कपास के निर्यात पर प्रतिबंध के चलते गुजरात के
मेहनती किसानों को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान
गुलाबी क्रांति लाने पर यूपीए गर्व महसूस कर रही है लेकिन गुजरात के किसानों की खुशहाली के संदर्भ में एक शब्द भी नहीं बोल रही
क्या हो जब एक व्यक्ति को बदनाम करने की भूख एक समूचे राज्य और उसके मेहनती लोगों के खिलाफ जंग में तब्दील हो जाए? क्या हो जब एक राज्य में लगातार ३० वर्ष से हार रही पार्टी उस राज्य में पैर जमाने का प्रयास करने में बेसब्र हो जाए? क्या हो जब प्रगति के लिए स्पष्ट विजन का स्थान कुछ लोग अपनी अल्प दृष्टि द्वारा लेने का प्रयास करें? यदि आपको यह सब घटित होते हुए देखना हो तो कांग्रेस-शासित यूपीए सरकार गुजरात के लोगों के साथ कैसा व्यवहार कर रही है वह देख लीजिए। अपने निजी स्वार्थ के लिए इस पार्टी ने गरीब से गरीब व्यक्ति को भी नहीं छोड़ा है। श्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार कहा था कि कांग्रेस को जब २००४ में केन्द्र में सत्ता हासिल हुई तब उसकी पहली इच्छा नरेन्द्र मोदी को गिरफ्तार कर धारा-३५६ के तहत उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने की थी। यह कांग्रेस की पुरानी चाल रही है। आज आठ वर्ष बीत चुके हैं, उसकी इच्छा सफल नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस ने अभी हार नहीं मानी है। कांग्रेस निरंतर श्री मोदी को बदनाम करने का प्रयास करती आई है, और न जाने कितनी निंदा करती रही है। इतना ही नहीं, इस पार्टी ने गुजरात के उन लोगों को भी नहीं छोड़ा है जो अपनी अथक मेहनत के जरिए सफलता हासिल करना चाहते हैं। कपास का उदाहरण ले लीजिए। गुजरात आज देश का सबसे बड़ा कपास उत्पादनकर्ता है। प्रतिवर्ष ९८ लाख गांठ से बढ़कर इस वर्ष कपास का उत्पादन ११६ लाख गांठ तक पहुंच गया है। केन्द्रीय मंत्री शरद पवार ने लोकतंत्र के सबसे पवित्र स्थान यानी संसद में कहा था कि गुजरात सबसे बड़ा कपास उत्पादनकर्ता है, और ऐसी स्थिति में आम तौर पर किसी भी सरकार को गुजरात के किसानों को ज्यादा प्रोत्साहन देने का प्रयत्न करना चाहिए। ताकि गुजरात का कपास न सिर्फ देश के अन्य भागों तक बल्कि दुनिया भर में पहुंच सके और गुजरात के किसान समृद्ध बन सकें।
लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो न सका। बिल्कुल एकतरफा कहा जा सके इस तरह केन्द्र ने कपास के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय का ऐलान कर दिया। सबसे ज्यादा कपास पैदा करने वाले गुजरात के किसानों को इस निर्णय की सर्वाधिक मार सहन करने की नौबत आई। एक बार फिर, जब नई दिल्ली में न्याय के सभी दरवाजे बंद हो गए तब श्री मोदी कपास किसानों की सहायता के लिए आगे आए। उन्होंने कपास निर्यात पर लगे प्रतिबंध को तत्काल वापस लेने की बात प्रधानमंत्री से स्पष्ट तौर पर कही। उन्होंने सवाल उठाया कि जब कपास की अधिकतम कीमत मिल रही है तब उसके निर्यात पर प्रतिबंध क्यों लगाया जा रहा है? प्रतिबंध की वजह से भाव नीचे चले गए और किसानों को ७,००० करोड़ रुपये जितनी भारी रकम का नुकसान सहन करने की नौबत आई है। केन्द्र सरकार को भले ही यह रकम मामूली चिल्हर पैसों की तरह लगे लेकिन दिन-रात कड़ी मेहनत करने वाले किसानों के लिए यह नुकसान इतना बड़ा है जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती। इतना ही नहीं, केन्द्र ने गुजरात के किसानों के लिए वाजिब कहा जा सके उतना समर्थन मूल्य भी तय नहीं किया। कम से कम उतना ही करे तो भी किसानों को अच्छी रकम मिल जाए।