आज हम एक ऐसे पर्व पर इकट्ठे हुए हैं जो एक प्रकार से त्रिगुण है, त्रिवेणी है। आज ही का पवित्र दिवस बुद्ध पूर्णिमा का है, जब भगवान बुद्ध ने देह धारण किया था। आज ही का पवित्र दिवस है, जब भगवान बुद्ध ने संबोधि प्राप्त की थी और आज ही का दिवस जब भगवान ने देह मुक्ति कर दिव्यता की ओर परायण कर दिया था। लेकिन आज हम इस उमंग भरे पर्व पर कुछ बोझिल सा भी महसूस करते हैं, बोझिल सा इसलिए महसूस कर रहे हैं कि जिस धरती पर भगवान बुद्ध का जन्म हुआ, वो हमारा सबका प्यारा नेपाल एक बहुत बड़े संकट से गुजर रहा है। ये यातना कितनी भयंकर होगी उसकी कल्पना करना भी कठिन है और कितने लंबे समय तक नेपाल के इन पीड़ित बंधुओं को इन यातनाओं से जूझना पड़ेगा इसका भी अंदाज करना कठिन है। लेकिन भगवान बुद्ध ने जो करुणा का संदेश दिया है विश्व की मानव जाति के लिए उस करुणा को जीने का एक मौका भी है। उसी करुणा से प्रेरित होकर के नेपाल के बंधुओं के दुख-दर्द को हम बांटें, उनके आंसुओं को पोंछें और उन्हें भी एक नई शक्ति प्राप्त हो, इसके लिए आज हम भगवान बुद्ध के चरणों में प्रार्थना करते हैं।

जब भगवान बुद्ध की चर्चा होती है तब ये स्वाभाविक है कि आज के युग में उन्होंने जो कहा था, उन्होंने जो जिया था और उन्होंने जीने के लिए जो प्ररेणा दी थी क्या आज के मानव-जाति को, आज के विश्व को, वो उपकारक है क्या? और हम देखिए तो जीवन का कोई भी विषय ऐसा नहीं जिसमें आज भी बुद्ध प्रस्तुत न हो? अगर युद्ध से मुक्ति पानी है तो बुद्ध के मार्ग से ही मिलती है। कभी-कभार लोगों का भ्रम होता है कि सत्ता और वैभव, समस्याओं का समाधान करने के लिए पूर्ण होती है लेकिन भगवान बुद्ध का जीवन इस बात को नकारता है। भगवान बुद्ध को संबोधि प्राप्त करने का अवसर हम सबको विदित है लेकिन भगवान बुद्ध के एक-एक आचरण में ऐसा लग रहा है कि वो पहले से ही.. उनके मन की भूमि तैयार थी। बारिश आने के बाद, बीज बोने के बाद फसल होना, ये हमारे ध्यान में होता है लेकिन उस धरती की अपनी एक ताकत होती है, उसका अपना एक समार्थ्य होता है जो बाद में उर्वरा का रूप ले, तब हमारे ध्यान जाता है।

भगवान बुद्ध में लग रहा है कि जन्मकाल से ही एक प्रकार से वो संबोधि को प्राप्त होकर के आए थे और विधिवत रूप से संबोधि प्राप्त करने का अवसर जो दुनिया की नजर में कोई और था ..वरना क्या कारण था कि जो व्यक्ति स्वंय राज परिवार में पैदा हुआ हो, जो व्यक्ति स्वंय युद्ध-विद्या में पारंगत हो, जो व्यक्ति जिसके पास अपार सत्ता हो, अपार संपत्ति हो, उसके बाद भी मानव कल्याण के लिए ये पूर्ण नहीं है, कुछ और आवश्यक है, इससे भी परे कुछ ताकत है और उस ताकत की ओर जाना अनिवार्य है, ये जब दृढ़ विश्वास भीतर होता है.. कितना बड़ा conviction होगा, कितना बड़ी courage होगी कि पल भर में ये सब कुछ छोड़ देना, राज-वैभव, सत्ता, पैसे, सब कुछ छोड़ देना और निकल पड़ना। इन सबसे भी ऊपर कोई शक्ति है जो मानव के काम आएगी, मानव-कल्याण के काम आएगी। ये विचार छोटा नहीं है। जब भगवान बुद्ध की तरफ देखते हैं, एक सातत्य नजर आता है। भीतर की करुणा उनके रोम-रोम में प्रतिबिंबित होती थी, प्रवाहित होती थी। बुद्ध जो कभी सिद्धार्थ के रूप में पल रहे थे, राज-पाठ के बीच पल रहे थे।

