जुलाई, २०१२

महात्मा मंदिर, गांधीनगर

भी महानुभावों तथा युवा मित्रों, आज चार जुलाई है। आज से ११० साल पहले स्वामी विवेकानंद का देहावसान हुआ था। ११० पहले आज की तारीख को स्वामी विवेकानंद इस जगत को छोड़ कर परलोक सिधार गए थे। परंतु उस समय अपने जीवनकाल के दौरान स्वामी विवेकानंद ने खुद कहा था और उनके जाने के बाद इस देश के अनेक महानुभावों ने भी कहा है तथा हम सब भी महसूस कर रहै हैं। उन्होंने कहा था कि इस शरीर के साथ मेरा संबंध तो बहुत छोटा है। सिर्फ ३९ साल की युवा अवस्था में समस्त विश्व को अचंभित करके विवेकानंद ने इस दुनिया से विदा ली। उन्होंने कहा कि शरीर के साथ तो मेरा संबंध बहुत छोटा है, पर मैं जन्म जन्मान्तर तक अपने मिशन की पूर्ति के लिए अविरल प्रयास करता रहूँगा। इस राष्ट्र के अनेक महापुरुषों, महात्मा गांधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस हों या फिर अरविंद जी हों, सभी ने कहा है कि विवेकानंद जी आज भी इस राष्ट्र को प्रेरणा देते हैं और सामर्थ्य भी देते हैं। आज उनकी पुण्य तिथि पर हम एक ऐसा काम आरंभ कर रहे हैं, एक विचार को आज हकीकत में बदल रहे हैं, जिसका असर पीढिय़ों तक रहने वाला है।

दोस्तों, आज का यह घटनाक्रम सिर्फ कोई नई योजना की शुरूआत ही नहीं है। आज का यह अवसर गुजरात के लोगों को सिर्फ कम्प्यूटर के साथ जोडऩे का ही नहीं है। आज का अवसर वर्तमान पीढ़ी को आने वाली पीढ़ी के साथ जोडऩे का एक सफल प्रयास भी है। दोस्तों, आज दुनिया बदल चुकी है। दुनिया बदल रही है और इस बदलती दुनिया को जो नहीं जान पाएगा, बदलती दुनिया को जो स्वीकार नहीं कर पाएगा, तो वह काल-बाह्य हो जाएगा, इरेलवन्ट हो जाएगा। हम सिर्फ अपनी ही दुनिया में मस्त रहकर बाकी की दुनिया को देखते रहेंगे। मित्रों, बारह सौ साल की गुलामी में देश ने जो पिछड़ापन भोगा है, फिर से वही हालात बन जाएंगे। हिंदुस्तान को पिछड़ेपन के ग्रहण से मुक्त करवाने का संकल्प करना होगा. और आज जब हम स्वामी विवेकानंद की १५० वीं जंयती मना रहे हैं तब प्रत्येक युवा का एक सपना हो कि हमसे जितना हो सकता हो उतना, जहाँ भी होंगे, जो कोई छोटी-बड़ी जिम्मेदारी होगी उसकी मदद से, ईश्वर ने जो भी क्षमता मुझे दी है उसके भरोसे, इस देश से पिछड़ापन समाप्त करने के लिए भागीरथ, अविरल, अखंड, एकनिष्ठ पुरूषार्थ करते रहेंगे। यह संकल्प हर एक का होना चाहिए और इस संकल्प को पूरा करने के लिए अपने स्तर पर कोई ना कोई नई शुरूआत करनी होगी।

