2015 पूरे विश्व के लिए एक यादगार वर्ष था क्योंकि इसी साल दो महत्वपूर्ण समझौतों- एसडीजी और पेरिस जलवायु समझौते को अपनाया गया
पिछले दो दशकों में, पूरी दुनिया खासकर हमारे क्षेत्र में काफी बदलाव हुए हैं, जिनमें से अधिकांश सकारात्मक रहे हैं: प्रधानमंत्री
वर्तमान में एशिया के 30 से ज्यादा देशों ने आपदा जोखिम प्रबंधन प्रयासों के लिए कई अच्छे संस्थानों का गठन किया है: नरेंद्र मोदी
सभी विकास क्षेत्रों को आपदा जोखिम प्रबंधन के सिद्धांतों को आत्मसात करना चाहिए: प्रधानमंत्री
गरीब परिवारों से बहुराष्ट्रीय निगमों और देश के सभी राज्यों के लिए जोखिम कवरेज की दिशा में काम हो: नरेंद्र मोदी
हमें आपदा जोखिम प्रबंधन में महिलाओं के अधिक से अधिक सहयोग और नेतृत्व को बढ़ावा देना चाहिए: प्रधानमंत्री
आपदा जोखिम प्रबंधन के प्रयासों की दक्षता को बढ़ाने के लिए हमें प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए: नरेंद्र मोदी
आपदा से सिखने का मौका गंवाना नहीं चाहिए, हर आपदा के बाद एक सीख मिलती है जिसे शायद हम आगे इस्तेमाल कर सकें: प्रधानमंत्री

मंचासीन गणमान्य जन,

देवियों एवं सज्जनों,

मैं नई दिल्ली में आयोजित इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में आप सभी का स्वागत करता हूं जो आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर सेंडाइ फ्रेमवर्क को मंजूर किए जाने के बाद का पहला सम्‍मेलन है ।

मैं राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन एजेंसियों की एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सरकारों की संयुक्त राष्ट्र और अन्य साझेदारों की सराहना करता हूं जो इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर भारत में एकत्रित हुए हैं।

मित्रों,

2015 एक महत्वपूर्ण वर्ष था! सेंडाइ फ्रेमवर्क के अलावा, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मानवता के भविष्य को आकार देने के लिए दो अन्य प्रमुख व्यवस्थाओं को अपनायाः

-सतत विकास के लक्ष्यों को

-और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को

आंतरिक जुड़ाव की भावना जो फिल्म में दिखाई गई इन वैश्विक व्यवस्थाओं की पहचान है। इनमें से हर एक की सफलता बाकी दो की सफलता पर निर्भर करता है। सतत विकास के साथ ही आपदा जोखिम न्यूनीकरण जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के समर्थन में एक निर्णायक भूमिका अदा करेगा। इस संदर्भ में यह सम्मेलन सामयिक और प्रासंगिक हो जाता है।

मित्रों,

पिछले दो दशकों से ज्यादा समय से, दुनिया और खासकर अपने क्षेत्र में कई परिवर्तन हुए हैं- जिनमें से ज्यादातर सकारात्मक हैं। इस क्षेत्र के ज्यादातर देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था में बदलावा लाया है और वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास के इंजन बने हैं। करोड़ों लोगों गरीबी के अपने दायरे से बाहर हुए हैं। एशिया प्रशांत क्षेत्र किसी एक क्षेत्र की बजाय कई क्षेत्रों का अगुआ बनकर उभरा है।

लेकिन इस प्रगति को यू ही नहीं लेना चाहिए। चुनौतियां जस की तस बनी हुई हैं। पिछले 20 वर्षों में एशिया प्रशांत क्षेत्र में आपदा के चलते 5 लाख 80 हजार लोगों की मौतें हुई हैं। आपदा के कारण सबसे ज्यादा मरने वालों के लिहाज से शीर्ष दस देशों में एशिया प्रशांत क्षेत्र के सात देश शामिल हैं।  

