भारत ने 18,000 गांवों में बिजली पहुंचाने का महत्वाकांक्षी मिशन तय किया है। ये गांव आजादी के 7 दशक बाद आज भी अंधेरे में डूबे हुए हैं। प्रधान मंत्री मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में घोषणा की थी कि 1000 दिनों के भीतर सभी शेष गांवों में बिजली पहुंचा दी जाएगी। गांवों का विद्युतीकरण तेजी से हो रहा है। और, यह काम बहुत ही पारदर्शी तरीके से किया जा रहा है। एक मोबाइल ऐप और एक वेब डैशबोर्ड के जरिए विद्युतीकरण किए जा रहे गांवों के आंकड़े जनता के लिए उपलब्ध हैं। हालांकि हम गांवों में केवल बिजली को पहुंचता देख सकते हैं, लेकिन यह नोट करना भी महत्वपूर्ण है कि इसके साथ गांवों में रह रहे लोगों के सपने, आकांक्षाएं और जीवन में तरक्की करने की बातें भी जुड़ी होती हैं।

 

यह भुलाना मुश्किल है कि हमारे इतिहास में बिजली जाने की जो सबसे बड़ी घटनाएं हुई हैं उनमें से एक भारत में जुलाई 2012 में घटित हुई। इसने 62 करोड़ लोगों को अंधेरे में डुबो दिया था। इस अंधेरे ने राष्ट्र को घेर लिया, जबकि 24,000 मेगावाट से अधिक की उत्पादन क्षमता बेकार पड़ी है क्योंकि कोयला और गैस जैसे ईंधनों की कमी है। पूरा सेक्टर एक निष्क्रियता के दुष्चक्र और policy paralysis में फंस गया जिसमें एक ओर अतिरिक्त उत्पादन क्षमता और अत्यधिक अप्रयुक्त निवेश थे तो दूसरी ओर उपभोक्ताओं के लिए बड़ी-बड़ी बिजली कटौतियां।

पिछले वर्ष जब NDA सरकार सत्ता में आई, तो 2/3 कोयला आधारित बिजली के प्लांटों में (केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा ट्रैक किए गए अनुसार 100 में से 66 प्लांटों में) कोयले के क्रिटिकल स्टाक थे जिसका अर्थ यह है कि उनके पास 7 दिन से कम का कोयले का स्टाक बचा था। इस कठिन स्थिति से उबर आने के बाद, आज देश में एक भी बिजली के प्लांट को कोयले के क्रिटिकल लेवल का सामना नहीं करना पड़ रहा है।

सरकार ने सभी को बिजली उपलब्ध कराने की दिशा कठिन परिश्रम करने के साथ-साथ, क्लीन एनर्जी को भी अपनी प्राथमिकता बनाया है। उसने ऊर्जा के नवीकरण योग्य स्रोतों के द्वारा 175 GW एनर्जी का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, जिसमें 100 GW की सौर ऊर्जा भी शामिल है।

नई सरकार ने इस सेक्टर में संपूर्ण और दीर्घकालिक structural सुधारों पर फोकस किया है, जिसमें सभी के लिए चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध कराना शामिल है। विद्युत क्षेत्र की अच्छी स्थिति वृद्धि (growth) के आंकड़ों से साबित होती है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के अनुसार, अक्टूबर में विद्युत में 9% की वृद्धि हुई जबकि कोल इंडिया लिमिटेड के उत्पादन में अप्रैल-नवंबर के दौरान 9% की वृद्धि हुई। 2014-15 में कोल इंडिया द्वारा किये गए कोयले का उत्पादन पिछले चार वर्षों में कोयले के उत्पादन में हुई कुल वृद्धि से भी ज्यादा है। कोयला आधारित स्टेशनों के उत्पादन में वृद्धि 12.12% थी, जो अब तक की सबसे अधिक है। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा 214 कोल ब्लॉकों का आवंटन रद्द करने से उत्पन्न संकट को पारदर्शी e-auctions के जरिए एक अवसर में बदल दिया गया। इन सभी से प्राप्त आय राज्यों को जाती है विशेषकर पूर्वी भारत के कम विकसित राज्यों को।

पिछले वर्ष 22,556 मेगावाट की क्षमता वृद्धि की गई जो अब तक की सबसे अधिक है। Peak shortage का स्तर जो 2008-09 में 11.9% था, उसे कम कर 3.2% कर दिया गया, जो अब तक का सबसे कम है। मौजूदा वर्ष में ऊर्जा कमी 2008-09 के मुकाबले 11.1% से घटकर 2.3% रही है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है।

ट्रांसमिशन फ्रंट पर अधिक बिजली वाले राज्यों से कम बिजली वाले राज्यों तक बिजली आपूर्ति में बहुत सी अड़चने रही हैं। Southern Grid को 'One Nation, One grid, One Frequency' करने के लिए तेजी से synchronize के प्रयास किए गए थे। 2013-14 के दौरान Available transfer Capacity (ATC) केवल 3,450 MW थी जो इस महीने 71% बढकर 5,900 MW हो गई है।

Power value chain के सबसे कमजोर लिंक को ठीक करने की दृष्टि से UDAY (Ujwal DISCOM Assurance Yojana) को क्षेत्र की भूत, वर्तमान और भावी परेशानियों को दूर करने का काम दिया गया है। UDAY का विकास राज्यों (मुख्यमंत्री, मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिव, प्रबंध निदेशक, DISCOM इत्यादि), बैंकर्स और रेगुलेटर्स के उच्चतम स्तरीय परामर्श के bottom up approach से हुई थी। जहां तक DISCOMs' के debt trap से निपटने की बात है तो UDAY ने DISCOMs के लिए एक sustainable operational improvement का रास्ता निकाला है। सरकार भी बिजली लागत में कमी लाने के बहुत सारे उपाय कर रही है। आशा की जाती है कि 2018-19 तक सभी DISCOMs लाभ कमाने लगेंगी। UDAY- budgetary hard-stop के अंतर्गत DISCOM issues को परस्पर सहयोग से एक स्थायी समाधान प्रदान करता है, बिजली की लागत कम करने और बिजली दक्षता को बढ़ाने के लिए UDAY सुधार के पूर्व के प्रयासों में बिल्कुल अलग है।

ऊर्जा दक्षता जैसे क्षेत्रों में dynamic विकास देखा गया है, जहां LED bulbs की कीमतों में 75% तक की कमी हुई है और एक साल से भी कम अवधि में 4 करोड़ bulbs का वितरण किया गया है। सभी bulbs को LED bulbs से बदलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए 2018 तक 77 करोड़ bulbs का वितरण किया जाएगा। घरेलू और स्ट्रीटलाइट LED bulbs कार्यक्रम से peak-load demand में 22 GW तक कमी आएगी जिससे बिजली की प्रति वर्ष 11,400 करोड़ यूनिट की बचत होगी और प्रतिवर्ष 8.5 करोड़ टन कार्बन-डाई-आक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी। 22 GW क्षमता प्राप्त कर लेना एक ऐतिहासिक उपलब्धि माना जा सकता है किंतु इसका एक अलग पहलू भी है जहां पर्यावरण के संरक्षण के लिए ऐसे निवेशों से बचने को बेहतर मानने के लिए एक अलग नजरिया चाहिए।

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