बेनिफिट में जा रही है। तो ये सारी चीजें मैं समझता हूं एक प्रकार का रिफॉर्म है। गवर्नेंस में रिफॉर्म है। ट्रांसपैरेंसी के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा रिफॉर्म है। टेक्नॉलॉजी को हम बहुत बड़ी मात्रा में ला रहे हैं। तो ये प्रक्रियाएं और व्यापक करनी हैं। और ज्यादा तेज करनी हैं। और केंद्र में कॉमन मैन है। सामान्य मानवी की सुविधाएं कैसे बढ़ें?  सामान्य मानवी की सरलता कैसे बढ़े? सामान्य मानवी को उसके हक कैसे मिलें?  इन चीजों पर हम बल देना चाहते हैं।

राहुल जोशी – इकोनॉमिक सुधार काफी हुआ है लेकिन इसके बावजूद प्राइवेट इनवेस्टमेंट अभी भी थोड़ा स्लो है। कुछ सेक्टर ऐसे हैं जो अभी भी काबू में नहीं है जैसे रियल एस्टेट सेक्टर हो गया। वेंचर कैपिटल फंडिंग भी स्टार्ट-अप इकोनॉमी में स्लो हो गई है। तो आप प्राइवेट उद्योग को और फॉरेन इनवेस्टर को क्या संदेश देना चाहेंगे?

नरेंद्र मोदी – मैंने देखा है, शायद आपने विवेक के कारण, मर्यादा के कारण एक ब्लंट सवाल मुझे नहीं पूछा। ज्यादातर लोग पूछ लेते हैं कि मोदी जी सवा दो साल में ऐसी कौन सी गलती की आपने.. आपको लगता है। आज मैं सोचता हूं तो मुझे लगता है कि मुझे सरकार बनाने के बाद पहला बजट पेश करने से पहले संसद में देश की आर्थिक स्थिति का एक व्हाइट पेपर रखना चाहिए था। ये विचार भी आया था। लेकिन मेरे सामने दो रास्ते थे। राजनीति मुझे कहती थी कि मुझे सारा कच्चा चिट्ठा खोल देना चाहिए। राष्ट्रनीति मुझे कहती थी कि पॉलिटिकल तो बहुत लाभ हो जाएगा लेकिन देश में सब लोग जब इतनी हालत खराब है, ये जानकारियां पाएंगे तो पूरी तरह निराशा इतनी आ जाएगी, मार्केट इतना टूट जाएगा, देश की इकोनॉमी को इतना बड़ा धक्का लगेगा, ग्लोबली भी देश को देखने की सोच-समझ बदल जाएगी...उसमें से फिर बाहर निकालना मुश्किल हो जाएगा। तो राजनीतिक नुकसान झेल करके भी राष्ट्र के हित में अभी चुप रहना अच्छा है। और उस समय मैंने बैंकों के एनपीए का हाल क्या था...बजट में किस प्रकार से आंकड़े इधर-उधर किए गए थे...आर्थिक स्थिति, ये सारी चीजें ये मैंने देश के सामने नहीं रखीं। हमें नुकसान हुआ। हमारी आलोचना भी हुई। और आज जो कुछ भी मैं झेल, ढो रहा हूं ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरे कारण है....वो भी मुझे गालियां खानी पड़ रही हैं। लेकिन शायद राजनीतिक नुकसान झेल करके भी राष्ट्रनीति के मार्ग पर जाना मैंने तय किया। और उसका परिणाम ये है कि मैं चीजों को ठीक कर पा रहा हूं। कमियां देखते हुए भी अच्छा करने का प्रयास करता हूं। इन सारी चीजों का इंपैक्ट ये प्राइवेट इनवेस्टमेंट पर नजर आता है। उन पुरानी चीजों का बोझ उन पर भी है। एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) में वो भी एक हिस्सेदार हैं। क्योंकि चीजें ऐसी हैं कि आने के बाद बैंकों को ठीक करने पर लगा हुआ हूं मैं। मैंने पहली बार बैंकर्स का चिंतन शिविर किया था और डूज एंड डोन्ट्स तैयार किए थे। और मैंने कहा था कि आप लिखकर के रखिए। सरकार में से अब एक फोन नहीं आएगा। तो ये चीजों ने काफी स्क्रू टाइट किए हुए हैं। उसके बावजूद भी इतनी तेजी से रोड बनना, इतनी तेजी से रेलवे का आगे बढ़ना, इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग में 6 गुना बढ़ोतरी हुई है। तो ये चीजें दिखाती हैं कि शॉर्टकट हमने नहीं चुना। और मेरा तो मत है कि जो रेलवे प्लेटफॉर्म पर लिखा होता है ना...शॉर्टकट विल कट यू शॉर्ट..तो मेरा एक मत रहता है कि हमें शॉर्टकट के रास्ते पर नहीं जाना है। उसके परिणाम नजर आ रहे हैं। खैर अब तो स्थिति काफी सुधर गई है तो वो चिंता का विषय रहा नहीं है, लेकिन मैं बिगनिंग के दिनों की बात बताता हूं 2014 मई-जून की। लेकिन मैंने कठिन रास्ता चुना और देश में जो निष्पक्ष भाव से एनालिसिस करने वाले लोग हैं वो जब इसका एनालिसस करेंगे तो मुझे विश्वास है तो उनके लिए ये एक बहुत बड़ा सरप्राइज होगा।

सवाल- मोदी जी कच्चा चिट्ठा तो एक तरह से आपने खोल ही दिया...काफी लोग कहते हैं कि ब्लैक मनी को क्रैक डाउन करके छोटे मोटे बिजनसमैन या तो दुबई में या लंदन में छिपे हुए हैं। इसके अलावा पॉलिटिकल डाइनेस्टिज को भी आपने नहीं छोड़ा..तो क्या ये प्रक्रिया जारी रहेगी?

नरेंद्र मोदी- पहली बात है कि अभी तक पॉलीटिकल दृष्टि से न मैने सोचा है न मैं सोचूंगा। मैं 14 साल तक एक राज्य का मुख्यमंत्री रह कर आया हूं...और इतिहास गवाह है कि मैंने राजनीतिक कारणों से एक भी फाइल कभी खोली नहीं थी। और मुझ पर ऐसा आरोप कभी नहीं लगा। यहां भी मुझे सवा दो साल हुए हैं सरकार की तरफ से कोई फाइल खोलने के इंस्ट्रक्शन नहीं हैं। कानून कानून का काम करेगा, मुझे लीपापोती करने का भी हक नहीं है कानून कानून का काम करेगा, तो किसी डाइनेस्टी को हमने नहीं छोड़ा ये जो आपका एनालिसिस है ये सही नहीं है। दूसरी बात है मेरी सरकार बनने के बाद पहले ही दिन मेरी सरकार की पहली कैबिनेट का पहला निर्णय था जो चार सालों से अटका पड़ा था पुरानी सरकार में सुप्रीम कोर्ट के कहने के बाद अटका पड़ा था और वो था ब्लैक मनी को लेकर एसआईटी बनाना। हमने एसआईटी बना दी, एसआईटी काम कर रही है, सुप्रीम कोर्ट इसकी निगरानी कर रही है। और हम इस काम को...दूसरा महत्वपूर्ण काम हुआ कि ब्लैक मनी के खिलाफ ऐसा कानून बना है कि अब हिंदुस्तान से कोई विदेश में रुपए भेजने की हिम्मत नहीं कर सकता है। तो ये तो एक काम हो गया कि नया ब्लैक मनी का खेल समाप्त हो गया। दूसरा भारत के अंदरूनी जो काला धन है उसके लिए हमने काफी कानूनी परिवर्तित किए हैं। 30 सितंबर तक एक स्कीम चल रही है अगर किसी को अभी भी मुख्यधारा में आना है तो हम मौका देना चाहते हैं। और मैंने पब्लिकली कहा है कि 30 सितंबर आपके लिए आखिरी तारीख है। किसी न किसी कारण से अगर आपकी गलती हो गई या कुछ गलत हो गया है जानबूझकर किया या अंजाने में किया ये मौका है, आप मुख्यधारा में आ जाइए और शांति की नींद लेने का मौका लेकर आया हूं मैं उसको स्वीकार कीजिए और 30 तारीख के बाद मैं कोई कठोर कदम उठाता हूं तो कोई मुझे दोष नहीं दे सकता है। देश की गरीब जनता का पैसा है। इसको लूटने का अधिकार किसी को नहीं है। और ये मेरा कमिटमेंट है। मैं पूरी ताकत से लगा हूं और कोशिश जारी रखूंगा।