श्वर चन्द्र विद्यासागर जैसे महापुरुषों ने समाज सुधारक के रूप में अपने समय में आधुनिक शिक्षा को लेकर जब अलख जगाई होगी तब समाज को लगा होगा कि इन सब की क्या जरूरत है? परंतु ऐसे महापुरूषों के कारण ही सौ साल, सवा सौ साल, देढ़ सौ साल की अवधि में समाज में बदलाव आने शुरू होते हैं। भाइयों-बहनों, आज शायद यह टेक्नोलोजी, यह इन्फर्मेशन टेक्नोलोजी, यह बायो टेक्नोलोजी यह नैनो टेक्नोलोजी, यह लाइफ साइंस, यह सभी शब्द अनोखे लगते होंगे। परंतु यह बात सत्य है कि टेक्नोलोजी ने समस्त जगत को प्रभावित किया है, मानव जाति को प्रभावित किया है और टेक्नोलोजी के बिना जीवन की कल्पना करना भी असंभव सा लगता है और जब टेक्नोलोजी के बिना जीवन ही असंभव है तो नई पीढ़ी इस टेक्नोलोजी से अछूती कैसे रह सकती है? टेक्नोलोजी अलिप्त कैसे रह सकती है? और ऐसी परिस्थिति में आवश्यकता होती है कि समस्त बातों को सरलीकरण करके लोकोपयोगी कैसे बनाया जाए। आवश्यकता होती है कि सहज तथा सरल तरीके से इसे कैसे उपलब्ध करवा सकें। आवश्यकता होती है कि इन सभी बातों को शीघ्र उपलब्ध कैसे करवाया जाए। और एक बार यह सभी चीजें शीघ्र उपलब्ध हो जाएं तो सभी को अपने आप सीखने, समझने तथा उनका उपयोग करना आ जाता है। आप क्लास रूम में भाषण के रूप में कहो कि बैकिंग व्यवस्था में ए.टी.एम. नाम की ऐसी व्यवस्था आने वाली है, जिसमें आप इस तरह पैसे रख सकोगे, ले सकोगे, ऐसा कर सकेंगे, वैसा कर सकेंगे तो कई बार आदमी अपना सर खुजाने लगता है कि अब यह ए.टी.एम. क्या आया नया? लेकिन एक बार ए.टी.एम. लग जाए और फिर एक बार आप उसे ये बताओ की पैसों की लेन देन के लिए यह व्यवस्था है, तो अनपढ़ व्यक्ति भी इसके बारे में समझ जाता है, उसका अमल करता है, जान लेता है। कई लोग होंगे कि जिन्हों ने पहले मोबाइल देखा होगा तो उसको आश्चर्य हुआ होगा, परंतु आज गाँवों में जहाँ जिवन में शिक्षा का अवसर कभी न मिला हो, वे भी मोबाइल से पूरी तरह से परिचित होते हैं। और मैंने तो देखा है कि टेक्नोलोजी का पेनिट्रेशन किस हद तक हो रहा है। एक बार मैं वलसाड जिले के कपराडा तालुका के आदिवासी क्षेत्र में एक छोटे से कार्यक्रम के लिए गया था। काफी अन्दरूनी क्षेत्र है। वहाँ एक डेरी के चिलिंग सेन्टर का उद्घाटन था। और पूरा वनवासी क्षेत्र है, और उन जंगलों के बीच एक छोटे से कमरे में उस चिलिंग सेन्टर को बनाया गया था। लेकिन वहाँ सभा करने की जगह नहीं थी इसलिए वहाँ से तीन किलोमीटर दूर एक शाला के मैदान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। और इस कार्यक्रम स्थल पर दूध भरने वाली बहनें जो होती हैं, आदिवासी बहनें, ऐसी तीस-चालीस बहनें वहाँ हाजिर थी। बाकी कार्यक्रम तीन किलोमीटर दूर था। हमने चिलिंग सेन्टर का उद्घाटन किया। और सभी बहनें सुंदर वेशभूषा के साथ ऐसे तैयार होकर उपस्थित थीं जैसे कि घर में कोई अवसर हो। जब हम वहाँ से समारोह के बाद नीचे उतर रहे थे, तो मैंने देखा कि उन ३०-४० बहनों में से पौने भाग की बहनें ऐसी थीं जो मोबाइल से हमारी फोटो उतार रही थीं। आदिवासी बहनें, कपराडा तालुका के भीतरी आदिवासी विस्तार में। तब उनकों देखकर मुझे सहज कौतुहल हुआ, तो मैं उनके पास गया। मैंने कहा, “बहनों, ये मोबाइल पर फोटो खींच कर आप क्या करेंगी?” आप भी सोचिए, क्या जवाब मिल सकता है, मन में सोच लो। जनाब, उन बहनों ने मुझे कहा कि इसे तो हम डाउनलोड करवा लेंगे। कपराडा तालुका के आदिवासी विस्तार में दूध भरने आने वाली आदिवासी माँ या बहन... वे किसी कॉलेज में डाउनलोड किसे कहते हैं ये पढऩे नहीं गई थी। पर इस बात की जानकारी है कि मैं ये जो फोटो खींच रही हूँ इसे डाउनलोड किया जा सकता है और इस फोटो का प्रिंट-आउट तक उन्हें मिल सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि कोई फॉर्मल व्यवस्था नहीं होने के बाद भी, टेक्नोलोजी आपने आप ट्रैवल करती है। समयानुकूल परिवर्तन के साथ सामाजिक जीवन का अंग बन जाती है, जीवन व्यवस्था का अंग बन जाती है, प्रत्येक व्यक्ति के मन में अपनी जगह बनाने में भी टेक्नोलोजी को वक्त नहीं लगता। और अगर यह स्थिति सहज हो तो हम ‘आएगा तब देखा जाएगा’, ‘अभी तो यह है न’ के बजाए, इसे थोड़ी दूरंदेशी के साथ, एक अवसर के रूप में, ऑपर्च्यूनिटी के रूप में, एक मौके के रूप में देखते हुए आगे क्यों ना बढ़ें? और इस में से हम आगे बढ़ रहे हैं।