सिद्धार्थ और देवव्रत दो भाई शिकार करने के लिए जाएं और बुद्ध के दर्शन वहीं हो जाते हैं कि जब शिकार करते समय देवव्रत के तीर से एक हंस मारा जाता है और सिद्धार्थ उसको बचाने के लिए अपना जीवन खपा देते हैं, उनके भाई शिकार करने के आनंद में मशगूल होना चाहते हैं.. और तब अपने सगे भाई के प्‍यार वगैरह सब छोड़ करके, अपने सिद्धांतों का रास्‍ता, बचपन में एक बच्‍चा पकड़ लेता है और कहता है कि नहीं! मारने नहीं दूंगा! अगर भीतर से करुणा प्रवाहित न हुई होती, अगर जीवन करुणा से प्रेरित न हुआ होता, प्रभावित न हुआ होता तो ये घटना संभव नहीं होती क्‍योंकि राजघराने में जिस प्रकार का लालन-पालन होता है, युद्ध की विभीषिकाओं के बीच जीने की जिनको तैयारी रखनी होती है, जिसको शस्‍त्र से सुसज्जित किया जाता है, वो व्‍यक्ति एक पंछी के लिए इतनी करुणा प्रकट करता हो और सगे भाई को छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है, तब उस करुणा की तीव्रता कितनी ऊंची होगी, इसका अंदाज आता है। ये भाव ही तो है, यही तो ताकत है जो उसको राज-पाट छोड़ने के लिए प्रेरित करती है.. और जीवन का अंतकाल देखिए, करुणा की तीव्रता देखिए कि वे बाल्‍यकाल में राजघराने के जीवन में जीने के बाद भी करुणा को प्रकट करते हैं और जीवन के अंतकाल में कोई व्‍यक्ति अज्ञानवश उनके कान के अंदर कीलें ठोक देता है तब भी.. स्‍वयं वेदना से पीड़त थे, शरीर कराह रहा था.. कान में कीलें ठोक देना कितनी बड़ी दर्दनाक पीड़ा होगी, इसका अंदाज कर सकते हैं लेकिन तब भी वही करुणा प्रतिबिंबित होती है जो अपने सगे भाई के समय हुई थी। उस मारने वाले के प्रति भी वही करुणा प्रकट होती है। जीवन कितना एकसूत्र था, एकात्‍मता का वो आदेश देते थे। इस एकात्‍मता की अनुभूति जीवन के आखिर काल तक कैसे हुई इसका हम अंदाज कर सकते हैं।

