Hon. Chief Minister's Speech at Fergusson College, Pune

Published By : Admin | July 14, 2013 | 16:29 IST

श्रीमान डॉ. श्रीकृष्ण कानेटकर जी, डॉ. रविन्द्र सिंह परदेशी जी, मेरे साथी श्रीमान श्याम जाजू जी, उपस्थित सभी महानुभाव और सौ नौजवान मित्रों..! जो लोग इस सभा गृह में नहीं पहुंच पाए हैं और जिन्हें दूर से ही इस कार्यक्रम को देखने का अवसर आया है, उन मित्रों से मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप कार्यक्रम के बाद रूकिए, मैं आपके पास आऊंगा। मैं श्रीमान विजय शिरके जी के परिवार को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ, उन्होंने इस ऐतिहासिक स्थल को सुरक्षित और संवर्धन करने के लिए अपने परिवार का योगदान दिया और इस पवित्र कार्य को करने के लिए जिस परिवार ने योगदान दिया, उस परिवार का सम्मान करने का मुझे सौभाग्य मिला, इसलिए मैं आप सबका बहुत आभारी हूँ..!

ई वर्षों से फर्ग्यूसन कॉलेज के संबंध में, यहाँ की शिक्षा प्रवृत्ति के संबंध में, जब भी कुछ महापुरूषों के जीवन को पढ़ने का अवसर मिला, तो अवश्य रूप से फर्ग्यूसन कॉलेज का उल्लेख आया। मन में था ही कि कभी ना कभी इस पवित्र धरती की रज अपने माथे पर चढ़ाने का सौभाग्य मिले, और वो सौभाग्य मुझे आज मिला है। वीर सावरकर जी प्रशिक्षा काल में जिस जगह पर रह कर के स्वातंत्र्य देवी की उपासना करते थे, जहाँ से वो स्वातंत्र्य का संदेश अपने साथियों को सुनाते थे, उस कक्ष में जाने का मुझे सौभाग्य मिला। भारत माँ की उत्कृष्ट सेवा करने की तीव्रतम इच्छा के वाइब्रेशन्स उस कक्ष में अनुभव किए, ये भी मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ। और जिस स्थान पर मैं अभी खड़ा हूँ, इतिहास गवाह है कि एक सौ साल पुरानी ये विरासत है, जहाँ पर देश के गणमान्य महानुभावों ने अपने विचारों से युवा पीढ़ी का और राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है..! हम कुछ भी ना करें, किसी वक्ता को भी ना बुलाएं, सिर्फ मौन हो कर के सौ साल की उस विरासत का हम अनुभव करें और मन में फिर स्मरण करें कि इस भूमि पर गांधी आएं होंगें तो कैसा दृश्य होगा, रविन्द्रनाथ टागोर आए होंगे तो कैसा दृश्य होगा, श्री रमण आएं होंगें तो कैसा दृश्य होगा..! ऐसे-ऐसे महापुरुष जब इस कक्ष में आए होंगे तो वो पल कैसे होंगे..! अगर हम मौन रह कर के कुछ पल उस स्मृतियों का स्मरण करें, तो मित्रों मुझे विश्वास है कि उन महापुरूषों के शब्द भाव आज भी यहाँ आंदोलित होते होंगे। हम उस आंदोलित भावों को अनुभव कर सकते हैं, सिर्फ हमारे मन की स्थिति होनी चाहिए..! अगर हमारे मन की स्थिति हुई तो हम अनुभव कर सकते हैं। जैसे टीवी पर हम हमारे पंसद की चैनल चलाते हैं और वो चैनल हमारे पास आती है, वैसे ही मन की चैनल को उसके साथ जोड़ दिया जाए तो हम उसकी अनुभूति कर सकते हैं। और ऐसे स्थान पर मुझे कुछ कहने का सौभाग्य मिल रहा है, ये अपने आप में मेरे लिए एक बहुत बड़े सौभाग्य का पल है और मैं इसके लिए यहाँ के सभी व्यवस्थापकों का बहुत-बहुत आभारी हूँ..!