भाईयों-बहनों, दुनिया में चर्चा है कि इक्कीसवीं सदी किसकी? पूरा विश्व मानता है कि इक्कीसवीं सदी एशिया की है, पर यह निर्धारित नहीं है कि इक्कीसवीं सदी भारत की होगी या फिर चीन की। स्पर्धा जब हिंदुस्तान और चीन के बीच चल रही है तब हमारे पास इक्कीसवीं सदी हिंदुस्तान की बनाने के महत्वपूर्ण सश्क्त कारक कौन से हैं? हमारी एक सबसे बड़ी ताकत है, इस देश की ६५% जनसंख्या। इस देश की ६५% जनसंख्या ३५ वर्ष से कम उम्र की हैं। यह देश दुनिया का सबसे युवा देश है। यौवन से तरबतर जो भूमि हो, जिस समाज का ६५ प्रतिशत वर्ग ३५ वर्ष से कम आयु का हो, इसके बाहुओं में कितनी ताकत होगी, इसके सपने कितने ऊंचे हो इसका हम अंदाजा लगा सकते हैं। जरूरत है इसको अवसर प्रदान करने की और अगर अवसर देना है तो जिस प्रकार के युग की रचना हुई है उसमें इन सपनों को पूरा करने में युवा शक्ति को शामिल करने की। मित्रों, चीन ने आज से दस वर्ष पहले एक काम किया था। कौन सा काम? उसे लगा कि यदि चीन को इक्कीसवीं सदी में विश्व की एक बड़ी ताकत बनाना है तो चीन के लोगों को अंग्रेज़ी जाननी बहुत जरूरी है। और इसलिए चीन ने चीनी बच्चों को अंग्रेज़ी शिक्षा मिले इसके लिए एक व्यापक अभियान चलाया था। इसमें सफलता मिली कि नहीं, उसका लाभ मिला कि नहीं मिला... पर उसे पता था कि विश्व में अब अकेले चीन के अंदर खुद ताकतवर बनने से काम नहीं चलेगा, विश्व में प्रसारित होना पड़ेगा, फैलना पड़ेगा और उन्होंने इस दिशा में अपने प्रयास प्रारंभ कर दिए थे। मित्रों, अपने गुजरात में वर्षों तक, आपका तो उस समय जन्म भी नहीं हुआ होगा, मित्रों। ‘मगन पांचमावाला’ और ‘मगन सातमावाला’ की चर्चाएं चलती थीं। शिक्षण क्षेत्र में काम करने वाले दो नेता यहाँ थे। एक का कहना था कि अंग्रेज़ी पांचवीं से हो, दूसरे का कहना था कि अंग्रेज़ी सातवीं से हो। इस कारण से यहाँ तो चला था, ‘मगन माध्यम’, गुजराती माध्यम में पढ़ो तो लोग कहते थे, ‘मगन माध्यम’, ऐसे शब्दों को प्रयोग होता था। पूरी दुनिया के सामने गुजरात का नवयुवक आंख से आंख मिलाकर बात कर सके वह सामर्थ्य उसमें होना चाहिए। और गुजराती एक वैश्विक समुदाय है। हमने एक अभियान चलाया ‘स्कोप’ के जरिये, जिसमें हमारा प्रयास था कि बोलचाल जितनी अंग्रेज़ी तो आनी ही चाहिए। इस कारण से इनके लिए रोजगार के अवसर भी बढ़े। आज उसे मॉल में नौकरी चाहिए, सातवीं-आठवीं या दसवीं पास हो तो उसे अमुक पगार मिलती है। परन्तु यदि उसने स्कोप में ट्रेनिंग ली है और पांच-पन्द्रह अंग्रेज़ी वाक्य बोलने का सामर्थ्य आ गया हो, उसकी सॉफ्ट स्किल डेवलप हो गई हो, उसके  व्यवहार की ट्रेनिंग हो गई हो तो उसकी पगार पांच की बजाए सात हो जाती है, सात के बदल ग्यारह हो जाती है। इसकी आवश्यकता बढऩे लगी। मित्रों, मुझे ये कहते हुए गर्व होता है कि गुजरात के स्वर्ण जयंती वर्ष में एक लाख लोग, अंग्रेज़ी बोलना-पढऩा सीखाने का जो प्रयास किया गया था, वह आंकड़ा एक लाख को पार कर गया है और वह काम आज भी चल रहा है।