सवाल- प्रधानमंत्री जी इकोनॉमिक्स से हटकर थोड़ा पॉलिटिक्स की बात करते हैं....अगले साल काफी राज्यों के चुनाव होने हैंसामाजिक भेदभाव और धार्मिक कट्टरता एक बार फिर अपना सर उठा रही है। दलित और पिछड़े वर्ग के लोग तो ये तक कहने लगे हैं कि बीजेपी और संघ दलित विरोधी है। तो आप कैसा इस बात का आश्वासन दिलाएंगे देशवासियों को कि आप का मुद्दा सिर्फ विकास और विकास ही है?

नरेंद्र मोदी - देश को तो पूरा भरोसा है कि हमारा मुद्दा विकास ही है...देश की जनता में कोई कन्फ्यूजन नहीं है लेकिन जो लोग कभी नहीं चाहते थे कि ऐसी सरकार बने, जो लोग कभी नहीं चाहते थे कि पिछली वाली सरकार जाए उनकी परेशानियां चल रही हैं। तो विकास का मुद्दा ही हमारा मुद्दा है...विकास का मुद्दा ही हमारा मुद्दा रहेगा और ये कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं ये मेरा कन्विक्शन है कि देश में अगर गरीबी से मुक्ति चाहिए तो विकास करना पड़ेगा। देश के गरीबों को इम्पॉवर करना पड़ेगा। जहां तक कुछ घटनाओं का सवाल है ये निंदनीय है, किसी भी सभ्य समाज को ऐसी घटनाएं शोभा नहीं देती हैं। लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि लॉ एंड ऑर्डर ये राज्य का विषय होता है। हम सिलेक्टिव चीजों को उछाल करके मोदी के गले मढ़ने का षडयंत्र कर रहे हैं। ऐसा करने वालों का क्या हेतु सिद्ध होगा ये तो मैं नहीं जानता लेकिन इससे देश का नुकसान होता है। ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए, अगर आंकड़ों से देखें चाहे कम्यूनल वॉयलेंस हो, दलित भाई बहनों पर हुए अत्याचार हों, आदिवासियों पर हुए अत्याचार हों, पिछली सरकार की तुलना में आंकड़ें बताते हैं कि इस सरकार के समय ऐसी घटनाएं काफी मात्रा में कम हुई हैं। लेकिन मुद्दा ये नहीं है कि आपकी सरकार में क्या हुआ मेरी सरकार में क्या हुआ मुद्दा ये है कि समाज के नाते हमें शोभा नहीं देता है। हजारों साल का हमारा पुराना समाज जिसमें कुछ विकृतियां आई हैं, हमें समझदारी से इन विकृतियों से अपने समाजों को बाहर निकालना होगा। ये सामाजिक समस्या है, उसकी जड़ें बहुत पुरानी हैं। अगर हम राजनीति करते जाएंगे ऐसे सामाजिक प्रश्नों पर तो उन समाजों का भी अहित करते हैं जिनके साथ सदियों से अन्याय हुआ है। औऱ इसलिए कहीं पर भी कोई भी घटना घटे...आज देश में आदिवासी एमपी, आदिवासी एमएलए, दलित एमपी, दलित एमएलए भारतीय जनता पार्टी की संख्या बहुत बड़ी मात्रा में है। और जबसे मैंने बाबा साहेब आंबेडर की 125वीं जयंती मनाई है, जब यूएनओ में बाबा साहेब आंबेडकर की जंयती मनाई गई, दुनिया के 102 देशों में बाबा साहेब आंबेडकर की जयंती मनाई गई। पार्लियामेंट में दो दिन लगातार बाबा साहेब आंबेडकर के जीवन पर, कार्यों पर चर्चाएं हुईं तो कई लोगों को लगा कि अरे ये मोदी तो बाबा साहेब आंबेडकर का भक्त है तो उनको परेशानी होने लगी। जब हमने बाबा साहेब अंबेडकर के साथ जुड़े हुए 5 तीर्थ जो हमारी सरकारों ने चाहे वो मऊ में बाबा साहेब का जन्म स्थान हो, चाहे नागपुर में, चाहे मुंबई में इंदु मिल की जमीन पर उनका स्मारक बनाने की बात हो, चाहे दिल्ली में जहां उनका निवास है ऐसे दो स्थानों पर भव्य स्मारक बनाने का काम हो, चाहे लंदन में बाबा साहेब आंबेडकर जहां रहे थे उस मकान को स्मारक के रूप में कन्वर्ट करने का काम हो एक प्रकार से हमने पंच तीर्थ का निर्माण किया है और इस सरकार ने किया तो जो लोग अपने आपको कुछ विशेष वर्गों के ठेकेदार मानकर इस देश में तनाव पैदा करना चाहते हैं उनको ये गुजारा नहीं हुआ कि मोदी तो एकदम से दलितवादी है। मोदी तो आदिवासियों के पीछे पागल है। मैं हूं। मैं इस देश के दलित,पीड़ित शोषित, वंचित आदिवासी महिलाएं इनके कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हूं। जिनकी राजनीति में आड़े आ रहा है वो संकट पैदा कर रहे हैं और इसलिए अनाप शनाप आरोप लगा रहे हैं। जिन्होंने जातिवाद का जहर पिला पिलाकर देश को बर्बाद कर दिया है, इन्होंने सामाजिक समस्याओं को राजनीतिक रंग देना बंद करना चाहिए, हम सबने एक दायित्व से आगे बढ़ना चाहिए और मैं समाज को भी कहना चाहूंगा क्या सभ्य समाज को इस प्रकार की घटनाएं शोभा देती हैं क्या। मैंने लालकिले पर से कहा था, बलात्कार की घटनाओं का, मैंने कहा मां-बाप जरा अपने बेटों को तो पूछें वो कहां जा रहे हैं क्या कर रहे हैं। बेटियों को तो हम पूछ रहे हैं। हमारे समाज में ये बदलाव के लिए मैं मीडिया से भी प्रार्थना करता हूं और मैं प्रार्थना करता हूं क्योंकि इस देश में मीडिया को तो कुछ कह नहीं सकते। मैं फिर से एक बार करबद्ध प्रार्थना करता हूं कि समाज में हमारे ताने बाने बिखर जाएं ऐसी खबरों को किस रूप में लेना किस रूप में न लेना कितना लेना कितना न लेना एक बार बैठ करके विचार कर लें। खुद करें और उनको लगता है कि सही करते हैं तो उनको मुबारक हो और उनको सही नहीं लगता है तो देश के हित के लिए समाज की एकता के लिए हम सकारात्मक चीजों का प्रबोधन करें। अब जैसे स्वच्छता का मसला है मैंने देखा है कि मीडिया ने सकारात्मक माहौल बनाया है। मीडिया कॉन्ट्रिब्यूट कर रहा है। क्या सामाजिक एकता में भी मीडिया कॉन्ट्रिब्यूट कर सकता है और मुझे लगता है कर सकता है। हमारी अपैक्षा है, आग्रह भी है और जितनी चिंता मुझे देश समाज की है उतनी मीडिया वालों को भी है। तो हम सब मिलकरके, और मैं राजनेताओं को भी कहूंगा और मेरी पार्टी के राजनेताओं को भी कहूंगा, अनाप शनाप बयानबाजी, किसी भी व्यक्ति के लिए किसी भी समाज के लिए कुछ भी बोल देना। मीडिया वाले तो आएंगे आपके पास वो डंडा लेके खड़ा हो जाएगा तो उसको तो टीआरपी करनी है लेकिन आप क्यों, देश को जवाब देना है। और इसलिए सामाजिक जीवन में जीने वाले चाहे हम सामाजिक कार्यकर्ता हों, राजनीतिक कार्यकर्ता हो हम किसी समाज विशेष का प्रतिनिधित्व करते हों तो भी देश की एकता, समाज की एकता, समाज जीवन की समरसता इसमें किसी भी हालत में उदासीनता नहीं बरतनी चाहिए। हमें अधिक सतर्क रहना चाहिए। जब कभी हमें शरीर पर छोटा सा घाव लगता है तो एक कागज भी अगर हाथ छूता है तो दर्द होता है। हजारों सालों की इन बुराईयों के कारण हमारे घाव इतने गहरे हैं उसमें अगर एक छोटी सी भी घटना हम कर देंगे तो हमें कितनी पीड़ा होगी इसका हमें अंदाज नहीं है और इसलिए घटना छोटी है कि बड़ी है उसका महत्व नहीं है घटना होनी ही नहीं चाहिए इसका महत्व है। इस सरकार में ज्यादा हुआ कि इस सरकार में कम हुआ इसके आधार पर निर्णय नहीं होने चाहिए। हम सभी का दायित्व है, हम सभी ने मिल करके समाज की एकता को भी बल देना होगा।