मेरा फर्ग्यूसन कॉलेज में आना जब तय हुआ, तो मैंने एक छोटा सा प्रयोग किया। मैं सोशल मीडिया में बहुत एक्टिव हूँ। ट्विटर, फेसबुक पर नई पीढ़ी के साथ जुड़ा रहता हूँ, उनके विचारों को जानने का मुझे बहुत अच्छा अवसर मिलता है। तो मैंने इस फर्ग्यूसन कॉलेज में आने से पहले फेसबुक पर एक रिक्वेस्ट लिखी थी कि मैं फर्ग्यूसन कॉलेज जा रहा हूँ, वहाँ के विद्यार्थी मित्रों से मिल रहा हूँ, तो आपको क्या लगता है कि मुझे क्या कहना चाहिए..? आप मुझे गाइड करें, मेरा मार्गदर्शन करें..! ऐसा मैंने सोशल मीडिया में जो नौजवान एक्टिव हैं उनसे प्रार्थना की थी। और मैं आज बड़े आनंद और गर्व से कहता हूँ कि देश के कोने-कोने से ढाई हजार से अधिक नौजवानों ने मुझे चिट्ठी लिखी। यहाँ पर क्या बोलना, क्या कहना, उनके मन में क्या व्यथा है, क्या पीड़ा है... इतने उत्तम शब्दों में उन्होंने लिखा..! मेरे भाषण में उन नौजवानों के विचारों की छाया रहेगी क्योंकि मैंने उसे पढा है। एक प्रकार से आज के मेरे भाषण को बांधने में बहुतेक मात्रा में सोशल मीडिया में मुझे एडवाइज करने वाले उन नौजवानों का योगदान है और एक प्रकार से ये भाषण मोदी का नहीं है, ये भाषण उन ढाई हजार सोशल मीडिया पर एक्टिव और प्रोएक्टिव उन नौजवानों का है, मैं सिर्फ उसको अपनी वाणी दे रहा हूँ और हो सकता है कुछ भाषा में मेरे अपने भाव प्रकट होंगे लेकिन मूल विचार उन नौजवानों ने दिए हैं। मैं फिर से एक बार उन नौजवानों का बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूँ..! और मैं एक संतोष व्यक्त करता हूँ। कभी-कभी चर्चा चलती है कि भई देश के नौजवान, देश की स्थिति, क्या चलता होगा..? ये ढाई हजार देश के हर कोने में से है। कश्मीर से भी लिखने वाले लोग हैं, नागालैंड और मिजोरम से भी लिखने वाले लोग हैं, कन्याकुमारी से भी लिखने वाले लोग हैं... देश के हर कोने से लिखने वाले लोग हैं। और मैं उसमें एक समान भाव देखता हूँ, मैं उसमें एक समान तंतु देखता हूँ। और वो समान तंतु ये नजर आता है कि ये सब के सब देश की हर बात से, हर घटना से बहुत ही कन्सर्न्ड है।

हम जो मानते हैं कि हमारे नौजवानों को कोई परवाह नहीं, वो तो बस जींस का पैंट पहनना और लंबे बाल रखना यही उसका काम है, ऐसा नहीं है..! वे सोचते हैं, वे कुछ करना चाहते हैं, वे कुछ कहना चाहते हैं और ये मैंने आज इस फर्ग्यूसन कॉलेज के मेरे लेक्चर के माध्यम से अनुभव किया कि नौजवानों के दिल में क्या आग है, क्या स्पार्क है, क्या सपने हैं, कितना सामर्थ्य पड़ा है, कठिनाइयों के बावजूद भी कुछ करने का कितना उमंग और उत्साह है..! और जिस देश का नौजवान इतना सामर्थ्यवान हो, कुछ करने के लिए प्रतिबद्घ हो, उस देश का भविष्य कभी भी अंधकारमय नहीं हो सकता है, ये मैं आज इस पवित्र धरती से कहना चाहता हूँ..! और हम बहुत भाग्यशाली हैं, हम विश्व के सबसे युवा देश हैं। हमारे देश की 65% जनसंख्या 35 से कम आयु की है। जिस देश के अंदर 65% से अधिक जनसंख्या 35 से कम आयु की हो, वो युवा देश दुनिया को क्या कुछ नहीं दे सकता है, दुनिया के लिए क्या कुछ नहीं कर सकता है..! एक प्रकार से ना सिर्फ हिन्दुस्तान की समस्याएं, बल्कि विश्व की समस्याओं के समाधान के लिए भी ये युवा शक्ति काम आ सकती है, बशर्ते कोई करने वाला हो, कोई सेाचने वाला हो, कोई दिशा देने वाला हो, कोई उंगली पकड़ कर चलने वाला हो, तो सब कुछ संभव है..!

मित्रों, आज जो देश में निराशा का माहौल है..! चारों तरफ, कोई भी मिले तो कहता है, छोड़ो यार, पिछले जन्म में क्या पाप किये होंगे जो हिन्दुस्तान में पैदा हुए..! छोड़ो यार, कुछ होना नहीं है..! अरे छोड़ो यार, तुम क्यों औरों की परवाह करते हो, तुम अपना कर लो..! ये ही भाषा सुनाई देती है। मित्रों, मैं इस भाषा को, इस निराशा के स्वर को एन्डोर्स नहीं करता हूँ। ये बहुरत्ना वसुंधरा है, हजारों सालों की सांस्कृतिक विरासत के हम धनी हैं। 1200 साल की गुलामी के बाद भी सीना तान कर खड़े रहने का सामर्थ्य इस धरती का है। क्या कारण है..? लोकमान्य तिलक ने अंग्रेज सल्तनत के सामने उस समय जो ललकार किया था, ‘स्वराज्य मेरा जन्म सिद्घ अधिकार है’, वो कौन सी ताकत थी, कौन सा आत्मविश्वास था..! अगर गुलामी के उस कालखंड में भी हमारे उस समय के नेताओं में वो सामर्थ्य था, तो आज तो देश स्वतंत्र है, निराशा किस बात की..? और इसलिए मित्रों, देश को इस निराशा के माहौल से ऊपर उठना बहुत आवश्यक है। और ऐसा नहीं है कि सब कुछ डूब चुका है, आज भी बहुत कुछ अच्छा होने की संभावना है..!