मित्रों, हमने एक योजना बनाई थी, ‘ज्योतीग्राम’। गुजरात के गाँवों में २४ घंटे बिजली उपलब्ध हो। बहुत लोगों को लगता था कि यह बिजली तो टीवी चलाने के लिए आई है..! नहीं, जिस दिन ज्योतिग्राम योजना पर अरबों-खरबों रूपया खर्च होना शुरू हुआ, तब पता था कि यह ऊर्जा का रोपण किस चीज़ के लिए कर रहे हैं। इसमें से गुजरात के ग्रामीण जीवन को कैसा रूप देना है वह पूरी तरह से ज्ञात था। और एक बार बिजली की सारी व्यवस्था हो गई, फिर कौन सा कार्य उठाया? कम्प्यूटर नेटवर्क खड़ा करने का काम शुरू किया। हार्डवेयर, जहाँ देखो वहाँ, स्कूलों में, पंचायतों में हार्डवेयर दो. फिर शुरू शुरू किया, कनेक्टिविटी दो। नौजवान मित्रों, आपमें से ज्यादातर ग्रामीण परिवेश से हैं। भारत सरकार ने इसके पिछले वर्ष के अपने बजट में कहा था कि हम तीन हजार गाँवों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी का पायलट प्रोजेक्ट करेंगे। छह लाख गाँवों का हिंदुस्तान, इस के सामने तीन हजार गाँवों में भारत सरकार का पायलट प्रोजेक्ट। मुखवास जितना भी लाभ नहीं मिल सकता। मित्रों, मैं यह गर्व के साथ कहना चाहता हूँ कि गुजरात ने चार साल पहले १८,००० गाँवों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी का काम पूरा कर दिया है। बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध करवाया। अब समझ में आता है कि सामाजिक जीवन में टेक्नोलोजी ने इतनी जगह बना ली है कि उसके कारण थोड़ी बहुत टेक्नोलोजी की जानकारी रखने वाले लोगों की भी जरूरत होगी। मित्रों, कल तक बसों में कंडक्टर अपनी गड्डी में से फाड़ कर टिकट काटता था। अब समय ऐसा आनेवाला है कि उसके हाथ में एक छोटा सा उपकरण होगा, और सिर्फ एक बटन दबाकर ही आपको टिकट देता होगा। जिवन के प्रत्येक क्षेत्र में... आप छोटे से रेस्टोरेन्ट में जाओ तो अब वो भजियानंद चाय का बिल लिखता नहीं है। छोटा सा एक डिब्बा लेकर ऐसे-ऐसे दबाता है और तुरंत आपको कहता है कि आप गेट पर जाओ, आपका बिल तैयार होगा। यह बदलाव आ रहा है। तो गुजरात के गरीब परिवार के बच्चों को इस बदले हुए वातावरण में रोजी रोटी मिले, उनका शोषण न हो, उनके पास डिग्री के साथ एक अतिरिक्त गुण हो, वह पांच के बदले सात, सात के बदले नौ, नौ के बदले ग्यारह हजार रूपया कमा सके इस बात को सुनिश्चित करने के अभियान का एक भाग है एम्पावर स्कीम, इलेक्ट्रॉनिक मैन पावर। और मित्रों, भारत सरकार एक साल पहले तीन हजार गाँवों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रारंभ करने का विचार कर रही थी। आज डेढ़ वर्ष हो गया है। उसका क्या हुआ यह तो जांच का विषय है। हमने मार्च के अंत में बजट पास किया और आज चार जुलाई को इस योजना को लागू कर रहे हैं।