सवाल- मोदी जी आपकी नजर में इकनॉमिक प्रोग्रेस के लिए सोशल हॉरमनी कितनी जरूरी है?

नरेंद्र मोदी - सिर्फ इकनॉमिक प्रोग्रेस के लिए नहीं, सुख शांति के लिए, शांति, एकता, सद्भावना ये हर समाज के लिए अनिवार्य है। परिवार में भी आप आर्थिक रूप से कितने ही समृद्ध परिवार क्यों न हों अरबों खरबों रुपए के ढेर पर बैठे हो फिर भी परिवार में एकता जरूरी है। वैसा ही समाज में है, सिर्फ गरीबी है इसलिए एकता चाहिए ऐसा नहीं है किसी भी हालत में एकता चाहिए। किसी भी हालत में समरसता चाहिए। सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता चाहिए। और इसलिए सिर्फ कोई आर्थिक हितों के लिए एकता चाहिए ऐसा नहीं है जीवन में शांति, एकता, सद्भावना परिवार में भी उपयोगी है समाज में भी उपयोगी है, राष्ट्र में भी उपयोगी है और वसुधैव कुटुंबकम की भावना लेकर चलने वाले लोग पूरा विश्व एक परिवार मानने वाले हम लोग उनके लिए भी शांति, एकता, सद्भावना अनिवार्य है।

सवाल- सभी पॉलिटिकल पार्टियां गरीबी हटाने की बातें करती हैं मगर गरीबी हमारे देश में बहुत चिंता का विषय है बढ़ती जा रही है...जॉब क्रिएशन दूसरी तरफ भी आपके लिए एक बहुत बड़ा चैलेंज है और आपने इस पर पूरी नजर भी ऱखी हुई है। इन दोनों चीजों को लेकर आगे आपकी क्या स्ट्रेटजी रहेगी?