आज पूरे विश्‍व में एक चर्चा है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है और इसमें कोई दुविधा नहीं दुनिया में, मतभेद नहीं। इस विषय में सभी मानते है कि 21वीं सदी एशिया की है। इसमें मतभेद हो सकता है कि किस देश की होगी किस देश की नहीं, लेकिन एशिया की होगी इसमें कोई मतभेद नहीं है। जिन लोगों ने ‘21वीं सदी एशिया की सदी’ की कल्‍पना की है, शायद उन्‍होंने एक पहलू की ओर नहीं देखा। बुद्ध के बिना कभी एशिया की सदी 21वीं सदी नहीं बन सकती। बिना बुद्ध न ‘21वीं सदी एशिया की सदी’ हो सकती है.. और बुद्ध ही है जो ‘21वीं सदी एशिया की सदी’ को विश्‍व में एक प्रेरणा का कारण बना सकते हैं और वो प्रेरणा क्‍या है? विश्‍व संकटों से जूझ रहा है, एक-दूसरे की मौत पर उतारू हैं, हिंसा अपनी चरम सीमा पर है। विश्‍व का भौतिक भू-भाग रक्‍तरंजित है, तब करुणा का संदेश कहां से आएंगा? मरने-मारने की इस मानसिकता के बीच प्रेम का संदेश कौन दे पाएंगा और वो कौन ताकत है, कौन सी शख्सियत है जिसकी बात को दुनिया स्‍वीकारने के लिए तैयार होगी, तो जगह एक ही दिखती है। किनारा एक ही जगह पर नज़र आता है, वो है- बुद्ध। मानव जाति जिन संकटों से गुजर रही है उसके लिए भी, विश्‍व को भी रास्‍ता दिखाने के लिए ये मार्ग है। अपने ही जीवनकाल में कोई विचार इतना प्रभावी हो सकता है क्‍या? नहीं हो सकता है। दुनिया के ढेर सारे विचार प्रवाहों को हम देख लें, उस विचार के जनक के कार्यकाल में.. वो विचार न इतना फैला है, न इतना प्रचारित हुआ है। बाद में उनके शिष्‍यों के द्वारा फैला होगा। शासकीय व्‍यवस्‍थाओं के माध्‍यम से फैला होगा लेकिन किसी व्‍यक्ति के जीते-जी.. अगर वो कोई नाम है, तो एक ही नाम है पूरे विश्‍व में, वो है बुद्ध। विश्‍व के कितने बड़े भू-भाग पर ये विचार-प्रभाव पहुंच चुका है और जन-सामान्‍य की प्रेरणा का, श्रृद्धा का केंद्र बन चुका है। उस अर्थ में ये मानना होगा कि बुद्ध के साथ जितनी बातें जुड़ी हुई हैं.. कभी-कभार इस पहलू को देखते हैं तो लगता है कि बुद्ध ज्ञान-मार्गी भी थे। जब तक Conviction नहीं होता, जब तक विचारों के तराजू पर चीज़ें तौली नहीं जातीं, जब तक comparative study करके better decide नहीं होता है तब तक दुनिया अपने आप चीज़ों को स्‍वीकार नहीं करती है। बुद्ध की बातों में ज्ञान मार्ग की ताकत थी, तभी तो विश्‍व ने उनको स्‍वीकार किया होगा, विश्‍व ने तराजू पर तौल कर स्‍वीकार किया होगा।

उस समय सामाजिक जीवन में भी बुराइयां.. और बुराइयों को अतिरेक था। आशंकाओं का दौर चलता था। भू-विस्‍तार एक सहज राज्‍य प्र‍वृत्ति बन गई थी। ऐसे समय, यानी ऐसे विपरित समय में त्‍याग की चर्चा करना, मर्यादाओं की चर्चा करना, प्रेम और करुणा का संदेश देना और सामाजिक सुधार की बात करना.. जिन मुद्दों को लेकर आज भी हम हिन्‍दुस्‍तान में चर्चा करते हैं, ढाई हज़ार साल पहले भगवान बुद्ध ने भी इन मुद्दों को स्‍पर्श किया था।

मैं अभी-अभी.. यहां जब मुझे किताब दी गई तो मैं पढ़ रहा था, एक चीज़ से मैं प्रभावित हुआ, मुझे लगता है कि मैं आपको बताऊं। एक स्‍थान पर लिखा है- ‘‘पर कल्‍याण के बिना भविष्‍य और परलोक जैसे तो दूर की बात है, इसी जीवन की अर्थ-सिद्धि भी नहीं हो सकती।’’ मरने के बाद के सुख की बात छोड़ो, इस जीवन में भी सुख नहीं मिल सकता। आगे कहा है- क्‍यों, कैसे- ‘‘मज़दूरी के अनुसार, काम न करने वाला मज़दूर और काम के अनुसार या समय पर मज़दूरी न देने वाला स्‍वामी, दोनों अपने ऐहिक अर्थ भी सिद्ध नहीं कर सकते हैं।’’ दुनिया में जो लोग एक मई मनाते हैं, पहली मई मनाते हैं, उन्‍होंने कभी कल्‍पना की होगी कि ढाई हजार वर्ष पहले मज़दूरों के संबंध में और मज़दूर के संबंध में भगवान बुद्ध क्‍या विचार रखते थे।