मित्रों, बदलते हुए युग में जैसे आज अनपढ़ होना श्राप लगता है, हमें भी चार दोस्तों के बीच अनपढ़ होने की बात हो तो शर्मिंदगी होती है। अनपढ़ होना जैसे अपमानजनक है ऐसे ही आने वाले दिनों में आपको यदि कम्प्यूटर नहीं आता है, आप इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी से परिचित नहीं हो तो आप दुनिया की नजरों में अनपढ़ ही गिने जाओगे। मैं नहीं चाहता कि मेरे गुजरात का कोई भी नौजवान दुनिया की नजरों में अनपढ़ हो। पूरा विश्व यदि पूछे तो वह कह सके कि हां, मैं ये जानता हूँ। अब गरीब बालक कहाँ जाए? उसे यह सब सीखना हो तो हजार, पन्द्रह सौ, दो हजार रूपया फीस होती है और फीस देने के बाद अगर कोई भगोड़ा मिल गया, तो सबकी फीस भर जाने के बाद कम्प्यूटर ले कर दूसरे गाँव में चला गया हो। गरीब आदमी धोखे का शिकार बन जाए। माताओं और बहनों को सीखना हो तो कहाँ जाएं? और इसी कारण हमने सोचा कि सरकार की अपनी योजना के तहत एक व्यापक अभियान का प्रारंभ किया जाए। जैसे ‘स्कोप’ का व्यापक अभियान शुरू किया, जिसकी वजह से पहले सीखने के लिए लोग ढ़ाई हजार, तीन हजार फीस भरते थे, इसके बदले मुफ्त बराबर दामों में सीखने को मिले ऐसी व्यवस्था की गई, और लोगों को इसका लाभ भी मिला। मित्रों, ये योजना भी कैसी है? अनुसूचित जाति के लिए मुफ्त, अनुसूचित जनजाति के लिए मुफ्त, ओबीसी के लिए मुफ्त, बहनों के लिए मुफ्त तथा अन्य समर्थ लोगों के लिए भी कितनी फीस? पचास रूपया, मात्र पचास रुपया..! पांच-दस कप चाय के दाम में हो जाए। और मुझे पूरी तरह से विश्वास है कि जो यह शिक्षा प्राप्त करेंगे तथा इसके प्रमाण पत्र संलग्न करेंगे, उनकी कीमत बढ़ेगी, बाज़ार में उनका महत्व बढ़ने वाला है। और मित्रों बहुत से लोगों को आश्चर्य होगा कि इस योजना की सफलता किसमें है? मैंने हमारे अधिकारियों को कहा था कि हमने इतनी सारी ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी दी हैं, गाँव-गाँव में कम्प्यूटर लगाए हैं तो मुझे ट्रायल लेना है कि सभी चीजें जनसामान्य के साथ जुड़ने वाली हैं भी कि नहीं और इसलिए मेरा आग्रह था कि ये एम्पावर की जो ट्रेनिंग होने वाली है, उसका रजिस्ट्रेशन लोग ऑन-लाइन करवाएं। पता तो चले कि इस टेक्नोलोजी से हम उनके साथ जुड़ सके हैं नहीं। और आज मुझे यह कहते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि आज शाम पांच बजे तक, आज शाम को जब मैं मंच पर आया तब तक का आंकड़ा कहता हूँ, आज शाम पांच बजे तक ऑन-लाइन रजिस्ट्रेशन के जरिए एक लाख चार हजार लोगों ने अपना नामांकन करवाया है। और इसमें भी गर्व की बात, ८४% रजिस्ट्रेशन गाँव के लोगों ने करवाया है, १६% शहरी क्षेत्र के रजिस्ट्रेशन हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि तीर बराबर निशाने पर लगा है। क्योंकि इस पूरी योजना का उद्देश्य इस पूरे विषय को गाँव तक पहुँचाना है, गाँव के घर-घर तक पहुँचाना है। क्योंकि शहरों में तो ऐसी छोटी-मोटी सुविधाएं होती हैं, जिसका लाभ मिलता है। यह दोनों के लिए समांतर है, चाहे गाँव हो या शहर, पर गाँव के चौरासी प्रतिशत लोगों का यह उत्साह, यह रजिस्ट्रेशन खुद दर्शाता है कि आज यह योजना सफल हो गई है। उसमें भी एक आनंदप्रद खबर, ये जो एक लाख लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है, उनमें ६६% पुरूष तथा ३४% महिलाएं हैं दोस्तों, ३४% बहनें हैं। यह बड़ी बात है। गुजरात के गाँव की गृहिणी या बेटी इस तरह की शिक्षा को समझे, उमंग के साथ जुड़े, यह बात ही उज्जवल भविष्य का संकेत देती है, दोस्तों और अभी तो इस योजना के विषय में आज अखबारों में जानकारी आई है। इससे पहले समाचार पत्रों में जिस दिन बजट में घोषणा की थी तब थोड़ा बहुत उल्लेख हुआ था। यह बात अभी तो कानों कान पहुंची है, कोई बड़ा कैम्पेन नहीं हुआ है। कैम्पेन शुरू होगा तो शायद आज से होगा। यहाँ सामाचार पत्रों से जुड़े मित्र हैं, टीवी, मीडिया वाले हैं, ये लोग थोड़ा बहुत बताएंगे इसलिए आज शुरूआत होगी। उस के बावजूद भी यदि इतना ज्यादा स्वीकार मिला हो तो उसका अर्थ यह हुआ कि राज्य सरकार ने जनता की नब्ज को पहचानते हुए कितना महत्वपूर्ण काम शुरू किया है इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है।