नरेंद्र मोदी - आपकी बात सही है कि गरीबी हमारे देश में एक राजनीतिक नारा रहा है। गरीबों के नाम पर राजनीति भी बहुत हुई है। और चुनाव को ध्यान में रख करके गरीबों के नाम पर कुछ आर्थिक कार्यक्रम भी चलाए हैं। मैं वो अच्छा था बुरा था उस विवाद में पड़ना नहीं चाहता। लेकिन मेरा रास्ता कुछ और है। गरीबी से मुक्ति पाने के लिए हमें गरीबों को एंपावर करना होगा। अगर गरीब सशक्त होता है तो उसमें इतनी ताकत है कि वो गरीबी को खत्म कर देगा। गरीब को गरीब रख करके राजनीति तो हो सकती है लेकिन गरीबी मुक्ति की रास्ता तो गरीब को सशक्त करने में ही है। सशक्त करने में पहली बात है शिक्षा, दूसरी बात है रोजगार। आर्थिक इम्पावरमेंट, इकनॉमिकल इम्पावरमेंट अगर आता है तो फिर वो स्थितियों को बदलने के लिए खुद ताकतवर बन जाता है। हमने पिछले दिनों जितनी चीजों पर अमल किया है...जैसे मुद्रा योजना, करीब साढ़े 3 करोड़ लोगों ने मुद्रा योजना का लाभ लिया और करीब सवा लाख करोड़ से ज्यादा रुपया उनके पास आया। और उसमें से अधिकतम ऐसे हैं जो पहली बार बैंक से पैसा मिला है। वे कोई न कोई काम करेंगे, स्विइंग मसीन लाएंगे कपड़े सिलाई का काम करेंगे कुछ न कुछ करेंगे। हो सकता है वो एक आध आदमी को रोजगार भी दें। ये जो एम्पावरमेंट है उसके आगे बढ़ाने की ताकत देता है, बच्चों को पढ़ाने की ताकत देता है। मानो उसने एक टैक्सी ले ली तो उसका मन करेगा कि बच्चों को अच्छी शिक्षा दे। वो आगे बढ़ेगा। हमने एक काम किया है स्टैंड अप इंडिया। मैनें सभी बैंकों को कहा है कि आप एक दलित एक आदिवासी और एक महिला हर ब्रांच इनको आर्थिक मदद करे। उनको एंटरप्रेन्योर बनाए। देश में सवा लाख ब्रांच हैं। अगर ऐसे तीन तीन लोगों को भी वो एंपावर कर दें तो एक साथ चार पांच लाख परिवार जिनके पास पहले कोई इस प्रकार की ताकत नहीं थी वो ताकत मिलेगी। वो कितना बड़ा आर्थिक ताकत बन जाएंगे। स्टैंड अप कार्यक्रम चल रहा है। स्टार्ट अप, नौजवानों को मैं ताकत देने के लिए स्टार्ट अप चलाया। एक छोटा सा ऐसी चीज जो हमने निर्णय किया। और राज्यों को मैंने एडवायजरी भेजी है कि आप इस दिशा में आगे बढ़िए। हमारे देश में आजकल जो बड़े बड़े मॉल बनते हैं लाखों करोड़ों रुपए खर्च करके उनको बंद करने का कोई टाइमिंग नहीं है वो रात को 10 बजे चला सकते हैं, 12 बजे चला सकते हैं, भोर में चला सकते हैं लेकिन एक छोटा सा दुकानदार होगा तो सरकार के आदमी खड़े हो जाएंगे चलो बंद करो शाम हो गई है। क्यों भाई, हमने कह दिया ये छोटे व्यापारी लोग हैं ये छोटा कारोबार चला रहे हैं उनको 365 दिन चलाने की छूट है, 24/7 चलाने की छूट है ताकि वो अपना कारोबार चला सकें और एक आध आदमी को रोजगार भी दें सकें। और हमारे देश में सबसे ज्यादा इकॉनमी को ड्राइव करने के लिए ये ही लोग हैं। इन सबको बल देने का प्रयास चल रहा है। हमने स्किल डेवलपमेंट पर बहुत बड़ा बल दिया है। स्किल डेवलपमेंट आज के समय की मांग है। हमने पूरी व्यवस्थाओं को बदला है, स्किल डेवलपमेंट की अलग से मिनिस्ट्री बनाई है, अलग बजट बनाया है और बहुच बड़ी संख्या में स्किल डेवलपमेंट सरकार के द्वारा, स्किल डेवलपमेंट पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के द्वारा, स्किल डेवलपमेंट यूनिवर्सिटीज में जाकरके, दुनिया के और देश जिन्होंने स्किल डेवलपमेंट में अच्छा काम किया है उनसे भी कोलेबोरेशन कर करके। देश के पास 80 करोड़ नौजवान हैं 35 साल से कम उम्र के, अगर इन नौजवानों के हाथ में हुनर है तो हिंदुस्तान का भाग्य बदल सकते हैं और उस पर हम बल दे रहे हैं। तो आर्थिक गतिविधि के केंद्र में देश का नौजवान है, देश का रोजगार है, एग्रीकल्चर सेक्टर में भी वैल्यू एडिशन की दिशा में जाएंगे तो रोजगार की संभावना और बढ़ेगी और गांव का जवान जो कृषि छोड़कर शहर की ओर मजबूरन जाना पड़ रहा है उसको भी अगर वैल्यू एडिशन और कृषि आधारित ग्रामीण उद्य़ोग उसको अगर हम बल देंगे तो रोजगार की संभावनाएं पैदा होंगी। हम उसपर बल लगा रहे हैं और उसके अच्छे परिणाम नजर आ रहे हैं।

सवाल- आप शायद ऐसे पहले प्रधानमंत्री होंगे जिसने देश विदेश मेंबाहर भी जो भारतीय बसे हुए हैं उनसे अच्छा संवाद किया इसका देश को क्या लाभ हुआ?

नरेंद्र मोदी - हर चीज लाभ और नुकसान के तराजू से नहीं तौलनी चाहिए। दुनिया के किसी भी देश में जो हिंदुस्तानी हैं किसी भी पद पर क्यों न हो उसके दिल में एक चीज रहती है कि मेरा देश आगे बढ़े। और अगर हिंदुस्तान की थोड़ी सी भी गलत खबर उसे मिलती है तो वो सबसे ज्यादा पीड़ित होता है। वो दूर होता है तो हमसे ज्यादा ये चीजें उसके मन को चुभती हैं। हम यहां रहते हैं तो रोज 10 चीजों से गुजरते हैं तो आदी हो जाते हैं वो नहीं होता है। वो बहुत ही भारत के प्रति लगाव रखता है लेकिन उसको अवसर नहीं मिलता है चैनल नहीं मिलता है। हमने नीति आयोग में भारत के विकास पर डायस्पोरा की ताकत को स्वीकार किया है। उसकी बेसिक चीजों में स्वीकार किया है। दुनिया में इतनी बड़ी ताकत है,जिसके पास अनुभव है, ग्लोबल एक्सपीरियंस है, एकेडमिक क्वॉलिफिकेशन है, क्वालिटी है, देश के लिए कुछ न कुछ करने का इरादा है और वो जहां भी है भारत के प्रति उसका प्रेम जरा भी कम नहीं हुआ है। तो उसे हमें अपने से अलग क्यों रखना, उससे नाता तो जोड़ना चाहिए और वो कभी न कभी भारत का सच्चा एंबेसडर बनेगा और मैंने देखा है कि सरकार के मिशन से ज्यादा हमारे भारतीयों के व्यवहार के कारण और उनके संबंधों के कारण भारत की पहचान की ताकत ज्यादा उभरती है। तो मिशन प्लस डायस्फोरा ये दोनों इकट्ठे होते हैं तो अनेक गुना बढ़ जाते हैं। तो मेरी ये भूमिका रही है और इसका बहुत लाभ मिल रहा है।

सवाल- पूरे देश की नजर अगले साल उत्तर प्रदेश के चुनाव पर लगा है कहा जा रहा है कि करीब करीब वो एक मिनी नेशनल इलेक्शन टाइप का होगा। तो आप क्या समझते हैं कि कौन से मुद्दे अहम होंगे आपकी पार्टी के लिए और आप जीत की कितनी संभावना समझते हैं?

नरेंद्र मोदी - पहली बात है कि हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हम कुछ भी करें कुछ भी कहें उसे चुनाव से जोड़ दिया जाता है। जहां सवा साल बाद चुनाव होने वालों हो अगर फिर भी आप कुछ करो तो कहते हैं कि चुनाव के लिए कर रहे हैं। तो ये जो सुपर पॉलिटिकल पंडित हैं उनके दिमाग से राजनीति जाती नहीं है। प्रत्यक्ष 24 घंटे राजनीति करने वालों से ज्यादा एयरकंडिशन कमरों में बैठे हुए पॉलिटिकल पंडितों की राजनीति ज्यादा चलती है। हमारे देश में दुर्भाग्य से लगातार चुनाव चलते रहते हैं। कभी यहां तो कभी वहां चुनाव चुनाव चुनाव चलते रहते हैं और उसके कारण हर निर्णय को चुनाव के तराजू से तौला जाता है। हर बात को हर विचार को चुनाव के तराजू से तौला जाता है। जितना जल्दी हम देश को चुनाव के संदर्भ में देश चलाने की बातों से जोड़कर रखा है हमारा बहुत नुकसान हुआ है। समय की मांग है कि हम दोनों को थोड़ा अलग करें। चुनाव जब घोषित हो जाएं तब जब अपना अपना मेनिफेस्टो लेकर आएं तब चुनाव के साथ जोड़े जाएं। उससे पहले क्यो जोड़ते हो। और मैं तो देख रहा हूं कि पिछले दिनों मुझे जितनी पॉलिटिकल पार्टियां मिली हैं कोई प्रखरता से और कोई दबी जबान में हर कोई कहता है कि साहब ये बार बार चुनाव के चक्कर से देश को बाहर निकालिए। क्यों न लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ साथ हों उसी समय क्यों न स्थानिय स्वराज के चुनाव हों। हफ्ते 10 दिन के भीतर चुनाव का सारा काम पूरा हो जाए और 5 साल देश चलता रहे। तो कुछ गति आएगी, निर्णय आएंगे, ब्यूरोक्रेसी भी काम करेगी ये सुझाव सब ओर से आ रहा है लेकिन ये काम कोई एक दिल नहीं कर सकता। सभी दलों को मिल करके करना पड़ेगा। ये काम सरकार नहीं कर सकती। इलेक्शन कमीशन के नेतृत्व में जब सभी दल एकजुट होकर सोचेंगे तभी हो सकता है। मेरे विचार कुछ भी हो सकते हैं लेकिन मैं उससे कुछ कर नहीं सकता हूं। ये विषय लोकतात्रिक पद्धति से ही होगा। लेकिन मैं आशा जरूर करूंगा कि कभी न कभी इसकी व्यापक चर्चा हो, बहस हो क्या अच्छा क्या बुरा, इसमें से क्या अच्छा को लेना क्या बुरा है को निकालना ये व्यापक चर्चा का समय आ गया है। जहां तक चुनाव का सवाल है चुनाव तो आते रहते हैं, आने वाले दिनों में पांच राज्यों के चुनाव हैं। उत्तर प्रदेश एक राज्य है, जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है वो विकास के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ती है, विकास के मुद्दे पर ही लड़ेगी। देश के किसान का भला हो देश के गांव का भला हो देश के नौजवानों को रोजगार के अवसर मिले, देश में शांति एकता,भाईचारा बना रहे, सामाजिक न्याय के प्रति हमारी जो प्रतिबद्धता है वो उजागर हो। एक के बाद एक कदम उठाएं। तो इन सारी बातों को ले करके देश को आगे बढ़ाना होगा।