मैंने खुद आपदा से पीड़ित लोगों को देखा है। मुख्यमंत्री रहते हुए मैंने 2001 को गुजरात का भूकंप देखा है। भूकंप के बाद मैंने अपने लोगों के साथ बचाव कार्य किया है। आपदा पीड़ित लोगों को देखना पीड़ादायक होता है। लेकिन मैं आपदा से उबरने के लिए लोगों के साहस,सरलता और संकल्प से प्रेरित हुआ था। मेरे अनुभव से, बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए हमें लोगों के नेतृत्व पर भरोसा करना होगा। यह केवल अपने लिए घर के निर्माण तक सीमित नहीं था। बल्कि लोगों ने सामुदायिक स्तर पर भी ऐसे कार्यों को अंजाम दिया। उदाहरण के लिए बता दें कि जब हमने समुदाय के एक स्कूल के निर्माण का कार्य सौंपा तो न केवल भूकंप रोधी इमारत को समय पूर्व तैयार कर लिया गया बल्कि लागत भी आई और शेष बची राशि को सरकार को वापस कर दिया गया। हमें नीतियों और कार्यों के जरिये ऐसी पहलों का समर्थन करने की जरूरत है।.

दोस्तों,

हमने एशिया में आपदाओं से सीखा है। कुछ वर्षों पहले केवल मुट्ठीभर एशियाई देशों के पास राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान हुआ करते थे। लेकिन आज तीस से ज्यादा एशियाई देशों के पास अग्रणी एवं प्रतिबद्ध आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रबंधन संस्थान हैं। हिन्द महासागर में 2004 के सुनामी के बाद पांच सबसे ज्यादा प्रभावित देशों ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रबंधन को लेकर नए कानून बनाए। कुछ ही दिनों में हम पहला अंतरराष्ट्रीय सुनामी जागरूकता दिवस मनाएंगे। यह दिन हमारे लिए सुनामी पूर्व चेतावनी की दिशा में बहुत बड़ा सुधार करने को लेकर जश्न मनाने का एक अवसर होगा। पूर्व चेतावनी के अभाव और तैयारी न होने की वजह से हम दिसबंर 2004 में आई सुनामी की चपेट में आ गए थे। लेकिन अब हमारे पास पूरी तरह से सक्रिय इंडियन ओसियन सुनामी वार्निंग सिस्टम है। अपने ऑस्ट्रेलियाई और इंडोनेशियाई सहयोगियों के साथ मिलकर यह प्रणाली काम करेगी। इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओसियन इंफॉर्मेशन सर्विसेज के लिए क्षेत्रीय स्तर पर सुनामी को लेकर बुलेटिन जारी करना अनिवार्य होगा।  

इसी तरह चक्रवात को लेकर पूर्व सूचना जारी करने की दिशा में किए गए हैं। भारत में, अगर हम 1999 और 2013 में चक्रवात के प्रभावों की तुलना करें तो प्रभाव स्पष्ट नजर आएंगे। इसी प्रकार से कई अन्य देशों ने प्रगति की है। उदाहरण के तौर पर, 1991 के चक्रवात के बाद बांग्लादेश सरकार ने चक्रवात के प्रभावों से निपटने के लिए एक सामुदायिक कार्यक्रम तैयार किया था जिससे चक्रवात से होने वाले आर्थिक और मानवीय नुकसान में कमी आई। इसे दुनिया का सबसे अच्छा वैश्विक कार्यक्रम माना जाता है।

 

 

दोस्तों,

अभी तो यह शुरुआत भर है। आगे और चुनौतियां हैं। एशिया प्रशांत में बड़ी तेजी के साथ शहरीकरण हो रहा है। दशक भर के भीतर इस क्षेत्र में लोग गांवों की तुलना में शहरों ज्यादा रहना शुरू कर देंगे। आपदा संभावित क्षेत्रों में सबसे ज्यादा आबादी के केंद्रीकरण, एक छोटे से क्षेत्र में संपत्ति एवं आर्थिक गतिविधियों के कारण हो रहे इस शहरीकरण के चलते आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रबंधन के सामने बड़ी चुनौतियां पेश आने वाली हैं। योजनागत एवं उसके कार्यान्वयन को लेकर अगर हम इस प्रगति का प्रबंधन नहीं कर पाए तो आपदा से होने वाला मानवीय और आर्थिक नुकसान पहले की तुलना में ज्यादा होगा।

