पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान की सफल यात्रा की थी। उन्होंने जापान की सांस्कृतिक राजधानी माने जाने वाले क्योटो सहित कई शहरों का दौरा किया था। प्राचीन इतिहास और संस्कृति को बरक़रार रखते हुए आधुनिक सुविधाओं से संपन्न क्योटो की तरह ही भारत की सांस्कृतिक राजधानी, काशी (वर्तमान वाराणसी) को पुनर्जीवित और विकसित करने के लिए विशेषज्ञों के साथ बैठक कर इस पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया। काशी को क्योटो की बहन शहर के रूप में विकसित करने के लिए भारत और जापान के बीच ‘काशी-क्योटो’ संधि पर हस्ताक्षर हुआ।
करार होने के बाद टीमों ने वाराणसी से क्योटो और क्योटो से काशी का दौरा किया ताकि विभिन्न विचार प्राप्त किये जा सकें कि कैसे संस्कृति को संरक्षित करते हुए इसे आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण किया जा सकता है। पर्यावरण और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर विचार-विमर्श के लिए क्योटो विश्वविद्यालय में वार्ता आयोजित की गई थी। इसमें भौगोलिक स्थिति, नागरिक सेवाओं और विकास पर विशेष जोर दिया गया। कचरे के उचित निपटान, सीवेज प्रबंधन, साफ पेयजल आपूर्ति और नदी घाटी प्रबंधन पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया।
हाल ही में जापान की प्रौद्योगिकी टीम ने इस क्षेत्र में विकास की संभावनाओं का विश्लेषण और अध्ययन करने के लिए काशी का दौरा किया था। विशेषज्ञों ने माना कि क्योटो के आधुनिकीकरण के लिए प्रयुक्त नवीन अनुसंधान का प्रयोग गंगा नदी पर निर्भर घनी आबादी वाले प्राचीन शहर काशी की विकास प्रक्रिया में किया जा सकता है। टीम ने इस क्षेत्र के विकास के लिए विस्तृत योजना बनाने पर भी जोर दिया।
क्योटो की सहायता से सबसे पहले काशी के विरासत स्थलों में बदलाव लाया जाएगा। क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बौद्ध स्थल सारनाथ जैसी जगहों के बारे में विचार-विमर्श किया गया।
संधि का उद्देश्य शहरों के बीच साझेदारी को मजबूत करने और तकनीकी पहलुओं के विस्तार, आधुनिकीकरण के साथ-साथ समृद्ध विरासत और संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से किये गए ‘काशी-क्योटो’ समझौते से एक नया दृष्टिकोण मिलेगा जिससे शहरों में सुधार लाने में मदद मिलेगी।