जाति प्रथा हो, ऊंच-नीच का भाव हो, अच्‍छे-बुरे की चर्चा हो, भगवान बुद्ध उस विषय में बड़े संवेदनशील थे। .. और क्‍या चाहते थे! एक जगह पर उन्‍होंने कहा है- ‘‘दूसरों से अपमानित अल्‍प ओजस्‍वी लोग महान ओजस्‍वी बनें’’ क्‍या इच्‍छा है! जो अपमानित होते है, अल्‍प ओजस्‍वी है वे लोग महान ओजस्‍वी बनें और ‘‘धूप, हवा या परिश्रम से पीडि़त कुरुप लोग सुदंर बनें’’ मज़दूरी करते-करते, पसीने से लथपथ रहते जिनका चेहरा-मोहरा मलिन हो गया है.. वो चाहते हैं कि ये लोग सुधरें, यानी हर पल.. दलित, पीडि़त, शोषित, वंचित यहीं लोग उनके दिल के अंदर जगह बनाते रहें। आगे एक जगह पर कहते हैं.. महिलाओं के गौरव की बात को किस ढंग से उन्‍होंने रखा है। आगे एक जगह पर कहते हैं.. महिलाओं के गौरव की बात को किस ढंग से उन्होंने रखा है, women empowerment की चर्चा कैसे की है, अपने तरीके से की है, युग-युग के अनुरूप कही है। उन्होंने कहा है- ‘‘इस लोक में जितनी स्त्रियां हैं, वे अगले जन्म में पुरुष बनेंगी, जिनको आज नीच जन्म वाला माना जाता है, वो अगले जन्म में उच्च जन्म-धारण करेंगे’’ और आगे बड़ा महत्वपूर्ण कहते हैं, ‘‘ये सब होने के बाद भी वे कभी अभिमान को प्राप्त न करेंगे।’’ आप देखिए, मैं तो ऐसे ही बैठे-बैठे देख रहा था लेकिन समाज का तरफ देखने का उनका रवैया क्या था? समाज में परिवर्तन चाहते थे, एक evolution चाहते थे, एक उत्क्रांति चाहते थे, व्यक्ति का जीवन भी उर्द्धवगामी पर जाए, समाज-व्यवस्था भी उर्द्धवगामी हो, ये उनका प्रयास था। बुद्ध का समयानुकूल संदेश ये ही था कि ‘एकला चलो रे’ ये परिणाम नहीं ला सकता है, वे संगठन के आग्रही थे और बाबा साहेब अंबेडकर से भी यही मंत्र दुनिया को मिला है, संगठित होने का.. और इसलिए जब भी बुद्ध की बात आती है तो- बुद्धम शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संगम शरणं गच्छामि ये मंत्र बार-बार हमारे सामने आते हैं। संगठन की शक्ति को और इस रूप में जैसे वो ज्ञानमार्गी थे, वे एकात्ममार्गी भी थे। वे एकात्मता में विश्वास करते, जितने लोगों को जोड़ सकते हैं, जोड़ने में विश्वास रखते थे और उसी से एक संगठन की शक्ति को रूप देने का उनका प्रयास है।

भगवान बुद्ध ने व्यक्ति के विकास के लिए भी जो मंत्र दिया है, मैं समझता हूं कि इससे बड़ा कोई संदेश नहीं हो सकता है। आज दुनिया की कितनी ही management की किताबें पढ़ लीजिए, व्यक्ति विकास के लिए कितनी ही lecture, कितनी ही ग्रंथों को ऊपर-नीचे कर लीजिए, मैं समझता हूं कि बुद्ध का एक मंत्र इसके लिए काफी है। एक तराजू में व्यक्ति विकास के सारे विचार रख दीजिए, सारे ग्रंथ रख दीजिए और दूसरे तराजू में भगवान बुद्ध का एक तीन शब्द का मंत्र रख दीजिए, मैं समझता हूं तराजू बुद्ध की तरफ ही झुकेगा। वो क्या मंत्र था? व्यक्ति विकास का उत्तम मंत्र था ‘अप्प दीपो भव’ मैं समझता हूं ‘अप्प दीपो भव’ से ऊपर व्यक्ति के जीवन की उर्द्धवगामी यात्रा के लिए और कोई रास्ता नहीं हो सकता है और उस अर्थ में मैं कहूं कि स्वंय भगवान बुद्ध.. कुछ लोग कहते हैं कि वो पूर्व के प्रकाश थे, ज्यादा इस रूप से उनको वर्णित किया जाता है लेकिन मैं मानता हूं कि शायद उनको पूर्व के प्रकाश कहते समय हमारी कल्पना शक्ति की मर्यादा नजर आती है, हमारी कल्पनाशीलता की मर्यादा नजर आती है। लगता तो ऐसा है कि पूरे ब्राहमांड के लिए वो तेज पुंज थे। जिस तेज पुंज में से, समय-समय पर जिसकी जैसी क्षमता प्रवाहित होने वाले प्रकाश को वो प्राप्त करता था और इसलिए वो अपने-आप में एक तेज पुंज थे, उस तेज पुंज से प्रकाश पाकर के हम भी उस दिव्य मार्ग को कैसे प्राप्त करें, जिसमें करुणा हो, जिसमें साथ लेने का स्वभाव हो, जिसमें औरों के लिए जीने की इच्छाशक्ति हो और उसके लिए त्याग करने का मार्ग हो।