भाईयों और बहनों, ये बात निश्चित है कि हुनर के बिना सफलता मिलना संभव नहीं है। हम कोई रईस मां बाप के बच्चे नहीं हैं, पाँच पीढ़ियों तक चले ऐसी कुछ विरासत भी हमें नहीं मिली है। अपने पास तो ईश्वर की दी हुई क्षमता है। दो हाथ हैं, दिल है, दिमाग है, इन्हीं के साथ जिंदगी जीनी है। जब यह तय ही हो कि यह ही अपनी पूंजी है तो फिर इस पूंजी में वृद्घि करने का एक मात्र साधन है, हुनर। और ये कौशल वर्धन हो, विभिन्न ऐसी क्षमताओं का अभ्यास हो, इनसे परिचित हों तो जीवन को सफल बनाने के लिए बहुत बड़ी शक्ति मिल सकती है। मित्रों, एक समय था कि गुजरात में टेक्निकल एज्यूकेशन देने वाले कॉलेज की संख्या मात्र ४४२ थीं, २००१ में हमने जब जिम्मेदारी ली तब। आज यह संख्या लगभग १७००-१८०० तक पहुँची है। कहाँ ४४२..! हमने गुजरात की जिम्मेदारी ली तब इस राज्य में ११ यूनिवर्सिटी थीं। आज भाईयों, ४२ यूनिवर्सिटी हैं। यह सब किसके लिए? गुजरात के नौजवानों के लिए, गुजरात की भावी पीढ़ी के लिए, मेरे सामने बैठे इन सक्षम सपनों के लिए, उनके लिए है यह सब कुछ। एक समय था, डिप्लोमा या डिग्री इंजीनियरिंग में पढऩा हो तो मध्यम वर्ग के माँ बाप तो इस बारे में सोच भी नहीं सकते थे। डोनेशन कहाँ से लाएं, बच्चों का दाखिला कहाँ करवाएं..? फिर क्या होता था? भाई, कोई हल नहीं है तो तू अब कहीं से बी.ए., बी.कॉम. कुछ कर ले और तुझे कहीं क्लर्क की नौकरी मिल जाए तो देखना..! अनेक नौजवानों के सपने चूर चूर हो जाते थे। मित्रों, हमने दस सालों में तकनीकी शिक्षा को इतना बल दिया कि २००१ में डिप्लोमा या डिग्री इंजीनियरिंग के लिए शुरूआत में हमारे पास मुश्किल से २३,००० सीटें थीं। आज लगभग १,२३,००० सीटें तकनीकी शिक्षा के लिए उपलब्ध करा दी गई हैं। जिसको भी पढऩा है उसे मुझे अवसर प्रदान करवाना है। गरीब से गरीब परिवार के बेटे या बेटी को लाचारी की जिंदगी नहीं जीनी पड़े इसके लिए काम शुरू किया है। मित्रों, बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जो सातवीं या आठवीं कक्षा के बाद कुछ परिस्थितियों के कारण पढऩा छोड़ देते हैं। या तो वे गलत रास्ते पर चलने लगे होते हैं या फिर कहीं दोस्त ऐसे मिल गए हों और फिर बाद में समझ आने पर आई.टी.आई. में चले गये हों। बेचारा टर्नर बने या फिर फिटर बने या फिर प्लम्बर बने या वेल्डर बने... और उसको यह लगता था कि सब खत्म हो गया, मेरी जिन्दगी तो बस अब यहाँ समाप्त हो गई। मित्रों, इस सरकार ने यह निश्चित किया कि मेरे गुजरात के किसी भी युवक की जिंदगी को, उसके सपने को मैं पूर्ण विराम नहीं लगने दूंगा। मैं फिर से दरवाजे खोलूंगा, मैं फिर से खिड़कियां खोलूंगा, इनमें फिर से सपने संजोऊंगा, उन्हें नई जिंदगी जीने की प्रेरणा दूंगा, उसे नया हौसला दूंगा। अरे, कल जैसा भी बीता हो, आने वाला समय अभी अच्छा हो सकता है ऐसा विश्वास उनको मैं दूंगा। और इसके लिए क्या किया? एक साहसपूर्ण निर्णय किया कि यदि किसी ने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई करके छोड़ दी हो, परन्तु आई.टी.आई. के दो साल पूरे किये हों तो उसे दसवीं का प्रमाण पत्र दूंगा। दसवीं कक्षा करके दो साल आई.टी.आई. के पूरे किए हों तो बारहवीं कक्षा के समकक्ष गिना जाएगा, उसे बारहवीं पास माना जाएगा। इतना ही नहीं, इसके आधार पर यदि उसे डिप्लोमा इंजीनियरिंग करना हो तो दरवाजे खुले, उसमें जा सकता है। उसके बाद उसे डिग्री इंजीनियरिंग करनी हो तो उसमें भी जा सकता है। पहले जो दरवाजे बंद हो जाते थे कि सातवीं या आठवीं छोड़ी तो पूरा हो गया, खेल खत्म..! साहब, यह सब बदल दिया है। किसके लिए? दोस्तों, आपके लिए, गुजरात के आने वाले कल के लिए।