ज हमारी शिक्षा व्यवस्था की अगर हम चर्चा करें, तो ऐसे हालात क्यों हुए..? जो लोग हमारे देश के एज्यूकेशन के इतिहास को जानते हैं उनको पता होगा, हजारों वर्ष से हमारी कैसी महान परंपराएं थी..! मैं तो रिसर्च स्कॉलर्स से प्रार्थना करता हूँ कि हमारी गुरूकुल की शिक्षा परंपरा और आज की अमेरीका की मॉडर्न एज्यूकेशन सिस्टम, दोनों को आधुनिक तराजू पर तोल कर देखा जाए तो हमें ध्यान में आएगा कि जिस प्रकार से अमेरिकन एज्यूकेशन सिस्टम में व्यक्ति के भीतर की ताकत को उजागर करने के लिए एक प्रॉपर एन्वायरमेंट प्रोवाइड किया जाता है, उसकी रूचि, प्रकृति, प्रवृति के अनुसार उसको विकसित होने का माहौल दिया जाता है। उसको फ़ीड नहीं किया जाता है, उसको लर्निंग के लिए रास्ते दिखाए जाते हैं। अगर हम हमारी गुरूकुल पंरपरा को देखें, तो उसमें क्या था..? एक ही ऋषि की चर्चा हो, एक ही ऋषि के आश्रम की चर्चा हो, लेकिन उसी के वहाँ राजकुमार भी पढ़ता है, योद्घा भी पढ़ता है, राज व्यवस्था को संभालने वाले मंत्री लोग भी पढ़ रहे हैं, कर्मकाण्ड करने वाले पंडित भी पढ़ रहे हैं, वेद के ज्ञानी होना चाहते हैं वो भी पढ़ रहे हैं... क्या कारण होगा? एक ही छोटा सा आश्रम, एक ही ऋषि और वहाँ सब विधाओं को इस प्रकार से सामर्थ्यवान बनने के लिए अवसर मिलता होगा..! उसी एक जगह से राजकुमार, राजकुमार के लिए जो चाहिए वो शिक्षा-दीक्षा लेकर के निकलता था। योद्घा, योद्घा के लिए जरूरी शिक्षा-दीक्षा लेकर के निकलता था। टीचर, टीचर के लिए, क्राफ्ट मैन, क्राफ्ट मैन के लिए, पंडित, पंडित के लिए जरूरी शिक्षा-दीक्षा लेकर के निकलता था... क्या कारण था..? और आज उस पुरानी परंपराओं को देखें तो हम सोच सकते हैं कि हमारे पास कितना कुछ था, जो हमने गंवा दिया..! मित्रों, हमारा सपना होना चाहिए गुरूकुल से विश्वकुल तक की यात्रा का..! हम वो लोग हैं जिन्होंने उपनिषद से उपग्रह तक की यात्राएं की हैं, गुरूकुल से विश्वकुल तक के सपने संजोएं हैं..! लेकिन फिर भी आज विश्व जब 21वीं सदी किसकी का सवाल पूछता है तब हम सवालिया निशान के नीचे झुक कर के खड़े हो जाते हैं। ऐसी स्थिति कब तक..? मित्रों, जो यूनिवर्सिटी के इतिहास को जानते हैं उनको मालूम होगा। हमारे यहाँ यूनिवर्सिटीज़ में कॉन्वोकेशन की जो परंपरा होती है, सबसे पहले कॉन्वोकेशन का उल्लेख तैत्रेयी उपनिषद में मिलता है। दुनिया में मानव जात के इतिहास में सबसे पहला कॉन्वोकेशन तैत्रेयी उपनिषद में लिखा गया है जो कि हजारों साल पुरानी रचनाएं हैं..! मित्रों, यदि यूनिवर्सिटीज़ की अवेलेबल हिस्ट्री को देखा जाए तो कहा जाता है कि पूरी मानव संस्कृति की विकास यात्रा में यूनिवर्सिटी शिक्षा की उम्र करीब 2600 साल होगी, और आज मैं गर्व से कहता हूँ कि 2600 साल की इस शिक्षा-दीक्षा की यात्रा में 1800 साल तक एक चक्रीय शासन अगर किसी का रहा है, तो वो हिन्दुस्तान के हमारे शिक्षकों का रहा है, हमारी शिक्षा प्रणाली का रहा है। बीच के 800 साल जो हमारी गुलामी के थे, उस समय हमने सब गंवा दिया और विश्व की शिक्षा प्रणालियों ने अपना सिर ऊंचा किया।

 

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