बुद्ध ने हमें ये जो रास्ते दिखाए हैं, उन रास्ता को लेकर के जब हम चलते हैं तब.. भगवान बुद्ध ने अष्टांग की चर्चा की है और मैं मानता हूं कि अष्टांग के मार्ग को जाने बिना, पाए बिना बुद्ध को नहीं पा सकते हैं और उस अष्टांग मार्ग में भगवान बुद्ध ने जो कहा है एक सम्‍यक दृष्टि, दूसरा सम्‍यक संकल्प, तीसरा सम्‍यक वाणी, चौथा सम्‍यक आचरण, पांचवा सम्‍यक आजीविका, सम्‍यक प्रयत्न, सम्‍यक चेतना, सम्‍यक ध्यान, ये अष्ट मार्ग.. right view, right thought, right speech, right conduct, right livelihood, right effort, right conciseness, right construction ..भगवान बुद्ध ने ये अष्ट मार्ग हमारे लिए सूचित किए हैं। आज भी United Nation अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस के लिए स्वीकृति देता है। दुनिया के 177 देश योगा दिवस को समर्थन करने के लिए और UN के इतिहास में इस प्रकार के resolution को इतना भारी समर्थन कभी पहले नहीं मिला है, इतने कम समय में कभी ऐसे विचार को स्वीकृति नहीं मिली है पूरे UN के इतिहास में, वो योग भी भोग से मुक्ति दिलाने का मार्ग है और योग, रोग से भी मुक्ति दिलाने का मार्ग है और वही एक कदम आगे बढ़ें तो ध्यान की ओर ले जाता है जिसकी और जाने के लिए भगवान बुद्ध हमें प्रेरित करते हैं और इस अर्थ में देखिए, आज के युग में जिन संकटों से हम जूझ रहे हैं, जिन समस्याओं से हम जूझ रहे हैं, उन समस्याओं का समाधान इन आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। पूरे एशिया में भी, मैं जहां भी इन दिनों जा रहा हूं, वो राज्य सरकारें, वो राष्ट्र की सरकारें एक बार मेरा कार्यक्रम बनाते समय जरूर ध्यान रखती हैं और मुझे भी अच्छा लगता है, जब वो ये करते हैं.. कहीं पर भी भगवान बुद्ध का मंदिर है तो मुझे जरूर वहां ले जाते हैं।

मैं मुख्यमंत्री था तो चीन गया था तो कोई कल्पना नहीं कर सकता है चीन में, चीन सरकार ने मेरा जो कार्यक्रम बनाया, उसमें एक शाम मेरी भगवान बुद्ध के मंदिर में बिताने के लिए आयोजित किया था। मैं अभी जापान गया तो, क्योटो में तो स्वंय वहां के प्रधानमंत्री जी आए, वहां के इस भगवान बुद्ध के मंदिर के परिसर को मुझे साथ लेकर के गए थे। अभी श्रीलंका गया, सभी बौद्ध भिक्षुओं के साथ मिलने का मुझे अवसर मिला और मैं देखता हूं कि कितनी बड़ी आध्यात्मिक चेतना है लेकिन बिखरी पड़ी है। समय की मांग है कि संकट से अगर विश्व को बचाने के लिए, बुद्ध का करुणा प्रेम का संदेश काम आता है तो ये शक्तियां सक्रिय होनी चाहिए और भगवान बुद्ध ने कहा था, उसी रास्ते पर संगठित भी होना चाहिए और तभी जाकर के सामर्थ्य प्राप्त होगा और मैं, ये अच्छा हुआ कि हमारे कुछ लोगों का ध्यान नहीं गया अभी तक वरना कई चीजें हमारे देश में विवाद का कारण बनाने में देर नहीं लगती है।