राहुल जोशी – क्या आपको इस बात की चिंता रहती है कि वहां पोलराइजेशन का एक माहौल बन सकता है?

नरेंद्र मोदी – हमारे देश में जातिवाद के जहर ने और संप्रदाय के वोट बैंक ने बहुत नुकसान किया है, लोकतंत्र के मजबूत होने में अगर सबसे बड़ी कोई रुकावट है तो वो वोटबैंक की राजनीति है। पिछले लोकसभा के चुनाव में वोटबैंक की राजनीति का माहौल नहीं था, विकास की राजनीति का माहौल था। समाज के हर तबके ने मिलकर तीस साल के बाद देश में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई... तो समाज का एक बहुत बड़ा तबका अब उस ओर मुड़ चुका है। हो सकता है आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश भी उत्तर प्रदेश की भलाई के लिए,उत्तर प्रदेश के लोगों की भलाई के लिए विकास को केंद्र में रख करके वोट देने की दिशा में आगे आएगी, ऐसी हम आशा करते हैं

राहुल जोशी – प्रधानमंत्री जीएक और बहुत बड़ा मुद्दा है जम्मू कश्मीर का मुद्दाआज जम्मू-कश्मीर झुलस रहा है, आपकी पार्टी भी वहां सरकार में शामिल है और स्थिति काफी बिगड़ती जा रही हैआपकी नजर में वहां की समस्या हल करने का क्या उपाय है?

नरेंद्र मोदी – एक तो हम जम्मू-कश्मीर की जब बात करते हैं तब जम्मू भी है, लद्दाख भी है, वैली भी है... एक पूरा चित्र हमें लेना चाहिए। देश आजाद हुआ, भारत का विभाजन हुआ,उसी दिन से इस समस्या के बीज बोए गए हैं। हर सरकार को इस समस्या के साथ जूझना पड़ा है। तो समस्या नई नहीं है, समस्या बहुत पुरानी है... मुझे विश्वास है कि कश्मीर के नौजवान गुमराह नहीं होंगे... हम सब शांति, एकता,  सद्भावना के साथ मिलजुल कर चलेंगे... तो जो कश्मीर सच्चे अर्थ में हमने जन्नत के रूप में अनुभव किया है, वो जन्नत हम सबके लिए सच्चे अर्थ में जन्नत बनी रहेगी। समस्याओं के समाधान भी होंगे, और इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि कश्मीर को विकास भी चाहिए, कश्मीर की जनता को विश्वास भी चाहिए... और सवा सौ करोड़ देशवासी कश्मीर घाटी के नागरिकों को विकास देने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं और विश्वास देने में कभी भारत ने कमी नहीं बरती है... वो विश्वास आज भी है, वो विश्वास आगे भी बढ़ेगा। तो विकास और विश्वास के मार्ग पर हमें आगे बढ़ना है और हम सफलता पाएंगे

राहुल जोशी – माना जाता है कि आपके शासनकाल में हाईलेवल करप्शन काफी कम हो गया है लेकिन लो लेवल पर करप्शन काफी प्रबल है। इसके लिए आपकी क्या रणनीति है?

नरेंद्र मोदी – मैं आपका आभारी हूं कि आपने इस बात को स्वीकार किया कि हाईलेवल पर करप्शन नहीं है, अगर गौमुख में गंगा साफ है तो फिर नीचे भी धीरे-धीरे गंगा साफ होती जाएगी। आपने देखा होगा बहुत सारे ऐसे निर्णय किए गए हैं जिसने करप्शन की संभावनाओं को ही नाकाम कर दिया है। जैसे हमने गैस सब्सिडी को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम में डाल दिया, और उसके कारण जो घोस्ट क्लाइंट थे, जो गलत सब्सिडी इस्तेमाल करते थे, वो बंद हो गया। चंडीगढ़ में तीस लाख लीटर केरोसिन जाता था, हमने टेक्नोलॉजी का उपयोग किया, जिसके घर में गैस कनेक्शन है, जिसके घर में बिजली है उसको केरोसिन की जरूरत नहीं... और जिसको गैस कनेक्शन नहीं था, उनको दे दिया। चंडीगढ़ को हमने केरोसिन फ्री कर दिया। तो तीस लाख लीटर केरोसिन जो काले बाजार में बेचने का कारण था, बंद हो गया। अभी मुझे हरियाणा के मुख्यमंत्री मिले थे, वो कह रहे थे कि नवंबर महीने तक वो आठ डिस्ट्रिक्ट को केरोसिन फ्री कर देंगे। इसका मतलब ये हुआ कि करप्शन जाने के रास्ते हैं... यूरिया... आपको मालूम है कि हमारे देश का किसान हर वर्ष यूरिया के लिए तड़पता था, ब्लैक मार्केट में लेना पड़ता था... और काला बाजार करने वालों का बड़ा ठेका था। कुछ प्रदेशों में तो यूरिया लेने के लिए किसान आए तो उसको लाठीचार्ज का भोग बनना पड़ता था, हो-हल्ला, दंगा हो जाता था। आपने देखा होगा इन दिनों यूरिया की कमी की कोई खबर आती नहीं है। कहीं किसानों की कतार नजर नहीं आ रही है। कहीं लाठीचार्ज नहीं हो रहा है, और यूरिया की ब्लैक मार्केटिंग भी नहीं हो रही, क्यों नहीं हो रही... तो पहले जो यूरिया था वो किसानों के नाम पर से निकलता था लेकिन चोरी करके केमिकल फैक्ट्रियों में पहुंच जाता था। केमिकल फैक्ट्री वालों को ये रॉ मैटेरियल के रूप में उपयोग आता था, वो उसको प्रोसेस करके प्रोडक्ट निकालते थे। उनको सस्ते में यूरिया मिल जाता था। बिल तो किसानों के नाम का फटता था और मलाई केमिकल इंडस्ट्री वाले खाते थे, बिचौलिए खाते थे। हमने यूरिया का नीम कोटिंग कर दिया, और नीम कोटिंग करने का परिणाम ये आया कि आज एक ग्राम यूरिया भी केमिकल फैक्ट्री के रॉ मैटेरियल के लिए काम नहीं आ सकता। इसके कारण जितना यूरिया पैदा होता है, 100% वो खेत में ही काम आता है। दूसरा हमने बीस लाख टन यूरिया उत्पादन बढ़ा दिया। विदेशों से आता है यूरिया, उसका भी हमने नीम कोटिंग कर दिया... इतना ही नहीं गुजरात में जीएनएफसी ने तो नीम कोटिंग करते समय आदिवासियों को नीम की फली इकट्ठी करने के काम में लगाया तो उनको रोजगार मिला और अब वो नीम का तेल भी निकालने लगे। और मैंने सुना है कि शायद 10-12 करोड़ का मुनाफा उन्होंने नीम के तेल में से भी पाया। तो एक विन-विन सिजुएशन वाली चीज है, जिसको हमने लागू किया तो करप्शन भी गया, कठिनाइयां भी गईं... तो एक प्रकार से नीचे के करप्शन में भी अगर हम टेक्नोलॉजी का उपयोग करेंगे, नीति आधारित कामों को करेंगे, अकाउंटबिलीटी पर बल देंगे तो जो ऊपर जो आपको अच्छा लग रहा है, वो नीचे भी अच्छा लगने लग जाएगा।