इस संदर्भ में, आपदा जोखिम में कमी करने की दिशा में हमारे प्रयासों के नवीकरण के लिए एक दस सूत्री एजेंडे की रूपरेखा तैयार किया है, जो इस प्रकार हैं:

पहला, विकास के सभी क्षेत्रों में हमें आपदा न्यूनीकरण प्रबंधन के सिद्धांतों को आत्मसात करना होगा। इसे विकास कार्यों के सभी क्षेत्रों मसलन, हवाईअड्डों, सड़कों, नहरों, अस्पतालों, स्कूलों और पुलों के निर्माण के दौरान उचित मानकों को सुनिश्चित करना होगा। इसे सामुदायिक लचीलेपन से हासिल किया जा सकता है। अगले दो दशकों में तैयार होने वाले दुनिया के सबसे बड़े बुनियादी ढांचे हमारे क्षेत्र में होंगे। हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इनके निर्माण में आपदा सुरक्षा के उच्च मानकों का पालन किया जाए। यही स्मार्ट रणनीति होगी, जो दीर्घकालिक भी होगी।

हमें अपने सभी सार्वजनिक व्यय के खाते के बारे में विचार करना होगा। भारत में, ‘सभी के लिए घर’ और ‘स्मार्ट सिटी’ योजना पहलों के चलते इस तरह के अवसर आएंगे। इस क्षेत्र में भारत अपने अन्य भागीदार देशों और हितधारकों के साथ मिलकर आपदा से उबरने की क्षमता के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए एक गठबंधन या केंद्र का निर्माण करेगा। इससे आपदा जोखिम मूल्यांकन, आपदा से उबरने की क्षमता वाली प्रौद्योगिकियों और तंत्र को विकास में बुनियादी ढांचे के एकीकृत वित्तपोषण में जोखिम कम करने के लिए ज्ञान का सृजन होगा।

दूसरा, हमें जोखिम से सभी को उबारने की दिशा में काम करने की जररूत है ।  गरीब घरों से लेकर छोटे एवं मध्यम उद्योगों तक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों से लेकर राज्यों तक काम करने की जरूरत है। अभी इस क्षेत्र में, अधिकतर देशों ने केवल मध्यम से लेकर उच्च मध्यम वर्गों के लिए ही बीमा का सीमित प्रबंध किया है। हमें बड़ा और नवोनमेषी तरीके से सोचने की जरूरत है। सरकारों की भूमिका न सिर्फ इसके नियमन की है बल्कि आपदा पीड़ितों को उबारने वाले कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने वाली भी होनी चाहिए जिसकी ज्‍यादा लोगों को जरूरत है। भारत में, हमने गरीबों की खातिर वित्तीय समावेशन और जोखिम बीमा को सुनिश्चित करने को लेकर बड़े कदम उठाए हैं। जन धन योजना ने करोड़ों लोगों को बैकिंग कार्य प्रणाली से जोड़ा है। सुरक्षा बीमा योजना ने करोड़ों लोगों को जोखिम बीमा मुहैया कराया है जिन्हें इसकी सख्‍त जरूरत है। हमने फसल बीमा योजना भी शुरू की है जिससे करोड़ों किसानों को आपदा से राहत मिल सके। ये घरेलू स्तर पर किए जाने वाले बुनियादी उपाय हैं।

तीसरा, आपदा जोखिम प्रबंधन में अधिक से अधिक भागीदारी और महिलाओं के नेतृत्व को प्रोत्साहित किया गया है। अधिकतर महिलाएं ही आपदाओं से प्रभावित होती हैं। उनमें अद्वितीय शक्तियां और अंतर्दृष्टि होती है। आपदा से प्रभावित महिलाओं के लिए विशेष सहयोग की जरूरत होती है। इसलिए इस संकट से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर महिलाओं को स्वयंसेवक के तौर पर प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है। पुननिर्माण के लिए हमें महिला इंजीनियर, राजमिस्त्री, निर्माण कारीगरों और महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को तैयार करने की जरूरत है ताकि प्रभावित महिलाओं को विशेष तरीके मदद मुहैया कराई जा सके।