मित्रों, आज मैं आपसे विनती करना चाहता हूँ। मेरे सामने केवल इस सभागृह में ही लोग बैठे हैं ऐसा नहीं है। आई.टी.आई. में, सारे ट्रेनिंग सेन्टर में लाखों नौजवान इस कार्यक्रम में ऑन-लाइन मेरे साथ मौजूद हैं। दूर सुदूर एज्यूकेशन इंस्टिट्यूट में बैठे लोग, नौजवान मुझे सुन रहे हैं। मित्रों, आज मैं आपको कहना चाहता हूँ, सपने देखना बंद मत करना। अरे, कभी कोई बाधाएं आई होंगी, कभी रूकावटें आई होंगी, कभी विफलताओं का सामना करना पड़ा हो, फिर भी अगर उत्तम संकल्प के साथ सपनों को सच्चा करने की जिद होगी, परिश्रम होगा तो आपकी भी सभी इच्छाएं, आकांक्षाएं परिपूर्ण होंगी ये मैं विश्वास के साथ कहना चाहता हूँ। यह राज्य, इस देश की युवा पीढ़ी को, इस देश के युवा लडक़े-लड़कियों को एक अप्रतिम अवसर देने के लिए प्रतिबद्घ है, जिससे वह अपने सभी सपने साकार कर सके, अपने परिवार की आशा- आकांक्षाओं को पूरा कर सके। और एक बात तय मानना नौजवानों, ईश्वर ने मुझे तथा आपको एक समान शक्ति दी है। ईश्वर ने मुझे आप से दो चम्मच ज्यादा दिया है ऐसे भ्रम में रहने की जरूरत नहीं है। ईश्वर ने जितना मुझे दिया है उतना ही आप को भी दिया है। दोस्तों, सपने देखो, संकल्प करो, साहस करो, कदम उठाओ, मित्रों, मंजिल सामने आकर खड़ी हो जाएगी ऐसा मेरा विश्वास है।