राहुल जोशी – प्रधानमंत्री जी, लोग कहते हैं कि लुटियंस दिल्ली को शायद आप रास नहीं आएमेरा सवाल ये है कि क्या आपको दिल्ली रास आ गई?

नरेंद्र मोदी – आप जानते हैं... प्रधानमंत्री की स्थिति ऐसी होती है कि उसकी लुटियंस कल्चर के साथ मेलजोल का अवसर ही नहीं आता है। तो वो मुझे रास आए या ना आए, वो तो कोई अवसर आता नहीं है। लेकिन जब मैं ये कहता हूं तो... इस बात को सोचने और समझने की आवश्यकता है... एक ऐसे लोगों के यहां जमावड़ा... दिल्ली के सत्ता के गलियारों में काम करता रहा है... और ये लोग कुछ लोगों को समर्पित हैं... हो सकता है उनके निजी फायदों के लिए होंगे, निजी कारणों से होंगे... और सवाल मोदी का नहीं है... आप इतिहास की तरफ देखिए... सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ क्या हुआ, यही जमात सरदार को एक गांव का, सामान्य बुद्धि क्षमता वाला व्यक्ति के रूप में ही पेश करता रहा। मोरार जी भाई के साथ क्या हुआ... मोरार जी भाई ने क्या काम किया, क्या नहीं किया... कभी दुनिया को पता ही नहीं चलने दिया। वो क्या पीते थे, इसी की चर्चा करते रहे। देवगौड़ा जी का क्या हुआ, एक किसान का बेटा प्रधानमंत्री बना था... लेकिन पहचान यही बना दी गई कि सोते रहते हैं। जहां देखो, सोते रहते हैं। तो एक टोली है... जो बाहर... आंबेडकर जी के साथ क्या हुआ, इतने प्रतिभावान व्यक्ति... भारत में आज हम जिन आंबेडकर जी की इतना गौरवगान हम सब करते हैं, लेकिन उनके अपने कार्यकाल में उनके साथ क्या हुआ... मजाक उड़ाया जाता था। चौधरी चरण सिंह के साथ क्या हुआ... उनका मजाक उड़ाया जाता था। तो मेरा मजाक उड़ाया जाता है, मुझे बड़ा भला-बुरा कहा जाता है... मुझे बहुत आश्चर्य नहीं होता है। क्योंकि ये कुछ ठेकेदार हैं जो कुछ लोगों को समर्पित हैं... वे शायद इस देश की जड़ों से जुड़े हुए इंसानों को स्वीकार नहीं करेंगे। और इसलिए मैंने भी... ऐसी जमात को एड्रेस करने मे अपना टाइम खराब नहीं करता हूं। सवा सौ करोड़ देशवासी... उनके सुख-दुख ही मेरे लिए इतना बड़ा काम है कि मैं अगर इस लुटियन दुनिया में ना भी जुड़ा तो कुछ कमी नहीं रहेगी। तो अच्छा ही है कि मैं देश के सवा सौ करोड़, देश के गरीब, देश का गांव... जैसा मेरा बैकग्राउंड है उन्हीं के बीच जीता रहूं, उन्हीं के बीच जुड़ा रहूं... और उससे मैं देश का जितना भला कर पाऊं करता रहूंगा।

राहुल जोशी – मोदी जी. मीडिया सर्किल्स ये चर्चा है कि अगर आपकी टीआरपी रेटिंग या व्यूअरशिप रेटिंग्स डाउन है तो सीधे मोदी जी की रैली में चले जाओ रेटिंग्स बढ़ जाएगीफिर भी आपका मीडिया के संग रिश्ता कुछ बिटर स्वीट सा रहा हैकभी हां... ज्यादातर नाइंडियन मीडिया के बारे में आपकी क्या राय है?