चौथा, विश्व स्तर पर जोखिम मानचित्रण में निवेश करने की जरूरत है। आपदाओं से संबंधित मानचित्रण तैयार करने की आवश्यकता है मसलन भूकंप के लिए हमें व्यापक तौर मानकों एवं मानदंडों को स्वीकार किए जाने की जरूरत है। इस आधार पर, भारत में सिस्मिक जोन का मापचित्र तैयार किया है। इसमें पांच उच्च खतरे वाले और दो कम खतरे वाले सिस्मिक जोन हैं। इस तरह रासायनिक खतरों, जंगल की आग, चक्रवात, विभिन्न प्रकार की बाढ़ और अन्य खतरों से संबंधित आपदा जोखिम के लिए हमें विश्व स्तरीय जोखिम श्रेणियां विकसित करने की जरूरत है। इससे हमें प्रकृति और दुनिया के विभिन्न भागों में आपदा जोखिम की गंभीरता को लेकर एक आम समझ बनाने में मदद मिलेगी।

पांचवां, हमें आपदा जोखिम प्रबंधन के प्रयासों की दक्षता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना होगा। एक ई-प्लेटफार्म के जरिये संगठनों, व्यक्तियों को एक मंच पर लाना होगा जिससे कि दक्षता, प्रौद्योगिकी और संसाधनों के उचित आदान-प्रदान आपदा जोखिम प्रबंधन की क्षमता को बढ़ाया जा सकेगा तथा इससे हमारे प्रयासों का प्रभाव ज्यादा होगा।

छठवां, आपदा के मुद्दे पर विश्वविद्यालयों का एक नेटवर्क तैयार करना होगा। आखिरकार, विश्वविद्यालयों का भी एक सामाजिक दायित्व होता है। सेंडई फ्रेमवर्क के पांच वर्षों के बाद हमें वैश्विक स्तर पर विश्वद्यालों का एक नेटवर्क तैयार करना चाहिए जिससे वे साथ मिलकर आपदा जोखिम प्रबंधन को लेकर कार्य करें। इस नेटवर्क के अलावा, विभिन्न विश्वविद्यालय आपदा मुद्दों पर इन दोनों क्षेत्रों में विशेषज्ञता पूर्ण अनुसंधान के काम को अंजाम दे सकेंगे, जो ज्यादा प्रासंगिक साबित होगा। तटवर्ती क्षेत्रों में स्थित विश्वविद्यालय तटीय खतरों से जोखिम के प्रबंधन में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं और इसी तरह पहाड़ी शहरों में स्थित लोगों को पहाड़ के खतरों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।

सातवां, सोशल मीडिया और मोबाइल तकनीकी से मिले अवसरों का भी इस दिशा में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। सोशल मीडिया आपदा प्रतिक्रिया को बदल रहा है। यह तेजी से एजेंसियों की मदद कर रहा है और इससे आसानी से नागरिक संबंधित प्राधिकारियों से संपर्क स्थापित कर लेते हैं। आपदा में और आपदा के बाद प्रभावित लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए सामाजिक मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। हमें सोशल मीडिया की संभावनाओं का इस्तेमाल करने की जरूरत है और ऐसे एप्लिकेशन तैयार करने की जरूरत है जो आपदा जोखिम प्रबंधन में मददगार साबित हो सकें।

आठवां, स्थानीय क्षमता और पहल का निर्माण करें। आपदा जोखिम प्रबंधन के कार्य, विशेष रूप से तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में, जो इतना बड़ा है कि राज्य की औपचारिक संस्थानों में सबसे अच्छा सक्षम करने के लिए परिस्थितियों का निर्माण करने में सहायक हो सकता है।विशिष्ट कार्य योजना तैयार किया जा रहा है और उसे स्थानीय स्तर पर लागू किया जा रहा है। पिछले दो दशकों में, समुदाय आधारित प्रयासों को अल्पावधि के लिए आपदा तैयारियों को आकस्मिक योजना तक ही सीमित कर दिया गया है। हमें समुदाय आधारित प्रयासों  औऱ सतत जीवन के दायरों का विस्तार करने की जरूरत है। हमें आपदा जोखिम में कमी के लिए स्थानीयकरण को सुनिश्चित करने के वास्ते सर्वोत्तम पारंपरिक प्रथाओं और स्वदेशी ज्ञान को सबसे सदृढ़ बनाना होगा।