मैं गांधी नगर में मुख्यमंत्री था तो हमारा एक सचिवालय का नया परिसर बना है, उस परिसर में मैंने बहुत बड़ी एक भगवान बुद्ध की मूर्ति लगाई है, प्रवेश होते ही सामने है और मैं जिस मुख्यमंत्री के निवास में रहता था वहां पर भी प्रवेश पर सामने ही भगवान बुद्ध विराजमान हैं। अभी तक शायद इन लोगों का ध्यान नहीं गया वरना तो अब तक मेरी चमड़ी उधेड़ दी गई होती। शायद एक कारण ये है.. वो मेरे ज्ञान या जानकारियों के कारण नहीं है, कुछ बातें होती हैं, जो हमें पता भी नहीं होती है। मेरा जन्म जिस गांव में हुआ, तो जब हम बच्‍चे थे, पढ़ते थे तो यहां आए थे, यहां रहे थे.. थोड़े बड़े हुए तो पता चला कि ह्वेन सांग काफी समय मेरे गांव में रहे थे। क्‍यों रहे थे? तो फिर पता चला कि.. हमारी सामान्‍य Impression ये है कि भगवान बुद्ध पूर्वी क्षेत्र में थे लेकिन आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि भारत के दूर, सुदूर पश्चिमी क्षेत्र में, मेरे गांव में बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक बहुत बड़ा हॉस्‍टल था और हजारों की तादात में बौद्ध भिक्षुओं की शिक्षा-दीक्षा का वहां काम होता था। तो ये सब ह्वेन सांग ने लिखा है।

मैं जब मुख्‍यमंत्री बना तो मुझे स्‍वाभाविक इच्‍छा हुई कि भई ये लिखा गया है तो यहां कुछ तो होगा। मैंने मेरे यहां पुरातत्‍व विभाग को कहा कि ज़रा खुदाई करो भई, देखों की क्‍या है। मुझे खुशी हुई कि वे सारी चीजें खुदाई में से मिल गईं। बुद्ध के स्‍तूप मिल गए, वहां के हॉस्‍टल भी मिल गए और ह्वेन सांग ने जो वर्णन किया था कि हज़ारों की तदात में लोग वहां शिक्षा-दीक्षा लेते थे। उसके बाद मैंने एक ग्‍लोबल Buddhist Conference की थी और बहुतेक बौद्ध भिक्षुओं को मैं उस जगह पर ले गया था। .. और मुझे ये भी खुशी थी कि हम एक जगह पर खुदाई कर रहे थे तो वहां से तो हमें भगवान बुद्ध के अवशेष मिले हैं। सोने की एक डिबिया मिली है जो अभी एमएस यूनिवर्सिटी में रखी गई है। भविष्‍य में सपना है कि भगवान बुद्ध के जो अवशेष हैं, वहां एक भव्‍य भगवान बुद्ध का एक मंदिर बने और विश्‍वभर में भगवान बुद्ध से प्रेरणा पाने वाले सबके लिए ये प्रेरणा का केंद्र बने।

तो मेरा नाता.. मैं हमेशा अनुभव करता हूं कि कुछ विशेष कारण से भगवान बुद्ध के साथ है, उन विचारों के साथ है, उस करुणा और प्रेम के रास्‍ते के साथ है। मुझे आज बुद्ध पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर भगवान बुद्ध के चरणों में आ करके बैठने का अवसर मिला, उनका स्‍मरण करने का अवसर मिला और आप सबके दर्शन करने का अवसर मिला, मैं अपने आप को धन्‍य मानता हूं।

मैं फिर एक बार नेपाल के लोगों के लिए भगवान बुद्ध से प्रार्थना करता हूं कि मेरे पीडि़त भाईयों को बहुत शक्ति दें और बहुत ही जल्‍द हमारा ये प्‍यारा भाई ताकतवर बने और शक्तिशाली बन करके हि‍मालय की गोद में फले-फूले, यही प्रार्थना करते हुए मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं।

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