नरेंद्र मोदी – पहली बात है कि मैं आज जो कुछ भी हूं उसमें मीडिया का बहुत बड़ा कंट्रीब्यूशन है, और इसलिए मैं... मेरे विषय में जो छवि है वो सही नहीं है... मेरे लिए ये शिकायत हो सकती है कि मोदी जी चलते-फिरते बाइट नहीं देते हैं... मोदी जी विवादास्पद मसाला नहीं देते हैं... तो ये... ये शिकायत बहुत स्वाभाविक है... मैं ज्यादातर काम में लगा रहता हूं और आदत रहेगी, चलो भाई काम ही बोलेगा... तो ये शिकायत मैं... उनका हक भी है। दूसरा मैं बहुत सालों तक संगठन का काम किया... तो मीडिया जगत से मेरी बहुत दोस्ती रही... शायद आज जो मीडिया में जितने नाम दिखते है आपको, उसमें कोई ऐसा नहीं होगा जिनके साथ बैठकर मैंने गप्पे ना मारे हों, चाय ना पी हो, हंसी-मजाक ना की हो... तो मैं उन्हीं के बीच में से पला-बढ़ करके निकला हूं तो मैं कोई... उनके और मेरे बीच में कोई मार्जिन नहीं है... ज्यादातर मीडिया ने जो प्रधानमंत्री देखे हैं वो बहुत बड़े व्यक्ति प्रधानमंत्री बनते देखा है... मेरा केस ऐसा है कि मैं मीडिया के दोस्ताना तरीके में से निकला हुआ एक प्रधानमंत्री हूं... आज शायद इतने सारे मीडिया को नाम से बुलाने वाला भी शायद मैं पहला प्रधानमंत्री रहा हूं। तो उनकी अपेक्षाएं बहुत स्वाभाविक हैं... मीडिया अपना काम करता है, वो करता रहेगा। और मेरा ये स्पष्ट मत है कि सरकारों की, सरकार के कामकाज का कठोर से कठोर एनालिसिस होना चाहिए। क्रिटिसिज्म होना चाहिए, वर्ना लोकतंत्र चल ही नहीं सकता। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि आज मीडिया... इतनी आपाधापी है, टीआरपी के लिए उसे इतना दौड़ना पड़ता है कि उसके पास रिसर्च करने का टाइम बहुत कम बचा है, और रिसर्च किए बिना क्रिटिसिज्म संभव नहीं है। क्रिटिसिज्म करने के लिए... अगर आपको दस मिनट भी क्रिटिसिज्म करना है तो उसके लिए दस घंटे रिसर्च करना पड़ता है... और आज मीडिया के पास समय ही नहीं बचा है... वो भी दौड़ते हैं कैमरा ले-लेकर... और क्रिटिसिज्म ना होने के कारण आरोपों की तरफ चले जाते हैं सब लोग। तू-तू, मैं-मैं की तरफ चले जाते हैं। और उससे लोकतंत्र का भी नुकसान होता है और सरकारों में सुधरना चाहिए जो, एक डर पैदा होना चाहिए... वो डर भी निकल जाता है। तो ये डर अगर सरकारों में से निकल जाएगा तो देश का नुकसान बहुत होगा। इसलिए मैं तो चाहता हूं कि मीडिया बहुत ही क्रिटिकल हो, मीडिया तथ्यों के आधार पर क्रिटिसिज्म करे... इससे देश का भला होगा... तो मैं तो उस पक्ष का व्यक्ति हूं... और इसलिए... ये ठीक है कि मीडिया की कुछ मजबूरियां हैं, उनको भी इस कॉम्पटीशन में टिके रहना है, ज्यादातर मीडिया हाउस घाटे में चल रहे हैं तो उनकी चिंता तो बहुत स्वाभाविक है। और कुछ काम मैं आऊं ना आऊं, अगर इस काम में भी मैं मीडिया के आता हूं तो चलो भाई मेरे लिए संतोष की बात है। और आपने कहा कि रैली में आने से उनकी टीआरपी बढ़ जाती है, मैंने देखा है कि शायद मुझको गाली देने वालों को मैदान में लाकर टीआरपी आजकर बढ़ाने का प्रयास हो रहा है। तो रैली से ज्यादा गाली काम आ जाती है।

राहुल जोशी – मीडिया की तरह ही ज्यूडिशियरी के साथ भी आपके रिश्ते में कुछ खींचातानीकुछ तनाव रहा हैऐसा क्यों है और इसका क्या है

नरेंद्र मोदी – एक बिल्कुल ही गलत सोच है... ये सरकार ऐसी है कि जिसको नियमों से चलना है, कानून से चलना है, संविधान के तहत चलना है... उसको किसी भी संवैधानिक इंस्ट्रीट्यूशन के साथ संघर्ष की संभावना नहीं है, तनाव की संभावना नहीं है और ये जो बाहर जो परसेप्शन बना है वो सही नहीं है... संविधान की मर्यादा में ज्यूडिशियरी के साथ जितना नाता रहना चाहिए, उतना नाता रहता है, जितना ऊष्मापूर्ण वातावरण रहना चाहिए उतना ऊष्मापूर्ण रहता है... और सरकार की तरफ से जितनी मर्यादाओं का पालन करना चाहिए,उन सारी मर्यादाओं का पालन करने का मेरा भरपूर प्रयास रहता है।

राहुल जोशी – आपने हमे बहुत समय दियाथोड़े कुछ पर्सनल क्वेश्चन पूछना चाहूंगा... हमारे दर्शक जानना चाहेंगे कि असली मोदी का रूप क्या है... मैंने सोचा कि कुछ पर्सनल सवाल आपसे... थोड़ा सा समय और... आप जब देश में आए हमें एक स्ट्रॉन्ग लीडर मिला... डिसाइसिव लीडर मिला... लोगों ने आपमें लौहपुरुष देखा... तरह-तरह की चीजें देखी... दूसरी तरफ दो सालों में हमने ये भी देखा कि आप बहुत बार भावुक भी हो गए... 2-3 बार तो रोने भी लगे... तो दर्शक ये जानना चाहेंगे कि नरेंद्र मोदी का असली रूप क्या है या कितने अनेक रूप हैं

नरेंद्र मोदी – अगर आप किसी फौजी को सीमा पर देखोगे... वो जी-जान से खप जाता है, मरने-मारने पर तुल जाता है क्योंकि वो उसकी ड्यूटी है... लेकिन वही जवान जब अपने बेटे के साथ खेलता... है उस समय आप चाहोगे कि वहां भी बंदूक दिखाकर, आंख तानकर खड़ा रहे... और उसका मतलब ये नहीं कि उसके दो रूप हैं... एक ही रूप है... आपका प्रधानमंत्री, आपका प्रधान सेवक या आपका नरेंद्र मोदी... कहीं पर भी हो, कुछ भी हो... लेकिन आखिर इंसान तो है... मेरे भीतर भी तो इंसान है। और मुझे क्यों अपने भीतर के इंसान को दबा देना चाहिए। छुपा देना चाहिए। जैसा हूं वैसा... जिस हालत में हूं हालत में, लोग देखते हैं देखना चाहिए, उसमें क्या है... जहां तक कर्तव्य का सवाल है, जिम्मेवारियों का सवाल है... ये मेरा दायित्व है उसको मुझे पूरी तरह निभाना चाहिए। अगर देशहित में कठोर निर्णय करने पड़ते हैं तो करने चाहिए। अपने दायित्व को निभाने के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है तो करना चाहिए। जहां झुकने की जरूरत है वहां झुकना भी चाहिए। जहां तेज चलने की जरूरत है वहां तेज चलना भी चाहिए। लेकिन वो व्यक्तित्व के पहलू नहीं हैं,जिम्मेवारियों का हिस्सा है। और उसको पूरी तरह निभाना चाहिए। लेकिन असली मोदी क्या है, नकली मोदी क्या है... ऐसा कुछ नहीं होता है, इंसान इंसान होता है। अगर आप राजनीतिक चश्मों को निकाल करके मोदी को देखोगे तो आपको मोदी जैसा है वैसा नजर आएगा। लेकिन जब तक आप अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर, अपने राजनीतिक चश्मों के आधार पर, अपनी बनी बनाई मान्यताओं के आधार पर... सिर्फ मोदी का नहीं किसी का भी मूल्यांकन करोगे तो गड़बड़ी में जाएगी।

राहुल जोशी – मोदी जीमैं आपसे पिछले वर्षों में कई बार मिला हूं... गांधीनगर में मुख्यमंत्री के रूप में आपको देखा हैप्राइम मिनिस्टर ऑफिस में आपसे आकर मिला... मैंने कभी भी आपको टेबल पर कोई फाइल या पेपर नहीं देखा। इनफैक्ट कभी ये याद नहीं आता कि कोई फोन भी आपके पास रहा हो। जब भी हम लोगों का वार्तालाप हुआ हैउसमें कभी बीच में किसी ने दखलअंदाजी भी नहीं की... एकदम अलग काम करने का तरीकाएकदम सीईओ के काम करने का तरीका... कुछ लोग कहते हैं कि आप सुनते ज्यादा हैं और बोलते कम हैं... तो आपकी वर्किंग स्टाइल क्या है?