आपदा से उबारने वाली एजेंसियों को अपने स्थानीय समुदाय से संवाद स्थापित करना होगा और उन्हें आपदा से निपटने के लिए आवश्यक रूप से सक्षम बनाना होगा। उदाहरण के तौर देखें, अगर एक अग्नि शमन दल हर हफ्ते अपने इलाके एक स्कूल का दौरा करता है तो इससे साल भर में स्कूल के बच्चे इसे लेकर संवनेदनशील बनेंगे।

नौवां, यह सुनिश्चित करें कि आपदा प्रबंधन को लेकर अर्जित किया ज्ञान बेकार नहीं जाएगा। हर आपदा के बाद तैयार की गए कागजात एवं रिपोर्टों से मिले ज्ञान का इस्तेमाल मुश्किल से ही हो पाता है। इस तरह की गलतियां अक्सर दोहराई जाती हैं। हमें सीखने के लिए प्रणाली को अधिक से अधिक उपयोगी बनाने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र ने डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता की शुरुआत की है ताकि आपदा के समय के हालातों, राहत एवं बचाव कार्यों को रिकॉर्ड किया जा सके।

आपदा से उबरने के बाद भौतिक ढांचा को तैयार करना न सिर्फ एक ‘निर्माण कार्य’ है बल्कि यह आपदाओं से निपटने में संस्थागत प्रणाली में सुधार का भी मौका होता है। इन सब प्रणालियों को खड़ा करने की जरूरत है ताकि तेजी से आपदा का मूल्यांकन किया जा सके। आपदा के बाद घरों के पुनर्निर्माण के लिए तकनीकी सहायता को लेकर सुविधा स्थापित करने के लिए भारत अपने भागीदार देशों और बहुपक्षीय विकास एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेगा।

और अंततः आपदाओं से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक से अधिक सामंजस्य लाना होगा। एक आपदा के बाद, इसकी जिम्मेदारी सारी दुनिया को लेनी होगी। अगर हम एक आम छतरी के नीचे काम करना स्वीकार करें तो यह हमारी सामूहिक ताकत और एकजुटता को आगे बढ़ाया जा सकता है ।

 

दोस्तों,

सशस्त्र बल बाहरी खतरों से राष्ट्र की सुरक्षा करते हैं। लेकिन आपदाओं से निपटने के लिए हमें समाज को उचित शिक्षा से लैस करना होगा।

हम तहे दिल से सेंडाइ की भावना को गले लगा रहे हैं जिसमें आपदा जोखिम से निपटने के लिए एक सामाजिक दृष्टि अपनाने की अपील करता है।

भारत में, हम सेंडाई फ्रेमवर्क के क्रियान्वयन के लिए बातचीत करने को तैयार हैं। इस साल जून में, भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को जारी कर दिया गया जिसमें सेंडाई फ्रेमवर्क की प्राथमिकताएं शामिल हैं।

हम आपदाओं से निपटने के लिए इस क्षेत्रों के देशों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम करेंगे। क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग इस तरह को कार्यों को आगे बढाने में मददगार साबित होंगे।

पिछले साल नवंबर में, भारत ने पहला दक्षिण एशियाई वार्षिक आपदा प्रबंधन अभ्यास का आयोजन किया था। क्षेत्रीय सहयोग की भावना के साथ भारत जल्द ही साउथ एशिया सेटेलाइट का प्रक्षेपण करेगा। इस उपग्रह में और अन्य प्रौद्योगिक आपदा जोखिम प्रबंधन में मदद मिलेगी। इससे जोखिम मूल्यांकन, जोखिम न्यूनीकरण, तैयारियों औऱ प्रतिक्रिया में भी मदद मिलेगी। भारत आपदा जोखिम प्रबंधन के प्रयोजनों के लिए किसी भी देश के लिए अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को उपलब्ध बनाने के लिए तैयार है।

हमने जैसे सेंडई फ्रेमवर्क का कार्यान्वयन किया है, उसी तरह हम क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए नए अवसरों का स्वागत करेंगे।

मुझे पूरा विश्वास है कि यह सम्मेलन सामूहिक कार्रवाई के लिए एक ठोस खाका प्रदान करेगा और अपने प्रयासों के परिणामों को ऊर्जा देगा।

शुक्रिया