रकार के बजट में से इस राज्य में टेक्निकल मैनपावर, तकनीकी मानवशक्ति तैयार करने का जो अभियान शुरू किया है, गुजरात जिस तरह से प्रगति कर रहा है उसमें वह एक नई ताकत के रूप में जुड़ेगा, गुजरात को आगे बढ़ाने में पूरक बनने वाला है। मित्रों, हाल ही में गुजरात में करीब २६,००० जितने लोगों की पुलिस में भर्ती की। और इसमें एक शर्त थी कि जिनको कम्प्यूटर की जानकारी हो सिर्फ वे ही आवेदन करें। दोस्तों, मुझे बड़े आंनद के साथ कहना है कि आज गुजरात के पुलिस मेले में कांस्टेबल लेवल पर काम करने वाले कम्प्यूटर जानकार लोगों की फौज खड़ी हो गई है, एक प्रकार से मेरा यह पूरा विभाग तकनीकी रूप से सक्षम हो गया है। और अगर जो आने वाले दिनों में सभी जगह पर इस प्रकार का मानव संसाधन उपलब्ध हो तो यह राज्य कितनी तीव्र गति से आगे बढ़ सकता है..! उन सपनों को साकार करने के लिए आज यह योजना गुजरात के नौजवानों को समर्पित करता हूँ। इन नौजवान बहनों और नौजवान भाईयों की शक्ति पर मुझे पूरा भरोसा है, मित्रों। इस शक्ति को साथ लेकर हमें आगे बढऩा है और मुझे यकीन है दोस्तों, कि आप भी सपने देखते होंगे। अवसर देने का काम सरकार कर रही है, व्यवस्था खड़ी करने के लिए सरकार दो कदम आगे बढ़ रही है। और निर्धारित परिणाम प्राप्त करने में गुजरात का नौजवान सक्षम है ऐसा मेरा विश्वास है। मित्रों, गुजरात का समृद्घ भावी, उस समृद्घ भविष्य की समृद्घि के आप भी हकदार बनें, समृद्घ भविष्य की समृद्घि के आप भी भागीदार बनें उसके लिए यह एक अवसर है। और आज जब यह अवसर आया है तब, गुजरात भर के कोने-कोने में मेरी इस बात को सुन रहे सभी नवयुवकों को और इस सभागार में मेरे सामने बैठे सभी नौजवानों को सच्चे अर्थ में एक इलेक्ट्रॉनिक मैनपावर के रूप में, एक अतिरिक्त शक्ति वाली मानवशक्ति के रूप में, गुजरात की धरती पर एक नया अध्याय जोड़ने के लिए मैं आप सभी का स्वागत करता हूँ और आप सभी को अंतःकरण से बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूँ, दोस्तों। नौजवानों, आपके सपनों को साकार करने के लिए मैं सदा सर्वदा आप लोगों के साथ हूँ। आपके सपने साकार हों इसके लिए पसीना बहाने के लिए मैं तैयार हूँ। आपकी इच्छाएं, आकांक्षाएं पूरी हों इसके लिए सरकार दो कदम आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। शर्त यह है कि मेरे गुजरात का नौजवान अपना कदम उठाए..! उसकी उंगली पकडऩे के लिए मैं तैयार हूँ, उसका हाथ पकड़ के चलने के लिए मैं तैयार हूँ, उसे मुझसे आगे ले जाने के लिए मैं तैयार हूँ। यह मेरी पूरी सरकार गुजरात की नौजवान पीढ़ी को समर्पित है, उनकी किस्मत को बदलने के लिए समर्पित है, उनके सपने साकार करने के लिए समर्पित है। आओ दोस्तों, मैं जब आपकी उम्र का था तब मुझे ऐसा सौभाग्य नहीं मिला था, दोस्तों। मुझे उस समय ऐसा कोई नहीं मिला था जो इस तरह का विश्वास दे सके। भाइयों-बहनों, आज पूरी की पूरी सरकार आपके विश्वास का श्वास बन कर प्रत्येक पल आपके साथ है। इसके साथ आप भी जुड़ जाओ यही अपेक्षा के साथ, मेरे साथ पूरी ताकत से बोलें...

भारत माता की जय..!!

दोनों मुठ्ठी बंद करके पूरी ताकत से बोलो, दोस्तों

भारत माता की जय..!!

वंदे मातरम्... वंदे मातरम्... वंदे मातरम्..!!

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