नरेंद्र मोदी – आपने काफी सही ऑब्जर्वेशन्स किए हैं... और मैं आपका आभारी हूं क्योंकि मेरी छवि ये बनाई गई है कि मैं किसी की सुनता नहीं हूं, छवि ये बनाई गई है कि मैं दुनिया को डांटता हूं... आपकी बात सही है... देखिए मेरा जो विकास हुआ है उसका एक कारण... मैं बहुश्रुत हूं... और आज से नहीं मैं... जबसे समझदारी आने लगी, तो सुनना, समझना,ऑब्जर्ब करना... ये मेरे स्वभाव का हिस्सा रहा है... और उसका मुझे काफी फायदा मिल रहा है... मैं वर्कहॉलिक तो हूं ही हूं, मैं... काम करने की आदत है... लेकिन मूल बात है मैं वर्तमान में जीना पसंद करता हूं... अगर आप मुझे मिलने आए हैं तो मेरा वो वर्तमान है। उस समय मैं पूरी तरह आपके साथ डूब जाता हूं। उस समय ना मैं टेलीफोन को हाथ लगाता हूंना मैं कागज देखता हूंना मैं अपना फोकस खोता हूं... अगर मैं फाइलें देखने के लिए बैठा हूं तब भी मैं वर्तमान में होता हूं... तो किसी और चीज की तरफ... तब मैं फाइलों में ही खोया रहता हूं... अगर मैं दौरा करता हूं तो मैं फिर मैं उस वक्त उसी काम में खोया रहता हूं... मैं हर पल वर्तमान में जीने का प्रयास करता हूं। और उसके कारण मुझे कभी... जिस समय जो काम करता हूं... सामने वाले को सैटिसफैक्शन मिलता है... कि भई मुझे मैंने क्वालिटी टाइम दिया... सिर्फ टाइम दिया ऐसा नहीं, क्वालिटी टाइम दिया... उसको ऐसा रहता है... दूसरी बात है कि अपने काम को न्याय देना चाहिए, ये मेरा हमेशा प्रयास रहता है। सीखना चाहिए, समझना चाहिए... और पांच साल पहले हमारे जो विचार थे, वो शायद आज उपयुक्त ना भी हों... तो छोड़ने की हिम्मत चाहिए। अपने आपको बदलने की हिम्मत चाहिए। अपनी ही पुरानी चीजों का बोझ लेकर चलना चाहिए, ये मेरे नेचर में नहीं है। उसके कारण मेरे काम करने का तरीका इस प्रकार डेवलप हुआ है।

राहुल जोशी – मोदी जी आपके बारे में कहते हैं कि आप 16-18 घंटे काम करते हैंबहुत पनिशिंग शेड्यूल है आपका। रिलैक्स कैसे करते हैं?

नरेंद्र मोदी – ऐसा है... मेरा काम ही मेरा रिलैक्सेशन है... आप भी देखिए काम से कभी थकान नहीं मिलती... काम ना करने की थकान होती है। अगर आपको दस चिट्ठियां लिखनी है,और आपने दो लिखी तो आपको थकान लगेगी कि आठ रह गईं... लेकिन दस पूरी कर दिए, खाना भी छूट गया तो आपको संतोष होगा, अरे वाह चलिए आज काम हो गया दस चिट्ठी लिख दी... एक्चुअली काम ना करने की थकान होती है... काम करने का संतोष होता है। और संतोष हमेशा नई शक्ति देता है, ये मैंने भी अनुभव किया और मैं अपने नौजवान मित्रों को हमेशा कहता हूं कि थकान जो है वो मनोवैज्ञानिक ज्यादा होती है। और किसी की कैपिसिटी कम नहीं होती है, काम का जितना वैल्यूम... आपकी कैपिसिटी अपने आप उतनी उभरेगी। आप नई-नई चैलेंज उठाते जाइए, आपके भीतर से ताकत उभरती जाएगी। आपके पास इनबिल्ट है ही... लेकिन आपने कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया है।

राहुल जोशी – मोदी जीकिसी शख्स का आपको ऊपर बहुत प्रभाव रहा होउसके बारे में जरा कुछ बताइए

नरेंद्र मोदी – वैसे बचपन में मुझे फायदा मिला, हमारा जो गांव था वो गायकवाड़ स्टेट था... और गायकवाड़ महाराजा की एक विशेषता रही थी कि वो हर गांव में लाइब्रेरी बनवाते थे... गायकवाड़ की गवर्नमेंट स्कूल होती था, प्राथमिक स्कूल हमेशा होता था... मेरी पढ़ाई भी गवर्नमेंट के प्राथमिक स्कूल में हुई है। तो छोटे स्कूल होते हैं तो गरीब बच्चे भी स्कूल में आते हैं... तो टीचर का ध्यान भी ज्यादा रहता है, पर्सनल अटेंशन रहता है... उसमें किताबों का शौक लगा था बचपन में... अब तो नहीं पढ़ पाता हूं और लाइब्रेरी अच्छी थी तो किताबें पढ़ता था... तो वो मेरे मन को झकझोरते थे... बाद में मैं, 12-13-14 साल की उम्र में स्कूल में ऑरेटरी प्रतिस्पर्धा में भाग लेने लग गया... फिर मैंने देखा कि मुझे विवेकानंद जी के कोटेशन ज्यादा अच्छे लगते थे मुझे बोलने में... बड़े मिजाज से बोल सकता था... तो उसमें और गहरे जाने लगा... और डिबेट में काफी हिस्सा लेता था... हिंदी भाषा पर भी मेरी ज्यादा रूचि बढ़ने लग गई... तो एक प्रकार से कह सकता हूं कि विवेकानंद जी के विचारों का काफी प्रभाव रहा मुझ पर... अभी भी शायद वो रहता होगा...

राहुल जोशी – अब आखिरी सवालभारत के इतिहास में नरेंद्र मोदी खुद को कहां पाते हैं

नरेंद्र मोदी – जो इंसान वर्तमान में जीने का शौकीन हो वो इतिहास की चिंता क्यों करे... और जीवन में कभी भी ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए कि अपने लिए कुछ करे... देखिए हमारे देश का दुर्भाग्य ये रहा है कि सरकारों ने भी अपनी छवि बनाने की भरपूर कोशिश की... राजनीतिक दलों ने भी अपनी छवि बनाने की भरपूर कोशिश की... शासन पर बैठे लोगों ने भी अपनी छवि बनाने की भरपूर कोशिश की... काश, अच्छा होता अपनी छवि बनाने के बजाय हमने देश की छवि बनाने के लिए अपने आप को खपा दिया होता... सवा सौ करोड़ देशवासी... ये इतिहास की अमरकथा है... उन सवा सौ करोड़ देशवासियों में एक मोदी होगा, उससे ज्यादा और कुछ नहीं होगा... ऐसी ही मोदी की पहचान हो, वो सवा सौ करोड़ में खो गया हो... सवा सौ करोड़ में लिप्त हो गया हो... इतिहास के किसी पन्ने पर नजर ना आता हो... अगर ऐसी जिंदगी जी करके जाऊं... अपने आप को पूरी तरह खपा दूं, आहुत कर दूं तो उससे बड़ा जीवन का आनंद क्या होगा... यही खुशी होगी

Source: News 18